मेरे अन्तःस्थल का पवित्र क्षेत्र

मेरे अन्तःस्थल का पवित्र क्षेत्र

ट्रांसक्रिप्शन अशोक सत्यमेव 

जैसे क्रिकेट मैच देखते समय स्वयं बल्लेबाज बनने का प्रयास करते हो, कभी राष्ट्रपति बनने का प्रयास करते हो, मैं होता तो ऐसा कर देता, वह भी तो भाव रूप में निर्मित करते हो॥ उसी प्रकार भाव रूप में अपने भीतर पवित्र क्षेत्र की रचना क्यों नहीं? जबकि वह तो पहले से उपस्थित है - हृदय गुह्याम् अर्थात् हृदय की गुफा॥ वह पहले से उपस्थित है उसमें कुछ विशेष नहीं करना॥ केवल अपने आप को एकत्रित करते हुए, अपने भीतर एकत्रित करते हुए अपने आप को एक पवित्र क्षेत्र में ले जाना है॥ जिसे आप स्वयं रचोगे कि मैं अब अपने भीतर के पवित्र क्षेत्र में जा रहा / रही हूँ॥ मैं अब अपने भीतर की पावनता की उस गुफा में जहाँ मुझ पर बाहरी प्रभाव नहीं है, उसमें जा रहा / रही हूँ, जहाँ केवल पावनता है शुचिता है दिव्यता है॥ हम सब सामान्य रूप जीवन जीते हुए, बाहर के क्रियाकलापों में उलझते हुए थोड़ा सा द्वेष, थोड़ी सी ईर्ष्या, थोड़ा सा क्रोध, थोड़ा सा काम, थोड़ा सा लोभ, सब कुछ थोड़ा-थोड़ा, इस मस्तिष्क रूपी टिफिन बॉक्स में डाल कर घूमते हैं॥ और यह बात सत्य है कि भीतर जाने के उपरान्त पवित्रता का उल्लेख करते ही ये सब याद आते हैं कि मैं तो इतना पवित्र नहीं हूँ, मैं तो इतनी पवित्र नहीं हूँ॥ क्या गलत बात है? आना चाहिए कि नहीं आना चाहिए? उसका कारण यह है कि ये जितने भी भाव आते हैं, तुम्हें लगता है कि यह तुम हो, तुम पवित्र नहीं हो, तुममें द्वेष है, लोभ है, वासना है, तुममें क्रोध है, ईर्ष्या है, तुम्हें लगता है न कि तुम में है? पर यह तुम नहीं हो, ये तुम्हारे आसपास चिपके हुए हैं तुम नहीं हो, तुम तो नहीं ये॥ तुम तो अजन्मा, अनादि, शुद्ध हो॥ हाँ जिसे अभी बोध नहीं हुआ, अभी होना है, तो क्या बिना बोध के मान लें? क्या सब कुछ केवल बोध के द्वारा ही मान्यता देते हो॥

मैं यहाँ कोई स्टिकर लगा लूँ, आजकल बहुत से बच्चे भी, बड़े भी शरीर पर टैटू बनवा लेते हैं॥ आपने भी देखा होगा॥ हमने ऋषिकेश में देखा है विदेशी लोग बिना शर्ट के गंगा के घाट पर घूमते हुए, पूरा शरीर पर टैटू बनवाए हुए, भारत में अभी कम ही लोग इस प्रकार टैटू बनवाते हैं॥ पर क्या वे स्वयं टैटू हैं? टैटू उनके शरीर पर है, चिपका हुआ है, पर वे स्वयं टैटू नहीं हैं॥ टैटू उनके ऊपर है मिट नहीं रहा, पर वे टैटू तो नहीं हैं न?

