आत्म बोध मोक्ष हेतु निर्विकल्प है। आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित आत्म बोध श्लोक - 2

आत्म बोध मोक्ष हेतु निर्विकल्प है। आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित आत्म बोध श्लोक - 2

आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित आत्मबोध

आत्मबोध - आत्म साक्षात्कार, वह जो सब स्थानों पर व्याप्त है, जो अजन्मा है, अनादि है उसके बोध के विषय में कहते हुए आदिगुरु शंकराचार्य जी ब्रह्म ऋषि
कल श्लोक 1 का हमने अध्ययन किया जिसके अन्तर्गत आपने यह जाना कि तप के द्वारा शरीर, वाणी, मन, मनुष्य के पाप जब क्षीण हो जाते हैं अर्थात उसकी मलिनताएँ उसके बिखराव। यहाँ पाप को आप उसके बिखराव समझना, वह सब कुछ भटकाता है उसे पाप मानना। जब वे समाप्त हो जाते हैं और हृदय शान्त होता है, विचलित नहीं रहता और भीतर एक ऐसी सम अवस्था आती है जो न आकर्षण में न विकर्षण में राग और द्वेष से मुक्त है। ऐसा मुमुक्षु, ऐसा जिज्ञासु, ऐसी तड़प जिसे होती है अर्थात केवल मोक्ष की ही कामना जिसका सर्वोपरि उद्देश्य है, उसके लिए इस आत्मबोध रूपी ग्रन्थ या संकलन, इसकी रचना आदिगुरू शंकराचार्य जी ने की है। आज दूसरे श्लोक पर आते हैं।

बोधो ऽन्य साधनेभ्यो हि
साक्षान मोक्षैकसाधनम्।
पाकस्य (भोजन बनाना) वहिनवज्ज्ञानं
(वहिन-वायु सहित गमन करने वाली - अग्नि)
विना मोक्षो न सिध्यति ।२।

बोधो ऽन्य साधनेभ्यो हि, साक्षान मोक्षैकसाधनम् -
जितने भी साधना के हमारे अनेक प्रकार के पद्धतियाँ हैं इसमें सब आ गई ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, सन्यास योग, जप योग, लय योग, आप नाम लेते जाओ लेते जाओ, वे समस्त जितनी भी साधना की पद्धतियाँ हैं वे सब direct नहीं हैं, प्रत्यक्ष नहीं हैं indirect हैं। हम मन्त्र जपते हैं और मन्त्र जपते हुए उसकी ऊर्जा से हमारे भीतर के विकारों का क्षय होता है। हम कोई उपवास करते हैं, किसी अन्य प्रकार का तप करते हैं उससे भी विकार समाप्त करते हैं। कर्म को योग मानकर करते हैं अनासक्त भाव से तो भी उस अनासक्ति के परिणाम में भी धीरे-धीरे एक जागृति आती है, वही भक्ति में भी है। इष्ट के प्रति समर्पण एक समय पर इतना हो जाता है कि और कुछ शेष नहीं रहता, बचता ही नहीं है। पर जो कुछ भी है प्रत्यक्ष नहीं है। बिलकुल direct साक्षान बोधो ऽन्य, जितनी भी अन्य साधनाएँ हैं उनकी तुलना में साक्षान जो direct है 'मोक्षैकसाधनम' वह कौन सा है ?
यहाँ संकेत एक ही ओर है - आत्मबोध

आप ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान में मेरे साथ सम्यक स्तर पर साधना कर रहे हैं इसके उपरान्त समुन्नत स्तर है जो आजकल इसी ध्यान में आ रहे हैं। इसके बाद स्थापक स्तर है तीसरा। एक ही साधक मेरे पास अभी है समुन्नत तो कई हैं। अत: स्थापक स्तर पर केवल और केवल आत्म बोध की साधना आरम्भ हो जाती है जिसे हम विज्ञानमय कोष की साधना भी कहते हैं। उसमें बीच में और कुछ नहीं है। समय उसमें भी बहुत लगता है पर उसमें स्थापक स्तर पर बीच में और कुछ नहीं है, केवल और केवल आत्मबोध की साधना है। अर्थात जो एक investigation है, एक मीमांसा है, एक विश्लेषण है; किसका? मैं कौन हूँ?

