थोपी गई पहचान व्यक्तिगत अथवा सामूहिक अहंकार पर आघात है। अहंकार की सात्विक महाशक्ति - भाग 2

थोपी गई पहचान व्यक्तिगत अथवा सामूहिक अहंकार पर आघात है। अहंकार की सात्विक महाशक्ति - भाग 2

अहंकार की सात्विक महाशक्ति - भाग 2

अहंकार के स्वरूप का दर्शन तब होता है जब सामने यह अनुभव आए कि कोई जीव विवेक का त्याग करके, परिस्थिति-परिवेश का त्याग करके, केवल और केवल अपने हठ पर आरूढ़ है॥ उस हठ को उसने अपनी पहचान मान लिया, अपना अस्तित्व मान लिया कि यह हठ मेरा अस्तित्व है, तो क्या होगा? वह कुछ भी कर सकता है॥ लोग कहते हैं कि सन्तान के प्रति मोह सबसे बड़ा मोह माना गया है, इससे बड़ा मोह नहीं है, गलत॥ गम्भीरता से अवलोकन करें तो पता लगेगा कि मनुष्य का सबसे बड़ा मोह उसे अपने विचार, अपनी धारणा से हो जाता है, आप उसे bias भी कह सकते हैं कुछ भी शब्द लें॥ अपने विचार और अपनी धारणा के मोह में ग्रस्त जीव कुछ भी कर सकता है, सन्तान को पीछे छोड़ सकता है॥ ध्यान रहे यह (अहंकार) महाशक्ति है॥ यह महाशक्ति है जिसका विकृत स्वरूप भी है पर हम इसके सात्विक स्वरूप की ओर चलेंगे॥ तदपि चलते हुए इसके दर्शन होना भी आवश्यक है॥

सामान्यत: अहंकार को हम केवल arrogance के रूप में जानते हैं; जैसे 'नाक पर अहंकार बैठा है हर बात में इस प्रकार करना'॥ जबकि इसके घातक स्वरूप और सबसे सृजनात्मक स्वरूप वे हैं जो कभी पहचान में नहीं आएँगे॥ जितना सौम्य व्यक्ति का अहंकार खतरनाक हो सकता है उतना उस व्यक्ति का नहीं जो बाहर से दिखने में arrogant है॥ उसी प्रकार अहंकार की सात्विक महाशक्ति उस जीव में बहुत बड़ी है जो बाहर से कोई बहुत बड़े उच्चारण नहीं करता, बस जी लेता है॥ सौम्य अवस्था में अहंकार के ये दोनों स्वरूप सबसे प्रचण्ड दिखते हैं, घातक भी और सृजनात्मक भी॥

जिसमें महाघातक स्तर का अहंकार है आवश्यक नहीं कि वह बाहर से प्रतिपल बहुत क्रोधित दिखाई दे, प्रतिपल उसके शब्दों में कटाक्ष हो , वह प्रतिपल दूसरों का अपमान करता रहे, आवश्यक नहीं है, बिल्कुल आवश्यक नहीं है॥ कभी गम्भीरता से अनुभव करोगे तो तुम्हें ज्ञात होगा कि अहंकार की महाशक्ति, सृजन अथवा विनाश किसी के लिए भी हो, सामान्यत: जिन लोगों में होती है वह बहुत छुपी हुई होती है॥ जिनकी बाहर प्रतीति आ गई उसकी जड़ें नहीं होती॥ जिसका अहंकार उसके व्यवहार में, सामान्य लोकाचार में बाहर आ गया, उसकी जड़ें विशेष नहीं हैं॥ यद्यपि वह अपनी बातों से लोगों को आहत करेगा, मन दुखा देगा, कुछ न कुछ ऐसा करेगा जो अच्छा नहीं लगेगा या बाहर घोषणाएँ होंगी, परन्तु उसकी जड़ें विशेष गहरी नहीं होती॥ अहंकार की जड़ें जहाँ गहरी होंगी वहाँ जल्दी से पता भी नहीं चलेगा॥ बाहर सौम्यता दिखाई देगी, बाहर मुस्कराहट भी दिखाई देगी पर भीतर उसकी जड़ें इतनी गहरी होंगी, यह दोनों के लिए है ध्यान रहे॥ जैसे बन्दूक दोनों के लिए है सैनिक के हाथ में भी और आततायी के हाथ में भी बन्दूक तो एक ही है न॥ एक का काम है रक्षण, दूसरे का भक्षण॥ उद्देश्य का अन्तर है, बन्दूक तो एक ही है॥

अहंकार एक महाशक्ति है यद्यपि हमारा विषय सात्विक है पर परिचय तो होना चाहिए॥ अत: एक गम्भीर साधक के रूप में विचार करना, अपने आसपास को देखकर विचार करना, इतिहास को देखकर, आसपास को देखो, परिवेश को देखो, इतिहास को देखो और गम्भीरता से अनुभव करो - जिनमें सबसे घातक अहंकार होगा उनकी बाहर विशेष प्रतीति नहीं होगी॥ आवश्यक नहीं है कि वह arrogant होंगे॥ जो arrogant होंगे, हर घड़ी नाक पर अहंकार दिखता होगा, उनके द्वारा हानि भी उतनी बड़ी नहीं हो सकती॥ उनके द्वारा जो हानि भी होगी वह बस तात्कालिक स्वरूप में थोड़ी बहुत होगी, होगी पर थोड़ी बहुत॥ परन्तु जो सौम्य है उसे छिपाकर बैठा है, अपनी योजनाओं में, अपने उद्देश्यों में, अपनी नीतियों में, अपने अहंकार को समेटकर बैठा है; वह न तो जल्दी पहचान में आएगा और उसकी पहुँच, उसकी परिधि बड़ी विराट होगी, व्यापक होगी॥ वहीं इसीलिए कहा जाता है कि इस प्रकार का अहंकार यदि नेतृत्व में आ जाए, leadership में आ जाए तो बड़ा घातक हो सकता है॥ वह बडी से बड़ी योजना को, बड़े से बड़े संगठन को, बड़ी से बड़ी टीम को परास्त कर सकता है, पूरे काल को प्रभावित कर सकता है॥ छुपा हुआ अहंकार जिसकी जड़ें पाताल में हैं, वह पूरे काल की अवधि तक को प्रभावित कर सकता है, किसी राष्ट्र के भाग्य को भी प्रभावित कर सकता है॥ दिखने में सौम्य होगा, बहुत सरल होगा पर परिणाम बड़े घातक होंगे॥

