Part - 21."विगतज्वर के विस्तार में अन्तःकरण कुछ नहीं कर पाता " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 21."विगतज्वर के विस्तार में अन्तःकरण कुछ नहीं कर पाता " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण - मनुष्यता की समस्या अचिंत्य चिंतनम् - जो नहीं सोचा जाना चाहिए, मनुष्य सोचता चला जाता है जीवन का समाधान व्यवस्थित चिंतन, परिणाम मनुष्य के पंचकोषों में से चार का परिष्कार और विचारों में शक्ति निश्चित॥ उसी श्रृंखला में पिछला न दोहराते हुए आज सम्भवत: 21वाँ भाग हम ले रहे हैं॥ श्रीमद भगवद गीता अध्याय 3 का श्लोक 30, इस श्लोक पर आधारित यह युक्ति हमने ली - 'निराशी निर्मम विगतज्वरा'॥

विगतज्वरा - विगत = जो बीत गया पिछला, ज्वरा = यहाँ ज्वर का अभिप्राय केवल उस बुखार को मत लेना जो शरीर को होता है॥ मनुष्य के मन में अनेक प्रकार की आशंकाएँ uncertainty क्या होगा क्या नहीं होगा; ये आशंकाएँ और अनिश्चितता, बात तो एक ही है शब्द दो अलग-अलग है, एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं Anxiety & uncertainty. आशंकाएँ और अनिश्चितताएँ ये दोनों मनुष्य को बहुत व्यथित करते हैं नोचते हैं they torment. मनुष्य अनिश्चितता और आशंका इनके द्वारा बहुत नोचा जाता है॥ वास्तव में अनेक अंशों में इसका कारण भी वह स्वयं ही होता है॥ कई बार परिस्थितियों पर वश नहीं चलता पर भले ही पूर्णतया न भी हो, अनेक अंशों में वह स्वयं ही इसका उत्तरदायी होता है॥ और यह मनुष्य को रह-रहकर अस्थिर भी करता है॥ यह अनिश्चितता के भाव, ये आशंका के भाव मनुष्य को इस स्तर तक आकर प्रताड़ित करते हैं कि उसे पता भी नहीं चलता और वह दास बन जाता है॥ किसका? कुछ ऐसी क्रियाओं का जिसका उसके जीवन में कोई लेना-देना नहीं है॥

आज तो उदाहरण देना बहुत सहज है, किसी समय बहुत कठिन था॥ किसी समय में तो लोग आँखें ऊपर करके बैठे रहते थे, पर आज रूप बदल गया है आज अपनी uncertainty आशंका, अनिश्चितता को manage करने के लिए अपने आप को engage करते हैं॥ जब सँभाल नहीं पाते हैं तो फिर एक बड़ा विशिष्ट सा addiction जन्म लेता है॥ वह addiction सोशल मीडिया का हो, अथवा मोबाइल पर कोई गेम खेलने का हो या कैसा भी addiction अथवा अन्य कई प्रकार के रसायनों के addiction ईत्यादि. ये सब वस्तुत: किसे सहेजने की चेष्टा कर रहे हैं? अनिश्चितता और आशंका को, हाँ कहा तो यही जाता है कि इसमें मजा आ रहा है, कहा तो यही जाता कि मुझे अच्छा लगता है मैं सोशल मीडिया पर बहुत समय बिताता हूँ / बिताती हूँ॥ समय बीत जाता है बस अच्छा लगता है, बस मोबाइल हाथ से छूटता ही नहीं है॥ मैं गेम खेलना शुरु करूँ एक के बाद एक गेम॥ अब तो हर गेम ऑनलाइन आ गई है अब तो लोग मिलकर 4 खिलाड़ी अलग-अलग रिमोट स्थानों पर बैठे हुए लूडो खेल सकते हैं; अपनी अपनी आशंका और अनिश्चितता को सँभालने के लिए॥ उन्हें नहीं पता वे सँभाल क्या रहे हैं वे तो मजा ले रहे हैं॥ अच्छा लगता है खेलना, मन लगता है॥ रोज के सेशन बुक होते हैं रोज इतने बजे खेलेंगे गर्दन ऐसे झुकाकर लगे रहते हैं॥ किसे सँभालते हो? अनिश्चितता को, आशंका को॥ क्योंकि जब वह तुमसे नहीं सँभल पाती तो तुम अपने आप को कुछ न कुछ ऐसा करने के लिए जुटा लेते हो जो प्रतीत होता है मजा देता हुआ जो प्रतीत होता है आपको आनन्द देता हुआ, पर वह आनन्द देता है कि नहीं बात अलग है॥ अंतत: फिर अधर्म में छोड़ जाता है॥

