ऋषिओं का वाक्य है की 'जहाँ चित्त वहां प्राण ', अर्थात जिस किसी भी विषय पर मनुष्य का ध्यान केन्द्रित हो जायेगा वहीँ पर कुछ रचना आरम्भ होने लगेगी। परन्तु सबसे बड़ी विषमता यह है की यह एकाग्रता कैसे लगे। अस्थिर मानस असंख्य विचारों में आधे अधूरे उलझता और नाचता भर रह जाता है। आश्चर्य का विषय यह है की यह समस्या केवल बच्चों के नाम से अवश्य गयी जाती है परन्तु इसके शिकार सभी आयु के लोग रहते हैं।

जिस प्रकार किसी खड्डी पर अधूरे कपड़े बने जाते हों उसी प्रकार हमारे विचारों की खड्डी पर भी अधूरी कल्पनाएँ बिखरी पड़ी रहती हैं. आखिर एकाग्रता की चाबी किसके पास है , कौन है जो हमारी एकाग्रता को संभव कराकर हमे एक समय पर एक ही विषय पर टिका सकता है. इसी समस्या के समाधान स्वरुप एक प्रेरक, प्रशिक्षक और लेखक श्री दिनेश कुमार जी की यह छोटी सी पुस्तक समर्पित है।

ध्यान रखना होगा की गहरा ज्ञान शब्दों के विस्तार से नहीं अपितु अपने मर्म के आधार से गहरा होता है , इसी सत्य को आप इस पुस्तक के पृष्ठों में एकाग्रता के विषय के साथ सम्बंधित देखेंगे।

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