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ब्रह्म मुहूर्त: का महत्व और ध्यान साधना

ब्रह्म मुहूर्त में क्यों उठना चाहिए? ब्रह्म मुहूर्त का ऐसा क्या महत्त्व है कि हमारे ऋषियों ने आदिकाल से इस पर इतना अधिक बल दिया है? ऐसा क्या है जो ब्रह्म मुहूर्त के साथ इतना जुड़ा है?

स्वास्थ्य की दृष्टि से तो बात समझ में आती है, पर अध्यात्म की दृष्टि से इतना अधिक बल ब्रह्म मुहूर्त पर क्यों दिया गया? कोई ऐसा कारण निश्चित रूप से रहा होगा जो सूक्ष्म स्तर पर मनुष्य को प्रभावित करता होगा, जिसके लिए ऋषियों ने इतने बड़े बल के साथ इसे बार-बार अनेक रूपों में दोहराया। गुरु जनों के माध्यम से ये आज हम तक एक स्थापित सत्य के स्वरूप में पहुंचा है। यह भी सत्य है कि ब्रह्म मुहूर्त में उठ पाना हर किसी के लिए सहज नहीं होता है।

हमारी प्राचीन भारतीय मनीषा की विद्या के अनुसार एक दिन में अर्थात दिन और रात मिला लें तो लगभग 30 मुहूर्त होते हैं। अड़तालीस(48) मिनट के आस पास का एक मुहूर्त बताया गया है और 2 मुहूर्त मिल जाएं, जो लगभग 96 मिनट के आसपास का समय बैठता है। मोटे रूप में से आप 2 घंटे माने तो अधिक उपयुक्त रहेगा। 2 घंटे का समय। ब्रह्म मुहूर्त का समय सूर्योदय से दो घंटे पूर्व का है। जब सूर्य की रश्मियां अभी पृथ्वी पर आई नहीं होती, उनके आगमन की प्रतीक्षा होती है वह काल ब्रह्म मुहूर्त का एक विशेष विशिष्ट काल के रूप में जाना जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इसमें क्या महत्व है, यह तथ्य अनेक चिकित्सकों ने अपने शब्दों में बहुत प्रकार से व्यक्त किया। हम ब्रह्म मुहूर्त के महत्व को विशेष रूप से अध्यात्म के साथ जोड़ कर समझते हैं।

हम यह भी समझेंगें की इसका कौनसा महत्व हम सब के व्यावहारिक जीवन में जुड़ता है, अर्थात हमारी Inner Alignment, हमारे भीतर का समन्वय, हमारे भीतर की स्थिरता, हमारे भीतर की शांति, हमारे भीतर की ऐसी समरसता। कुल मिलकर कहें तो एक ऐसा प्रभाव जिससे हमारी क्षमताएं विकसित हों, हमारे निर्णय लेने की क्षमता में बहुत बड़ी प्रखरता आए, वह विकसित हो, और साथ ही साथ हमारे भीतर स्फुरणा, जिसे हम Intuition कहते हैं, रचनात्मक विचार धारा, जिसे हम Ideation के नाम से भी संबोधित करते हैं, इन सब में विकास हो सके, यह पक्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जो सामान्य व्यक्ति के जन जीवन को बहुत बड़े स्तर तक प्रभावित करता है। Integration, Ideation, Intuition, Alignment, यह अंग्रेजी के सामान्य शब्द हैं, जिनके नाते हम लोग इन विषयों के बारे में जानते हैं। ब्रह्म मुहूर्त के समय यह बात सत्य है कि Conscious Mind (चेतन मन) उतना सक्रिय नहीं होता, क्योंकि हम गहरी निद्रा में होते हैं। जब उठते भी हैं तो सक्रिय मन निष्क्रिय अवस्था में तो नहीं। लेकिन हाँ, एक आंशिक निष्क्रियता उसमें Inactivity रहती है।

