न अस्ती बुद्धि अयुक्तस्य न च अयुक्तस्य भावना

न अस्ती बुद्धि अयुक्तस्य न च अयुक्तस्य भावना

न अस्ती बुद्धि अयुक्तस्य – असंयम के कारण अगर बुद्धि स्थिर नहीं है, तो निश्चित रूप से वह सूक्ष्म भी नहीं हो सकती। और वह सूक्ष्म नहीं है, तो वह आध्यात्मिक विषयों को भी धारण नहीं कर पाएंगी। जिस मनुष्य में विवेचना की क्षमता नहीं रहेगी,उसकी बुद्धि, नीर -क्षीर विवेकी नहीं हो पायेगी। केवल त्वरित लाभ अर्थात तात्कालिक लाभ के लिए संकीर्णता के वशीभूत बुद्धि दौड़ती तो रहेगी, पर उससे आगे की आशा करना कठिन है। बुद्ध स्थिर नहीं है, सूक्ष्म नहीं है, तो उसमें भावना भी जागृत नहीं हो सकती है। न अस्ति बुद्धि अयुक्तस्य न च अयुक्तस्य भावना।

भाव रूपी क्षमता, भाव रूपी ऊर्जा, भाव रूपी इंधन के आधार से नई रचनाएं संभव होती हैं। भावना की क्षमता ही ईश्वर के अवतरण को बाध्य करती है। पदार्थ जगत माया की रचना है, आध्यात्मिक जगत में भाव ही संकल्प बनता है, भाव दृढ नहीं तो कहीं कोई भी आधार नहीं मिलेगा। भाव के अभाव में किसी भी विचार को योजना को, कल्पना को टिकने का आधार नहीं मिलेगा। भाव जागृत नहीं होगा, भाव सबल और पुष्ट नहीं होगा तो कुछ भी सार्थक जीवन में संभव ही नहीं है।

बाहरी लौकिक जीवन हो अथवा भीतर का आध्यात्मिक जीवन हो, भाव स्थिर होता है तो संकल्पो पर आरुढ हो जाता है। शिव संकल्प पर आरूढ वही होता हैं जिसका भाव स्थिर हो गया। वह दृढ़ भाव स्थिरता के बिना कोई भी अवतरण, निर्माण,रचना असंभव है। दृढ़ भाव के अभाव में जीवन काल के चलते चक्र के अनुरूप चलता चला जाएगा जैसे भीड़ में फंसा एक जीव,पर उससे किसी नई रचना की आशा संभव नहीं है। वह तभी संभव है जब वह भावना के आधार पर भी दृढ़ हेे, स्थिर है,स्पष्ट है।

असयंम में व्यक्ति की बुद्धि स्थिर नहीं रहती, सूक्ष्म नहीं रहती ना बुद्धि स्थिर ना सूक्ष्म तो कहां से भाव स्पष्ट होगा, और भाव स्पष्ट जागृत नहीं होने के कारण कोई नई संभावना कहां से आएगी। प्लानिंग बोर्ड पर जाने के लिए भी तो बुद्धि की स्थिरता परम आवश्यक है। अन्यथा भाव जागेगा ही नहीं। भाव केवल स्ट्रीट स्मार्टनेस के नाते तात्कालिक छोटी-छोटी उपलब्धियों मे ही जीवन की इति श्री कर जाएगा।

यह यात्रा आरंभ कहां से हुई, संयम से, संयम का तात्पर्य तप, तप से बुद्धि की नीर-क्षीर विवेकी क्षमता का विकास होता हैं । क्या ठीक, क्या नहीं,उसके लिए सूक्ष्म विषयों पर विवेचना की क्षमता होना आवश्यक है। तभी कोई सार्थक शिव संकल्प प्राप्त होगा जिस पर तुम दृढ रहोगे, अन्यथा प्रतिपल नया भाव आएगा और बदलते मौसम की भांति चला जाएगा। कुछ दिन वह टिकेगा,फिर हवा हो जाएगा । प्रतिदिन क्या पूछते हैं आज मौसम कैसा है ? इसलिए तो अधिकांश जीवन में मौसम को मुख्य मानकर चर्चा होती है। चूँकि बुद्धि युक्त नहीं है इसलिए इस जाते हुए की भांति हाल चाल पूछा और बताया जाया है।

सूक्ष्म बुद्धि का आरम्भ संयम से ही होता है। बात कहां से कहां जाएगी, असंयम से आरम्भ हुई और अस्थिरता पर गईं, अस्पष्टता पर गई, और भावना के पूर्ण भाव पर गईं। जीवन में कुछ करना है तो संयम चाहिए ,बुद्धि की सूक्ष्मता होगी, मनन करने की वह क्षमता जिससे हम कुछ सूक्ष्म विषयों पर भी विचार कर सकेंगे, स्पष्टता को प्राप्त हो सकेंगे, स्थिरता, दृढ़ता को प्राप्त हो सकेंगे तभी जीवन में कुछ सार्थक करना संभव होगा।

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