ब्रह्म ऋषि स्वयं सम्पर्क करते - पात्रता विकसित करो

ब्रह्म ऋषि स्वयं सम्पर्क करते - पात्रता विकसित करो

ब्रह्म ऋषि स्वयं सम्पर्क करते - पात्रता विकसित करो 


https://youtu.be/jOEBrD7N1Ys

YouTube  के अतिरिक्त यह ब्रह्म मुहूर्त ध्यान Facebook  पर भी लाइव होता है फेसबुक पर जो पेज है उसका नाम है Gitaonline.in 

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साधक, यह ध्यान समानांतर रूप से यहां भी लाइव होता है।  अगर किसी कारण वश YouTube पर लिंक टूट जाए तो आप तत्काल यहां पहुंच सकते हैं। 

 सत्संग

 मर्म श्रीमद्भगवद गीता।

पवित्रता और पात्रता का बहुत बड़ा संबंध है।  जितने अंशों में मनुष्य में पवित्रता विकसित होती है उतने ही अंशों में उसकी सतोगुणी पात्रता विकसित होती चली जाती है। विशेष रूप से आध्यात्मिक प्रकाश में यह बात कही गई है।  आध्यात्मिक रूप से प्रगति प्राप्त करने हेतु पवित्रता और पात्रता दोनों आपस में गुंथे हुए हैं और यह अन्यान्योश्रित हैं (Interdependant) एक दूसरे पर निर्भर हैं। पवित्रता के द्वारा पात्रता विकसित होती है। 


आध्यात्मिक प्रकाश में पात्रता शब्द के बहु आयामी मर्म अर्थात प्रभाव निकलते हैं।  पात्रता अर्थात अधिक अंशों में बोध की क्षमता।  We become more capacitated,  पात्रता अर्थात elligibility.  पात्रता का तात्पर्य है अंतःकरण में बोध (Deeper understanding) को जागृत करना। पात्रता का अर्थ है सूक्ष्म शरीर के अवयवों को जागृत करना। पात्रता के विकास से  सूक्ष्म जगत की विशेष रूप से श्रेष्ठतम कोटि की जीवात्माओं के संज्ञान में आ जाना। बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं की ऋषियों से कैसे मिला जा सकता है, ऋषियों को कैसे अनुभव किया जा सकता है। उन्हें  कैसे प्राप्त हुआ जा सकता है। देखो साधक वास्तविकता तो यह है की आप की ओर से केवल एक ही प्रयास हो सकता है, जिसे करने से ब्रह्म ऋषियों को आकर्षित किया जा सकता है। 


मनुष्य अपनी पात्रता को विकसित करके ऋषियों की दृष्टि में आता  चला जाता है।  उदाहरण से जानो की मीठा कहीं रखने से हम चीटियां अवगत होने में समय नहीं लगता। उनके पास तो सोचने समझने की और कुछ विशेष करने की क्षमता नगण्य भर है। उनकी (चींटियों) तो चेतना भी अविकसित है।  तो फिर ब्रह्म ऋषियों की तो बात ही हमारी सामान्य कल्पना से परे है।  आप जैसे ही अपने भीतर की सुपात्रता को विकसित करते हैं, आप अपने भीतर पवित्रता लाते चले जाते हैं, उसी क्षण आप उनकी अर्थात ब्रह्म ऋषियों की दृष्टि में आ जाते हैं।  आप अपनी ओर से केवल चाहने भर से  क्या कभी उनके संज्ञान में अथवा उनसे संपर्क साध पाएंगे। नहीं साधक, यह संभव नहीं है पर वह जब चाहेंगे जिस रूप में चाहेंगे आपसे संपर्क साधेंगे। आपको तो मात्र पवित्रता रूपी पात्रता की शर्त भर पूरी करनी होगी।  केवल एक ही आधार चाहिए पवित्रता द्वारा विकसित पात्रता - पवित्रता द्वारा विकसित पात्रता के द्वारा ही साधक उनके संपर्क में आ सकता है। उनके संदेश को अपने भीतर बोध रूप में समझ सकता है De encrypt कर सकता है, खोल सकता है, उनके मन को जान सकता है। और इस  सत्य को बदला नहीं जा सकता। 


ब्रह्म ऋषियों का अस्तित्व वायु में व्याप्त है।  जिस प्रकार कोई भी प्रसारण जब किसी बहुत शक्तिशाली ट्रांसपॉन्डर के द्वारा प्रसारण केंद्र बना कर ब्रॉडकास्ट किया जाता है, आकाश में छोड़ा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे विश्व में उस ट्रांसपॉन्डर के सिग्नल सुनाई देते हैं। आप अपनी पात्रता विकसित करते हो तो उनके संपर्क में तत्क्षण अर्थात उनके नेटवर्क में आ जाते हो।  इसलिए साधक तुम्हें ओरसे एक ही कार्य करना है, अपनी पात्रता पर तुम्हें ध्यान देना होगा और अपने भीतर पवित्रता को अधिक अंशों में स्थापित करना होगा। तुम्हें अपने आप को सतोगुणी बनानाहै आहार-विहार और विचार के स्तर पर।  जितना संभव हो उतना अधिक सतोगुणी बनना होगा। जितने अंशों में हम सतोगुणी होते चले जाएंगे उतने ही अंशों में हमारी सुपात्रता  इस रूप में विकसित होगी कि हम ऋषियों की दृष्टि में आ जाएंगे।  


