सूक्ष्म शरीर भोग भोगने का साधन है,आत्म बोध आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित श्लोक 13

सूक्ष्म शरीर भोग भोगने का साधन है,आत्म बोध आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित श्लोक 13

ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान उपरान्त सत्संग - आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित 'आत्मबोध' - श्लोक १३

मनुष्य के अस्तित्व के सूक्ष्म शरीर पर वे कुछ कहना चाहते हैं। आइए श्लोक का अवलोकन करें। इसमें कुछ शब्दों को एक साथ दिया गया है:

पञ्चप्राण मनोबुद्धि दशेन्द्रिय समन्वितम् (एक साथ)।
अपञ्चीकृत (मूल पंचभूतों द्वारा निर्मित) भूतोत्थं सूक्ष्माङ्गम् (सूक्ष्म शरीर) भोगसाधनम् ।१३।
स्थूल भोग आयतनम - सूक्ष्म भोगसाधनम

पञ्चप्राण मनोबुद्धि दशेन्द्रिय - पाँच प्राण मन बुद्धि और दसों इन्द्रियाँ
समन्वितम - उन्हें जोड़कर एक साथ

अपञ्चीकृत - आगे शब्द बड़ा महत्त्वपूर्ण है अपञ्चीकृत (मूल पंचभूतों द्वारा निर्मित) भूतोत्थं - यहाँ अपञ्चीकृत पंचभूतों के उस सूक्ष्म स्वरूप से है जिसे हम तन्मात्रा कहते हैं। हम जो कुछ भी इन इन्द्रियों के माध्यम से भोग रहे हैं उसका सम्मिश्रण मूल स्तर पर तन्मात्रा के स्तर पर हुआ है। अर्थात यह आँख देखकर के किसी को सन्देश दे रही है, नाक सूँघ कर के किसी को सन्देश देता है, जिव्हा चख कर के किसी को सन्देश देती है, कान सुनकर किसी को सन्देश देता है। उसी प्रकार ये सारी इन्द्रियाँ वे चाहे ज्ञानेन्द्रियाँ हों या कर्मेन्द्रियाँ हों, 5 और 5 मिलाकर दस इन्द्रियाँ, ये सारी की सारी कहीं भीतर किसी को सन्देश देती हैं। और हमारे मस्तिष्क के भीतर जहाँ ये सन्देश देती हैं, क्योंकि बिना आँखें खोले हम देख भी सकते हैं, बिना सुने मन में अपने भीतर सुन भी सकते हैं, बिना सूँघे भीतर एक स्मृति में किसी सूँघी गई गन्ध को ला भी सकते हैं ईत्यादि। अर्थात सूक्ष्म में यह सब कुछ सम्भव है और सूक्ष्म में यह सब कुछ जो खुली आँखों, नाक, कान ईत्यादि की सक्रियता से होता है वह भीतर भी हो जाता है स्वप्न में भी तो होता है। यह तन्मात्राओं का खेल है।

यह विज्ञान केवल इतना नहीं है जितना मैंने बताया है। विज्ञान तो बहुत बड़ा है, तन्मात्राओं का विज्ञान बहुत बड़ा है। कैसे ये पाँचों आकर के सूक्ष्म स्वरूप में मिलते हैं और मिलकर के रचना करते हैं वह अपने आप में एक विस्तृत ज्ञान है जो हमारे ऋषियों ने हमें दिया है। यहाँ केवल उल्लेख मात्र के लिए है कि पाँच प्राण, पंच प्राण (मूल पाँच प्राण जिनकी हम बात करते हैं लघु प्राण मिलाकर दस, किन्तु मूल पाँच प्राण), मन कामना करने वाला, बुद्धि विवेचना करने वाली और दस इन्द्रियाँ जो सर्विस में खड़ी हैं (executives); ये मिलकर के सूक्ष्म धरातल पर एक अपञ्चीकृत (ये भूत जितने भी सूक्ष्म स्तर पर भूत हैं), ये अपञ्चीकृत की, तन्मात्राओं की क्रिया पूर्ण करते हैं, जिससे सूक्ष्माङ्ग अर्थात सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है। किसके लिए? भोगसाधनम् यदि आप श्लोक के नीचे ध्यान से पढ़ो तो लिखा है 'स्थूल भोग आयातनम' अर्थात स्थूल शरीर एक आयातनम है एक घरौंदा है। उस घरौंदे में अब जो कुछ होना है उसके लिए भी तो प्रावधान चाहिए न? पंचभूतों ने मिलकर के स्थूल शरीर रच दिया। अब उन्हीं पंचभूतों का सूक्ष्म अस्तित्व इस शरीर में होने वाले समूचे अनुभवों क्रियाओं ईत्यादि के लिए भी तो आवश्यक है। अत: स्थूल शरीर एक घरौंदा है और सूक्ष्म शरीर भोग भोगने के लिए है।

