गलतियां तो मनुष्य से अनेकों कारणों से कभी जान बुझ कर, कभी किसी दबाव में और कभी अनजाने में हैं। बाद में जब होश आता है तो वह सभी लोग जिनकी आत्मा मरी नहीं होती वह अपने अंतःकरण को अपराध बोध से मुक्त करना चाहते हैं। प्रायश्चित वह प्रक्रिया है जो मनुष्य के मानस मंडल पर जमे हुए अप्रिय अनुभवों की गहरी से गहरी परतों को भी साफ़ कर सकता है। हालांकि अपराध बोध से मुक्ति हमारे जीवन की प्रगति को बहुत बड़े स्तरों पर खोल डालती है और यह हमारे अध्यात्म विज्ञानं का एक अकाट्य सत्य भी है।

प्रश्न यही आता है की आखिर प्रायश्चित किस प्रकार किया जाय। क्या ऋषिओं ने हमे प्रायश्चित के अनेकों विधान सुझाएं हैं। क्या हम अपनी अवस्था , क्षमता एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने प्रायश्चित को चुन सकते है। इन सभी प्रश्नो के समाधान हेतु यह पुस्तक रची गयी है। सरलता के साथ इस गंभीर विषय पर सामान्य जन को अवगत करने की चेष्टा हुई है।

--दिनेश कुमार

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