प्रत्येक व्यक्ति के पास यह अधिकार है की वह  इन महान व्यक्तियों के साथ संपर्क साध सके।  वहीँ दूसरी ओर हर व्यक्ति के पास यह अधिकार भी है की वह अपनी पात्रता विकसित कर सके।  यह दो अधिकार जन्म से ही एक साथ हमारे पास हैं।  एक यह की हम दिव्य शक्तियों के संपर्क में आ सकते हैं दूसरा यह की अपनी पात्रता हमें अधिक पवित्रता के द्वारा स्वयं ही विकसित करनी होगी और उसका कोई विकल्प नहीं है। 


अपनी पवित्रता को नित्य प्रति सतोगुणी दिशा की ओर विकसित करते चले जाने से मनुष्य के भीतर देव शक्तियों के संदेश का अवतरण स्वतः  ही आता चला जाता है।  और यह तथ्य सत्य है अकाट्य है निर्विकल्प है की तुम अपने भीतर सतोगुण को विकसित करते चले जाओ, आहार - विहार - विचार - व्यवहार - अर्थ - समय अर्थात हर प्रकार से सतोगुण को विकसित करते चले जाओ तो निश्चित रूप से पाओगे कि तुम्हारे भीतर कोई अन्य भाव कोई अन्य संपर्क कोई अन्य उपस्थिति है जो पूर्व में नहीं थी। यह सत्य मानना की तुम तब अकेले नहीं हो। ब्रह्म मुहूर्त की साधना करने वाले अनेकों साधक इस प्रकार की अनुभूतियों को प्राप्त हैं और मुझे इस विषय में और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है।  यह उनके व्यक्तिगत अनुभव ही है जो बार-बार सामने आते ही रहते हैं। 


हम अभी सतोगुण वृत्तियों, रजोगुण वृत्तियों और तमोगुणी वृत्तियों पर अपना सत्संग श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में कर रहे हैं आज उसका एक आधार बनाना आवश्यक था इसे हम आगे भी इसी प्रकार करते रहेंगे और कल से हम उन तथ्यों  को लेंगे जो सतोगुण वृत्तियों के  व्यवहारिक रूप को हमारे जीवन में किस प्रकार अवतरित करें की भीतर की पवित्रता द्वारा पात्रता विकास होता रहे। इस पर हमें श्रीमद भगवद गीता के प्रकाश में कुछ मार्गदर्शन और संकेत प्राप्त होंगें। अतः हम इस यात्रा में इसी प्रकार अग्रसर होते चले जाएंगे। 


ध्यान रहे कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साधना करते समय अपनी मनःस्थिति को पवित्र करते हुए जब हम अपने संपूर्ण मानस मंडल को विनिर्मित करते हुए अवस्थित होते हैं तो दिव्य शक्तियों एवं ब्रह्म ऋषियों के संपर्क, उनकी दृष्टि में तत्क्षण पहुंच जाते  हैं।  ब्रहम ऋषि के यह अकाट्य अमोघ वचन है की ब्रह्म मुहूर्त के क्षणों में उनकी सत्ता अधिक सजग होकर हम तक पहुंचने की चेष्टा करती है। ब्रह्म मुहूर्त और ब्रह्म ऋषियों का सम्पर्क करने की क्षमता केवल भारत तक ही नहीं सीमित है।  ब्रह्म मुहूर्त एवं ब्रह्म ऋषियों का सम्पर्क सूर्य उदय के साथ गुंथा हुआ है। जहां - जहाँ सूर्य उदय होगा उससे पूर्व के क्षणों में यह सारे प्रभाव तब स्वतः ही अवतरित होंगे। इसलिए ब्रह्म मुहूर्त की अवस्था में बैठकर तुम जो ध्यान करते हो जो अपने आप को विचारों से हटाने की चेष्टा करते हो जो भले ही सफल अथवा असफल रहे।  अपने विचारों से कल्पना से कामना से ऊपर उठकर के एक बिंदु पर केंद्रित होने का प्रयास करते हो तो निश्चित रूप से एक आंतरिक स्थिरता, एक स्थायित्व, एक पावनता भीभीतर  अवतरित एवं स्थापित होती है। साधक के भीतर ऐसी अवस्था बनते ही, स्थिरता और पवित्रता के द्वारा वह आकर्षण का केंद्र बन जाता है।  इस center of attraction, एक ऐसा आकर्षण का केंद्र जो उन व्यक्तियों को ब्रह्मांड में व्याप्त महान शक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।  उनका (ब्रह्म ऋषियों )संपर्क संसर्ग प्राप्त होता है,  उनका सिस्टम सक्रिय हो जाता है और वह अपने स्वरूप में तुम्हें संपर्क कर तुम्हें और अधिक सुपात्रता प्रदान करते हैं। और अधिक अंशों में तुम्हे धारक क्षमता प्रदान करते हैं। तुम्हें तो केवल उपस्थित होना है, तुम्हें तो केवल अपने आप को खोलना है, अपनी पात्रता के विकास के लिए।  ॐ 

 


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