Part - 8. अंतःकरण में घटता प्रतिपल कुरुक्षेत्र संग्राम - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार है

Part - 8. अंतःकरण में घटता प्रतिपल कुरुक्षेत्र संग्राम - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार है

transcription by Ashok Satyamev

मनोमय कोष की साधना हेतु हम श्रीमद भगवद गीता के प्रथम श्लोक पर हैं और उस श्लोक से निकलने वाला मर्म जानने की चेष्टा में हैं॥ प्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन से इस श्लोक का क्या संबंध जुड़ता है? न भूलें 'धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र'; धर्मक्षेत्र - निर्धारित दायित्व का क्षेत्र, कुरुक्षेत्र - जो हो पा रहा है॥ सेनाएँ दोनों की खड़ी है 'समवेता युयुत्सवा:' योद्धा दोनों के खड़े हैं॥ धृतराष्ट्र कहते हैं 'मामका पाण्डवाश्चैव' मेरे और पाण्डवों के॥ कौरवों के तो बहुत है पर जिन के मूल में हैं दुर्योधन, दु:शासन संसाधनों का चीरहरण करने के लिए; पांडवों की तरफ यह समस्त इन्द्रियाँ हैं और उनके अधिष्ठाता केशव॥ प्रपंच - पंचतत्वों से रची, पंचतत्वों से अभिप्रेरित यह स्थूल और सूक्ष्म सृष्टि और उसके मूल संचालक केशव; ये पांडवों की और हैं॥ चेतना पांडवों की और है॥ अतः 'मामका पाण्डवाश्चैव', धृतराष्ट्र पूछ रहें हैं क्या चल रहा है?

परन्तु एक साधक की भाँति, एक ऐसे जिज्ञासु की भाँति, एक तपस्वी की भाँति, और एक उद्यमी की भाँति, like an entrepreneur, any entrepreneur, in any field; उसके लिए यह प्रश्न धृतराष्ट्र से छीनने का है॥ यह शोधन करने की स्वतंत्रता हमें प्राचीन भारतीय मनीषा, सनातन पद्धति देती है कि हम अपने अध्ययन अपने आत्म उत्कर्ष हेतु हम जिस प्रकार भी चाहें हम उसका भाव निस्सृत कर सकें, उद्देश्य आत्म परिष्कार होना चाहिए॥ श्लोक धृतराष्ट्र को दिया गया पर हम यह श्लोक धृतराष्ट्र से अपने आप को देते हैं॥ अब यहाँ धृतराष्ट्र नहीं है वह अन्धा नहीं है जो येन केन प्रकारेण बस सत्ता को हथियाना चाहता है, जो मनमानी करना चाहता है, जिसकी संतति दुर्योधन, दुशासन तथा 98 और हैं॥ जो केवल Creative Energy, Creative Resources का दोहन करना चाहते हैं॥ Just want to drain it out, usurp it.

अब यह श्लोक धृतराष्ट्र से छीन कर के हम लेते हैं॥ छीन कर? हाँ छीन कर, यह छीन कर हम लेते हैं और हम पूछते हैं अपने आप से कि "मेरे जीवन में, मेरे व्यक्तिगत जीवन के प्रकाश में धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवा:"

मेरे भीतर के कौरव भी एकत्र हुए पड़े हैं, इस दिन-प्रतिदिन के संग्राम में, मेरे भीतर के कौरव भी एकत्र हैं, मेरे भीतर के पांडव भी एकत्र हैं केशव सहित; उनमें चल क्या रहा है? यह प्रश्न अब कौन पूछ रहा है? धृतराष्ट्र नहीं, यह प्रश्न अब हम पूछ रहे हैं एक साधक की भाँति अपने आप से, अपने भीतर यह प्रश्न हम उपस्थित कर रहे हैं॥ हम अपने आप से पूछ रहे हैं कि हमारे अपने जीवन में जो कुछ होना चाहिए था, जो कुछ आवश्यक है, वह सब कुछ जिससे जीवन उत्तरोत्तर प्रगति की ओर आगे बढ़ सकता है, आत्मउत्कर्ष की ओर आगे जा सकता है, शांति, स्थिरता एवं उपलब्धि की ओर जा सकता है, वहाँ उस संग्राम में जो दिन भर के कर्म के द्वारा होना है, उस कर्म में विचार भी आ गए अर्थात पूरा चिंतन आ गया, उसमें भाव भी आ गए, कल्पनाएँ स्मृतियाँ, सब कुछ जो खिचड़ी पकती है वह सारा कर्म क्षेत्र है, वह सारा कुरुक्षेत्र; उस में हो क्या रहा है? उसमें कौन बाजी मार कर के ले जाता है? मेरे भीतर के कौरव, अतृप्त कामनाएँ? केवल वह नहीं जिसे तुम मानते हो कि जो तुमने बाहर के स्तर पर पूर्ण किया सम्पादित किया॥ That you accomplished outside, न कर्म वह भी है जो तुम्हारे चिंतन के स्तर पर है, भले ही मात्र कल्पना के क्षेत्र में क्यों न हों॥ Whatever you are contemplating, all of your imagination recall, पहला विचार, वह कर्म ही तो है॥ यह सोचना कि मैंने थप्पड़ मारा तो नहीं, मैं सोच रहा था कि थप्पड़ मार दूँ, ठीक है बाहरी स्तर पर नहीं हुआ, अगर भीतरी स्तर पर हुआ तो कर्म हो गया॥ अतः मेरे भीतर, मेरे भीतर दोनों स्तरों पर - मेरे चिंतन के स्तर पर और मेरी अभिव्यक्ति के स्तर पर, At the expressive plain, and the plain of contemplation withing, मेरे भीतर के मनन चिंतन के धरातल पर इन दोनों में क्या चल रहा है?