विषय क्या है? आत्मबोध! यह सब कुछ आत्मा के प्रकाश से ही तो सम्भव है, आत्मा के प्रकाश से (जो यूँ तो निर्लिप्त है, अजन्मा है) जीवात्मा अस्तित्व पाती है; और जीवात्मा के प्रकाश से ही मनुष्य के बाकी अस्तित्व भी रचना में आते हैं। जिनमें समूचे सूक्ष्म शरीर के अंग अवयवों का एक साथ उल्लेख कर दिया। अब जब अपंचीकृत कहा गया, तन्मात्राओं की बात कही गई तो इनमें आप पाँच शरीरों को मत भूल जाना जो पंचकोषों के अन्तर्गत आते हैं। वे भी एक एक मूलभूत तत्त्व से ही तो जुड़े हैं 'अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय' कहीं तो जुड़े हैं न। अत: ब्रह्म ऋषि कहते हैं कि स्थूल घरौंदा अब उसमें अनुभव डालने हैं न? उसके लिए सूक्ष्म की रचना इन उपकरणों के द्वारा की गई है। माण्डूक्य उपनिषद में उल्लेख और भी आया है संख्या थोड़ी बढ़ी भी है, पर मूल भूत यही है - पाँच प्राण, मन, बुद्धि, दस इन्द्रियाँ, मिलकर के अनुभवों का खेल जागृत किया गया है। यह विस्तार की चर्चा है और इसी को जब समेटते चले जाते हैं तो आत्मबोध की ओर आगे बढ़ना आरम्भ कर देते हैं।

आज का श्लोक कल के श्लोक का दूसरा भाग बना। अभी आने वाला श्लोक लगभग इसका तीसरा भाग बनने वाला है जिससे मनुष्य के अस्तित्व के तीनों शरीरों का उल्लेख आत्मबोध के अन्तर्गत आया है। इस विषय पर बड़ा सूक्ष्म ज्ञान हम लोग आपस में लेकर चल रहे हैं अन्यथा एक-एक विषय अपने आप में एक विज्ञान है एक वाङ्गमय है जिसकी हमें अभी आवश्यकता नहीं है एक अध्यात्म पथ पर प्राचीन भारतीय मनीषा से सम्बन्धित होने के कारण, सनातन धर्म पद्धति के अन्तर्गत, इस सनातन देव संस्कृति में जन्म होने के कारण, हमें उस प्राचीन भारतीय मनीषा के विषय में भी परिचय होना चाहिए जिसके लिए विश्व अभी प्राय: अछूता है। अभी विश्व केवल कुछ अंशों में ही 'स्थूल आयातनम' जिसे शरीर कहा गया, अभी केवल उसी के विषय में जानने में जुटा हुआ है। अत: आज आत्मबोध का श्लोक १३ पूर्ण हुआ।

आज सायं 7:30 बजे शिवरात्रि पर्व पर एक छोटा सा कार्यक्रम रहेगा मेरे साथ केवल कृष्ण जी भी होंगे भजन सुनाने की चेष्टा भी करेंगे। एक सूक्ष्म सा हम भोलेनाथ का स्मरण करेंगे। YouTube Channel पर सीधा प्रसारण उपलब्ध रहेगा।

   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख