Part - 12. उस एक पराजित करने वाले को योजना एवं तप शक्ति से पराजित करो ; व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 12. उस एक पराजित करने वाले को योजना एवं तप शक्ति से पराजित करो ; व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

अपनी मुख्य कमी न्यूनता को तुमने पहचान लिया, निरन्तर अनुभव के द्वारा पता लग गया कि एक कमी ऐसी है जो मुझे हाँक के ले जाती है॥ तुम्हारा विश्लेषण चल रहा था: धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवा: श्लोक बदल दिया था न? मामका कौरवाश्चैव किम कुर्वत संजय:

किम कुर्वत संजय: मेरे भीतर के सदा विजयी रहने वाले संजय॥ The pure consciousness within उससे रोज हमने पूछा कि आज क्या रहा कुरुक्षेत्र में? धर्म के क्षेत्र में और कर्म के क्षेत्र में आज क्या हुआ? उसने निष्पक्ष होकर प्रतिदिन स्तर हमें अवगत कराया कि यह हुआ और हमने उसके पीछे के कारण टटोलने आरम्भ किए॥ कोई एक मुख्य कारण मिल जाए, यूँ तो कमियों का कुटुम्ब हो सकता है, पर कुटुम्ब नहीं एक मुख्य कारण चाहिए॥ वह मेरा एक कौन सा ऐसा असंयम है जो मुझे भटका के ले जाता है एक मुख्य, सब नहीं एक॥ एको साधै सब सधै, सब साधै सब जाएँ॥ सबके पीछे भागोगे तो सब भाग जाएँगे,पर एक के पीछे भागोगे तो सब पकड़ में आ जाएँगे॥ इसीलिए उस एक को पहचान लिया॥

इसमें समय लग सकता है, हो सकता है यह एकाएक न हो पाए, तुम सोचो कि एकाएक हो जाए॥ और इसे पहचानने में, क्योंकि सामान्यत: तो मुख्य कमी होगी, वह मुख्य रूप से छलिया की तरह बनाकर आएगी॥ इसलिए एक काम करो सम्भव हो, अब तो मोबाइल में भी लिखा जा सकता है॥ लिखते जाओ थोड़ा-थोड़ा कि मुझे अपनी मुख्य कमी यह लगती है॥ दूसरे दिन अवलोकन करो, हो सकता है बदल जाए॥ तीसरे दिन अवलोकन करो, चौथे दिन, निरन्तर करो छोड़ो नहीं॥ जिस दिन पुष्ट हो गया यही है, यही है॥

अब दो चीजें चाहिए, क्या दो चाहिए? हमें पता लग गया कि यह मुख्य कमी है जो हमारे चिंतन को व्यवस्थित नहीं रहने देती, निरन्तर भटकाती है॥ अलग-अलग रूप बदल कर के आती है अलग-अलग बुद्धि के तर्क लेकर आती है, अलग-अलग प्रलोभन लेकर आती है, जब देखो भटका के चली जाती है चिंतन व्यवस्थित हो नहीं पाता, विचारों की शक्ति प्राण आ नहीं पाता, जीवन सार्थक उपलब्धि की ओर आगे बढ़ नहीं पाता॥ बस हम लुंज-पुंज से जीते चले जा रहे हैं, जीते चले जा रहे हैं, दिन के बाद दिन, दिन के बाद दिन, और एक दिन ... आखिर कब तक, कोई तो सीमा होगी॥

अब जब पहचान लिया तो दो कार्य करने हैं॥ क्या दो कार्य? एक तो योजना चाहिए, उस कमी को पकड़कर समाप्त करने के लिए योजना चाहिए॥ तुम क्या सोचते हो वह कमी इस जीवन से आई है? इस जन्म से आई है? जिसने तुम्हारे पूरे चिंतन को भटका रखा है और अब तक छुपकर के पूरी शक्ति के साथ प्रहार करती रही, वह कमी क्या तुममें इस जन्म से आई है? नहीं, अरे वह जन्मों से पकती हुई पल्लवित होती हुई आई है॥ तुम्हारे मनोमय कोष में आकर के एक साम्राज्य बना लिया उसने प्राणमय कोष को भी चाटा, उसने अन्नमय कोष को भी हाँका, उसने विज्ञानमय कोष को भी निरन्तर दुष्प्रभावित किया॥ वह अभी से नहीं आई बेटा, अभी से नहीं आई बाबू, वह बहुत पुरानी है॥ वह पिछले एक जन्म, दो जन्म, दस जन्म से आई हो सकती है कोई नहीं जानता पर पकड़ में आ गई न?