अहंकार की सात्विक महाशक्ति में उल्लेख आया था न? मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ? सीधे इस प्रश्न पर ही चढ़ जाना। और कुछ नहीं न जप, न भक्ति, न सन्यास कुछ नहीं और इसी को ज्ञान का शब्द, knowledge, self knowledge आत्मज्ञान आत्मबोध इसी को यहाँ ज्ञान के नाम से सम्बोधित किया गया है। कहा गया है मोक्ष का एक साधन direct साधन वही है। तो फिर हम आरम्भ ही वहीं से क्यों नहीं करते? क्यों इधर-उधर भटकते हैं? हम यह ध्यान, वह अलग अलग धारणाएँ, जप, उपवास, भक्ति, इधर क्यों भटकते हैं? हम भटकते नहीं हैं हम अपने आप को तैयार करते हैं क्योंकि सीधे रूप से आत्मबोध की प्रत्यक्ष साधना पर उतरना सहज नहीं है, सम्भव नहीं है, कुछ दिनों में बहुत भटकाव होने लगेगा। स्थिर वही है, स्थिर होकर, एकाग्र होकर आत्म विश्लेषण करने से पूर्व बहुत बड़े स्तरों पर एक परिपक्वता चाहिए maturity चाहिए। कौतुक तो कहेगा why waste time अभी करो, इसी को करो, क्यों समय नष्ट करना? बुद्धि तो कहेगी लॉजिक तो यही है why waste time. जो करने योग्य है direct है कह दिया आदिगुरु ने, तो वही करो न। बात तो ठीक है पर उन्होंने नकारा नहीं है। उन्होंने भी कई देव शक्तियों की स्तुति रची है, क्योंकि ब्रह्म ऋषि जानते हैं; और व्यवहार में भी यही है।

बुद्धि को सहेजने के लिए अस्थिर मानस को सहेजने के लिए बहुत कुछ जुटाना पड़ता है कि वह इस योग्यता को प्राप्त हो कि टिककर के आत्म विश्लेषण कर पाए। आत्म अन्वेषण कर पाए, आत्मबोध की साधना में आगे कदम बढ़ा पाए; उस स्थिरता की प्राप्ति हेतु बहुत कुछ करना पड़ता है। हालांकि यह सत्य है कि direct जो सीधा हस्तक्षेप है, आत्म साक्षात्कार का मोक्ष का, वह आत्मबोध की साधना ही है।

उन्होंने कहा जैसे 'पाकस्य वहिनवत' जैसे अग्नि के द्वारा ही भोजन बनता है; अन्यथा सम्भव नहीं है न? अग्नि चाहिए ऊर्जा चाहिए energy चाहिए। अग्नि को यहाँ energy के रूप में भी लेना। यहाँ अग्नि के लिए शब्द 'वहिन' है अर्थात जो वायु सहित चलती है। बिना वायु अग्नि नहीं है न? ऑक्सीजन के बिना अग्नि नहीं है न? chemistry lab का वह मोमबत्ती जलाकर ऊपर उल्टा बीकर रखना और वह कुछ देर में मोमबत्ती बुझ जाती थी। प्रयोगशाला में हम करके देखते थे न ? तो वायु जिसके साथ गमन करती है उसे अग्नि कहा गया है। और इसका उल्टा नाम भीम का भी है वृकोदर, जिसके पेट में अग्नि है वह कौन है वायु है। तो यहाँ अग्नि का एक सम्बोधन है वहिन के नाम से, 'वहिनवत ज्ञानम बिना मोक्षो न सिध्यति'। जिस प्रकार बिना अग्नि, बिना energy आजकल microwave भी है तो एनर्जी मानो, सोलर है तो एनर्जी मानो। बिना ऊर्जा के भोजन नहीं पकता, बिना अग्नि के भोजन नहीं पकता, उसी प्रकार बिना आत्मबोध के मोक्ष सिद्ध नहीं होता। इसीलिए इस आत्मबोध का महत्त्व है और आप ध्यान करो, पिछला श्लोक क्या था?

