Part - 24. आकर्षण विकर्षण अपना ही जादू है - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 24. आकर्षण विकर्षण अपना ही जादू है  - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

प्रशिक्षण की श्रृंखला अग्रसर है - व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

समस्या ही सारी अचिंत्य चिंतनम की है, जो नहीं सोचा जाना चाहिए जब जीव उसे सोचता चला जाए तो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं॥ तप के विषय पर हम अग्रसर हैं, कल भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय लिया कि किस प्रकार सतोगुण को तमोगुण प्रभावित कर देता है॥ सतोगुण को सदैव उतना श्रेष्ठ नहीं जानना चाहिए; यदि वह तमोगुण के दुष्प्रभाव का प्रतिकार नहीं कर पाता, चाहे वह देवासुर संग्राम अन्तर्जगत का हो अथवा बाह्य जगत का हो, यदि सतोगुण तमस का प्रतिकार करने में असमर्थ है तो ऐसा सतो लुंज-पुंज है, उसका अस्तित्व भी खतरे में है॥ सतो के लिए सशक्त होना अनिवार्य है अन्यथा सतोगुण किसी काम का नहीं, अन्यथा अन्तर्जगत और बाह्य जगत दोनों में समस्त अराजकता का भी सतोगुण आधार बन जाता है॥ इसलिए अनिवार्य है सतोगुण तप के द्वारा सबल हो, भीतर और बाहर दोनों जगत में यह अनिवार्य है॥

मन का क्षेत्र बहुत विचित्र क्षेत्र है, इसके विषय में मुझे कुछ और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं॥ कुछ विशेष बातें जो आजकल इस प्रशिक्षण श्रृंखला चल रही है, और साथ-साथ ही वर्तमान में ब्रह्म मुहुर्त्त में हृदय क्षेत्र का जो ध्यान विद्यमान है, उन दोनों का एक सहयोग है॥ जिन साधकों ने मेरे साथ पंचकोष के अन्तर्गत प्राणमय के विषय में उल्लेख प्राप्त किया था उन्हें ज्ञात होगा कि पाँच महाप्राण और पाँच उपप्राण, the main and the subordinates उनका उल्लेख आया था॥ प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान ईत्यादि॥ प्राण अपने आप में एक संज्ञा है, पूरे परिवार का नाम और प्राण अपने आप में एक प्रकार की विशेष विद्युत भी है जैसे AC, DC ईत्यादि उसी तरह प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान आदि हैं॥ प्राण मुख्य रूप से कहा जाए तो एक नाम भी है और प्राण पूरे समुदाय का भी एक नाम है॥ जैसे उदाहरण के लिए किसी की caste जाति हो ओम, और उस परिवार में एक व्यक्ति भी जन्म ले जिसका नाम ओम हो॥ उससे पूछा जाए आपका नाम ओम, आपकी जाति ओम, उसी प्रकार प्राण, प्राण तत्त्व की एक पूरी जाति भी है॥ प्राण तत्त्व के अन्तर्गत एक विशिष्ट प्रकार का प्राण, प्राण के नाम से सम्बोधित भी है॥ अत: प्राण तत्त्व विशेष रूप से जितने पाँच महाप्राण हैं, इनके पाँच assistant हैं नाग, कृकल, धनञ्जय ईत्यादि इनके नाम हमने तब लिए थे, सबके अपने मुख्य कार्य हैं॥ जो प्राण है उसका मुख्य कार्य है मस्तिष्क को ऊर्जा देना, सन्तुलन भी देना, उसे प्रतिपल शक्ति से पूरित रखना॥ ऊर्जा किसको देनी है? मस्तिष्क को, किसको? ध्यान देना मस्तिष्क को, उसका स्थान क्या है? हृदय

देखो, प्राचीन भारतीय मनीषा में, the beatitude of the Yogic Anatomy, anatomy शब्द आधुनिक है मैंने ले लिया, The Yogic Anatomy. सबसे बड़ा कमाई पूत हृदय, खाऊ पूत मस्तिष्क the brain, the heart is the earning one, and the brain is the one who spends खर्चता रहता है विचारों में॥ इसीलिए इसकी ईंधन की व्यवस्था मुख्य रूप से हृदय के प्राण से होती है॥ हम बात कर रहे हैं सूक्ष्म अस्तित्व की न कि स्थूल की जो body flesh वाली है यहाँ उसका उल्लेख नहीं हो रहा॥ सूक्ष्म शरीर का उल्लेख है॥ योगियों का मत है कि हृदय क्षेत्र से जिस प्रकार की ऊर्जा का उदय होता है उद्गम है वह प्राण तत्त्व है जिसका पोषण मस्तिष्क को जाता है॥ बाकी समान, उदान, व्यान ईत्यादि शेष चारों उनके कार्य अलग-अलग हैं और क्षेत्र भी अलग-अलग हैं, उसी प्रकार इनके सहायक भी अलग-अलग जगह बैठे हैं॥ प्राण के साथ सम्भवत: नाग नाम से उनका subordinate उपप्राण बैठा है; और उनका काम एक ही है मस्तिष्क को ऊर्जा पहुँचाना॥