ब्रह्म मुहूर्त के पलों में वो विचार जो दिन भर में कौंधते रहते हैं। The Brain Popping Machine जिसमें हज़ारों-सैकड़ों की संख्या में विचार आ करके और हमें त्रस्त कर चले जाते हैं, उस अवस्था से अनेकों स्तरों पर उस समय हम मुक्त रहते हैं। ऐसे में अगर कोई अंतर्मुखी अभ्यास किया जाए, ऐसे में अगर अपने भीतर उतरने की चेष्टा की जाए। वह प्रयास आरम्भ में भले ही असफल रहे, इससे कोई अंतर् नहीं पड़ता, पर निश्चित रूप से उसका सूक्ष्म प्रभाव हमें हमारे अस्तित्व के बहुत बड़े स्तरों तक आकर प्रभावित करेगा। और यह बात केवल सुनी सुनाई नहीं, व्यक्तिगत अनुभव पर भी आधारित है।

ब्रह्ममुहूर्त की बेला के विषय पर बहुत से ऋषियों का यह कथन है कि ऐसे समय में सूक्ष्म ऋषियों का देवात्मा हिमालय से एक विशेष प्रसारण आरम्भ होता है। अपनी सनातन देव संस्कृति के अंतर्गत ऐसे सत्य को जो हमारे सिद्धों के द्वारा हमें प्रदान किया जाता है, उस पर हम अपनी शंका को सर्वप्रथम सामने नहीं लाते। सबसे पहले अनुभव की प्रयोगशाला में उसे ले जाते हैं और व्यक्तिगत आधार पर उसे जानने और जांचने की चेष्टा करते हैं। उसे तत्काल हम केवल अपनी तार्किक बुद्धि के द्वारा निरस्त नहीं करते। क्योंकि तार्किक बुद्धि संशयात्मक होती है। वो मन के आधार पर निश्चयात्मक नहीं, संशयात्मक होती है। तत्काल आकर के शंका या कुतर्क उपस्थित करती है। ऐसे में आवश्यक होता है कि आस्था का सहारा लेते हुए ऐसे किसी भी महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले हम आधार दें, We Allow It To Ground और वह आधार कैसे दें? उस तथ्य को मान करके अपना प्रयोग आरम्भ करें।

सनातन देव संस्कृति में अध्यात्म प्रयोग का ही नाम है। अपने शरीर को प्रयोगशाला बना कर के चेतना के नए-नए और बड़े-बड़े प्रयोग हमारे ऋषियों ने किए। जिसके कारण चेतना का विज्ञान अध्यात्म हम तक पहुँच पाया है।

उसी के आधार पर ऋषियों ने कहा है कि ब्रह्म मुहूर्त में देवात्मा हिमालय से एक विशेष प्रसारण ब्रह्म ऋषियों के द्वारा आरम्भ किया जाता है। A Special Broadcast Is Initiated During The Moment Of Brahma Muhurt। तो आवश्यक है कि उसे सबसे पहले अनुभव की प्रयोगशाला में हम लेकर के चलें, कुछ दिन उसका निर्वाह करें और जानने की चेष्टा करें। क्या इस विश्वास की धारा से मेरी व्यक्तिगत सजगता में, मेरी सोच में, मेरे आंतरिक समन्वय में क्या कोई परिवर्तन हुआ? अथवा ये केवल समय और ऊर्जा और ध्यान को व्यर्थ करने वाली प्रक्रिया थी?

और मैं व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ कि जिस किसी ने भी ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर ध्यान करने के अभ्यास का निर्वाह 2 महीने कर लिया वह सर्वथा भिन्न स्तर की अनुभूतियों को बटोर कर ही लौटता है।

दो महीने अर्थात 60 दिन का न्यूनतम प्रयोग ही क्यों? क्योंकि मनुष्य के भीतर इतना असंतुलन होता है, असंख्य जन्मों से बहुत कुछ जो हम Baggage की तरह ढो के साथ लाते हैं। तत्काल वो निरस्त नहीं होता, वो तिरोहित नहीं होता, उसे हटाने में और एक नई स्थापना के लाने के लिए समय चाहिए। न्यूनतम 60 दिन का प्रयोग, 60 दिन के प्रयोग के पश्चात मनुष्य को स्वतः ज्ञात हो जाता है की मेरे भीतर एक भिन्नता, एक पृथकता आई है।