मनुष्य की चेतना की सामर्थ्य क्या है? आत्मा से ऊपर किसी की शक्ति नहीं है इस पृथ्वी पर, इस ब्रह्माण्ड में, क्षमा चाहूँगा॥ इस पूरे ब्रह्माण्ड में जीवात्मा से ऊपर किसी की सामर्थ्य नहीं है, यह ब्रह्म ऋषियों का कथन है॥ इसलिए चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि केशव हमारे साथ है चेतना हमारे साथ है॥ साधन तर्क, कुतर्क, वितर्क भले ही कौरवों के पक्ष में हों, उस एक कौरव दुर्योधन के पक्ष में हों, जो जन्मों से हमारे भीतर एक प्रकार का असंयम बनकर बैठा है और हमारे जीवन की हर मुख्य परिस्थिति को प्रभावित करता है हर मुख्य निर्णय को प्रभावित करता है॥ जब जरा सा बात बनने लगती है आकर के टाँग में ऐसी अड़ंगी देता है औँधे मुँह गिरते हैं हम, हमारे प्रयास धरे के धरे रह जाते हैं॥ बड़ी से बड़ी सफलताएँ भी प्राप्त होकर के हम टिक नहीं पाते, हम उनका आनन्द नहीं ले पाते॥ क्योंकि कहीं आकर वही कचोट कर के भटका जाता है॥ बड़े से बड़ा सफल व्यक्ति भी जीवन में कितना भटका होगा इसके बारे में अनुमान तब लगता है जब बड़े-बड़े प्रसिद्ध व्यक्तियों को देखो और उनके जीवन के भटकाव को अनुभव करो तो पता लगता है वो कहाँ-कहाँ कितने अंशों में भटके हुए थे॥ उनसे दुखी कोई उस अवस्था में था नहीं॥ उनकी अवस्था में पहुँचने के लिए बहुत से लोग सपने लेते हैं हाँ ऐसे हम हो जाते ऐसी सफलता हमें मिल जाती तो? और यह नहीं पता उनके भीतर कितना खतरनाक घनघोर नृत्य घोर तांडव चल रहा है॥

इसलिए बाबू उस एक मुख्य दुर्योधन को पहचान कर, जो तुम्हें भटकाता है जो दु:शासन स्थापित करता है॥ अब दो बातें, योजना और शक्ति ये दो चाहिए॥ योजना और शक्ति तो क्या पहले क्या बनाएँगे योजना या शक्ति ? योजना और शक्ति दोनों साथ-साथ चाहिए, योजना भी और शक्ति भी दोनों साथ-साथ चाहिए॥ अच्छा, तो योजना में तो थोड़ा समय लगेगा॥ योजना हेतु समय लगाने के लिए आपको निरन्तर अभी मनन की कुछ कक्षाएँ और पार करनी होंगी॥ ठीक है, आपने कहा योजना में समय लगेगा॥ हाँ, और शक्ति में, क्योंकि बिना शक्ति के वह जलेगा नहीं भस्म नहीं होगा, परास्त नहीं हो पाएग॥ तो शक्ति कहाँ से कैसे?

