महत्त्वपूर्ण काम को लोग आखिर विश्व भर में टालते क्यों हैं ? जानते हुए भी कि काम को टालने से हमारा नुकसान होगा तब भी मनुष्य क्योंकर टालने की प्रवृत्ति बदल नहीं पाता है ? महत्त्वपूर्ण कार्य हाथ में होते हुए भी लोग क्यों उन छोटी - छोटी बातों में भटक जाते हैं अपने आप को दिलासा देते हुए कि मैं जरा इसे निपटा दूँ फिर इस important ( महत्त्वपूर्ण ) कार्य को पूरी seriousness ( गम्भीरता ) के साथ पूरा कर डालूँगा। क्या तात्कालिक आनन्द , मनोरंजन , आराम एवं लाभ मनुष्य को इतना प्रिय होता है कि वह अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण कार्यों को बेमतलब के बहानों के सहारे टाल जाता है। क्या लोग Urgent and Important के भेद को समझ पाने में अक्षम रह जाते हैं ? Urgent का दबाव और आधुनिक परिवेश में क्या इतना अधिक है कि बेचारा Important पिछड़ता चला जाता है ? क्या शिक्षा का विस्तार मनुष्य को सबलता के स्थान पर बुद्धि के तर्कों के द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्यों को टालने के नित नए तर्क सुझाता है ? क्या लोग सत्य में इतने लाचार होते हैं कि वे अपने ऊपर इतना बस नहीं चला पाते और काम को जब होना चाहिए तभी कर पाएँ ? ऐसी कौन सी शक्तियाँ हैं जो मनुष्य को परास्त करने में अपनी भूमिका निभाती हैं ? क्या उन शक्तियों के चेहरे पहचान कर हम कुछ कर सकते हैं ?

ऐसे अनेकों प्रश्न मेरे मस्तिष्क में वर्षों घूमते ही रहें हैं और आत्मविकास के प्रशिक्षक एवं प्रेरक होने के नाते मैने सदा यह विचारा है कि मनुष्य की इस गम्भीर समस्या के परिणामस्वरूप कितनी बड़ी आर्थिक हानि किसी भी राष्ट्र और समग्र रूप में विश्व को प्रत्येक वर्ष होती ही होगी। इस विषय पर ऐसे अनेकों प्रश्नो का समाधान खोजने हेतु मैंने विश्व स्तर पर चल रहे अनेकों प्रकार के शोध और उनके परिणामों का गहनता से अध्ययन किया है। विश्व के अनेक राष्ट्रों में जिनमें मुख्यतः जर्मनी , कनाडा और अमेरिका में इस विषय पर अनेकों विश्वविद्यालयों में एवं स्वतन्त्र रूप में बहुत लोगो ने इस समस्या के कारणों एवं निदान पर अपने स्तर पर कार्य किए हैं। उन महत्त्वपूर्ण शोध और उनके परिणामों का मैने विस्तारपूर्वक एवं गहन अध्ययन किया है। जिससे यह ज्ञात हो कि विश्वस्तर पर लोग इस समस्या से कितने स्तरों पर त्रस्त हैं एवं इसके समाधान के क्या सूत्र वे सुझाते हैं।

इस समस्या के कारणों और समाधान पर अपने स्तर पर अध्ययन करते हुए मुझे अत्यन्त प्रभावी एवं रोचक ज्ञान प्राप्त हुआ और वह ज्ञान कहीं अन्यत्र से नहीं बल्कि अपने ही राष्ट्र के प्राचीन ग्रन्थों से कुछ अनूठे सूत्र तैर कर सामने आने आरम्भ हो गए। मुझे यह जान कर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि मनुष्य की इस काम टालने वाली समस्या का उल्लेख एवं शोध कार्य आज से हजारों वर्ष पूर्व भी हो चुका है। हमारी प्राचीन भारतीय मनीषा का जो ज्ञान इस विषय पर उपलब्ध है उसका प्रभाव आज के आधुनिक शोधकर्ताओं के निष्कर्षों से कहीं ऊपर है। इस समस्या पर बाहरी राष्ट्रों में जितने भी शोध और समाधान बताए गए हैं वे सभी सार्थक होते हुए भी हमारी प्राचीन शोध एवं निदान प्रक्रिया के सामने खड़े नहीं होते हैं। यह रहस्योद्घाटन मेरे समक्ष एक आश्चर्यचकित करने वाला अनुभव रहा है। एक प्रशिक्षक एवं अध्यापक होने के नाते मैने अधिक उपयुक्त समझा कि इस ज्ञान को सामान्य जन के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिससे अनेकों लोग अपने जीवन में इस समस्या से मुक्त होकर प्रगति प्राप्त करेंगें और उनकी अपनी प्रगति राष्ट्रीय एवं विश्वस्तर की प्रगति में सहायता करेगी। आशा है यह समूचा ज्ञान इसी दिशा में सहायी होगा।

हम सभी के मन की अवस्था बड़ी ही निराली भैया, इसे पाना सभी कुछ, पर संघर्ष के नाम पर अगर काम जबरन लाद दो करना ही पड़ेगा और अगर इसकी अपनी इच्छा पर छोड़ा तो गई भैंस पानी में। लोग पैसा कमाने के लाख जुगाड़ सोचते रहते है और यह बात ठीक भी है पर अधूरी है। केवल पैसा कमाने की सोचना एक अधूरी बात है जैसे बिना charging का mobile। उसी प्रकार बिना भीतर की Personality के तुम्हारे पैसा कमाने के विचार बस कल्पना जगत तक सीमित रह जाते हैं। हाथ छोटी-मोटी सफलताएँ आती है बाकी टाँय-टाँय फिस्स !!!

देखो मेरे भाई कन्हैया लाल, भाग्य और पुरषार्थ दोनों शाश्वत अर्थात अखण्ड सत्य हैं। तुम्हारे पास Choice है कि तुम किसे चुनो। अगर पुरुषार्थ को चुनना है तो अपने भीतर वह सारे परिवर्तन लाने होंगे जिससे तुम्हारा भाग्य अपना मार्ग बदल डाले। तुम्हें इस बात का पता भी नहीं होगा कि हमारा भाग्य भी हमारे भीतर की Personality पर आधारित होकर ही हमें सफलता अथवा असफलता प्रदान करता है। पुरुषार्थ के मार्ग से तुम सबसे पहला काम अपने भीतर के उन सभी अभ्यासों को पूरी तरह से समाप्त करके ऐसी आदतों को विकसित करते हो जिससे सामने आए हुए अवसर व्यर्थ नहीं जाते हैं।

आज जो महत्वपूर्ण कार्य हो ही जाने चाहिए वह अगर अनिश्चित काल तक केवल कल-कल करते हुए टलते जाएँगे तो एक जीवन तो क्या सौ जीवन भी मनुष्य असफलता और भाग्य के हाथों में डोलता रह जाएगा। तुम्हें अपनी इस आदत को बदल कर रखना होगा, तुम जीवन में असफल व्यक्ति का बोझा उठाए नहीं चल सकते। केवल अपने भीतर 5 बातें जान कर अपना लेने से तुम सफलता का -पहला मोर्चा जीत सकते हो। यह 5 बातें तुम्हें अपने पुरुषार्थ को जगा कर जीवन में भविष्य की रचना का अधिकार प्रदान करेंगी। इन्ही 5 बातों को हमने सर्व सामान्य के हित हेतु इस पुस्तक में लिख डाला है। जिन्हें सफलता से प्रेम है वह इन बातों को जाने बिना नहीं रह सकते हैं।

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