उपनिषद् जो मिथ्या का झूठ का नाश कर दे, उसे सत कहेंगे, अतः उप+नी+सत अर्थात जो अनुशासन स्वरूप पास बैठने पर मिथ्या रूपी अज्ञानता का नाश कर दे। यह कार्य केवल आत्मविद्या द्वारा ही सम्भव है। उपनिषद् शब्द का यही मर्म है। अंधकार रूपी अज्ञानता के अनेक स्वरूप हैं, अज्ञानता जो हमारे जीवन के विषयों पर वृत्तियाँ बन कर काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, वासना न जाने कितने स्वरूपों में आकर विक्षेप बन हमे आत्मोत्कर्ष पथ पर अग्रसर नहीं होने देते हैं। उपनिषद् वह ज्ञान है जिसे केवल बुद्धि के धरातल पर टिकाना मात्र नहीं है अपितु उसे हमारे अस्तित्व में घुल जाना है। उपनिषद् के मर्म को हमारे भीतर की चेतना मन, बुद्धि, चित्त रूपी प्रयोगशाला में घटाना है।
ईशावास्योपनिषद अध्ययन से आज के आधुनिक मानस को क्या लाभ है ?
व्यस्त जीवन में भी आंतरिक स्वतंत्रता सिखाता है ; आज का जीवन तेज़ गति, प्रतिस्पर्धा और तनाव से भरा है।
ईशावास्योपनिषद् सिखाता है -
1. “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।”
(कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए।) आप अपने कार्य, परिवार और महत्वाकांक्षाओं में पूरी तरह सक्रिय रह सकते हैं, फिर भी भीतर से स्वतंत्र बने रह सकते हैं। अर्थात् कर्म करते हुए भी मन में शांति और आसक्ति से मुक्ति।
2. “तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा” - “त्याग से ही भोग करो।”
यह आनंद का अर्थ बदल देता है — सुख वस्तुओं में नहीं, संतोष में है।
जब व्यक्ति भीतर से पूर्ण महसूस करता है, तो लोभ, तुलना और असुरक्षा स्वतः कम हो जाती है।
यही आंतरिक समृद्धि है।
3. आत्मबोध और विवेक बढ़ाता है।
ईशावास्योपनिषद् हमें पूछने को प्रेरित करता है -
“मैं वास्तव में कौन हूँ?”
जब व्यक्ति स्वयं को जान लेता है, तो वह न तो असफलता से टूटता है, और न सफलता से अहंकारी होता है।
यह अंतरस्थिरता (Inner Stability) सिखाता है। जो किसी भी आधुनिक मन के लिए सबसे बड़ी शक्ति है।
4. तनाव को स्थिरता में बदल देता है। इस उपनिषद् का ध्यान “सबमें एकता” की अनुभूति कराता है। जहाँ द्वंद्व नहीं, वहाँ तनाव नहीं।
यह मन से संघर्ष, तुलना और असंतोष मिटा देता है।
आप सफलता और असफलता — दोनों में समान बने रहते हैं।
यही है “समत्व भाव”, जो आधुनिक मन को स्थिर करता है।
5. और भी बहुत कुछ जो इस अध्ययन और सम्बंधित ध्यान की धारणाओं से जिज्ञासुओं को प्राप्त होता रहेगा। 18 श्लोकों के साथ ध्यान का महत्व इस उपनिषद् के गूढ़ मर्म की स्थापना अस्तित्व स्तर पर इसके ज्ञान की प्राण प्रतिष्ठा करती है।
* यह सम्पूर्ण अध्ययन लगभग 30 से 33 घंटे की अवधि का रहेगा। प्रत्येक कक्षा लगभग 80 मिनट की अवधि की रहेगी। मात्र कुछ कक्षाओं की अवधि 30 से 60 मिनट की रहेगी। प्रश्नोत्तर हेतु अलग से सत्र रहेंगे जिस हेतु जिज्ञासुओं को ईमेल के द्वारा पूर्व में लिखित प्रश्न भेजने होंगे जिनका उत्तर कक्षा विशेष में दिया जायेगा।
* कक्षाओं के साथ enotes का सूक्ष्म स्वरूप में प्रावधान रहेगा।
* कक्षाओं की रिकॉर्डिंग प्रत्येक जिज्ञासु को 48 घंटे की अवधि हेतु प्रदान की जाएगी।
इस ऑनलाइन अध्ययन हेतु देय राशि: ₹5,500
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