Part - 14. "अणु की शक्ति संकल्प के स्तर पर अनुभव करके देखो " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 14. "अणु की शक्ति संकल्प के स्तर पर अनुभव करके देखो " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

श्रृंखला के अन्तर्गत 13 अथवा 14 भाग हो चुके हैं॥ हम तप के विषय पर आगे बढ़ रहे हैं॥ स्वयं पर अधिकार प्राप्ति हेतु तप, भीतर के कौरवों को परास्त करने के लिए तप, पाण्डवों को केशव का आलोक केशव की शक्ति अधिक प्राप्त हो सके उसके लिए तप, सबलता के लिए तप॥ तप कैसा? स्वयं पर, अपने जीवन के समस्त आचरण पर, किसी न किसी प्रकार का तप, संकेत पूर्व में दिए गए हैं॥ फिर भी बहुत से साधकों ने ईमेल के माध्यम से पूछा॥ बात सरल है इसे पहचान पाना कि मैं किस प्रकार का तप करूँ॥ जो सबसे अधिक संयम करने योग्य आपको दिखता है उस विषय पर तप करो॥

उदाहरण: जो आहार में रोज फिसलता है आहार पर कुछ संयम करे, 7 दिन, 20 दिन, 40 दिन का, अवधि का चयन स्वयं करें जिसका निर्वहन कर सकें॥ जिसका असंयम वाणी पर है, जब देखा तपाक से बोल दिया, वह वाणी का संयम करे॥ कम से कम दिन की एक ऐसी अवधि निकाले जब साधक स्वयं पर यह भाव रखे कि मैं वाणी संयम में हूँ अत: मुझे केवल आवश्यकता पड़ने पर ही बोलना है, अन्यथा बोलना ही नहीं॥ मैं एकाएक मौन के लिए नहीं कहूँगा॥ बहुत आवश्यकता होगी तो विचार करके बोलना है अन्यथा नहीं बोलना॥ निर्धारित करो 'यह दिन के 2 घण्टे मेरे इस प्रकार वाणी संयम के हैं'॥

अर्थ संयम - क्या नया है, क्या खरीदें, क्या लेना है, इसने क्या-क्या लिया, मेरे पास क्या नहीं है, मैं मूल आवश्यकताओं की बात नहीं कर रहा, पर उसकी जो भड़क अर्थात तीव्र इच्छा उठती है उसकी बात है, कि इतने दिन तक मैंने अर्थ संयम करना है॥ इसका यह अर्थ नहीं है कि जो जिस बात का संयम करने का व्रत ले, वह संयम की अवधि पूरी होने के बाद उसी की होली खेले॥ आह! चलो भाई, एक महीना अर्थ संयम करते हुए कुछ नहीं लिया॥ आज लिस्ट बनाओ क्या-क्या लेना है साहब, सब लेंगे आज ही॥ तो यह संयम नहीं है, यह तो फिर एक छल हो गया॥ अरे इतने दिन मैंने कुछ नहीं कहा, आज मन भरा हुआ है तो सबको सुनाना है॥ यह वाणी संयम नहीं हुआ॥ इतने दिन तक मैंने फलाने की चीजें नहीं खाई हैं॥ आज संक्लप पूरा, आज सब खाएँगे, आज से शुरु दबा के, यह संयम नहीं है, यह तमाशा है॥

संयम वह जो जिसका व्रत किया जितने दिन, वह अवधि समाप्त हुई उसके उपरान्त भी विवेक के द्वारा उस पर नियन्त्रण, अंकुश रखना, वह तप है॥

आहार, विहार, विचार, वाणी, अर्थ, व्यवहार आदि किसी बात का भी संयम; निर्णय स्वयं करना होगा कि मैं कौन सा संयम करूँ॥ कुछ नहीं समझ में आ रहा तो आहार से और समय से संयम शुरु कर लो॥ आज से मैंने दिन के 2-3 घंटे सोच लिए, वे 2 घंटे मैंने ऐसे बिताने हैं (ब्रह्म मुहुर्त्त ध्यान के अतिरिक्त)॥ आहार और समय का संयम तो सबसे पहले पकड़ा जा सकता है और सबके साथ जुड़ा है॥ इसे पकड़ लो फिर धीरे-धीरे समझ में आए तो फिर तप को बढ़ाओ॥ तप के नए प्रकार भी जोड़ो॥