जीवन रूपी निधि का बहुत महत्त्वपूर्ण अंश वह खाकर चला जाता है॥ तुम्हारे पास है क्या? 'समय, ध्यान, और ऊर्जा' इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास क्या है? बाकी सब तो यहीं से बटोरा है॥ ये तीन ही हैं जो तुम्हारे पास अपने हैं - 1) समय 2) ध्यान 3) ऊर्जा 'Time, Attention, Energy'; बाकी सब यहीं से एकत्र किया है धन, साधन सब यहीं से, मूलत: तुम्हारे पास केवल ये तीन हैं॥ सोचो, तुम्हारे तो ये 3 ही साधन हैं बाकी सब एकत्र किया है॥ हाँ संस्कार हैं मानता हूँ, उसे attention में ही ले लो॥

मनुष्य अपनी अनिश्चितता को न सहेज पाने के कारण अनेक रूपों में प्रताडित होता है इस प्रकार के मनोरंजन की दासता भी प्रताड़ना है॥ किसकी प्रताड़ना है? जीवन के उद्देश्य की॥ जिस हेतु जीवन मिला उससे ध्यान भटका कर के प्रतिदिन कोल्हू के बैल की तरह घूमते चले जाओ घूमते चले जाओ यह क्या है? प्रताड़ना ही तो है॥ Outcome शून्य, कोई आत्म उत्कर्ष हुआ? नहीं होगा; यह प्रताड़ना है॥ पाप की परिभाषा मैंने सामान्यत: यही दी है जिसे पाप कहते हैं॥ जब मनुष्य, जो वांछित प्रगति है उसे प्राप्त न कर पाए तो समझ लो वह पाप भोग रहा है॥ कष्ट ईत्यादि वह भी पाप का एक रूप है पर केवल वही पाप भोगना नहीं है॥ आप में अच्छी खासी प्रतिभा हो, हम विषय पर ही हैं 'विगतज्वरा', आप में अच्छी खासी प्रतिभा हो पर आपसे कुछ भी न हो पाए no outcome, no productivity यह पाप भोगना ही है॥ आवश्यक नहीं है कि पाप भोगने की श्रेणी में शरीर के कष्ट ही आएँ॥ अक्षमता, 'incapability to do something meaningful' यह पाप भोगना ही तो है॥ वह ठीक है कई बार काल विपरीत होता है तो बात अलग है ॥ अन्यथा सब ठीक हो और कुछ न हो पाए तो यह पाप भोगने जैसा है॥ काल विपरीत है तो बात अलग है॥

