नाभी क्षेत्र का ध्यान

नाभी क्षेत्र का ध्यान

एक श्रृंखला तो कल लगभग पूर्ण हो गई॥ आज ध्यान के विषय में कुछ बताने का मन है॥ नाभि क्षेत्र का वर्तमान ध्यान जो हम कर रहे हैं, इसे हम लगभग 3-4 दिन और करेंगे॥ इस ध्यान का महत्त्व विशेषत: पाचन क्षमता से है॥ इसे लगातार लम्बे समय तक तो नहीं करेंगे क्योंकि उतनी ऊर्जा को सहेजना भी आवश्यक है॥ पर इसके लिए मैंने पूर्व में एक संकेत दिया था, अर्द्ध पद्मासन में इसका लाभ अधिक मिलेगा॥ मैं पूर्ण पद्मासन के लिए नहीं कह रहा हूँ उसे सब लोग नहीं लगा पाएँगे॥ जैसे ही ॐ का गुञ्जन समाप्त हो, ध्यान के उपरान्त ॐ का गुञ्जन समाप्त होते ही अर्द्ध पद्मासन की अवस्था में आ जाओ॥ उस समय आसन थोड़ा सा बदलना पड़ेगा कोई बात नहीं॥ मैंने ॐ के गुञ्जन के उपरान्त इसलिए कहा, सम्भव है सब लोग इतना लम्बा समय लगाने में सक्षम नहीं हों॥ पर जो लोग लगा पाएँ वे आरम्भ से ही अर्द्ध पद्मासन में रहें और जैसे ही 'ॐ शान्ति' कहा जाए आप अपना अर्द्ध पद्मासन खोल सकते हैं॥ यह केवल उनके लिए जिन्हें इतना लम्बा समय लगाने में कठिनाई है॥

अर्द्ध पद्मासन लगाते समय जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात है वह क्या है? मूलत: तो पूर्ण पद्मासन में भी, पर पद्मासन में भी जो टाँग ऊपर रखते हैं उसे विशेष ध्यान से, पद्मासन के लिए जो टाँग उठाकर आप दूसरी जंघा पर रखते हैं, जैसे मान लीजिए आपने दाईं टाँग को बाईं जंघा पर उसके ऊपर रखा तो सामान्यत: लोग समझते हैं पद्मासन यहीं से आरम्भ हो गया॥ नहीं, जो दाएँ पैर की एड़ी है, उसे पेट की तरफ लाना है नीचे पेट की तरफ, जहाँ तक सम्भव हो वहाँ तक उसे निकट लाना है॥ विधान तो उसका यह है कि एक सिवनी नाड़ी होती है बीच में जो जननेन्द्रिय के almost center का लगभग केन्द्र मान सकते हैं, वहाँ सिवनी नाड़ी बताया जाता है॥ विधान तो यह है कि आप एड़ी को सिवनी नाड़ी तक लाओ, यदि आप नहीं ला पाए कोई बात नहीं पर जितना कर सको उतना लाने की चेष्टा करो॥ जितना पास ला सको, उतना एड़ी को पेट के पास बीचोबीच लाने का प्रयास करो॥ निश्चित रूप से दूसरा पैर तो नीचे है, उसे और सहजता से नीचे जब हम घुटना मोड़ लेते हैं तो टाँग और जंघा के बीच जो कट बनता है दूसरे पैर को उसके स्थान में टिका लो॥ आपकी कमर अपने आप बिलकुल सीधी हो जाएगी॥ मैं उस समय पद्मासन में नहीं बैठा हूँ, मेरे आसपास उतना स्थान नहीं होता क्योंकि मेरे पास बहुत से उपकरण रखे होते हैं॥ तो इस प्रकार पैरों को टिका कर कमर सीधी करके भैरवि मुद्रा में बायाँ हाथ नीचे दायाँ ऊपर, इस आसन में चले जाएँ॥ इसके उपरान्त कमर सीधी होने से ऊर्जा का उपार्जन करने में सहायता होगी॥

आपको जो ध्यान कराया जाता है उसमें कहा जाता है - 'नाभि से सीधा रीढ़ तक', अर्थात right inline absolutely in front, क्योंकि शरीर में जो सारे खेल हैं वे सब रीढ़ की हड्डी में हैं, in the backbone मेरुदण्ड में हैं॥ आगे की ओर से उन्हें दिखाया जाता है, क्योंकि पीठ के पीछे कोई अंग नहीं है तो कैसे बताएँ कौन सा केन्द्र कहाँ? इसीलिए आगे से दिखा कर बताते हैं हृदय के आसपास, गले में, नाभि में, जननेन्द्रिय क्षेत्र में, इस प्रकार बताया जाता है॥ जबकि हैं सब कहाँ? पीछे, आज्ञा चक्र को छोड़कर, बाकी सब पीछे हैं, केवल जो मूलाधार है वह बीचो-बीच है center में है, गुदा और जननेन्द्रिय के बीच का जो triangle हैं वह बीच में है॥ पर हमारा इस ध्यान का जो प्रयोजन है वह केवल नाभि की सीध में है॥ नाभि से प्रवेश करके हम उसकी सीध में जाते हैं॥ ध्यान कहाँ लगाना हैं? रीढ़ की हड्डी में, नाभि की सीध में॥ मान लो कल्पना से कोई लकीर खीचें जो नाभि से लेकर पीठ में से आर-पार निकल जाए तो जहाँ वह पीठ से आर-पार निकलेगी मेरूदण्ड से रीढ से, वहाँ॥ अब वह ऐसा केन्द्र है जहाँ ध्यान में हाथ को पीछे पहुँचाना सहज नहीं है ऊपर नीचे भी अनुमान से ही कर पाएँगे, पर आगे से बहुत सहज है, सीध में सोचते-सोचते आप बहुत सहजता से वहाँ पहुँच जाओगे॥ मनुष्य की सजगता का सौन्दर्य यही है वह पूरे शरीर में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच जाती है॥ तो आप उस सीध में पहुँच गए, ध्यान की सजगता वहीं होगी, मन्त्र का गुञ्जन भी वहीं कराया जाता है॥ आप यूँ मान लो कि आप इस समय कपाल में नहीं, आप नाभि की सीध में रीढ के उस स्थान पर बैठकर मन्त्र गुञ्जन कर रहे हो 'ॐ भूर्भुव: स्व:' ॥