इसलिए इस नई दृष्टि में जो अहंकार के प्रति खुल रही है, उसके विनाशकारी स्वरूप के दर्शन भी एक कदम पीछे हटकर करने होंगे॥ हम अहंकार को बहुत सतह पर, बहुत सतह पर जानते हैं, बड़ी जल्दी पहचान लेते हैं॥ जिसे जल्दी पहचान लेते हैं वह उतना घातक भी नहीं होता क्योंकि उसकी जड़ें तो हैं ही नहीं, वह तो नाक पर आकर टिककर बैठ गया॥ वह तो दिख रहा है सामने है उसकी चपेट में आनेसे भी बचा जा सकता है पर जहाँ वह भीतर चला गया जड़ों में वह फिर अपने आप की स्थापना के लिए कुछ भी कर सकता है, मैंने कहा न काल के खण्ड को भी प्रभावित कर सकता है; यदि वह नेतृत्व में आ गया तो॥ अहंकार की महाविनाश शक्ति भी है, महासात्विक भी है॥

अहंकार की महासात्विक शक्ति क्या है यह जान लो - जब कोई जीव किसी शिव संकल्प को जीना आरम्भ कर दे और वह उस शिव संकल्प को अपनी पहचान मान ले, अपना नाम भूल जाए, अपना रूप भूल जाए, अपनी शैक्षिक योग्यता को भूल जाए अपने सम्पर्कों को भूल जाए, अपनी सम्पत्ति को भूल जाए, केवल और केवल उद्देश्य को जिए हर श्वास में; अर्थात अब उद्देश्य ही उसका अस्तित्व हो गया तो मानना चाहिए कि शिव संकल्प अब प्रचण्ड रूप लेगा॥ बड़े से बड़े बलिदानी, बड़े से बड़े सृजनकर्ता जिन्होंने इस प्रकार की स्थापनाएँ की हैं जो बहुत बड़े स्तर पर कल्याणकारी हैं, उन्होंने अपनी पहचान त्याग दी; उनका शिव संकल्प ही उनकी पहचान हो गया॥ अहंकार क्या है? पहचान ही तो है॥

नाम और रूप के साथ इतराना, एक इतराहट मेरा नाम, मुझसे ऊपर कोई नहीं॥ रूप यहाँ केवल सौन्दर्य नहीं है रूप को आप प्रतीति भी मान सकते हैं॥ मैं हूँ तो इस प्रकार देखा जा रहा है ये बाहरी छोटे रूप हैं॥ ये बहुत छोटे-छोटे स्वरूप हैं ये बहुत बड़ी हानि नहीं करते पर सात्विक स्वरूप में यदि उसके दर्शन करने हों तो उनमें करना जिनकी पहचान केवल उनका उद्देश्य रहा॥ जब वे जी रहे थे तो वे केवल उद्देश्य बनकर के जीवन्त हो रहे थे, जीवन्त उद्देश्य थे॥ उस समय उनका न नाम था न कुछ था, न हार थी न जीत थी, कुछ नहीं वे थे ही नहीं, अस्तित्व मिट गया था॥ उनका अहंकार, उनकी पहचान, उनका आधार, उनका उद्देश्य था शिव संकल्प॥ उस समय उनके भीतर वह महाशक्ति अवतरित होती है जो उनके शरीर की क्षमताओं, को मन की क्षमताओं को इतना बड़ा विस्तार दे जाती है जितना सामान्य बुद्धि गणना नहीं कर सकती॥ सामान्य बुद्धि की सीमाओं से परे की क्षमताएँ जागती हैं जब मनुष्य किसी उद्देश्य को, शिव संकल्प को अपना आपा मान लेता है॥ शिव संकल्प को आपा मानने वाले लोग जब उसे जीते हैं तो अहंकार की महासात्विक शक्ति को ही परिलक्षित कर रहे होते हैं॥ इस विषय पर अभी आगे और भी बहुत कुछ कहना है अभी केवल स्वरूप के परिचय हैं॥

इसको गहनता से दोबारा अवश्य सुनना॥ क्योंकि दृष्टि नई खुल रही है इसलिए तुम्हें काल में और परिवेश में अनुभव करके सोचना भी होगा कि क्या-क्या ऐसा हुआ॥ जिसे हम सामान्यत: अहंकार मानते हैं वह तो बहुत सतह पर है, बहुत सतह पर है, उसकी पहुँच उसकी शक्ति बहुत थोड़ी है किन्तु जिसका उललेख मैं कर रहा हूँ महाशक्ति के रूप में वह बाहर नहीं भीतर है॥

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