'विगतज्वरा' की श्रेणी बहुत बड़ी है॥ 'निराशी' और 'निर्मम' की श्रेणी फिर भी सीमित थी, गहरी थी पर यह बहुत broad है विस्तृत है॥ विगतज्वरा तो ऐसा पिटारा है कि सब डाल सकते हो॥ लगभग जो कुछ भी मनुष्य को उसके आत्म उत्कर्ष और प्रगति के लिए आगे नहीं बढ़ने देता वह विगतज्वरा है॥ ख्वाहमख्वाह का भीतर के कारण मनुष्य का अटकापन, अटकापन॥ जितनी भी समाज में, राष्ट्र में अनीति फैलती है उसके मूल में कहीं विगतज्वरा ही है॥ कहने को ऐसा है कि कहीं पीछे की कोई बात याद तो नहीं आ रही - विगत, something from the past कहने को तो यह है पर केवल इतना नहीं है॥ विगत की परिभाषा केवल काल के अनुरूप उस अतीत की नहीं है जो इस जीवन का है, रिश्ते नाते जो अर्जुन को दिख रहे हैं॥ विगत की परिधि में हमें वह सब भी लेना पड़ेगा जिसने हमें आज तक आगे बढ़ने नहीं दिया॥ हमारे अपने स्वभाव में आई कमियाँ वह भी विगत में ही हैं उसका ज्वर आगे नहीं बढ़ने देता॥ राष्ट्रों में बहुत बड़े-बड़े कष्ट होते हुए भी लोग जागते नहीं, 'एकमन' नहीं हो पाते, एकत्र नहीं हो पाते॥ अरे, समाज की छोटी छोटी समस्याओं से लड़ने के लिए एकत्र नहीं हो पाते, बैठे-बैठे रोते रहते हैं; विगतज्वरा ही तो है॥ अपने अतीत के स्वभाव को ढोते हुए अकर्मण्य बन जाते हैं तटस्थ हो जाते हैं विगतज्वरा ही है॥

विगतज्वरा की परिधि बड़ी करनी पड़ेगी उस काल के अर्जुन के लिए कितनी बड़ी थी या छोटी थी यह हम नहीं जानते॥ आज के द्वन्द्वग्रस्त अर्जुन की विगतज्वरा की परिधि बहुत बड़ी है बाबू, बहुत बड़ी , it is immense बहुत बड़ी है॥ इसीलिए विगतज्वरा में तुम्हारे अपने सारे the cycle of your behavior जिसे हम behavioral patterns कहते हैं, बार-बार वही करना वैसे ही सोचना, वैसे ही बैठे रहना, बैठे-बैठे ही चाय पर चीखते रहना या ऐसे ही बातें मारते रहना, करना कुछ नहीं आगे एक कदम नहीं ले के आना; initiative में शून्य॥ यह क्या है? यह विगत का ही ज्वर है जो जिया जा रहा है॥ यह व्यक्तियों से फिर समाज, फिर समाज से राष्ट्र को लील लेता है लील लेता है it engulfs. इस विगतज्वरा से बाहर आना होगा जिससे अपने भीतर के दुर्योधन को परास्त करना है जिसकी पहचान आप कर चुके हो, यह मेरे भीतर का मुख्य दुर्योधन है जो मुझे स्थिर नहीं होने देता, मेरे चिंतन को व्यवस्थित नहीं होने देता॥ आसक्ति बनकर मुझे हाँककर ले जाता है तो उसके लिए विगतज्वर को सँभालना होगा॥

मैं आज तक ऐसा करता आया, आज तक ऐसा ही होता रहा मुझसे, इसे तोड़ना पड़ेगा॥ ये भीतर की बेड़ियाँ कोई और काटने नहीं आता इन्हें स्वयं के प्रचण्ड संकल्प से ही और भीतर के ज्ञान की ज्वाला से ही काटकर भस्म किया जाता है॥ अन्य कोई नहीं, तुम ही करोगे इसे॥ इसीलिए विगतज्वरा की परिधि बहुत बड़ी है॥ बार-बार वही आचरण जो अकर्मण्यता का है, inactivity का है, irresponsibility का है, वह विगतज्वरा की परिधि में आएगा॥ आज के अर्जुन के लिए विगतज्वरा का विस्तार बहुत बड़ा है॥ अपने आप को लाँघना विगतज्वरा से मुक्त होना है॥ किसी उत्कर्ष के उद्देश्य पर कदम बढ़ाना विगतज्वरा से मुक्त होना है॥

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