तथ्य प्रायश्चित

एक बात आपको गहराई से जान लेनी चाहिए की अगर प्रायश्चित का विषय हमारे भविष्य के घटना क्रमों से जुड़ा नहीं होता तो उसे हम कभी भी नहीं उठाते। और दूसरी बात यह की अगर इसका सम्बन्ध हमारे जीवन की सफलता असफलता से लेना देना नहीं होता तो भी हम इस विषय को नहीं उठाते। तीसरे यह की अगर प्रायश्चित का लेना हमारी पर्सनालिटी से नहीं होता तो भी हम उसे नहीं उठाते। यह विषय मनुष्य के वास्तविक हितों तक किस गहराई तक जा कर गुँथा है इसका अनुमान सामान्यता लोगो को नहीं है।

प्रायश्चित केवल एक अपनी बुराई पर किया गया पश्चाताप मात्र नहीं है. यह वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आंतरिक वायरस पूरी तरह से स्कैन करते हुए जड़ मूल से उखाड़ कर बाहर फ़ेंक दिए जाते हैं। आईये इस विषय के मर्म को जान कर हम वह सारे अनजाने कारणों को समाप्त कर डालें जो रह रह कर हमे हमारे जीवन सफलताओं से दूर बनाये रहते हैं। अपनी असफलताओं के अज्ञात कारणों से मुक्ति चाहते हो तो इस विषय को अवश्य जान लो तुम्हारा भला होगा।


विधान प्रायश्चित के

गलतियां तो मनुष्य से अनेकों कारणों से कभी जान बुझ कर, कभी किसी दबाव में और कभी अनजाने में हैं। बाद में जब होश आता है तो वह सभी लोग जिनकी आत्मा मरी नहीं होती वह अपने अंतःकरण को अपराध बोध से मुक्त करना चाहते हैं। प्रायश्चित वह प्रक्रिया है जो मनुष्य के मानस मंडल पर जमे हुए अप्रिय अनुभवों की गहरी से गहरी परतों को भी साफ़ कर सकता है। हालांकि अपराध बोध से मुक्ति हमारे जीवन की प्रगति को बहुत बड़े स्तरों पर खोल डालती है और यह हमारे अध्यात्म विज्ञानं का एक अकाट्य सत्य भी है।

प्रश्न यही आता है की आखिर प्रायश्चित किस प्रकार किया जाय। क्या ऋषिओं ने हमे प्रायश्चित के अनेकों विधान सुझाएं हैं। क्या हम अपनी अवस्था , क्षमता एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने प्रायश्चित को चुन सकते है। इन सभी प्रश्नो के समाधान हेतु यह पुस्तक रची गयी है। सरलता के साथ इस गंभीर विषय पर सामान्य जन को अवगत करने की चेष्टा हुई है।

--दिनेश कुमार

 

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