ठीक है, मान लो तुमने उसे पहचाना एक सप्ताह में पहचान लिया॥ तुम निरन्तर साधना में रहे, तुमने दस दिन में , 40 दिन में 120 दिन में पहचान लिया, आवश्यक नहीं है तुम सब एक सप्ताह में पहचान पाओ॥ शक्ति के लिए सबसे बड़ा कार्य करना है वह क्या? शक्ति के लिए तुम्हें अपने आप के साथ तप को जोड़ना है॥ यह विषय मैं बहुत बार अलग-अलग स्वरूपों में लेता रहा हूँ॥ तप को जोड़ना है? हाँ तप जोड़ना है॥ बिना तप जोड़े? केवल बातें रह जाएँगी॥ मेरा सत्संग हो जाएगा तुम भी राम-राम करके उठ जाओगे॥ कोई जीवन में बदलाव होगा? कुछ नहीं होगा॥ जीवन में परिवर्तन क्या केवल सत्संग से होता है? यदि ऐसा होता तो पता नहीं किन किनका उद्धार हो जाता॥ नहीं बाबू, जीवन का उद्धार, जीवन का परिवर्तन, जीवन में उत्कर्ष किसी सत्संग के बूते का नहीं, किसी संकीर्तन के बूते का नहीं, केवल एक के बूते का है॥ किसके? तप के, इस पृथ्वी पर तप का कोई विकल्प नहीं है बाबू॥ Alternate नहीं है, कोई shortcut नहीं है कि तप का कोई शॉर्टकट मिल जाए॥ शक्तिपात जैसे शब्दों को लेकर कौतुक विकसित हो जाना यह भ्रम है, शक्तिपात भी किन पर होता है॥ कभी सोचा है शक्तिपात किस पर होता होगा? वह जिसने जन्मों के तप के द्वारा तैयारी की॥ हर एक को तुम महावतार, लाहिड़ी मानकर गुफाओं में नहीं बुलाते॥ हर एक को नहीं बुलाते, शक्तिपात भी तब होता है जब अधिकारी हो जन्मों के तप के द्वारा॥ तप का कोई विकल्प नहीं॥ तुम्हें कोई भी कभी भटकाने की चेष्टा करे कि बस इतने से कल्याण हो जाएगा,कभी मत मानना॥ तप चाहे अनुष्ठान के रूप में हो, चाहे संयम के रूप में हो, कैसा भी क्यों न हो, बिना तप के बाबू, न असुरों ने कभी कुछ पाया न देवताओं ने, न रावण ने कभी पाया, न परशुराम ने पाया, न राम ने पाया॥ किसी ने नहीं पाया, न मनुष्य ने पाया, न ऋषि ने पाया॥ कोई नहीं पा सकता॥ तप का कोई विकल्प नहीं है॥

मेरे ब्रह्म ऋषि ने आज से लगभग 60 वर्ष पहले किसी को कहा था कि मैं सूक्ष्म जगत में जब जाऊँगा तो मैं अपने गुरु का स्थान ले लूँगा॥ जिसको उन्होंने यह कहा, उस तपस्वी ने पूछा "फिर जब आप गुरु का स्थान ले लोगे और आप सूक्ष्म में प्रवाहित हो जाओगे तो फिर आप के गुरु क्या करेंगे?" स्वाभाविक बात है॥ तब उन्होंने कहा, वह उसके उपरान्त विश्राम करेंगे॥ अर्थात आपके गुरु जो हजारों वर्षों से अस्तित्व बनाकर हिमालय में बैठे हैं वे विश्राम करेंगे? यह कैसा विश्राम होता है? उनका विश्राम होता है ब्रह्म के संकल्प की पूर्त्ति हेतु पुन: तप में लीन होकर ऊर्जा एकत्रित करना॥ ये उनके शब्द हैं 60 वर्ष पूर्व कहे हुए॥ पुन: तप में लीन होकर ऊर्जा एकत्रित करना यह उनका विश्राम होता है, अर्थात तप ही उनका विश्राम होता है॥ क्योंकि तप के बिना सामर्थ्य नहीं, और बिना सामर्थ्य परिवर्तन नहीं॥ इसलिए तप से ऊपर कुछ नहीं है॥ इसीलिए परशुराम कहा॥ तप के बिना न रावण, न परशुराम, रावण यहाँ असुरों का प्रतीक, महाज्ञानी, प्रकाण्ड विद्वान, उच्च कुल में जन्मा पर वृत्ति दूषित॥ दूसरी तरफ कौन? परशुराम ब्रह्म ऋषि और तीसरी ओर एक मनुष्य, आप कहोगे राम तो ब्रह्म हैं विष्णु का अवतार हैं पर अवतरण तो मनुष्य के रूप में हुआ न? तो तीनों, चाहे सामान्य मनुष्य हों, ब्रह्म ऋषि हो, असुर हों, कोई हों, कोई योनि हो, यदि उत्कर्ष चाहिए कुछ उपलब्धि चाहिए तो तप आवश्यक है, तप का विकल्प नहीं है॥ तप के विकल्प की टोह लेने वाले भटकते रहेंगे, भटकते रहेंगे कहीं नहीं पहुँचेंगे॥ एक जन्म हो सकता है वे अपने आप को कहेंगे बड़ा आनन्द आ गया मजा आ गया॥ हाँ आनन्द आ गया पर आप पहुँचे कहाँ, गाड़ी खड़ी रही एक ही जगह, आप तेल फूँकते रहे, एसी चलाकर म्यूजिक सुनकर मजा लेते रहे गाड़ी का, कहीं पहुँची गाड़ी़? गाड़ी कहीं नहीं पहुँची॥ इसीलिए तप के बिना कहीं नहीं पहुँच सकते॥