पिछले श्लोक में यही कहा कि 'आत्म साक्षात्कार जिसके लिए अब एकमात्र उद्देश्य बच गया है, यह रचना उसके लिए है सबके लिए नहीं है'। आप क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त्त के साधक हैं, पूर्ण अध्यात्मिक अभिरुचि से पूरित हैं। अवस्थाएँ हम सबकी अलग-अलग हो सकती हैं, कोई स्थिर है, कोई अधिक स्थिर है, कोई कम स्थिर है इस प्रकार अवस्थाएँ भिन्न हो सकती हैं। पर हम सब एक ही हैं और हम सबके लिए यह रचना है। यह ठीक है इसमें से कुछ पक्ष भले ही वर्तमान में हमारे लिए न हो पर उसे जानकर के हम अपने वर्तमान के साथ गम्भीर हो जाएँगे।

जैसे हम बच्चे को बताते हैं न 'तुम बनना क्या चाहते हो पायलट? तो होमवर्क किया? नहीं किया। तो फिर पायलट कैसे बनोगे?' होमवर्क का लेना-देना क्या सीधा पायलट से है? एक प्रकार से है भी; क्योंकि यदि बच्चा होमवर्क न करे तो हम कहते तो यही हैं होमवर्क तो करते नहीं हो तो पायलट कैसे बनोगे? अर्थात वह गम्भीरता तुम्हारी तैयारी में नहीं है तो तुम उस चरम उद्देश्य को प्राप्त कैसे करोगे? आज तो तुम उसके प्रति सजग नहीं हो, आज तो तुम आहार, विहार, विचार ईत्यादि का संयम नहीं करते हो, तुम यदि इस प्रकार के संयम नहीं करते हो तो कैसे मोक्ष मिलेगा? अर्थात वह गम्भीरता विकसित करना जिससे आत्मबोध रूपी साधना पर आरूढ़ होने हेतु हम तैयार हो सकें।

उस स्तर की गम्भीरता विकसित करके वर्तमान अवस्था में जितनी प्रगति है, उसे प्राप्त करने की चेष्टा करना; तो यह 'गम्भीरता' विकसित होती है इस प्रकार के अध्ययन से। यह भी प्रश्न आता है न यदि आज करनी नहीं then why do you study? इसलिए पढ़े क्योंकि आज देखकर, इसीलिए बच्चों को अलग-अलग museum ले जाया जाता है उन बातों से जोड़ा जाता है। संग्रहालय से तात्पर्य केवल इतिहास ही नहीं है not only history. उस विषय के साथ और गम्भीरता से जुड़ना भी है, उससे जुड़ना है बहुत आवश्यक है। भारत में अभी museum का जो concept है अभी धीरे-धीरे आ रहा है अभी उतना नहीं आया। उसके माध्यम से बहुत कुछ उस विषय के साथ गुँथने लगता है जुड़ने लगता है अत: आज हम भी इस अध्ययन को करते हुए अपनी इस वर्तमान साधना में गम्भीरता प्राप्त कर रहे हैं।

आत्मबोध के अतिरिक्त मोक्ष का प्रत्यक्ष direct साक्षान अर्थात direct कोई अन्य साधन नहीं है और उसके लिए तैयारी आवश्यक है। यदि आपको पायलट बनने के लिए उसके entrance exam में पढ़ने बैठना है तो entrance से पूर्व की योग्यता eligibility आवश्यक है न? उसी योग्यता उसी पात्रता के निर्माणाधीन हम सब अपनी साधना में हैं।

यह अध्ययन इसी प्रकार अग्रसर होगा। ब्रह्म मुहूर्त्त में ज्योतिष्मति का ध्यान और तदोपरान्त आत्मबोध का सत्संग परस्पर बहुत बड़ा Fusion है संयोग है जो अच्छे परिणाम देगा।

   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख