जिस निद्रा को सामान्य जन केवल एक निष्क्रियता का अंतराल मानते हैं योगी जन उसी काल को मनुष्य के निर्माण की वास्तविक प्रयोगशाला के रूप में जानते हैं. ध्यान से विचार करें कि आप निद्रा में होते हैं तब केवल आपका शरीर बहरी स्तरों पर हिल नहीं रहा होता। आप मात्र करवट बदलते हैं। परन्तु भीतर आपके शरीर के समूचे अंग अवयव पूरी सक्रियता से कार्यरत होते है। आगरा आपके भीतरी अंग कार्य नहीं कर रहे हों तो आप जीवित ही नहीं बचेंगे। अगर ह्रदय कार्य न करे , आंते कार्य न करे तो क्या होगा; सोचिये।
इतना ही नहीं बल्कि आपका मस्तिष्क भी कार्यरत होता है। आप के भीतर विचार भी चलते रहते हैं , कल्पनायें स्वप्नों के माध्यम से चलती रहती हैं। कुल मिला के कहा जाये तो आप केवल अपनी टांगो के द्वारा निष्क्रिय रहते हैं परन्तु आपका बाकी का समूचा अस्तित्व भली प्रकार से भागम भाग करता ही रहता है। अगर उस काल को हम प्रयोग करले और किसी विशेष युक्ति -विधि के द्वारा उपयोग करलें तो हमारे जीवन में आश्चर्यजनक स्तर के परिवर्तन लाये जा सकते हैं।
हम अनेको आदतों को बदल सकेंगे , वहीँ अनेको नई आदतों को अपना सकेंगे। गहरी स्तरों पर हम नए विचारों को अपनी ओर आकर्षित कर पाएंगे। अपने पुरे अस्तित्व को शांत कर पाएंगे। अनेको प्रकार के रोगो को स्वस्थ करने में सशक्त भूमिका का निर्वाह कर पाएंगे। अपने विषय में अनेको अनजाने सत्य पाएंगे। इतना ही नहीं बल्कि इससे से भी कहीं अधिक गहरे स्तरों पर सक्रियता से कार्य करते हुए हम अनेको प्रकार के लाभ प्राप्त कर पाएंगे।
विशेषतः वह लाभ जो हम सामान्यतः हम जागृत अवस्था में प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस महत्वपूर्ण ज्ञान से अपरिचित रहना अधूरे जीवन को जीने के समान है।
-- दिनेश कुमार