सजगता पर अधिकार जताना ही होगा

सजगता पर अधिकार जताना ही होगा
पूर्ण ट्रांसक्रिप्शन अशोक सत्यमेव 
हमें ऐसा लगता है मस्तिष्क के भीतर के साम्राज्य में चलने वाले विचारों एवं कल्पनाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं॥ पर वस्तुतः ऐसा नहीं है॥ कारण एक ही है कि हमने कभी अपने मस्तिष्क में अपनी शक्ति से अपने अधिकार का प्रयोग नहीं किया, जिसे कहते हैं Apply force within yourself. बस बहते रहे विचारों एवं कल्पनाओं के साथ-साथ॥ अपने मस्तिषक में चलने वाली गितिविधियों को बस होने दिया, अधिकार प्रयोग नहीं किया॥ अधिकार प्रयोग से चल रही गतिविधि को रोक जा सकता है, बदला जा सकता है, दिशा दी जा सकती है॥ हमें यह प्रशिक्षण नहीं कराया जाता॥

प्राचीन काल में इसकी क्या व्यवस्था थी, मैं नहीं जानता॥ पर मैं इतना जानता हूँ जो मेरे अनुभव में आया, जो मेरे मस्तिष्क में चलता है और मैं उसपर अधिकार प्राप्त करने की चेष्टा करता हूँ, उसके विषय में कह सकता हूँ॥ इस पृथ्वी पर कुछ सिद्धों को छोड़कर, अधिकांशत: हम सबके मस्तिष्क में विचार बादलों की तरह आते हैं, प्रवेश करते हैं और हमें हाँक कर ले जाते हैं॥ कल्पनाएँ स्मृतियाँ बादलों की तरह आती हैं, हाँक कर ले जाती हैं॥ हमें खाली ठूँठ छोड़कर चली जाती हैं॥ मात्र एक ही कारण है कि हम अधिकार प्रयोग नहीं करते॥ अधिकार प्रयोग करके, चल रहे विचार और कल्पना को रोकने की चेष्टा नहीं करते॥ उन्हें रोक कर के किसी अन्य भाव अन्य विचार पर ले जाना नहीं चाहते॥

यह तो सत्य है कि मस्तिष्क में निर्विचार होना, शून्य की अवस्था में जाना प्राय: बहुत कठिन है॥ पर विचारों की दिशा बदली जा सकती है॥ कौन सा विचार कौन सी कल्पना कौन सी स्मृति मेरे मस्तिष्क में रहे इस पर अधिकार लिया जा सकता है॥ यह निश्चित रूप से तुम कर सकते हो॥ तुम विचारों से कल्पनाओं से चिंताओं से  स्मृतियों से शून्य हो जाओ, यह सहजता से सम्भव नहीं है॥ सहजता से  सम्भव नहीं है पर सम्भव तो है॥ भले ही यह सहजता से सम्भव नहीं है पर कौन सा विचार, भाव, कल्पना स्मृति मेरे मस्तिष्क में रहे यह चयन करने का अधिकार तुम्हारे पास है॥ तुम इस शक्ति का प्रयोग नहीं करते हो, तुम अपने मस्तिष्क में चलने वाली किसी भी श्रृंखला को किसी स्तर पर भी रोकने की चेष्टा नहीं करते॥ यदि करते भी हो तो वो 2-3 बार में तुम्हें पछाड़ देती है और तुम उसके स्थान पर कोई नया भाव लाना चाहते हो, मान लो तुमने कल कोई news देखी, और वह अगले दिन भी तुम्हारे मस्तिष्क में चलायमान है॥
चलचित्र चल रहा है और वह विचार बार-बार बार-बार चल रहा है॥ स्वाभाविक है अब तुम कहते हो बहुत हो गया इस पर चिन्तन मनन, मुझे कोई अन्य विचार लाना है॥ इसके स्थान पर मुझे कोई और विषय लाना है॥ मुझे हिमालय के विषय में सोचना है, और तुमने उस कल वाली न्यूज के स्थान पर हिमालय की छवि अपने भीतर लाने की चेष्टा की॥ हिमालय तत्काल विचार में नहीं आएगा, न्यूज़ प्रभावी है, विद्यमान है, आसीन है, Seat of Power उसके पास है॥ वह मस्तिष्क में चल रही है, और क्रमबद्ध उसकी पुनरावृत्ति  चल रही है॥ यकायक तुम हिमालय की छवि को वहाँ लाकर रखना चाहो तो वह पछाड़ देगी॥ न्यूज कहेगी हट परे, मेरे को ही चलने दे॥ यही वह क्षण है जहाँ तुम्हें अपने अधिकार अपनी शक्ति का अपने मस्तिष्क में प्रयोग करना है॥

