Part - 22. "अतीत की बन्धन स्वरूप स्मृतियाँ बड़ी बढ़ा उतपन्न करती " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 22. "अतीत की बन्धन स्वरूप स्मृतियाँ बड़ी बढ़ा उतपन्न करती " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

विगतज्वरा - जो बीत गया॥ कहने को तो 'निराशी', 'निर्मम', 'विगतज्वरा' को उन्होंने क्षमता के रूप में वर्णन किया है॥ जिस साधक में, जिस योद्धा में ये क्षमताएँ हैं और वह अपने आपको युद्ध में सर्वस्व समर्पित करके झोंक देता है वह संग्राम भीतर का हो या बाहर, वही श्रेष्ठ है अर्जुन; यह भाव है 'श्रेष्ठ अर्जुन' शब्द श्लोक में नहीं आया पर यह भाव है कि वह इसी प्रकार युद्ध में संलग्न रहे॥ 'निराशी', 'निर्मम', 'विगतज्वरा' - इनके जो नकारात्मक विपरीतार्थक पक्ष हैं उन्हें ध्यान में लाए बिना, the vulnerable aspect को समझे बिना इन शब्दों के साथ न्याय हो ही नहीं सकता॥

विगतज्वरा:
आपने अनेकों बार पूर्व में सुना होगा past life regression ऐसे मनुष्य के स्वभाव में आने वाली ऐसी समस्याएँ जिनका वर्तमान जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही वे सतह पर दिखती हैं॥ पर संस्कार के रूप में आकर के उसके निर्णय लेने की क्षमता, उसके दृष्टिकोण को इस स्तर पर प्रभावित करती हैं कि वह आगे नहीं बढ़ पाता, स्थिर नहीं हो पाता, सन्तुलन समन्वय alignment प्राप्त नहीं कर पाता॥ पाश्चात्य राष्ट्रों ने past life regression की यह विद्या आरम्भ की॥ यह कितनी सार्थक है अथवा नहीं मैं नहीं जानता पर कम से कम उस ओर संकेत तो है कि मनुष्य का जीवन within the brackets केवल उतना नहीं है जितना वर्तमान है, इतना तो स्वीकार किया उन्होंने, तभी तो उसका उपचार कर रहे हैं॥

अत: वे सारे घटनाक्रम जो इस वर्तमान जीवन अथवा कभी किसी अतीत में हुए, जिनकी गहरी छाप मनुष्य के मस्तिष्क में है॥ चाहे वह असफलताओं के रूप मे हो, दुर्घटनाओं के रूप में हो, जो मनुष्य को रह-रहकर के नोचती हैं चीरती हैं उसे स्थिर और शान्त नहीं होने देती॥ उसमें स्मृति बनकर सशक्त धारणा बनकर उभरती हैं और उसे बहुत कुछ करने से रोक जाती हैं॥ जिस किसी को भी ऐसा अनुभव होता है वह उसके दुष्प्रभाव के कारण जीवन में कुछ कर नहीं पाता॥ बहुत से साधक यह भी ईमेल लिखते रहते हैं, उनकी संख्या कम नहीं है कि हमने जब भी कभी जीवन में जप आरम्भ किया, साधना आरम्भ की, अध्यात्म में कुछ करने की सोची , बस कुछ ऐसा हो गया कि हम कर ही नहीं पाए, हमने करना ही छोड़ दिया॥ वे अपने पैरों में स्वयं बेड़ियाँ बाँध लेते हैं॥ मैं मानता हूँ संयोग बैठा होगा, उन्होंने जब भी कभी कुछ करने की चेष्टा की कुछ न कुछ ऐसा हो गया॥ यह तो ठीक है कि उन्होंने जप, ध्यान या अध्यात्मिक साधना के प्रकाश में अनुभव किया कि मैनें जब भी कुछ किया तब ऐसा होता है॥ तो क्या उनके जीवन में अन्य क्षणों में कुछ भी ऐसा गलत नहीं हुआ जिसने उन्हें कुछ और करने से रोका हो? मान लो उन्हें कहीं घूमने जाना था कुछ ऐसा हुआ कि नहीं जा पाए, मूवी देखनी थी कुछ ऐसा हुआ नहीं देख पाए॥ जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएँ कि जिन्हें आप करना चाहते हैं आप कर नहीं पाते कोई बाधा बीच में आ जाती है तो क्या उस आई हुई बाधा को लेकर आप अपने माथे पर सुर्खी (सुर्खी कहते हैं ऐसी लकीर जो मिट न सके) क्या आप सुर्खी खींच देंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते, यह आप नहीं कर सकते॥ आपको इस पर गम्भीरता से मनन विचार करना होगा॥

