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अगर तुम्हारी आयु 18 से 40 के बीच की है और तुम्हे अपने आप को मैनेज करना नहीं आता है। तुम अपने विचारो , इच्छाओं एवं कल्पनाओं में सदा खोये रहते हो और अपने आप पर कोई भी नियंत्रण नहीं है। एक के बाद एक दिन बीतते जाते हैं पर थोड़ा सा भी परिवर्तन जीवन में नहीं दिखाई दे रहा है। दिन , हफ्ते महीने , और वर्ष बीत रहे हैं परन्तु जीवन में न तो कोई सार्थक गति है और न ही कोई नाम लेवा प्रगति है। इस सबके ऊपर पीछा न छोड़ने वाली अधूरी इच्छाएं - कामनाएं -तृष्णाएं रह रह कर विचारो और कल्पनानाओ में सजीव फिल्म प्रदर्शन करके और अधिक पीड़ा देती हैं।
मेरे भाई ऊपर लिखे गए वाक्य अगर तुम्हारे भीतर घटित होते हैं तो जल्दी से एक बात मान लो की तुम केवल खर्च हो रहे हो। यह बात सुन कर आश्चर्य होगा की खर्च तो पैसे - बिजली आदि होते है ; भला मै कैसे खर्च हो रहा हूँ। यह सत्य है की तुम खर्च हो रहे हो अपनी आयु की पूंजी से , अपनी ऊर्जा की पूंजी से , हाथ से जाते हुए अवसरों की पूंजी से। तुम्हारे भीतर की अनघड़ता ने तुम्हे एक मील का पत्थर बना छोड़ा है। अब समय आ चूका है की अपने भीतर की इस अनघड़ता को आड़े हाथो लिया जाये। इसके लिए तुम्हे कुछ जानना और सीखना होगा। तुम्हे अपने भीतर कुछ परिवर्तन लाने होंगे जिससे जीवन की तस्वीर में अपने स्वप्न लोक का एक बड़ा सा हिस्सा धरती पर उतारा जा सके।
क्या तुम तैयार हो। अगर हाँ तो फिर करो शुरुआत और इस विद्या को गंभीरता से जान कर अपनी यात्रा आरम्भ करो। यह लेखक तुम्हारे भीतर के अनेको प्रश्नो का समाधान ईमेल के द्वारा करने की चेष्टा करेगा। अगर तुम पहल नहीं करोगे तो कभी भी कुछ नहीं बदलेगा। चलो उठो देर मत करो और जुड़ जाओ परिवर्तन के इस अभियान के साथ और इस ज्ञान को अपना कर अपने स्वप्नों को साकार करने का शुभ आरम्भ करो।
मेरे भाई तुम इसे केवल एक पुस्तक मानने की भूल मत कर बैठना क्योंकि यह कोई पारी कथा अथवा स्कूल के किसी सामान्य विषय की पुस्तक नहीं है। यह एक गहरी विद्या की विधि है जिसके द्वारा मनुष्य अपने आप को जान कर उसमे परिवर्तन लाने की कला सीख लेता है। एक एक चैप्टर इस अनूठी विद्या की विधि का एक एक चरण है जिसे सीख कर अपनाने से दिन प्रतिदिन अपने पूरे व्यक्तित्व में प्रत्यक्ष परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं। इसमें कुछ ऐसे लोगो के उदाहरण भी हैं जिनकी परिस्थितियां आपसे कहीं अधिक प्रतिकूल थी और उन्होंने इस विद्या के ज्ञान को अपने जीवन में अपना कर असंभव को संभव कर डाला।
यह पुस्तक रूप में अवश्य संजोई गई है जबकि इसका बोलता ज्ञान किसी भी अंतः करण को आंदोलित करते हुए बदल कर रख डालेगा। देखो भाई वैसे तो पुस्तकों को लोग अलमारी अथवा मेज पर रखते हैं परन्तु हमारा अनुभव बताता है की इसके ज्ञान से जुड़ने के बाद सभी लोगो ने इससे इतना लाभ प्राप्त किया की इसे अपने तकिये के निचे रख कर सोने लगे। हमे आज भी ऐसे अनेको पाठक मिलते हैं तो बताते हैं की इस पुस्तक ने किस प्रकार उनके अँधेरे जीवन में उजाला भर दिया और तब से वह अब तक इससे समय समय पर प्रकाश लेते ही रहते हैं। और इसे अपने पास इतना निकट रखते है की जब मन हुआ आधी रात को भी कहीं से खोल कर फिर से पढ़ना आरम्भ कर डालते हैं। हर बार यह ज्ञान उनके टूटे हुए बुझे हुए मन को सम्बल कर एक नयी ऊर्जा का संचार करते हुए नै दृष्टि देता है और वह अपनी कठिन से कठिन उलझन से बाहर निकल जाते हैं।
संकल्प की विद्या के विषय में हमे कभी भी कुछ कहीं पर भी सिखाया ही नहीं गया है। संकल्प शब्द को तो अनेको बार सुनते हैं परन्तु संकल्प के विषय में और अधिक ज्ञान सामान्य लोगो को नहीं हैं। यह कोई शक्ति होती है , क्या इसे कोई भी विकसित कर सकता है , इसे कैसे विकसित किया जा सकता है , इसकी शक्ति के द्वारा क्या कुछ संभव है , इस जैसे अनेको प्रश्नो का कोई समाधान हमे सामान्य रूप में नहीं मिलता है।
मेरे मित्र यह तो उसी प्रकार हुआ न की अनेको विज्ञापन हमे यह तो बताते है की यह कार खरीदो , यह मोबाइल खरीदो , यह कपड़े खरीदो , यहाँ घूमने जाओ , यह खाना यहाँ सबसे बढ़िया मिलता है। पर कोई कमबख्त हमे खरीदने हेतु पैसे कहाँ कमाए जाते हैं और कैसे कमाए जाते है उसके बारे में कुछ भी नहीं बताता। देखो भाई संकल्प क्या कर सकता है और उसे कैसे अपने भीतर जन्म देकर जगाया जा सकता है और उसके द्वारा अपने स्वप्न लोक के मर्यादित अंश को सत्य किया जा सकता है ; इसका ज्ञान तुम्हे अब यहाँ से मिलने जा रहा है। यहाँ बताने की बात नहीं बल्कि सिखाने की बात की जा रही है।
मनुष्य की वह ऊर्जा शक्ति जिसके द्वारा असंभव को संभव बनाने के समूचे प्रावधान प्रशस्त होते है; दुर्भाग्यवश वह अनेको अतृप्त इच्छाओं के कारण बलि चढ़ते हुए तिरोहित हो जाती है। गहरी चाहत को पाने हेतु संकल्प बल को जन्म लेना अनिवार्य है। इस पृथ्वी पर दो सत्य तथ्य अकाट्य है जिनमे पहला है कर्म फल द्वारा निर्मित मनुष्य का भाग्य और दूसरा है उसके संकल्पों पर आधारित पुरुषार्थ के द्वारा नए भाग्य की रचना। यह दोनों सत्य अकाट्य है; देखना मात्र यह होता है की जीव इन दोनों में से किसका चयन करता है।