Gayatri Sadhna (Hindi and English)

गायत्री महामंत्र और प्राण


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।

24 अक्षरों का यह एक समूह , एक संरचना है, जो तत् से आरंभ होकर के प्रचोदयात् तक 24 अक्षर हमारी संततियों को एक अनमोल थाती स्वरूप प्राप्त है। इस मन्त्र में तीन व्याहृतियाँ हैं: भूः भुवः स्वः । यह व्याहृतियाँ एक परिचय है, जो परमात्मा को दिया गया है।

भूः भुवः स्वः। भूः अर्थात वह प्राण का स्वरूप हैं। का प्रथम परिचय जो गायत्री महामंत्र में दिया गया, वह प्राण (ऊर्जा-शक्ति)के स्वरूप में है। गायत्री शब्द का मर्म वेदों में प्राण की रक्षा करने वाली बताया गया है। जो प्राण की रक्षा करे, जो एनर्जी (Energy) की रक्षा करे, वह गायत्री

अर्थात् गायत्री महामंत्र में भी यह संकेत स्वरूप समझाया गया कि जो शक्ति है, जो एनर्जी है, जिसके द्वारा जगत में यह सब कुछ चलायमान है, जिसके द्वारा यह पूरी सृष्टि गतिमान , सक्रिय है, (Motion of the entire existence)। उसका कितना बड़ा महत्व है और उसकी सुरक्षा सबसे पहले निश्चित होनी चाहिए। इसलिए गायत्री को हमारे यहाँ महामंत्र की संज्ञा दी गई है। अनेकों मंत्रों के होते हुए भी एक ही मंत्र महामंत्र क्यों, एक ही मंत्र गुरु मंत्र क्यों? यह रहस्य उसके नाम अर्थात गायत्री शब्द एवं उसके परिचय अर्थात व्याहृतयों में खोला गया है।

ॐ भूर्भुवः स्वः। ॐ समस्त तरंगो की उत्पत्ति की माँ है।  (Mother of all vibrations) सभी तरंगों की, जहाँ से उत्पत्ति है। तीन अक्षर(अ + उ + म) और अमात्रा मिलकर हैं, जब वह कंपायमान होता है, तभी सब कुछ संभव होता है। अगर वो कंपायमान न हो, तो कुछ भी इस सृष्टि में संभव नहीं हो सकता। समूची तरंगें वहीं से आई हैं। और वह मूल तरंग ऐसी है, जिसके होने से सक्रियता है, जिसके होने से प्राण हैं, वह प्राण स्वरूप है। जैसे ही सक्रियता आती है, तत्काल निष्क्रियता चली जाती है। निष्क्रियता का जाना ही सभी दुःखों का अंत है।

जहाँ निष्क्रियता हो गई, वहाँ दुःख आ गया। चाहे वो बात किसी अर्थ चक्र (Economy) की हो, शरीर में भी जो अंग शिथिल हो जाता है, निर्जीव हो जाता है, निष्प्राण हो जाता है, वहाँ रोग सक्रिय हो जाते हैं। और जैसे ही वो अंग सतेज होता है, जागृत होता है, प्राणपूरित होता है, वैसे ही वह अंग अपने आप में सक्रियता को प्राप्त कर लेता है। अतः हमारे यहाँ प्राण का न होना, एनर्जी का न होना, उचित सक्रियता का नहीं होना (absence of right activity) वह हमारे यहाँ दुःखों का कारण माना गया है। इसलिए कहा गया ॐ भूर्भुवः स्वः। वो प्राण का स्वरूप है, समूचे पोषण का स्वरूप है। उसके आते ही समूचे दुःख समाप्त हैं। और दुःख का समाप्त होना, रात्रि का जाना, प्रातः का आना होता है। दुःखों का अंत होता है तो सुख का स्वरूप जागृत होता है। भूः अर्थात प्राण। भुवः अर्थात दुखों का नाश और स्वः अर्थात सुख का स्वरूप। 

जहां कहीं भी ऊर्जा की आपूर्ति प्रचुर मात्रा में होने लगती है वहीँ अभाव दूर होने लगते हैं। (When energy deficiency is eliminated in any form, wherever and in  whatever form), तभी दुःखों का नाश होता है और सुख का आगमन होना आरंभ कर देता है। गायत्री में ॐ भूर्भुवः स्वः में यह संदेश मुखर रूप से दिया गया। 

उसके उपरांत उन्होंने वो 24 तरंगें चुनी गयी जो  से ही उद्भासित होती हैं। 

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