ईश्वर की कृति हैं आप, ईश्वर की रचना हैं आप , आपमें वह समूची सामर्थ्य निहित है जो अपने आप को बाँध भी सकती है और खोल भी सकती है॥ अपने आप को बाँधना और खोलना यह हमारे हाथ में हैं॥ मैं मानता हूँ कि हममें ब्रह्म है और हमें नहीं पता, हममें अनन्त क्षमताएँ है और हमें नहीं पता॥ पर इतना तो हम जान लें कि हम अपने लिए बाधा बन सकते हैं और अपने लिए समाधान भी बन सकते हैं॥ इतना जाने बिना अध्यात्म की यात्रा में आगे प्रगति सम्भव नहीं है॥ आप बाहरी साधनों पर निर्भर होकर लुंज-पुंज पड़े रहेंगे तो जीवन में कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा॥ विगतज्वरा में अतीत का कोई भी कारण उठकर के आपके वर्तमान प्रयासों में बाधा नहीं बनना चाहिए॥ आपको स्वयं अपने आपको एक बात समझानी है जो कभी टाइम मैनेजमेंट में हम पढ़ाते थे कि 'पृथ्वी प्रतिपल एक नए आकाश को चूमती है'॥ यह ब्रह्माण्ड अनन्त है infinite है infinite. सूर्य और उसका परिवार अपने आसपास एक परिधि में तो घूम रहा है पर क्या केवल एक ही स्थान पर खड़े होकर घूम रहा है? यह किसने कहा? वे घूम रहे हैं पर not at the same place they are also heading, furthering वेद कहता है प्रतिपल every passing moment this earth is under a new sky not only earth including solar system, and not only solar system; it goes on.

पृथ्वी प्रतिपल नए आकाश के नीचे है॥ यदि पृथ्वी प्रतिपल नए आकाश के नीचे है तो नई सम्भावनाओं के साथ भी है॥ यदि नई समस्याओं के साथ है तो नए समाधान के साथ भी है॥ सब कुछ नया है जिस शब्द से उत्पत्ति हुई 'अश्वथ' जिसे आदिगुरु शंकराचार्य ने पीपल के वृक्ष को नाम दिया something that anew itself every passing moment. कामनाओं, इच्छाओं को भी 'अश्वथ' कहा जाता है every passing moment they anew themselves, एक नई कामना, एक नई इच्छा॥ इसलिए अश्वत्थामा को मरने नहीं दिया गया क्योंकि अश्वत्थामा के माध्यम से लीला जीवित है॥ यह लीला जितनी चल रही है किसके सहारे जीवित है? what is the propelling force? 'अश्वथ', कामना, इच्छा, प्रतिपल कुछ नयी॥ जब प्रतिपल कोई इच्छा अपने आप को नवीनीकरण में ला सकती है पृथ्वी नए आकाश मे जा सकती है तो मनुष्य नई सम्भावनाओं में क्यों नहीं है? जब हर घड़ी मैं नए आकाश के नीचे हूँ तो हर घड़ी नई सम्भावनाओं के नीचे हूँ॥ मैं पकड़कर के बैठ जाऊँ कि मेरे साथ हमेशा ऐसा ही होता है, मेरे साथ ही क्यों होता है? मेरे साथ ऐसा ही होता है, मुझे पता है ऐसा ही होगा, मुझे पता है॥

