उपयुक्त भाव एक सशक्त उपचार पद्दति है (भाव की सामर्थ्य)

उपयुक्त भाव एक सशक्त उपचार पद्दति है (भाव की सामर्थ्य)
उपयुक्त भाव एक सशक्त उपचार पद्दति है (भाव की सामर्थ्य) 

कुछ हिन्दी फिल्मों का वह दृष्य याद 
कीजिए जिसमें किसी फैक्टरी में कांच की 
खाली बोतलें कतारों में रखी होती हैं और 
एक सिरे से उन्हें धकेले जाने पर एक के 
बाद दूसरी, तीसरी.... पूरी की पूरी कतार 
घड़-घड़ाते हुए गिरने लगती है। इन खाली 
बोतलों को गिराने का प्रयास तो मात्र एक ही 
सिरे से किया गया था परन्तु एक बोतल के 
गिरने से प्रभावित होकर बाकी की कतार भी 
धराशायी हो जाती है। हमने सुना है कि 
सेना के पास भी इस प्रकार का एक बम 
होता है जिसमें एक ही जब गुच्छक के रूप 
में फेंका जाता है और तब उस गुच्छक में से 
एक बम के फटते ही बाकी सभी अन्य बम 
स्वतः ही फूटने लगते हैं। आपने यह भी 
अनुभव किया होगा कि छोटे शिशु एक दूसरे 
के देखा-देखी भी रोने लगते हैं।
कुछ इसी प्रकार का सत्य हमारे शरीर की 
संरचना के अन्तर्गत ‘सेल्स’ में भी प्रतिक्रिया 
स्वरूप घटता रहता है। मनुष्य की भावनाएं 
दो प्रकार से पूरे शरीर के सेल्स को 
प्रभावित करती है जिनमें प्रथम है 
रसायनिक प्रकार के प्रभाव और दूसरा है 
विद्युतीय प्रभाव। इन दोनों प्रभावों के द्वारा 
पूरे शरीर में एक समान अवस्था को जन्म 
दिया जा सकता है। सभी सेल्स शरीर में 
अपने हाथ बांधे यूँ खड़े रहते है कि जैसे 
उन्हें प्रतिपल अपने आका के द्वारा अनुभूत 
एवं प्रसारित भाव के अनुरूप ही आचरण 
करना है। यहाँ यह भी साथ ही एक आश्चर्य 
का विषय है कि अपने आप में अद्भुत 
क्षमताओं के स्वामी यह ‘सेल्स’ अपने भीतर 
एक स्वतंत्र साम्राज्य के होते हुए भी भावना 
रूपी देवताओं के अधीन चलायमान रहते हैं।

हमारी भावनाओं में चेतना ही वह शक्ति 
है जिसके द्वारा वह (हमारी भावनाएँ) 
गतिमान/सक्रिय होकर अनेकों प्रायोजन 
सिद्ध करती है। भावनाओं में संव्यापत 
चेतना ‘सेल्स’ में व्याप्त चेतना से संवाद 
करती है... इसी कारण कुछ अध्यात्मवादी 
हमारे शरीर के प्रत्येक सेल को मन्दिर की 
संज्ञा प्रदान करते हैं। यह विज्ञान ऋषियों ने 
हजारों वर्ष पूर्व स्थापना करते हुए यह 
वर्णन किया था कि मनुष्य की भावनाएं 
उसके मन एवं षरीर के स्वास्थ्य को 
प्रभावित करती है।

भावनात्मक स्तर पर उत्पन्न दोश अपने 
रसायनिक एवं विद्युतीय दुष्प्रभावों के द्वारा 
हमारे सेल्स को दुष्प्रभावित करते हैं। 
और उसी प्रकार हमारी सद्भावनाओं के 
परिणाम स्वरूप उत्पन्न हितकारी रसायन 
एवं विद्युतीय प्रभाव हमारे शरीर के सेल्स 
को दृढ़ता एवं सौन्दर्य प्रदान करते हैं।

कौनसे भाव का दोष किस प्रकार के रोग को उत्पन्न 
कर सकता है और कौनसे भाव के द्वारा उसका निदान 
सम्भव है यह एक रोचक विषय है। 
हमारे यह वेदों में भी अव्हानात्मक ऋचाएं भाव रूप 
में ही बहुत कुछ प्रार्थना स्वरूप कहती हैं।  उपरोक्त 
विषय पर कुछ लेख मैंने कई वर्ष पूर्व इस छोटी से 
पुस्तक में भी दिया था।  
उपयुक्त भाव एक सशक्त उपचार पद्दति है https://imojo.in/f4cgix


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