अपने जीवन में जब तक साथ में एक तप नहीं जोड़ोगे यह पहचाना गया दुर्योधन परास्त नहीं हो पाएगा॥ इस पहचाने हुए दुर्योधन को परास्त करने के लिए बाबू, तप जीवन में साथ जोड़ना पड़ेगा॥ कि जब तक मुझे यह दुर्योधन पहचान में नहीं आए और जब मैं उस दुर्योधन को परास्त नहीं करूँ यह मेरा तप निरन्तर चलेगा॥ तप के स्वरूप बदले जा सकते हैं कि आने वाले 3 महीने मेरा यह तप है, आने वाले 40 दिन मेरा यह तप है॥ 20 दिन से कम नहीं॥ कोई तप चुन लो, किसी प्रकार का तप चुन लो, जिसे नए कपड़े खरीदने का शौक है, वह कपड़ों की खरीद पर तप कर ले॥ जिसे कोई विशेष प्रकार का बहुत अधिक खाने का शौक है वह उस पर कर ले॥ किसी को अकारण ही भटकने घूमने का है तो वह उस पर कर ले॥ किसी को हर घड़ी बक-बक करने का है वह वाणी पर कर ले॥ किसी पर भी करो, पहचानो क्या है जिसे न करने से तुम्हारे भीतर चूँ निकलेगी वह तुम्हारा तप है॥ उस तप को करना आरम्भ करो॥

तप ही वह शक्ति है जो तुम्हें निरन्तर बल प्रदान करेगी कि तुम वह कर सको जो तुम्हें करना चाहिए, जो करने योग्य है तुम उसे कर सको यह बल तुम्हें केवल तप ही प्रदान करेगा॥ और तप छूटा, प्रमाद आलस्य आया॥ तप के अभाव में हम पिटते हैं भटकते हैं त्रस्त होते है उत्कर्ष नहीं प्राप्त होता॥ यह बात केवल साधक समझेगा॥ अन्य कोई नहीं समझेगा॥ अन्यों के लिए यह विषय ही नहीं यह विषय अन्यों का नहीं है बाबू॥ इसलिए तप जोड़ो तप जोड़ो जल्दी भले मत करना पर तप जोड़ना॥

यह जो सत्संग की श्रृंखला है, यह एक प्रशिक्षण है॥ व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार; एक बड़ा प्रशिक्षण है जो धीरे-धीरे श्रृंखलाओं में चल रहा है, जिसके नोट्स साथ-साथ प्रकाशित हैं॥ मैं चाहता तो इसकी पुस्तक बना देता पर नहीं पता नहीं कौन खरीदता न खरीदता फिर परिवर्तन से लोग रह जाते॥ इसलिए मैंने इसे पुस्तक रूप में नहीं, बल्कि इसे खोल दिया॥

तपस्वी का जन्म होना अब आवश्यक है॥

कल के सत्संग में इसे आगे लेकर चलेंगे, अभी शक्ति, फिर योजना पर, दोनों से इसे जन्मों से आए हुए को परास्त करेंगे॥ और जैसे ही हम दोनों को लेकर आगे चलेंगे, बड़ी अद्भुत बात होगी दिव्य संरक्षण और प्रगाढ़ हो जाएगा, यह तुम अनुभव करोगे॥

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