विचारों की शक्ति का विषय चल रहा है, और व्यवस्थित चिंतन के बिना विचारों को शक्ति प्राप्त होना असम्भव है॥ उसी पर इस पूरे प्रशिक्षण की श्रृंखला चल रही है जिसका आज 23वां भाग है॥ एक संयोग है जो आपके लिए विशेष रूप से है कि जिस प्रशिक्षण को आप सत्संग रूप में ग्रहण कर रहे हैं उस प्रशिक्षण के अन्तर्गत प्राप्त होने वाली विशिष्ट सूक्ष्म ऊर्जा का उद्गम उद्भव भी हृदय का क्षेत्र ही है॥ जब आप हृदय के भाव तरंगों को अनुभव करते हैं हृदय में जाकर ध्यान केन्द्रित करते हैं और जो कुछ भी वहाँ ध्यान केन्द्रित करने के उपरान्त अनुभव होता है; समझ में आया अथवा नहीं आया तो भी, that may not matter much, you may comprehend, you may not, पर जो उसका सूक्ष्म प्रभाव है वह अकाट्य है अपरिवर्तनीय है उसे बदला नहीं जा सकता॥ जितना भी ध्यान आप हृदय क्षेत्र में स्थिर कर पाते हैं जितना भी अपने-आप को बटोर लेते हो, अपनी सजगता को the fragmented distracted awareness जितना भी उसे बटोर पाते हो, उतने भर से भी हृदय को एक विशेष सूक्ष्म पोषण मिलता है॥ इसीलिए मैं बार-बार दोहराता हूँ हृदय क्षेत्र, not alone the pumping organ, the throbbing one, वह नहीं बल्कि उसका क्षेत्र, क्षेत्र का महत्त्व है॥ हृदय क्षेत्र का ही महत्त्व है जो योगियों के ज्ञान Yogic Anatomy का भाग है॥ जो प्राण तत्त्व वहाँ से विशेष रूप से ऊर्जा बनकर जागृत होता है वह पोषक है मस्तिष्क का, उसकी गतिविधियों का॥ यह जो ब्रह्म मुहुर्त्त का ध्यान है यह भी एक ऐसा विशिष्ट दैवीय संयोग है कि आजकल वर्तमान में आपका ध्यान भी वैसा ही चल रहा है जिस प्रकार का प्रशिक्षण है तदनुरूप॥

इस प्रशिक्षण के अन्तर्गत आज हम एक पड़ाव पर हैं॥ अभी पीछे हमने 'निराशी', 'निर्मम', 'विगतज्वरा' को जानने की चेष्टा की कि केवल सोचने से नहीं होने वाला॥ किस प्रकार अपने भीतर तप के पुट से भीतर के पहचाने गए दुर्योधन, जिसका लक्ष्य हीन है malefic intention उस दुर्योधन को पहचान कर उसे परास्त करने के लिए किस प्रकार तप की आवश्यकता है॥ बिना तप के होने वाला नहीं है॥ मनुष्य का सौम्य स्वरूप अगर उसके भीतर की अराजकता को राजमार्ग देता है तो वह सौम्य स्वरूप घातक है॥ यह तथ्य और यह सत्य अन्त:जगत बाह्य जगत दोनों में परस्पर समान रूप से सक्रिय है नि:सन्देह सक्रिय है॥ अत: तप, तपस्वी के भीतर उस ऊर्जा को उत्पन्न करता है जिसके संचय से वह अपने भीतर के देवासुर संग्राम में असुरता को परास्त करने में सबल हो पाता है॥

अत: उस पक्ष को अब आगे बढ़ाते हुए मन की एक विशिष्ट क्षमता को पहचानना आवश्यक है॥ क्योंकि यह प्रशिक्षण अब धीरे-धीरे और अधिक, पहले से बहुत गहरा गया है it has already transcended into an esoteric dimension and now furthering more. और आगे बढ़ते हुए मन की एक विशेष क्षमता का बहुत बार उल्लेख आया आज दोहराना फिर से आवश्यक है, हजार बार भी दोहराएँ तो भी कम है॥ कई बातों की पुनरावृत्ति re-iteration अनिवार्य है क्योंकि जब तक उनकी पुनरावृत्ति नहीं होगी दृढ़भूमि नहीं हो पाएँगे॥ अध्यात्म का सारा रहस्य तथ्य और सत्य को दृढ़भूमि करने से ही है॥ जान तो हम एक क्षण में जाते हैं, I know all. 'yes you know all, but can do nothing' जानता मैं सब हूँ कर कुछ नहीं पाता॥ तो जाना अथवा नहीं जाना, किसी काम का नहीं॥ मन की एक विलक्षण क्षमता है जिस भाव पर, जिस तथ्य पर, जिस विचार पर एक बार वह मनन करना आरम्भ करता है तो इस पूरे द्यौ जगत से from the subtle dimension वह अपने जैसे like-minded सजातीय विचारों को आकर्षित करता है, आकर्षित करता है॥ यह क्षमता हममें है हम विचारों को आकर्षित कर सकते हैं, विकर्षित भी कर सकते हैं we may attract we may repel. और हम साथ-साथ एक कार्य और कर सकते हैं, वह क्या? हम जो चाहें वह परिवर्तन भी ला सकते हैं we can not only attract, repel but can change also. तीन काम हम कर सकते हैं॥ और तीन कामों को व्यवस्थित रूप से योगी समझ लेता है| उसे ज्ञात है कि जो कुछ भी मैं आकर्षित करूँगा अपनी धारणा के द्वारा वही मैं आकर्षित करूँगा धारणा ही तो है॥ जब कहा जाता है सबसे घातक कौऩ भले लोग, क्यों? क्योंकि वह ऐसी सज्जनता को आकर्षित कर लेते हैं जो केवल पिटती है प्रतिकार नहीं करती न भीतर न बाहर॥

