नाभि कमल - देवी शक्तियों का उल्लेख

नाभि कमल  - देवी शक्तियों का उल्लेख

शक्ति का महत्त्व नकारा नहीं जा सकता॥ अद्वैत, पूर्ण अद्वैत के अन्तर्गत, विलय सी अवस्था में आदिगुरु शंकराचार्य जी को भी अपने उस वर्तमान जीवन में शक्ति के विषय में स्वीकारोक्ति देनी ही पड़ी॥ बिना पार्वती केवल शिव से कार्य नहीं चलता॥ ब्रह्म सत्य है पर बिना शक्ति उसकी पूर्णता नहीं है, शक्ति आवश्यक है॥ मणिपुर क्षेत्र का ध्यान वस्तुत: शक्ति की ही आराधना है, शक्ति की ही साधना है॥ उस क्षमता की साधना है जो मनुष्य सामान्यत: प्राप्त करने में असमर्थ, अक्षम होता है, उस महाशक्ति की साधना है॥ उसे देवी का स्वरूप, मात्र भाव अर्थात माँ की तरह एक स्त्री के रूप में हम अपनी सुविधा से देखते हैं क्योंकि जननी नारी ही है, उसी से उत्पत्ति है॥ माँ रूप में उसकी करुणा, उसका वात्सल्य बिना शर्त का है unconditional है॥ इसीलिए शक्ति की आराधना माँ के रूप में ही है॥ यह सत्य है कि शक्ति अरूप है उसका चेहरा नहीं है॥

मैंने बहुत वर्ष पूर्व एक वाक्य गढ़ा था, गढ़ा क्या आ गया मन में - 'Forces do not have faces'. शक्तियों के चेहरे नहीं होते यह सत्य है॥ चेहरे उन्हें हम अपनी सुविधा अनुरूप दें तो शक्तियाँ समर्थ हैं कि वे कोई भी रूप ले लेंगी, जो रूप तुम देना चाहो॥ वस्तुत: है वह एक ही, एक ही सरस्वती है, एक ही लक्ष्मी है, एक ही दुर्गा है और ये तीनों मनुष्य के शरीर में हैं॥

सम्भवत: आपको पूर्व में ही पता होगा फिर भी दोहरा देते हैं - मनुष्य की सुषुम्ना नाड़ी, ईड़ा और पिंगला नाड़़ी॥ सुषुम्ना जिसमें प्राण का प्रवाह एक अवस्था आने के बाद आरम्भ हो जाता है॥ यूँ तो जब दोनों श्वास सम हो जाएँ दायाँ बायाँ, दोनों स्वर सम हो जाएँ तो भी कहा जाता है कि वह कुछ सक्रिय होती है पर वस्तुत: जो सुषुम्ना का भी विश्लेषण किया ज्ञानियों ने, मैंने नहीं ज्ञानियों ने, तो उन्होंने पाया कि इसमें तीन सूक्ष्म नाड़ियाँ अन्य हैं वज्रा, चित्रिणी, ब्रह्म नाड़ी॥ ये नाम उन्होंने दिए और कहा कि सरस्वती लक्ष्मी और दुर्गा ये तीनों सुषुम्ना नाड़ी के अन्तर्गत हैं॥ उसके उन्होंने ट्रैक ईत्यादि भी बताए किस प्रकार कौन सी कहाँ सक्रिय कैसे होती जाती है॥ वह अलग गुह्य विषय है हम वहाँ तक रहेंगे जहाँ तक हमें रहना चाहिए॥ मनुष्य का ज्ञान उसकी अवस्था के अनुरूप नहीं हो तो या तो वह उसे कोई लाभ नहीं देगा अथवा अनर्थ करेगा॥ अत: जो उसकी अवस्था है उसके लिए उतना जानना आवश्यक है॥ अवस्था से कम, अवस्था से अधिक, कार्य नहीं करता है॥

तीनों शक्तियों की उपस्थिति जो हमारे ज्ञान की है, समृद्धि की है, बल शक्ति है; उन तीनों की उपस्थिति वज्रा, चित्रिणी, ब्रह्म नाड़ी के रूप में सुषुम्ना के अन्तर्निहित है॥ इन तीनों शक्तियों के द्वारा ही जीवन का हम सामान्य रूप से संचालन करते हैं॥ तीन ही तो दु:ख हैं इस पृथ्वी पर - अभाव, अज्ञान, अशक्ति; चौथा दु:ख कौन सा? Isn't it? Deprivation Ignorance, Inability. चौथा कोई दु:ख नहीं जो है इन तीनों में ही आ जाएँगे॥

शक्ति की उपासना मणिपुर क्षेत्र की साधना, यदि दूसरे रूप में कहें तो शक्ति की उपासना है॥ केवल मणिपुर क्षेत्र की बाकियों की नहीं? बाकियों की भी है पर हम अभी वर्तमान में इस विषय पर हैं न? इसी विषय के प्रकाश में सब है बाकियों में भी है, मना नहीं किया गया किसी प्रकार से भी॥ जो शक्तियाँ, जो क्षमताएँ हमें प्राप्त होती हैं वह विशेषकर एक अध्यात्म के साधक के लिए एक परिशोधन है, बहुत बड़े स्तर का परिशोधन है परिष्कार है, जिससे मनुष्य के जीवन का उत्कर्ष बहुत आगे जाता है॥