एक प्रयोग बड़ा सफल है, विशेष रूप से जब आप किसी महाचेतना की विशेष धारा से सम्पर्क में आना चाहो, विशेष धारा किसी ब्रह्म ऋषि विशेष, किसी देवशक्ति विशेष, जब इनमें से किसी के सम्पर्क में आना चाहो, अर्थात् इनकी चेतना से लौ लगाने की चेष्टा हो, तो चेष्टा में अन्तर्मुखी होने में जो आरम्भिक कठिनाई है उसमें एक युक्ति बहुत सहायक है॥ मैं जो करता रहा उसका उल्लेख कर रहा हूँ सम्भव है आपके भी काम आए॥ आँखें बन्द करते ही यकायक किसी का भी ध्यान नहीं लगता, इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए॥  हाँ अवस्थाएँ कुछ विकसित हो जाएँ तो सम्भव हो जाता है॥ पर सामान्यत: नहीं, सामान्यत: आँखें बन्द करके थोड़ा अन्तर्मुखी होने में समय लगता है और यह स्वाभाविक है॥ इसमें कोई ऐसी बात नहीं जो आपके साथ विशेष हो रही है, पृथ्वी के प्रत्येक जीव के साथ है॥ ऐसी अवस्था में यदि अपने गहरे अन्त:करण में, यहाँ अन्त:करण का अभिप्राय 'मन बुद्धि चित्त अहंकार' नहीं, अपने गहरे अन्त:स्थल में, अपने भीतर, अपने आपसे ही रचित स्वयं आपके द्वारा रचित क्षेत्र हो, The most sanctified, बहुत पवित्र क्षेत्र निर्मित होना चाहिए॥ यह सब कैसे? भाव रूप में...
निस्सन्देह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है कि तुम अपने हिस्से का सूर्य स्वयं देखो, अपना मोक्ष प्राप्त करो, अपनी जीवात्मा के स्वरूप को प्राप्त हो जाओ यह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है॥ पर मान्यताओं के आधार पर उस ओर चलते तो हैं न? बहुत सी मान्यताएँ हैं कि कुछ ऐसा होता है, कुछ अपवाद भी हैं झूठी मान्यताएँ भी हैं॥ कुछ सत्य पर आधारित मान्यताएँ हैं॥ जीवात्मा है यह मान्यता मिथ्या पर आधारित नहीं है, कर्मफल है यह मान्यता मिथ्या पर आधारित नहीं है, सत्य पर आधारित है॥ ऐसे कुछ अकाट्य सत्य हैं जिन्हें मानकर हम चलते हैं जिनकी अवमानना नहीं कर सकते, उसी प्रकार क्यों नहीं दृढ़भूमि होता कि मैं एक पवित्र आत्मा हूँ॥ यह सब कुछ ओढ़ा हुआ है मैं नहीं हूँ॥ मुझसे वासना चिपकी हुई है, काम, क्रोध लोभ, ईर्ष्या, द्वेष मुझसे चिपके हुए हैं, तो जो चिपका हुआ है वह मैं हो गया?

हालांकि आजकल टैटू मिटाने की भी तकनीक है सुना है, और यह भी सुना है टैटू मिटाने की प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक है॥ एक बार टैटू करा लें, फिर उसे मिटाना चाहें तो वह बहुत पीड़ादायक है, ऐसा मैंने सुना है॥ सत्य तो यह है कि टैटू की भाँति, द्वेष, ईर्ष्या, कामना, वासना आदि चिपक तो जाते हैं पर इन्हें हटाना बहुत पीड़ादायक है॥ पर हम ये सब नहीं हैं॥ हम, वह शुद्ध जिसके पास अजन्मा होने का मूल आश्वासन है कि वह अजन्मा है, अनादि है, नित्य शुद्ध, नित्य बुद्ध, नित्य मुक्त हैं॥ सत्य स्वरूप हैं, प्रकाश स्वरूप हैं, आनन्द स्वरूप हैं॥ मैं वह हूँ, मैं भले ही आज उस स्वरूप में स्वयं को नहीं जानता पर यह मेरी गहरी मान्यता है॥ और अब मुझे उसी के पवित्र क्षेत्र में जाना है॥

यहाँ मैंने इस विषय का इतना विस्तार इसलिए दिया जिससे आप उससे जुड़कर के, और जो चिपके हुए टैटू हैं उसे अपनी पहचान मानकर बाहर न रह जाओ॥ सामान्यत: जब किसी महाचेतना की धारा से जुड़ने के लिए आप अपने अन्त:करण की गहराई में जाओ तो उस समय यह अवरोध सामने नहीं आना चाहिए कि मेरे बाहर के चिपके टैटू मेरी पहचान हैं॥ न, तुम्हारी यह पहचान नहीं है, ये चिपके हैं॥ तुम्हारी पहचान तुम्हारे भीतर है, गहरे अन्त:स्थल में है और तुम्हें उसी के पवित्र क्षेत्र में जाना है॥