मैंने पूरा law तो नहीं पढ़ा, कुछ विशेष विषय पढ़े administrative law constitutional law etc. जब मैं पढ़ रहा था तो मैं यहीं प्रश्न कहता था कि हर चीज, हर परिस्थिति नई है तो फिर अतीत precedence को लेकर ही उसी चश्मे से हर परिस्थिति को क्यों देखना चाहते हैं जबकि हर जीव हर परिस्थिति अपने आप में विशिष्ट है॥ मैं उनकी भी सीमाएँ समझ सकता हूँ॥ वे भी सीमाओं को नहीं लाँघ सकते मैं इस बात को मानता हूँ, पर मैं सोचता था॥ प्रत्येक जीव में कुछ नया हो रहा है कुछ बातों में हम एक जैसे हैं बल्कि एक जैसा करने की चेष्टा करते हैं, तो हमें आधुनिक स्तर पर जिसे कहा जाए trendsetter वह करते हैं॥ एक जैसी सोच, एक जैसा खाना, उसमें कुछ गलत नहीं है॥ समानता उस रूप में समझ आती है ठीक है॥ पर अपने भीतर लकीर खींच कर समानता लाना कि मैं ऐसा ही हूँ मैं कभी अपने आप को पार ही नहीं पा सकता॥ मैं ऐसा ही हूँ मेरे साथ हमेशा ही ऐसा होता है, यह गलत है॥ खानपान में समझ में आता है पहनावे में समझ आता है बाकी चीजों में, peer pressure आदि; पर जीव सजगता में चेतना के क्षेत्र में? जो beyond measure है वहाँ? नहीं, वहाँ उचित नहीं॥

विगतजवरा का एक भाव यह पकड़ कर चलो कि जो अतीत की किसी भी प्रकार की स्मृति है, आवश्यक नहीं है कि उसकी पुनरावृत्ति बार-बार हो॥ यह बात तो सत्य है कि तुममें ईश्वर की क्षमता है और तुम अपने भाव की क्षमता से अपने लिए बार-बार बाधा भी रच सकते हो॥ अगर तुम ही बार-बार अपने लिए बाधा रचकर के उसका सामना करो और कहो मेरे साथ हमेशा ही ऐसा ही होता है तो 'हे रचियता! ऐसी रचनाएँ करना छोड़ दो' Don't manifest an odd reality for your own self. बार-बार अपने लिए प्रतिकूल परिस्थिति को जन्म मत दो, लाँघो अपने आप को॥ कभी भी भीतर के दुर्योधन का सामना करते हुए, तप करते हुए, संयम करते हुए यह भाव रखो 'मुझमें इतनी क्षमता है कि मैं बार-बार असफल होने पर भी इसे पार पा जाऊँगा॥ जब तुम्हारा सिर तप में असफलता से जमीन चाट रहा हो उस समय भी यही कहो, 'मुझमें क्षमता है मैं इसे पार कर जाऊँगा'॥

इसे जानना विगतज्वरा है इससे कम में विगतज्वरा नहीं होगा, क्योंकि यदि विगतज्वरा नहीं हुआ, ज्वर रहा अर्थात that feverish worrisome feeling नहीं मेरे साथ तो ऐसा हमेशा ऐसा ही होता है, तो कभी आगे जा पाओगे? नहीं॥ तो मैं कहूँगा "हे देवता ! तुमने अपने लिए यह विधान क्यों रचा है? तोड़ो इसे"॥ कोई भी संकल्प लेते समय याद रखना, पृथ्वी प्रतिपल नए आकाश के नीचे, मैं नई सम्भावनाओं के नीचे, मैं नई शक्ति के साथ कर सकता हूँ जो करना चाहूँ, वह मेरा संयम मेरा तप ही क्यों न हो? जिसका उद्देश्य तो एक ही है भीतर के देवासुर संग्राम में दुर्योधन को परास्त करना॥ यह औचित्य है न?

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