हाँ एक बात यह भी है की अगर वो प्रभावशाली अनुभव इस प्रयोग(ब्रह्म मुहूर्त में उठ ध्यान करने का) हो तो आप उसे निभाओ अन्यथा आप इसे त्याग सकते हैं। कोई भी विज्ञान प्रयोग पर ही तो आधारित है। ज्ञान को जब तक विज्ञान न बनाया जाए, अर्थात जानकारी को जब तक प्रयोग के द्वारा अनुभूत करने की चेष्टा न की जाए तब तक वो विज्ञान की श्रेणी में नहीं आता है। अतः आप इस ज्ञान को अपने भीतर का विज्ञान बनाने का प्रयास करो। मेरे ब्रह्म ऋषि कहा करते थे कि प्रतिदिन प्रातःकाल परावाणी में कारण शरीर की महान सत्ताएं प्रेरणा का प्रसारण करती हैं। जो उपलब्ध रहते हैं उन्हें उस अमृत वर्षा का लाभ मिल कर ही रहता है।

ब्रह्म ऋषि का कहना कि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त की बेला एक विशेष समय है। जिस समय ऋषियों का युग्म, ऋषियों की संसद देवात्मा हिमालय से एक विशिष्ट प्रकार का प्रसारण करती है और वो सूक्ष्म प्रसारण वातावरण को प्रभावित करता है।

उस समय जो कोई भी सजगता के द्वारा अपने भीतर केवल यह भाव रखता है कि मैं देवात्मा हिमालय का दर्शन कर रहा हूँ, मैं ऋषियों के प्रसारण को आत्मसात कर रहा हूँ, मैं उसे प्राप्त कर रहा हूँ, धारण कर रहा हूँ। उसे न केवल न केवल वह प्रसारण, भाव और विचार के रूप में प्राप्त होता है, बल्कि साथ साथ ऊर्जा के रूप में भी प्राप्त होता है। प्रकाश में 2 कार्य परस्पर रूप से एक साथ होते हैं। The Light And The Heat। प्रकाश में हम देख भी पाते हैं और उससे ऊष्मा भी प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार ऋषियों के प्रसारण से, जो उनकी परावाणी का प्रसारण ब्रह्म मुहूर्त में होता है। 2 चीजें, एक साथ परस्पर मिलती हैं। न केवल नए विचार, नई कल्पनाएं, नई धारणाएं, बल्कि साथ साथ एक ऊर्जा भी प्राप्त होती है, जिसे हम ओजस के नाम से, वर्चस के नाम से जानते हैं, बाद में, जिसकी अभिव्यक्ति शरीर में तेजस के नाम से भी होती है। वर्चस - ओजस - तेजस।

ब्रह्म मुहूर्त काल की साधना के द्वारा 3 प्रकार की ऊर्जा (वर्चस - ओजस - तेजस) मनुष्य में, उसके विचारों में, उसके अंतःकरण में, उसके शरीर में प्रतिष्ठित होती है। ये वो ऊर्जा है जो ऋषियों के प्रसारण में, प्रेरणा की दिव्य तरंगों के साथ साथ गुँथ करके आती है। हमें इस हेतु कुछ विशेष नहीं करना होता, हमें तो मात्र उपलब्ध ही रहना होता है। सूर्य का लाभ लेने के लिए सूर्य के समक्ष उपस्थित होना होता है। बाकी कार्य प्रकृति का है, सूर्य का है, सूर्य को ज्ञात है, उसकी कौन सी रश्मियां, किस प्रकार से हम आकर धरती पर छुएं, कैसे स्पंदित करे, किस प्रकार का पोषण हमें प्रदान करें। उसी प्रकार उस परावाणी को ज्ञात है कि किस साधक में किस स्तर के आत्मिक विकास की आवश्यकता है, उसे किस प्रकार से पोषण देना है, उसे किस प्रकार से हमें वर्चस - ओजस - तेजस के द्वारा पुलकित विकसित करना है। यह उस ऊर्जा को पहले से ही ज्ञात है। जहाँ बुद्धि समाप्त होती है, वहाँ से महाचेतना की कक्षाएँ आरम्भ होती हैं।