अब जो कुछ भी होना है वह पातञ्जलि के सूत्र के अनुसार होता है - 'जहाँ चित्त वहाँ प्राण'॥ आपका चित्त इस समय नाभि की सीध में है रीढ़ में, इसीलिए चित्त वहाँ तो प्राण वहाँ॥ जब चित्त वहाँ तो प्राण वहाँ, तो प्राण वहाँ पर कुछ कर रहा है गतिविधि, प्रक्रिया हो रही है॥ जैसे उँगलियाँ जहाँ चलाओ वहीं पता चलता है आभास होता है sensation का. sensation चेक करने के लिए उँगलियाँ चलाते हैं न? उसी प्रकार आप sensation करने के लिए, आप उँगलियों के स्थान पर चित्त के द्वारा मन्त्र को ले जा रहे हो और sensation उत्पन्न कर रहे हो, कहाँ? रीढ़ में नाभि की सीध में, उँगलियाँ नहीं मन्त्र से, उँगलियाँ नहीं मन्त्र से, और जैसे ही वह स्पन्दन आप उत्पन्न करते हैं वह क्षेत्र आरम्भ में सजग, सजग, सजग होता है॥ जागेगा? नहीं, जागेगा नहीं॥ हमारा लाभ उसी से है क्योंकि वहाँ 'अग्नि तत्त्व' है, उस 'अग्नि तत्त्व' को हमें सामान्य अंशों से अधिक अंशों में जागृत करना है॥ यह 'अग्नि तत्त्व' वह नहीं है जो आमाशय में पित्त है the acid part in the body, जो कई तरह की गर्मी शरीर में हो जाती है यह वह नहीं है॥ इसके भी प्रभाव शरीर में आते हैं अपने तरीके से , वे तो आएँगे पर यह वह गर्मी नहीं है॥ यह वह ऊर्जा है जो सीधे पाचन तन्त्र के पहले विकारों को भस्म करती है एक सीमा तक, पर पाचन तन्त्र के जितने अंग हैं उन्हें वांछित ऊर्जा, जो आवश्यक ऊर्जा है उसे पहुँचाती है॥ इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आप संयम नहीं करें और आप कहें कि मैंने ध्यान कर लिया काम बन गया, नहीं ऐसे नहीं होगा॥ संयम तो आवश्यक है, संयम के बिना कुछ नहीं होगा॥ संयम के बिना तो कोई भी कल्पना करना उसी प्रकार है जैसे हमने किसी द्रव्य की एक बूँद फर्श पर डाली और उसके ऊपर एक बाल्टी पानी डाल दिया यह उसी प्रकार है॥ इसीलिए संयम तो आधार है॥

संयम रखते हुए आप इस प्रयास को करते हैं तो अनेक अंशों में पाचन क्षमता में वृद्धि प्राप्त होती है, उन अंगों को सबलता प्राप्त होगी॥ इसीलिए यह मणिपूर का ध्यान, इसे मणिपूर चक्र मत समझना, इससे चक्र नहीं जागृत होते॥ हाँ विधियाँ तो यही होती हैं लगभग, पूरी तरह नहीं तो लगभग यही विधियाँ होती हैं पर इससे चक्र नहीं जागृत होने वाले॥ हाँ, जो तुम्हें चाहिए जितनी अग्नि तुम्हें चाहिए, जितनी ऊर्जा तुम्हें चाहिए, संयम सहित प्रयास करने पर वह मिल जाएगी॥ संयम के बिना कुछ नहीं होगा उसके बिना सब प्रयास बेकार हैं॥ तो आप कहोगे कि मूल तो फिर संयम करता है॥ मैं यहाँ भी मानने को तैयार हूँ कि हाँ मूलत: संयम कार्य करता है॥ तुम संयम के साथ इसे भी करके देखो, तुम अनुभव करोगे कि भीतर अनेक अंशों में अभिवृद्धि हुई है॥ तो इसका एक प्रयोग करना॥

मैंने कहा था अभी जो श्रृंखला प्रकाशित हुई, और अन्य विषयों पर 1000 साधकों के लिए, zoom पर मीटिंग करेंगे॥ केवल 1000 participants होंगे, आमन्त्रण सबको भेजा जाएगा, पर first come first serve के आधार पर ही स्थान सुनिश्चित किए जाएँगे॥

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