यह सारी क्रियाएँ एक ऐसे जगत में हो रही हैं, Entire activity within the brain जिसे हथेली पर रखकर दिखाया नहीं जा सकता॥ उसी क्षण तुम्हें अपनी शक्ति का प्रयोग करके हिमालय को फिर से लाना है॥ अपने भीतर के Might को Right को, अपने अधिकार अपनी शक्ति को उस पर लागू करना है - 'नहीं ... News नहीं, हिमालय"

तुम negotiate नहीं करना चाहते हो, तुम वह चाहते हो जो तुम करना चाहते हो॥ नहीं News नहीं, हिमालय॥ थोड़ी देर, 2-4 5-7 बार news फिर से आने की चेष्टा करेगी॥ पर यदि 2-4 बार तुमने अपने अधिकार का प्रयोग कर सशक्त रूप से, अपने पूरे अस्तित्व को बटोर करके, बिखरे हुए मन से नहीं  अपने पूरे अस्तित्व को बटोर कर, यदि तुमने कहा कि नहीं हिमालय ही देखना है, तो 5-7 बार के बाद news चली जाएगी॥ हिमालय धीरे-धीरे धुँधला सा आएगा| अब तुम्हारे ऊपर है कि तुम हिमालय को और कितना स्पष्ट करना चाहो, और स्थिर होना चाहो॥

विषय क्या है?
मस्तिष्क में चलने वाली समस्त गतिविधियों की श्रृंखलाएँ हमें हाँक कर चली जाती हैं हमें अपनी स्वप्रभुता सम्पन्न नहीं बनने देती॥ कभी कोई तो कभी कोई, चाहे स्मृति के रूप में, recalling yesterday story, चिन्ता, कल्पना के रूप में, विचार के रूप में , अधूरी कामना के रूप में, आएगी और हाँक कर ले जाएगी॥ जीवन ऐसे ही गया है॥ पर तुम्हारा अपना स्वाधिकार नहीं आया क्योंकि तुमने स्व-अनुशासन को लागू नहीं किया॥ रुक करके अपने साथ अपनी सजगता में जो spontaneity चल रही है जो त्वरित रूप से तुम्हारे भीतर प्रवाह चल रहा है, उस चलते प्रवाह को दिशा देने की तुमने चेष्टा नहीं की॥ उस प्रवाह को बहने दिया॥ यदि तुमने उस प्रवाह को बहने दिया तो तुम्हारा अधिकार तुम्हें प्राप्त क्यूँकर होगा? नहीं होगा॥

यह बात सामान्य व्यक्ति की तुलना में एक ध्यान के साधक के लिए समझ पाना बहुत सहज है॥ क्योंकि ध्यान का साधक सब कुछ इस मस्तिष्क में ही तो करता है॥ अदृश्य जगत में ही तो उसके सारे प्रयोग होते हैं॥ दृश्यमान जगत में तो कुछ नहीं करता, न भाव, न धारणा, न ध्यान कुछ नहीं॥ प्रकाश की कल्पना भी ऐसे स्वरूप में कि वहाँ कोई प्रकाश है नहीं बस भाव लाना है॥ क्योंकि स्वाधिकार हमारे अपने ऊपर नहीं है इसलिए जिस धारणा को हम लाना चाहते हैं उसे लाने में भी कठिनाई है॥ हम प्रकाश देख नहीं पाते और सत्य यह भी है कि वहाँ प्रकाश है भी नहीं। कोई लाइट कोई बल्ब फिट नहीं किए गए, एक भाव ही तो लाना होता है॥ पर चूँकि हम अपनी इच्छा से अपने अधिकार से एक भाव को भी आरोपित नहीं कर पाते, इसलिए वह प्रकाश भी नहीं दिखता है॥ क्योंकि हमें चलने वाले प्रवाह ने हमें हाँका है हमारे स्वाधिकार से वहाँ कभी कुछ रोपा नहीं गया, इसीलिए वह प्रकाश भी नहीं दिख पाता है॥

इसीलिए दिन भर में जब भी समय प्राप्त हो, कहीं पर भी हो, कुछ भी कर रहे हो,अपने आप को बटोर करके एक निश्चय अवश्य करो कि क्या मैंने स्वयं को सतर्क किया? स्वयं को Alarm किया? 'अनुष्ठान हेतु मनस्थिति निर्माण कैसे हो? क्या मैंने अलार्म लगाए थे? कहीं मैं खण्डित तो नहीं हूँ? अपने आप को बटोरने के लिए ऐसे अलार्म दिन में होने चाहिए जिसमें यह प्रश्न पूछा जाए - 'क्या मेरी सजगता में मैं अपने अधिकार से चल रहा हूँ / रही हूँ अथवा प्रवाह मुझे हाँके चले जा राह है जो जीवन भर से हाँकता आया है? लगाम किसके हाथ में है?

