'भाव परमाणु है और विचार उसका विस्तार ' भाव की सामर्थ्य

'भाव परमाणु है और विचार उसका विस्तार ' भाव की सामर्थ्य

'भाव परमाणु है और विचार उसका विस्तार ' भाव की सामर्थ्य                 

(आज के सत्संग का लेख) 

बहुत से साधक इस विषय को लेकर मनन करते हैं और प्रश्न पूछते हैं की भाव और विचार में भेद किस प्रकार करें। प्रश्न उपयुक्त है चूँकि मस्तिष्क के भीतर होने वाली लगभग सभी गतिविधियां एक सी ही प्रतीत होती हैं।  एक विचार - कल्पना - स्मृति अथवा भाव में सामान्यतः हम भेद नहीं करते हैं और भीतर चलने वाली लीला में लिप्त ही रहते हैं। सत्य तो यह है की सामान्य जीवन जीते हुए इतने भेद इत्यादि करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। परन्तु जब वही जीव एक साधक बन कर अपनी साधना को आगे बढ़ाता है तो आत्म अवलोकन के द्वारा भीतर के अंग अवयवों पर रुक कर उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता अनुभव होने लगती है। 


अपने मस्तिष्क के भीतर चलने वाली लीला का विश्लेषण एक साधक के लिए परम आवश्यक है जिससे वह अपने भीतर की क्षमताओं और आक्रांताओं को पहचान कर उचित कदम उठा सके। कौन अपना कौन पराया जब तक यह स्पष्ट भेद नहीं हो जाता है तब तक किसी भी परिस्थिति में नियंत्रण प्राप्त कर उचित कदम उठा पाना बहुत कठिन होता है। इसीलिए भाव की सामर्थ्य विषय पर आज इन बातों का उल्लेख करना आवश्यक हो रहा है जिससे मोटे रूप से विचार और भाव का भेद हमे समझ आए और हमारी सजगता आत्म उत्कर्ष के भाव पर केंद्रित हो जाए। 


भाव एक बीज है और विचार उसी बीज का वृक्ष है। भाव मूल है जिसमें कोई विस्तार नहीं होता और विचार ताने बाने पर बुने कपड़े की भांति है।  उदारहण से इसे समझते हैं।  अगर एक मूल भाव को ही लेकर उसकी क्षमता को विचारों के साथ तुलना करें तो 1909 में अर्नेस्ट रूथरफोर्ड के एक वैज्ञानिक विशलेषण का सन्दर्भ यहां ठीक बैठेगा।  अर्नेस्ट रुदरफोर्ड ने कहा था की पृथ्वी पर जितने भी मनुष्य हैं इन सभी के शरीर के परमाणुओं में से आकाश तत्व को निकल दें तो पूरी पृथ्वी की जनसंख्या एक सेव (apple) में समा जाएगी। यह बात पढ़ कर कितना विचित्र प्रतीत होता है, पर उतना ही सत्य इस तथ्य पर भी है जिसकी पुष्टि वैज्ञानिक आज तक करते आए हैं।  हालाँकि इस तथ्य पर अनेकों ने अपने विचार भिन्न रूप से भी प्रगट किए हैं। 


ब्रह्म मुहूर्त के ध्यान में हम प्रकाश की धारणा के द्वारा एक भाव पर ही तो आ कर स्थिर होना चाहते हैं। हमारी चेष्टा होती है की हम प्रकाश के भाव पर इतने स्थिर हो जाएँ की हमारे अस्तित्व के स्तरों पर ऊर्जा का संचार हो।  मन - मस्तिष्क - शरीर ऊर्जा - उत्साह एवं संतुलन से भर जाएँ। एक प्रकार से एक नई सृष्टि की रचना हमारे भीतर हो जाए। 


भाव की सामर्थ्य पर बहरी स्तर के प्रयोगों में डॉ मेसोरो इमोटो के शोध का उल्लेख यहां आवश्यक है जिन्होंने भाव द्वारा जल की संरचना पर होने वाले परिवर्तन के विषय पर विश्व को अवगत कराया। उनके शोध में यह स्थापित हुआ की भिन्न प्रकार के भाव जल की संरचना पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्रभाव डालते हैं।  और यहां यह जानना आवश्यक है की हम सभी के शरीर में 67 प्रतिशत जलांश ही है।  अतः हमारे भाव सर्वप्रथम हमारे अपने ही अस्तित्व को तदनरुप 67 प्रतिशत तक प्रभावित करेंगे। हमे अपने भाव के प्रति स्वयं ही सजग होना होगा अन्यथा हम ही स्वयं अपने हितैषी अथवा अहित कर्ता होंगें। 


हमारे भाव का प्रभाव हमारे घर पर, हमारे मिलने जुलने वालों पर, हमारे द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सामान पर अवश्य पड़ता है। अवसाद क्या है ? ( Depression) एक हतोत्साहित भाव ही तो है जिसके दुष्प्रभाव पूरे जीवन के रस को चूस डालते हैं। ध्यान की गहराई से प्राप्त होने वाले सर्वोपरि प्राथमिक स्तर के लाभ क्या हैं ? उत्साह - आनन्द।  उत्साह एवं आनंद क्या हैं - एक भाव ही तो हैं। भाव का ही तो एक आधुनिक स्वरूप में उल्लेख मनःस्थिति हेतु भी सम्भोधित होता है जिसे हम Mood के नाम से भी जानते हैं।  यह शब्द शब्दकोश में सम्भवतः 60 - 70 वर्ष पूर्व नहीं था। 


भाव की शक्ति उसकी क्षमता अद्भुत है, हमे हमारे वर्तमान भाव का परीक्षण करना होगा जिससे हम अपनी भाव स्थिति को यथा क्षमता सुधारते रहें। 




   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख