कहते हैं न की जा की रही भावना जैसी प्रभु मूर्ति तीन देखि तैसी। यह बात धर्म की दृष्टि से तो हम अनेको बार सुनते आये हैं परन्तु हममे से विरले होंगे जिन्हे यह भी बोध होगा की इस सिद्धांत आद्योपांत प्रभाव हमारे मन , बुद्धि और शरीर के स्वस्थ्य से सम्बंधित है। इस सिद्धांत के दुरुपयोग से हम अनेको प्रकार के रोगों को अपनी और आमंत्रित भी कर सकते हैं और इसीके अनुपालन के द्वारा हम अनेकों प्रकार के रोगो से सर्वथा मुक्ति भी पा सकते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व तक तो ऊपर लिखे गए वाकय केवल धार्मिक दृष्टि पर ही जाने जाते थे परन्तु आज वर्तमान में इतने बड़े स्तर पर वैज्ञानिक शोध सामने आ चुके हैं की आश्चर्य होने लगता है की यह सूत्र हमारे स्वस्थ्य को सुधरने और बिगाड़ने में कितना बड़ा महत्व रखता है। आप इस पुस्तक के विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे और साथ ही अपने भीतर वह वांछित परिवर्तन भी अवश्य लाना चाहेंगे जिससे आपका जीवन अधिक स्वस्थ , सरस और आनंद पूरित हो जाए।

दिनेश कुमार

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