हम लोग दिन भर में मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं, लेकिन जो भी प्रयोग करते हैं, अथवा Application का प्रयोग करते हैं। उसके पीछे की Programming तक हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं है, क्योंकि Programming Programmer जानता है। Programmer ने Programme करके Application के रूप में बनाया है, हम तो बस उसे अपनी अंगुलियों से चलाते हैं, बदल नहीं सकते। बदलना तो Programmer को पड़ेगा। मनुष्य के साथ भी ऐसा ही है। मनुष्य को भी जब अपने भीतर अपनी Applications में, अपने व्यवहार में, अपने पूरे आचरण में गहरे परिवर्तन करने हैं तो Programme के स्तर पर जाना पड़ेगा और मनुष्य की Programming के स्तर पर जाने का जो विधा है, उसे कहते हैं ध्यान योग। एक ऐसी Programming की प्रक्रिया, जो मनुष्य को उच्च स्तरीय हस्तक्षेप के लिए योग्य बना देती है, उसकी पात्रता विकसित करती है। इसी को ध्यान योग कहा गया है। ध्यान योग इसलिए कहा गया जिससे ध्यान के द्वारा मस्तिष्क संतुलित हो, व्यवस्थित हो, और शान्त हो, भीतर के गहरे बोध ऊपर आएंगे। मनुष्य अपने संकल्प के अनुरूप अपने भीतर गहरे परिवर्तन कर पाएगा और गहरे परिवर्तन करने के बाद ही तो वह जीवन में अनासक्ति, संन्यास, वैराग्य और त्याग जैसे ऊंचे आदर्शों का पालन कर पाएगा, अन्यथा सुनने में बहुत कुछ बहुत अच्छा लगता है। हम उसको पूरी तरह से मानते भी हैं, पर क्या करें, कर नहीं पाते हैं। उस कर पाने की क्षमता को प्राप्त कराने योग्य अवस्था ध्यान योग के माध्यम से ही आएगी। इसीलिए उन्होंने छठे अध्याय में ध्यान योग को (मैं ऐसा सोचता हूं) रख दिया ताकि वह अर्जुन, जो अच्छी-अच्छी बातों को अच्छा-अच्छा कह रहा है, मान भी रहा है, जान भी रहा है, पर अपना नहीं पा रहा, वह अपने भीतर एक हस्तक्षेप के द्वारा Programme level पर परिवर्तन करने में सबल हो जाए।


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