अत: आवश्यक है यह जानना कि मैं अपने प्रति, अपनी ओर अपने ही प्रकार के विचारों के साम्राज्य को आकर्षित करता हूँ, विकर्षित भी कर सकता हूँ, परिवर्तित भी कर सकता हूँ॥ परिवर्तित अर्थात I can change the way I think मैं परिवर्तित कर सकता हूँ॥ पर सामान्यत: हम क्या करते हैं? हम अधीन होते हैं. अधीन होते हैं तो बस वह सब आकर्षित किए चले जाते हैं किए चले जाते हैं जो आकर के हमें ही प्रताड़ित करता है॥ अत: मन की इस क्षमता को समझना जानना अनिवार्य है कि तुम आकर्षित करते हो उन विचारों को जो आकर के साम्राज्य बनाकर के तुम्हारे पूरे आभामण्डल में प्रतिष्ठित हो जाते हैं और तुममें वह भरपूर क्षमता है तप के द्वारा प्रतिकार करके उन सभी विचारों को पलट देने की॥ वह तुम तक नहीं पहुँच पाएँगे, तुम्हें छू भी नहीं पाएँगे, you will remain unscathed. तुम्हें छू नहीं पाएँगे और तुममें ही वह क्षमता है कि तुम जिस प्रकार के विचार की पद्धति, विचार की धारा का बीजारोपण करना चाहो कर सकते हो, तदनुरूप आभामण्डल और उसका साम्राज्य बनना आरम्भ हो जाएगा॥ You determine, मित्र और शत्रु तो तुम्हीं हो, पर तुम्हें यह ज्ञान होना चाहिए कि अनजाने में मेरी सज्जनता मेरा सौम्य स्वरूप मेरे द्वारा लुंज-पुंज विचारों का प्रसार करता है उन्हीं का अनुसरण करके मेरे आसपास लुंज-पुंज का साम्राज्य बन गया है॥ न मैं भीतर सबल, न बाहर सबल और मेरे भीतर बाहर की निर्बलता मुझे सूखे टूटे पत्ते की तरह हवाओं के थपेड़ों के हाथ सौंप चुकी है॥ अत: मुझे यदि नियन्त्रण चाहिए, अधिकार चाहिए, अगर मैं चाहता हूँ कि मैं अपने भीतर और बाहर के साम्राज्य का अधिकृत हो जाऊँ, एक सीमा तक भीतर के साम्राज्य का, तो मुझे यह मनन करना होगा कि मैं क्या सोचता हूँ प्रतिदिन प्रतिपल क्या सोचती हूँ॥ इसका अर्थ यह हुआ कि जो मैं सोचता हूँ / सोचती हूँ वह मैंने ही आकर्षित कर रखा है॥ यदि मैं इसे नहीं चाहती तो मुझे इसका प्रतिकार करना होगा, और इसका प्रतिकार करने के लिए तप के द्वारा, संयम के द्वारा, साधना के द्वारा उतने बल का अर्जन करना होगा, उपार्जन करना होगा कि मैं इसका प्रतिकार कर सकूँ॥ I can repel और फिर मैं परिवर्तित करके एक नई विशेष सशक्त विचारधारा, विचार धारा flow अवतरित कर सकूँ॥ जो मैं फेंकता हूँ / फेंकती हूँ वही लौट कर आता है, वही लौट कर आता है, अखण्ड मण्डल हैं ये, entangled हैं, गूँज है यह सारी॥ इसलिए साधक, अपने मन में होने वाली समस्त गतिविधि का दायित्व अपने कन्धों पर वहन करते हुए यह साधना अब आगे और गहराती जाएगी॥ आज का यह भाग मैं इतना ही देकर के पूर्ण करता हूँ॥ यह प्रशिक्षण की श्रृंखला अभी लम्बी चलेगी क्योंकि यह गहरा प्रशिक्षण है॥

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