विचार कीजिए, उनकी मेधा को, Beautitude of their sagacity, जिन्होंने कृष्ण अर्जुन रथ और घोड़े के रूप में प्रस्तुत कर दिए॥ सारथी कृष्ण को बनाया, अर्जुन रथ पर सवार है, वह सब कुछ बहुत बड़े प्रशिक्षण का एक Graphical Representation है॥  Its a voluminous compilation concised into an image. उन्होंने एक संक्षिप्त रूप में, एक चित्र के रूप में पूरा वाङ्मय प्रस्तुत कर दिया॥ यह वही रथ ही है जो हमारे मस्तिष्क में चलता है, जिसके समस्त घोड़ों की लगाम केशव के हाथ में नहीं है॥ केशव बैठाया ही नहीं हमने॥ लगाम न हमारे हाथ में, न केशव के हाथ में, लगाम किसके हाथ में? लगाम का अधिकार घोड़ों के पास॥ घोड़े जिधर जाना चाहें जाएँ॥  हम बस जा रहे हैं जहाँ घोड़े ले जाएँ॥ कभी घोड़े इधर कभी उधर॥ कभी वासना में, कभी लोभ में, कभी ईर्ष्या में कभी बिखराव में, कभी Goodie Goodie दिखने में .... हम कहाँ है? जहाँ घोड़े ले जाएँ॥ हम हस्तक्षेप नहीं करते॥ जबकि घोड़ों की लगाम किसके पास होनी चाहिए? दिव्य स्फुर्णा के हाथ में, केशव के हाथ में॥ केशव है ही नहीं॥

तो क्या होगा?
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं , घोड़े ही नचाते रह जाएँगे॥ संस्कार क्या हो यह घोड़े ही तय करेंगे॥ अन्नमय कोष, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय कोष क्या होंगे, यह निर्णय घोड़े ही करेंगे॥  आप हाँक नहीं रहे, हाँके जा रहे हैं इनके द्वारा

यह प्रश्न पूछना होगा अपने आप से, और यह अधिकार अपने भीतर लाना होगा कि चलते हुए प्रवाह में एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करके अपने आप से कहना कि 'नहीं मुझे यह नहीं सोचना इस समय' I don't want to think it right now. मुझे अभी यह सोचना है॥ यह कहना कि मुझे कुछ नहीं सोचना, तो सम्भव है यकायक तुम सफल नहीं हो पाओ॥ निर्विचार होना सहज नहीं है, सम्भव है अपितु सहज नहीं है॥ पर चलते हुए प्रवाह में इच्छित विचार को लाना सम्भव है॥ इतना भर करना आरम्भ कर दो कि जब तुम जो चाहो वही सोच रहे हो, तो निश्चित जानो कि धीरे-धीरे वह समय भी आएगा जब तुम निर्विचार भी हो पाओगे, अधिकार का प्रयोग कर पाओगे॥

तो पहला प्रशिक्षण क्या है?
कि इच्छित विचार सजगता से मस्तिष्क में प्रवाह रूप से चले

The ongoing flow of activity in any of your spontaniety must be determined by you, must be in your hands.
यदि वह आपके पास नहीं है तो फिर आप हाँके गए

अध्यात्म का साधक, प्रशिक्षण अध्यात्म में लेता है पर उसका अवतरण उसके पूरे जीवन में जाता है॥ उसके व्यवसाय में, निजी जीवन में॥ इसलिए अपने चलते हुए प्रवाह में प्रश्न चिन्ह खड़े करके और अधिकार पूर्वक उसमें इच्छित विचार पर ही मनन करो  इच्छित विचार  को ही प्रवेश कराओ॥ और यह एकाएक नहीं होगा॥ 5-7 दस बार तुम हारोगे॥ यदा-कदा परास्त हो जाने में फर्क नहीं पड़ता पर प्रतिपल परास्त होने की ध्वजा ही लहराती रहे रथ के ऊपर, कि मैं तो हारा हुआ हूँ, ऐसा नहीं होना चाहिए॥ इसलिए उस चलते हुए प्रवाह में, अधिकार पूर्वक हस्तक्षेप, अस्तित्व को बटोरककर, डटकर, 5-7 बार हारना भी पड़े तो भी बार-बार प्रयास करो॥ और बार-बार प्रयास करके विजयी हो जाओ॥

जो बार-बार प्रयास करता है वह निश्चित रूप से बाहर भी और अपने अन्त: संग्राम में भी विजयी होता है॥

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