अत: उस समय अपने आप से कहो कि मैं अपने पवित्र क्षेत्र में जा रहा हूँ / जा रही हूँ॥ मैं अपनी अन्तरात्मा के प्रकाश में  जा रहा हूँ / जा रही हूँ॥ यहाँ मेरी उस महाचेतना की धारा से उस ब्रह्म ऋषि से उस देवशक्ति से यहाँ भेंट होगी॥ हमारा मीटिंग रूम यह है, यह हमारा कॉन्फ्रेन्स रूम है, यह हमारा मिलने का स्थान है॥ भाव रूप में अपने ही भीतर के उस पवित्र क्षेत्र में चले जाओ और उस पवित्र क्षेत्र में फिर उनका दर्शन अथवा भाव रूप में उनकी चेतना को अनुभव करना आरम्भ करो, वहीं टिको॥ इससे तुम्हें एकाग्र होने में बहुत सहायता मिलेगी॥

छिटकोगे, हो सकता है बार-बार छिटकोगे॥ कल मुझे भी समस्या आई, पास में कहीं पार्टी हो रही थी॥ कुछ लोगों का शौक होता है 'हम तो सुनेंगे सनम, तुम्हें भी सुना कर छोड़ेंगे'; क्यों न लाउड स्पीकर इतना ऊँचा किया जाए कि तुम भी सुनो॥ ऐसे में पवित्र क्षेत्र से मैं भी छिटका, पवित्र क्षेत्र से बाहर आया॥ क्योंकि जो गीत-संगीत बह रहा था वह पसन्द नापसन्द से ऊपर कानों के लिए बाधा भी बन रहा था॥ मुझे तो आशंका थी कही युग-शक्ति जप में भी बाधक न जाए॥ छिटकता है व्यक्ति, फिर भी छिटकने पर भी अपने पवित्र क्षेत्र में एकाग्र होने में बहुत सहायता मिलती है॥ इसलिए जब कभी अन्तर्मुखी हो, विशेष रूप से जब कभी किसी महाचेतना की धारा के सम्पर्क में आना चाहो तो ऐसे क्षणों में सबसे पहले अन्तर्मुखी हो जाओ॥ 'प्रत्याहार' इसी को कहते हैं बाबू, यही प्रत्याहार है To Withdraw, अपने हृदय की पवित्र गुफा में , अपने भीतर के पवित्र क्षेत्र में, वह पवित्र क्षेत्र जो जीवात्मा के प्रकाश से प्रकाशित है, जो मैं हूँ जो वास्तविक रूप में हूँ॥ ये ईर्ष्या द्वेष लोभ वासना काम ईत्यादि चिपके हुए हैं टैटू हैं पर मैं टैटू नहीं हूँ॥

यह भाव करते हुए उस पवित्र क्षेत्र में चले जाओ और वहाँ आह्वान करो उस महाचेतना की धारा का जिसे तुम अवतरित या सम्पर्क करना चाहते हो॥ बस क्षण कम लगेंगे और तुम एकाग्रचित्र हो जाओगे॥ सम्पर्क होगा कि नहीं होगा, मैं नहीं कहूँगा ॥ क्योंकि बहुत बार सूक्ष्म जगत के बहुत से अन्य कारण भी सक्रिय होते हैं जिनका उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है॥ पर यह बात सत्य है कि तुम अगर वहाँ पहुँच कर पवित्रता से एकाग्र हो गए तो महाचेतना की उस धारा को पता चल गया कि तुम आ गए हो, यह निश्चित है॥ तुम भले ही बीच में छिटको, पर यह प्रयोग करके देखना॥ विशेष रूप से इस कार्य के लिए करना, यूँ ही नहीं बोल रहा हूँ बाबू करके देखना॥ पूर्व के अंशों में अनेक गुणा अधिक गति से एकाग्र हो जाओगे॥ और सबसे बड़ी बात यह है कि अपने ही भीतर के पवित्र स्वरूप में कुछ समय बिताकर बाहर आने से बहुत शान्ति मिलती है॥ उस समय आपकी चेतना की धारा में किसी ऋषि से इष्ट से सम्पर्क उस समय हुआ अथवा कोई बात समझ में आए अथवा नहीं, आवश्यक नहीं कि हर बैठक में ही तुम्हारी क्लास लगे, तुम्हें समझाया जाए॥ पर एक बात सत्य है हर बैठक में स्नान होगा॥  पवित्रता का स्नान होगा, शान्ति और स्थिरता का स्नान होगा, यह बात पक्की है, करके देखना तुम्हें निश्चित आनन्द आएगा और मुझे उसकी पुष्टि Confirmation देना

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