Part- 1 विचारों को व्यवस्था देने से जीवन में सौंदर्य का अवतरण

Part- 1 विचारों को व्यवस्था देने से जीवन में सौंदर्य का अवतरण

ट्रांसक्रिप्शन अशोक सत्यमेव 

विचारों को व्यवस्था देना बहुत बड़ी उपलब्धि है॥ अध्यात्म के दो पक्ष तो हैं ही - बहिर्मुखी अंतर्मुखी॥ अंतर्मुखी उल्लेख होता रहता है बहिर्मुखी भी होता है॥ पर विचारों का लेना-देना दोनों से एक साथ है॥ विचार भीतर उत्पन्न होकर के कर्म के लिए, एक्शन के लिए प्रेरित करता है॥ हम उस पर कोई एक्शन लें या ना लें वह अलग विषय है॥ अन्यथा विचार प्रेरित अवश्य करता है कि मुझे चरितार्थ किया जाए हम उसे कर पाएँ नहीं कर पाएंगे,  अथवा हम करें ना करें अलग विषय है॥ विचार की शक्ति के विषय में पूर्व में भी बहुत बार कहा गया॥ विचारों की शक्ति से बड़े-बड़े उफान खड़े होते हैं॥ मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में, सामूहिक जीवन में, विश्व में जितनी भी क्रान्तियाँ हैं वे विचार के ही बल पर सम्भव हुई॥

हाल के वर्षों में जितने भी हुई वह विचार के कारण॥ विचार को व्यवस्था देना अर्थात एक प्रकार से जीवन के घटनाक्रम को भी, The ongoing affairs of life, व्यवस्था देना है॥ विचारों पर व्यवस्था देने का प्रशिक्षण हमें न बचपन में मिला, न स्कूल में न कॉलेज में॥
इस विषय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, यह बात कभी समझ में आई ही नहीं॥ जबकि विचारों पर प्रशिक्षण इनको व्यवस्था देने पर प्रशिक्षण परम आवश्यक है॥ जितना महत्त्वपूर्ण एकाग्रता है कंसंट्रेशन फोकस, उतना ही महत्वपूर्ण विचारों को व्यवस्था देना है॥ अगर विचारों को व्यवस्था नहीं दी an arrangement an order to the thoughts, और एकाग्रता विकसित हो गई तो क्या होगा? बिना विचारे, बिना मनन के भी मनुष्य अपने विचारों की क्षमता को उसके द्वारा विध्वन्स कर सकता है, बिगाड़ सकता है॥ जब विचारों को व्यवस्था देने की बात करते हैं तो कंसंट्रेशन या एकाग्रता उसका केवल एक पक्ष है॥

मेरा पुराना उदाहरण फिर से सजीव होता है चाय बनाने का -
हम पानी उबालते हैं, पानी उबालने के लिए उबालते हैं क्या केवल? पानी उबालने के लिए॥  पानी उबालते हैं तापमान 1 स्तर तक पहुंचाने के लिए जिसमें बाकी के घटक भी मिल कर के और एक सेनर्जी एक सामंजस्य विकसित करें॥ पानी को हम केवल पानी उबालने के लिए नहीं उबालते॥ अन्यथा पानी उबल-उबल करके सूख जाएगा॥ उसी प्रकार एकाग्रता परम आवश्यक है, आधार है किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने का एकाग्रता॥ पर केवल एकाग्रता? नहीं, एकाग्रता उसका एक भाग है पानी को उबालने की तरह, जिसमें बाकी सब कुछ होना है॥ तो विचारों की व्यवस्था, विचारों को आर्डर देना, आर्डर का मतलब मतलब यहां व्यवस्था देने से है॥ विचारों को व्यवस्था देना अर्थात अपने जीवन के समूचे घटनाक्रम को भी एक सीमा तक व्यवस्थित कर देना॥ कुछ चीजें हैं जो हाथ से परे रह जाएंगी, जो आपके नियंत्रण में नहीं है॥ पर आपका व्यक्तिगत जीवन एक सीमा तक पूर्ण रूप से व्यवस्थित हो जाएगा॥ विचारों को व्यवस्था न देने के कारण, आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे, विश्व में भी जितने भी बिगाड़ हैं वे सारे विचारों को व्यवस्था ना देने के कारण है॥ एकाग्रता बहुत विकसित हुई, Concentration में कोई कमी नहीं है॥ वैज्ञानिक विज्ञान के शोध बिना Concentration सकता है? राजनीतिज्ञ अपनी नीति बनाकर के चुनाव जीतना, बिना एकाग्रता के हो सकता है? संभव नहीं है॥ ठीक है चुनाव जीतने के लिए कुछ और भी होता है, उचित-अनुचित॥ उसके लिए भी एकाग्रता चाहिए, उचित के लिए भी और अच्छे के लिए भी॥

पर केवल एकाग्रता सुनिश्चित नहीं कर पाई कि पृथ्वी पर हुई उपलब्धियां और विज्ञान यह मनुष्य के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि लाएंगे॥ समृद्धि शब्द संपन्नता से भिन्न है॥ संपन्न तो आप हो सकते हो आप समृद्ध भी हैं आवश्यक नहीं है॥ सानंद भोग पाने की क्षमता आपको प्राप्त है, आवश्यक नहीं है॥ जहां एक तरफ एकाग्रता परम आवश्यक है वहीं विचारों को व्यवस्था देना उसको चरितार्थ करना अर्थात उसको धन्य करना अर्थात उसको सफल करना है॥ अन्यथा एकाग्रता मात्र उसी प्रकार है जैसे ब्रह्म ऋषि का वाक्य है 'बिन विद्या शिक्षा अधूरी' विद्या मने निर्णय लेने की क्षमता, जीवन जीने की वह नीति, जिससे मनुष्य सुख प्राप्त कर सके, वह विद्या है॥ जीवन जीने की कला, निर्णय लेने की कला उपयुक्त निर्णय लेने की, वह विद्या है॥