हमारी जैन आस्था में बहुत बड़े मुनि हुए जिन्होंने अणुव्रत आरम्भ कराया॥ अणु का तात्पर्य लोगोंने समझा कि यह छोटा mini, भूल गए अणु परमाणु का सम्बन्ध? अणुओं की शक्ति कितनी होती है? बड़े से बड़े की नहीं हो सकती जितनी अणु में शक्ति है॥ इसलिए व्रत अगर अणु है तो इसे छोटा मानना मूर्खता है॥ अणु में परमाणु की शक्ति है॥ अणुव्रत की भाँति ये छोटे व्रत इतने बड़े प्रभाव और शक्ति को जन्म दे सकते हैं, यदि ईमानदारी से निभाया जाए और संकल्प पूरा लेने के बाद भी रहा जाए, होली न खेली जाए तो आप देखिए कितना बड़ा प्रभाव जन्म लेगा॥ स्वयं पर अधिकार कितने अंशों में प्राप्त होगा, आप स्वयं पर आश्चर्यचकित होंगे कि जितने इन छोटे-छोटे तप के द्वारा, इतने बड़े अंशों में आपका स्वयं पर प्रभाव स्थापित हुआ॥ पर इसके भी कदम उठाने होंगे और जल्दी ही उठाने होंगे॥

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार, विचारों में प्राण आ गया, विचारों मे प्राण की शक्ति आ गई तो बहुत कुछ बदला जा सकता है॥ विचारों में शक्ति का तात्पर्य है मनुष्य का अपना प्राणमय कोष भी साथ-साथ व्यवस्थित होना, मनुष्य का अपना मनोमय कोष भी व्यवस्थित होना, आपका मनोमय और प्राणमय कोष व्यवस्थित हुआ तो निश्चित रूप से अन्नमय और ऊपर विज्ञानमय भी होगा॥ क्योंकि मनोमय और प्राणमय कोष दोनों सैंडविच हैं अन्नमय और विज्ञानमय कोषों के बीच में, दोनों पर बड़े गहरे प्रभाव जाएँगे॥

पंचकोषीय साधनाओं में इसी प्रकार से तो धीरे-धीरे आगे बढ़ा जाता है॥ छोटी-छोटी साधनाएँ और भी जोड़ते हैं पर मुख्य तप ही है, तप के अतिरिक्त कुछ नहीं है यह निर्विकल्प है॥ इसलिए इस प्रकार के अणुव्रत, आज के विषय को अणुव्रत ही मानो, इस प्रकार के अणुव्रत अपनी क्षमता और रुचि के अनुसार चुनो और उनका निर्वहन एक अवधि तक करो॥ समाप्त होने पर होली नहीं खेलो॥ उसका संयम यथावत बनता रहना चाहिए तभी प्रभाव होगा॥ यह बात साधक को अपने अन्त:करण में गहरई से समझनी होगी॥ जितने अंशों में इस बात को उदरस्थ करोगे, हजम कर जाओगे, उतने अंशों में तुम्हारे भीतर के चिंतन में व्यवस्था एवं तदोपरान्त विचारों में शक्ति, मूल निष्कर्ष प्राणमय और मनोमय कोष का परिष्कार; परिणाम साधक अनेक अंशों में ऊर्ध्वगामी होगा॥

इनके लेख तुम्हारे लिए मोती हैं मोती, उन्हें श्रृंखलाबद्ध रूप से पढ़ना॥ इसीलिए इस ज्ञान को खोलकर रखा गया है॥ छोटे-छोटे 10-10 मिनट के ये सत्संग और इनके लेख समय आने पर तुम्हें कितना बल देंगे बालक, तुम्हें बोध नहीं है इसका॥

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