आदिगुरु शंकराचार्य जी ने अपने जीवन में, आयु तो उनकी 32 वर्ष थी, पर यदि 32 वर्ष को भी यदि 100 वर्ष मान लो तो उसमें आरम्भ में उन्होंने शक्ति की ओर दृष्टि नहीं डाली, बाद में डाली॥ और जब डाली तो फिर इतनी उपासनाएँ इतनी आराधनाएँ रची कि आवश्यकता पड़ गई सौन्दर्य लहरी रचने की॥ 100 से अधिक श्लोक हैं, गुह्य हैं, कुछ स्पष्ट नहीं हैं थोड़े से॥ पर सौन्दर्य लहरी वस्तुत: क्या है? सौन्दर्य लहरी वस्तुत: इसी शक्ति की उपासना है जिसके अन्तर्गत वर्तमान में हम चल रहे हैं, मणिपुर ईत्यादि; ईत्यादि में ऊपर के भी आ गए और नीचे के भी दो आ गए॥ यह शक्ति की ही उपासना है वह सारा का सारा उल्लेख उसमें मूल:, स्वाधि:, मणि, अनहत, विशुद्धि, आज्ञा, इसी का है॥ मन है मैं उसे पढ़ाऊँ मुक्त होकर पढ़ाया जाए और यह निर्णय बाकी है कि उसे ब्रह्म मुहुर्त्त सतसंग का भाग बनाया जाए अथवा सायंकाल में उसे अलग से किया जाए॥ सर्दियाँ आ रही हैं तो रात्रि 8-9 या साढ़े आध से नौ आधा घण्टा, मन में चल रहा है अभी निर्णय नहीं है॥

अत: मूल विषय है कि आदिगुरू शंकराचार्य जैसों को भी शक्ति को मान्यता देनी पड़ी॥ मंडन मिश्र के साथ ज्ञान चर्चा करते हुए जब मण्डन मिश्र जी की पत्नी माँ भारती जो उसके उपरान्त उनकी माँ रूप भी रही॥ माँ भारती ने उन्हें परास्त करने की चेष्टा की तो उन्होंने शक्ति के वे स्वरूप भी उस जीवन में जाने जो अन्यथा उनके उस ब्रह्मचर्य का भाग कदापि नहीं थे॥ केवल ज्ञान चर्चा का उल्लेख नहीं है॥ बड़े-बड़े महामानव ब्रह्म ऋषि जब अवतरण लेते हैं तो उनकी जीवन चरित्र में, जीवनचर्या में जो कोई भी घटनाक्रम आता है वह कहीं न कहीं लोक शिक्षण के लिए होता है॥ लोक सेवा तो है उस काल की, काल की सेवा तो है पर आने वाली सन्ततियों के लिए लोक शिक्षण भी है॥

अत: आप इस साधना को माँ की आराधना के रूप में करना॥ इसीलिए ज्ञानियों ने प्रत्येक क्षेत्र को एक दैवीय आकृति भी देने की चेष्टा की, लगभग सभी क्षेत्रों को, यहाँ तक कि आज्ञा में पहुँचते-पहुँचते अर्द्धनारीश्वर कर दिया, आधा शिव आधा पार्वती॥ मणिपुर में तो वृद्ध शिव और देवी लाकिणी नाम दिया गया॥ क्यों? आवश्यकता क्या थी? क्योंकि हमने माँ स्वरूप ही वात्सल्य को करुणा को जाना है॥ और माँ स्वरूप होने के कारण हमने उन्हीं की, जिस रूप में हम नारी को देखते हैं उसी रूप में उनकी रचना की है॥ यह ठीक है कि हर क्षेत्र में जिस रूप में शक्ति प्रकट हो रही है, मणिपुर में अलग, अनहत में अलग, हमने अलग-अलग स्थानों में शक्ति को वैसा शरीर वैसे आकार प्रकार अस्त्र शस्त्र आदि के साथ रूप देने की चेष्टा की॥ पर है वह सब अव्यक्त को अरूप को, अपनी समझ के अनुरूप एक रूप देने की चेष्टा॥ पर है वह शक्ति, It is apower, it is a force.

अत: तुम शक्ति के उपासक हो, जिसके बिना आत्म कल्याण सम्भव ही नहीं है॥ सम्भव है? नहीं है॥ मैं उदाहरण नहीं देना चाहता, एक ऐसे ऊँचे काल के ऊँचे शिखर का, क्योंकि मुझे अभी उसके सन्दर्भ पूरे पता नहीं अन्यथा मैं यहाँ उसका उदाहरण भी देता॥ तो साधक, तुम देवी उपासना में ही हो, इस भाव से साधना को लेकर आगे चलो॥ हाँ नाम के लिए यहाँ देवी का नाम लाकिणी है पर मूलत: एक ही है, एक ही सुषुम्ना जिसमें वज्रा चित्रिणी ब्रह्म नाड़ी, तीनों सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा का संगम॥

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