शिक्षा सूचनाएं हैं, जानकारियां हैं॥ एकाग्रता से शिक्षा प्राप्त हो गई। अच्छे से अच्छे नम्बर आ गए अच्छे से अच्छे कोर्सेज डिवेलप हो गए, अच्छी से अच्छी इंडस्ट्रीज बन गए एकाग्रता का परिणाम है॥ पर इसमें व्यवस्था नहीं है विचारों की, अन्यथा विद्या का पुट होता तो मनुष्य अधूरा नहीं पूरा होता॥ पृथ्वी पर अधूरे मनुष्य का निर्माण सतत चल रहा है॥ हर जीव जन्म ले रहा है Maternity homes में या जहां कहीं भी, एक अधूरा मनुष्य जन्म ले रहा है, अधूरा होकर के जीने के लिए॥ इसमें उसकी कोई कमी नहीं है, कमी इस वातावरण की है जिसने विचारों को व्यवस्था नहीं दी॥ किसी ने कहा था कि जो मजा कबीर का है, वह आपका नहीं॥ मैंने माना वह सम्राट मै तुच्छ अल्पबुद्धि अध्यापक, किसका comparison कर रहे हो? वह दो शब्दों में सागर समेट सकते हैं मैं नहीं॥ यह बात अलग है कि मेरी परिस्थिति परिवेश भी अलग है॥  मेरे ब्रहम ऋषि का वाक्य अकाट्य है, इस पृथ्वी की, मेरे ब्रह्म ऋषि ने दो शब्दों में ही पूरी पृथ्वी की समस्या का कारण इन्हीं इन्हीं भावों को दे दिया अचिंत्य चिंतनम् ॥ अचिंत्य चिंतनम् अर्थात् जो नहीं सोचा जाना चाहिए पर सोचा जाए वह अचिंत्य चिंतनम्॥ इस पृथ्वी की समस्याओं का मूल कारण 'अचिंत्य चिंतनम्' है॥ क्योंकि विचारों को व्यवस्था हमने नहीं दी, आर्डर नहीं दिया॥ और जब हम किसी चीज को व्यवस्थित करते हैं घर में बिखरी चीजों को व्यवस्था देते हैं तो दृष्टि क्या होती है? सौन्दर्य - अच्छा लगना चाहिए, यही कहते हैं न? यह यहाँ क्यों रख दिया? क्यों यहाँ रखने से क्या हो गया? अच्छा नहीं लग रहा यहाँ रखा हुआ सुन्दर नहीं लग रहा? अच्छा नही लग रहा अर्थात् सौन्दर्य नहीं आ रहा॥ यह रंग इसके साथ नहीं जा रहा, इसके साथ मिल ही नहीं रहा, अच्छा नहीं लग रहा अर्थात् सौन्दर्य का अभाव॥

विचारों को व्यवस्था देना अर्थात् सौन्दर्य का अवतरण करना॥ विचारों को व्यवस्था देना केवल एकाग्रता मत जान लेना बाबू॥ एकाग्रता एक पक्ष है, आधार है, पर सम्पूर्ण नहीं है, चाय का पानी उबालने की तरह॥ इसलिए विचारों को व्यवस्था कैसे दें विचारों को व्यवस्था कैसे दी जाए॥ एक पूर्ण मनुष्य का निर्माण विचारों को व्यवस्था देने से है॥ एक पूर्ण नागरिक का निर्माण विचारों को व्यवस्था देने से है॥ और अध्यात्म पथ के एक संपूर्ण साधक का निर्माण विचारों को व्यवस्था देने से है॥

हम एकाग्रता के  पीछे तो भागते हैं व्यवस्था छोड़ देते हैं और एकाग्रता फिर अनर्गल बहुत कुछ करती है Economics की तरह, जो है तो बहुत अच्छा उपकरण पर जब काटने पर आता है तो सबके हित भी काट जाता है॥ इसलिए विचारों को व्यवस्था देना 'अचिंत्य चिंतनम् से बचना, अपनी शक्तियों को सुनियोजित ढंग से सृजन की ओर, सुख और शांति की ओर आगे बढ़ाना है॥

और अगर यह एक-एक व्यक्ति से उठता हुआ पूरे राष्ट्र में चला जाए, विश्व की तो मैं नहीं कह सकता पर राष्ट्र की तो सोच सकते हैं॥ तो क्या होगा? कल्पना से परे का दृश्य है॥ केवल समृद्धि केवल संपन्नता होगी? संपन्नता 'भी' होगी पर संपन्नता 'ही' नहीं होगी॥ और एकाग्रता के बूते हम केवल संपन्नता के पीछे ही भागेंगे॥ संपन्नता 'भी' बहुत आवश्यक है, संपन्नता 'ही' आवश्यक नहीं है॥ यह 'भी' और 'ही' का विवाह होना जरूरी है॥ संपन्नता भी आवश्यक है संपन्नता ही आवश्यक नहीं है॥ इन दोनों का युग्म होगा॥ किससे? विचारों की व्यवस्था से, अचिंत्य चिंतनम् से बचने से॥ एकाग्रता पर आधारित हो करके सृजन होगा॥ और अब इसी श्रृंखला को हम आरम्भ करने जा रहे हैं॥ आज से जो सत्संग आरम्भ हो रहे हैं ये युवाओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं, साधना के लिए भी, राष्ट्रीय वातावरण के लिए भी॥

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