विश्व की वर्तमान विकट स्थितियों का सामना करने में ध्यान का महत्व

विश्व की वर्तमान विकट स्थितियों का सामना करने में ध्यान का महत्व

एक जिज्ञासु होने के नाते विशेष रूप से अध्ययन निरन्तर चलता है॥ विश्व जिस परिस्थिति, परिवेश में, वर्तमान समय में चल रहा है और जैसी सम्भवानाएँ हैं कि ऐसे अभी कुछ समय चलेगा॥ आधुनिक मनस्वी जो विज्ञान से जुड़े हैं, मुखर होकर के एकमत उनका मानना यही है कि ऐसी अवस्था में मनुष्य के मन को सँभालना बहुत महत्त्वपूर्ण है॥ बाकी बातें समय रहकर भी सँभाली जाएँगी पर कुछ बातें समय रहते सँभालनी पड़ती हैं अन्यथा उनके बिगड़ने से बहुत कुछ अन्य बिगड़ जाता है॥ अत: पृथ्वी पर मनुष्य का मन इस समय सँभालना बहुत आवश्यक है; वैश्विक मन कहें, पूरे विश्व का मन॥ अनेक प्रकार से अनजाने स्वरूप में अस्थिर, आशंकित, चिन्तित, भयभीत, अनेक प्रकार की अस्थिरताओं से ग्रसित, ऐसा नहीं कि पूर्व में नहीं था, पर उस अनुपात में नहीं था जो वर्तमान में है॥ वर्तमान का अनुपात गत 2 वर्षों से अत्यधिक हो चुका है अत्यधिक॥

कहना आरम्भ हो गए हैं "क्या इसी के साथ अब जीना पड़ेगा?"
क्या पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन अब इसी ऊहापोह में अधूरेपन में इसी लटके स्वरूप में रहेगा?

यह बात जब मस्तिष्क में घर बनाना आरम्भ कर दे तो मनुष्य के निर्णय प्रभावित होते हैं॥ उसके मन की अवस्था दुष्प्रभावित होती है तदनुरूप बहुत कुछ खण्डित होता है॥ यह सत्य है कि ऐसी विषम परिस्थिति में ऐसे कुछ परिवर्तन भी होते हैं जो बहुत-बहुत सार्थक हों जिनके लिए मनुष्य तैयार न हो॥

मेरे ब्रह्म ऋषि ने आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व उद्घोष किया था कि मनुष्य शीघ्र और सहजता से बदलेगा नहीं, और नहीं बदलेगा तो प्रकृति लोहे का डंडा लेकर बदलने आएगी; और जब प्रकृति लोहे का डंडा लेकर बदलने आएगी तो मनुष्य के पास कोई विकल्प बचेगा ही नहीं वह निर्विकल्प हो जाएगा॥ सम्भवत: वह डंडा अब चल रहा है॥ यह ठीक है कारण भी हम ही थे परिणाम भी हम ही को झेलने हैं और उभरना भी हम ही को है॥ भूत में भी हम ही थे, वर्तमान में भी हम और भविष्य में भी हम ही होंगे अर्थात् मनुष्य जाति॥

इसी अवस्था में एक के बाद एक प्रोग्राम न्यूज़ भारत की अथवा किसी अन्य देश की, उसमें विशेष रूप से एक ही बात मुखर रूप से है - 'मनुष्य के मन को सँभालना आवश्यक है' Counseling Counseling Counseling, Psychology has to be ruled, अर्थात मनोविज्ञान से सम्बन्धित निदान वह अब एक प्रकार का लगभग आधार बन गया है॥ ऐसी विषम परिस्थितियों में जब अनजाने स्वरूप में अनेकों प्रकार के दुष्प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क में कहीं न कहीं से प्रवेश कर रहे हों, ऐसे में प्राचीन भारतीय मनीषा से श्रेष्ठ कुछ बचता नहीं है; और यह कोई पक्षपात नहीं है॥ क्योंकि प्राचीन भारतीय मनीषा जिस सिद्धान्त पर आधारित है वह 'वसुधैव कुटुम्बकम्' है 'कॉपीराइटकम' नहीं है, वसुधैव कुटुम्बकम है॥ ऐसे अर्थों में इन ध्यान की पद्धतियों का, विशुद्ध रूप से कहें तो पातंजलि का जो सन्दर्भ है वह कितना महत्त्वपूर्ण हो जाता है इसे आप विचार करें॥ भीतर अधूरा मन यदि प्रतिदिन स्तर पर आशंकित रहेगा, बिखरता रहेगा तो उसके प्रभाव एकाएक किसी को सामने नहीं आएँगे॥ परन्तु उसके प्रभाव निश्चित रूप से धीरे-धीरे करके मनुष्य को अनेकों प्रकार से हतोत्साहित करेंगे॥