जहाँ बुद्धि समाप्त होती है, वहीं से उस महान सजगता का विकास होता है, उसका प्रादुर्भाव होता है। इसलिए हमें ये जानना होगा कि हम उस ब्रह्म मुहूर्त के समय को, उस ब्रह्म मुहूर्त के काल को हम निश्चित रूप से अपने जीवन में स्थान दें। एक अनुभव दें, एक प्रयोग करें। पूरा जीवन बहुत कुछ सोचते, विचारते, भटकते, व्यतीत हो जाता है, बहुत कुछ हाथ नहीं आता, बहुत कम होता है कि सार्थक, शिव संकल्प लेकर मनुष्य जीवन में कुछ करने की सोचता है, और सोचते ही नहीं अपितु उसे करना भी आरम्भ कर देता है। उसी प्रकार आपसे भी निवेदन है कि ब्रह्म मुहूर्त को अपने जीवन में स्थान दें। आपको अनुभव होगा कि अगर आपने ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान का अभ्यास कुछ दिन निभा लिया तो स्वतः बहुत कुछ अवतरित होने लगेगा।

आरंभ में किसी भी नए पुरुषार्थ हेतु अपने आप से जूझना पड़ेगा, हाँ आपको भी जूझना पड़ेगा चूँकि भीतर की तमस को परास्त करना पड़ेगा। कम से कम उतने दिनों तक, जितने दिनों तक, किसी प्रकार का परिवर्तन परिणाम अपने भीतर दिखाई नहीं देता।

इसी तमस का सहारा लेकर बुद्धि मन के साथ, युग्म अर्थात एक सांझेदारी के साथ आती है, और शंका उपस्थित करती है, नींद भी खराब की, सुबह उठे भी, कुछ हुआ क्या? और भीतर होता तो है ही नहीं बल्कि - जो नींद छूटी होती है, उसका भारीपन आँखों पर और मन पर दिन भर बना रहता है। धीरे धीरे, मन और बुद्धि की शंका को आधार मिल जाता है। 10 दिन हो गए ब्रह्म मुहूर्त के ध्यान को करते हुए, 10 दिन से नींद खराब कर रहे हो। कुछ हुआ, क्या? कुछ नहीं हुआ, और न ही आगे कुछ होगा। छोड़ो, कम से कम वो समय नींद का खराब मत करो। स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। बुद्धि मन के द्वारा सबसे पहले प्रभावित हो करके शंका लाती है।

मनुष्य अगर ऐसी निरर्थक शंका द्वारा अपने संकल्प को परास्त करता है तो बुद्धि मन से प्रेरित हो कर दूसरा शस्त्र उठा लेती है। और वो दूसरा शस्त्र कौन सा है? वह है भय। अपने ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर ध्यान की मान लीजिये आपने किसी ऐसी चर्चा कर दी। इसकी सम्भावना है की वह जिव कह उठे की तुम सुबह की नींद खराब कर रहे हो। तुम्हें ध्यान ही लगाना है न। तुम्हे ध्यान लगाना है, तो जब उठो तब लगा लो। अच्छा अगर ऋषियों का प्रसारण है, तो आकाश में कहीं खो गया है? वो वही होगा। आकाश में जाएगा कहाँ?

अर्थात तुम्हें शंका और भय जैसे अनेक प्रकार से बाहरी और भीतरी आक्रमण करके व्यतिरेक उत्पन्न करने लगेंगे। शिव संकल्प जानते हो, इसका मर्म क्या होता है? शिव संकल्प का मर्म है शिव। अर्थात जो जैसा होना चाहिए, वो शिव है। और जो जैसा होना चाहिए, नहीं है, वही अशिव है। यह बाहरी आक्रमण तुम्हारे शिव संकल्प में अशिव का विष घोलने की चेष्टा करेंगें।

रात को देर से सोना और रात को न केवल देर से सोना अपितु साथ ही बहुत सारी ऐसी सामग्री मस्तिष्क को पूरी तरह से Feed करके, उसे खिला कर के, उसको पूरी तरह जज़्ब कर के, सोना। सारी रात तो मस्तिष्क बेचारा उसी को सहेजने में लग जाता है। ऐसे में जब व्यक्ति सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठता है, तो जिसे हम कहते हैं न Hangover, वो Hangover अपने आप में प्रबलता रखता है। You Have To Fight It Out। अगर शिव संकल्प का निर्वाह करना है, तो तुम्हे उस युद्ध में अपने आप को एक योद्धा

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ऐसे लोग जो समान विचार धारा वाले ब्रह्म मुहूर्त के प्रभाव का लाभ लेना चाहते हैं, वो जुड़ सकें। ब्रह्म मुहूर्त में जो ऋषियों का तेज अपने भीतर धारण करते हैं।


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