यूँ तो दोनों आपस में गुँथे हैं फिर भी कई बार गुँथे भी नहीं होते॥ कई बार मनुष्य सोचता कुछ है, कर कुछ और ही जाता है; ऐसा भी तो होता है॥ इसीलिए ये दोनों एक हो भी सकते हैं कि जो मैं सोचता हूँ वही मैं करता हूँ और दोनों एक नहीं भी हो सकते 'मैं सोचता कुछ और हूँ हो मुझसे कुछ और जाता है"॥ यह प्रश्न एक साधक को पूछना है एक Entrepreneur को पूछना है॥ धृतराष्ट्र से श्लोक छीन कर के अपना स्वमूल्यांकन करने हेतु Introspetion करने हेतु, जिसे हम Self Analysis कहते हैं, उस संदर्भ में, उस प्रकाश में शाम को बैठकर कि अपना विश्लेषण करते हुए साधक स्वयं से पूछेगा "आज दिन भर में, आज दिन भर में मेरे धर्म क्षेत्र में जो मुझे करने योग्य था और कुरुक्षेत्र में जो हो पाया, कुछ हो पाया या हुआ? मैंने कुछ किया ही नहीं अपनी ओर से, मैं तो lethargy में रह गया॥ बस सोचता ही रह गया॥
क्यों?

पता नहीं बस, बेकार में फिर भी कहाँ उलझे रहे?

अरे कहीं नहीं कुछ तो पता लगे कहाँ थे?

नहीं, कहीं नहीं थे, बता दिया न कहीं नहीं थे॥ बस नहीं हो पाया॥

अच्छा एक बात ईमानदारी से बताओ तो कि क्यों नहीं हो पाया?

अरे शर्म आती है बताते हुए॥ क्या बस सारा दिन यूँ ही कभी मैसेजेस देखते तो कभी फेसबुक देखते तो कभी फेसबुक नहीं होता तो 'फेस' 'बुक' बन जाता है॥ कभी फेसबुक देखते कभी यूट्यूब में देखते रहे इधर उधर॥

आप महत्वपूर्ण नहीं कर पाए इसलिए क्योंकि आपके पास कहने योग्य कारण भी नहीं है कि आप क्यों नहीं कर पाए॥ आपको कौन हाँक कर के ले गया? ऐसा कौरव जिसका कोई चेहरा ही नहीं है॥ किसी कौरव का चेहरा हो और आप उसके मत्थे मड़ो, अरे उसने नहीं करने दिया इसलिए नहीं हो पाया तो बात अलग है॥ भारत की बहुत बड़ी शक्ति, बहुत बड़ी शक्ति, Creative Resource ऐसे कौरवों के हाथ प्रतिदिन धर्म क्षेत्र में कुरुक्षेत्र में हारती है जिनका चेहरा ही नहीं है॥ जो केवल सामने एक सोशल मीडिया के स्वरूप में आते हैं, या अनर्थ, अनर्गल का चिंतन शुरु हो जाएगा॥ जिसका कोई सार निकलने वाला नहीं है॥ आप दिनभर में क्या सोचते जाते हो, क्या आपको स्वयं उसका अनुमान है?

Can you count the number of thoughts and the kind of thoughts you were thinking in a day?

एक दिन में कितने तरह के विचार आप सोचते रहे क्या आपके पास मूल्यांकन है? हो ही नहीं सकता॥

पहली बात तो यह कि आप दिन भर में जितने प्रकार के विचारों में उलझे उनकी संख्या हजारों में जाएगी॥ It runs in thousands. Its OK चलो मान लिया वह संख्या हजारों में नहीं सैंकड़ों में होगी॥ उन सैंकड़ों में से आप नोट करते हो किसी को?

नहीं करते॥

तो हुआ क्या कि अनजाने कौरवों ने जिनके चेहरे नहीं है वह आपकी दिनचर्या हाँक कर ले गए॥ पूरा दिन हाँक कर ले गए॥ क्या केवल 1 दिन हाँक कर ले गए? नहीं॥ 2 दिन हाँक कर ले गए? दिन के बाद दिन, दिन के बाद दिन पलटता गया पन्नों की तरह, सब कुछहाँक कर ले गए॥ और मनुष्य बूढ़ा होता गया, बड़ा हो ही नहीं पाया॥ बड़ा होने के लिए तो कौरवों का हारना आवश्यक था, पाण्डवों की विजय होनी चाहिए थी॥ व्यवस्थित चिंतन चाहिए था जो सार्थक हो meaningful, thinking that is meaningful, purposeful, thinking that will accomplish something. वह नहीं हुआ॥


बस अव्यवस्थित चिंतन की बलि चढ़ गया पूरा दिन॥ यह दिन भी, अगला दिन भी, पिछले दिन भी और आने वाले और दिन भी, किस की बलि चढ़ गए? अव्यवस्थित चिंतन की तो विचारों की शक्ति तो अभी भूल ही जाओ न॥ कहाँ से आएगी विचारों की शक्ति?

न, अभी नहीं आएगी यह प्रश्न छोड़ कर के मैं आज के सत्संग को पूर्ण कर रहा हूं॥ कल पुन: इसे आरंभ करेंगे॥

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

Whatever age you are, कोई भी उम्र हो तुम्हारी 18 वर्ष से ऊपर अथवा नीचे भी, पर फिर भी 18 वर्ष से अधिक कहीं भी हो 18 से 98 तक आयु के लिए विषय बड़ा प्रासंगिक है॥ It directly relates to you, connects with you.

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