पृथ्वी पर एक ही तो पूँजी है जिससे मनुष्य भगवान का राजकुमार बनकर के बहुत कुछ कर सकता है - उत्साह और उमंग'॥ उत्साह और उमंग समाप्त हो गया तो बचा क्या? केवल गिनती? गणना? बस यही बचा॥ इन विषम परिस्थितियों में, जब तक पृथ्वी पुन: सन्तुलित नहीं होती, मनुष्य की रीति-नीति नहीं बदलती, मनुष्य की संकीर्णताएँ समाप्त नहीं होती, तब तक परम आवश्यक है कि उसके मन को सँभाला जाए, उत्साह और उमंग को सँभाला जाए॥ कहीं यह न हो आशंकित, भयभीत, अस्थिर, व्यथित मन से मनुष्य कुछ ऐसे कदम उठा जाए जो वैश्विक स्तर पर घातक हों॥ इसलिए वैश्विक स्तर पर हर मन को सहेजना, हर मन को सँभालना इस समय परम आवश्यक है॥

ध्यान के द्वारा मनुष्य उस अदृश्य जगत के उत्साह और उमंग, उसकी दिव्यता से, उसके ज्योतिर्मय स्वरूप से गुँथता है ॥ जिसके द्वारा विषम परिस्थितियों में भी उसके भीतर प्रतिरोधक क्षमताओं का जन्म होता है जो उसे इन बाधाओं को पार करने में सबल बनाती है॥ बहुत कुछ एकाएक परिवर्तन करने की क्षमता मनुष्य में नहीं है॥ जो कुछ वर्षों में बिगाड़ा उसे परिवर्तित करने में कुछ समय लगेगा॥ मनुष्य बदलना भी तो नहीं चाहता जल्दी से, मुझ सहित, मुझ सहित, मनुष्य जल्दी नहीं बदलना चाहता, विवशताओं में बदलता है॥ पृथ्वी पर स्वेच्छा से बदलने वालों की संख्या सदा ही नगण्य रही है नगण्य decimated. विवशता के अधीन आकर मनुष्य अधिकांशत: बदलते हैं अपनी रीति-नीति पर चलते परिवर्तित करते हैं॥ ऐसे में बहुत आवश्यक है कि ध्यान के प्राचीन भारतीय मनीषा के स्थापित सूत्र अपना कर के, हम उस दिव्य Counseling के अन्तर्गत रहें जो निर्विकल्प है, जिसका कोई सानी नहीं है॥ अधूरा मनुष्य किसी दूसरे अधूरे मनुष्य को counseling में फिर भी बहुत कुछ छोड़ जाएगा॥ कितना किसने किसको समझा? क्योंकि हर मनुष्य अपने आप में ईश्वर की अद्भुत विलक्षण कृति है, रचना है, तो ऐसे में किसने किसको कितना समझा, कितना कॉउन्सल किया, रह जाएगा॥ पर ध्यान में वह दिव्य जगत आकर उसे सहेजता है, सँभालता है, Counsel करता है, बटोरता है, स्थिर करता है, शान्त करता है, उत्साहित-उल्लासित करता है, उमंग देता है॥ उसे उस शून्य से परिचित कराता है जहाँ से सब कुछ उस अव्यक्त से बटोर कर मनुष्य अपने आप को स्थिर कर पाए॥ बाहर के चलते हुए झंझावातों में, the turbulence outside, उसमें भी मनुष्य स्वयं को अक्षुण्ण रखते हुए निकल जाता है॥ इसीलिए प्राचीन भारतीय मनीषा एवं पातंजलि का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है॥

यह सन्देश स्वयं को देना, अन्य को जहाँ तक सीमा हो, बहुत अधिक नहीं क्योंकि मनस्थिति इतनी कठोर भी हो चुकी है कि किसी की सुनती कम, प्रतिकार Rebut अधिक करती है॥ हम ब्रह्म मुहूर्त्त में जो कर रहे हैं और जिस काल में यह प्रसारण के स्तर पर करना आरम्भ हुआ, वह ईश्वर की सूक्ष्म वाणी का एक प्रकार से अन्तराल में गुञ्जित होना और आरम्भ होना ही है॥ गम्भीरता से देखें तो जब इस विषमता ने पृथ्वी पर अपने पाँव पसारे थे ब्रह्म मुहर्त्त का प्रसारण इस आधुनिक सोशल मीडिया के माध्यम से तभी आरम्भ हो गया था 2019॥

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