Part - 18. निर्मम भाव के मर्म को ठीक से जानना होगा - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 18. निर्मम भाव के मर्म को ठीक से जानना होगा - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

भीतर के दुर्योधन को परास्त करना इतना सहज होता तो आत्म उत्कर्ष की बाजी प्रत्येक जीव सहजता से जीत जाता और पृथ्वी स्वर्ग से भी सुन्दर होती, पर यह हो नहीं पाता॥ प्रकृति का खेल है, क्यों का उत्तर तो किसी के पास नहीं है पर जैसे है वह स्पष्ट है॥ हम श्रीमद भगवद गीता के श्लोक के अन्तर्गत हैं जो इस पूरे प्रशिक्षण में बहुत बड़ा महत्त्व रखता है॥ प्रशिक्षण तो अभी चलेगा पर उसका बहुत महत्त्व है जिसमें 3 भाव हमने लिए कि मनुष्य जब तक इनको नहीं सँभालता, इन्हें अपने ऊपर अवतरित नहीं करता इनकी प्राण प्रतिष्ठा, स्थापना Establishment अपने भीतर नहीं करता तब तक भीतर के दुर्योधन को सहजता से परास्त नहीं किया जा सकता॥ वह भीतर की सबसे बड़ी कमी जो रह-रहकर तप में बड़ी बाधा बनती है, ऊर्हा का संचय होने नहीं देती, उखाड़ फेंकती है सब कुछ॥

निराशी भाव के बाद दूसरा है 'निर्मम'॥< /br> कितना अटपटा लगता है कि उत्कर्ष प्राप्ति हेतु हमें क्या निर्मम भी होना पड़ेगा? निर्मम शब्द तो सामान्यत: बड़े जघन्य अपराधियों के लिए प्रयोग होता है आतंकवादी, उग्रवादी for heinous criminals, जो ऐसे कृत्य करते हैं उनके लिए प्रयोग होता है॥ निर्मम शब्द का प्रयोग क्या आत्म उत्कर्ष के लिए भी करना होगा? क्या तप के लिए भी निर्मम शब्द का प्रयोग करना होगा?

देखो बाबू, शब्द और भाव, शब्द और उसमें निहित भाव, मैं भाव को अधिक बल दूँगा क्योंकि शब्द के तो व्याकरण की दृष्टि से एक नहीं अनेक अर्थ हो सकते हैं॥ यह किसी ने कल कहा कि श्लोक का मर्म अलग है, ऋचा का अलग है पर व्याकरण और भाषा की दृष्टि से देखो तो एक-एक शब्द अनेक भाव, अनेक मर्म वहन कर लेता है॥ देखना आवश्यक है कहाँ कौन सा शब्द कौन से भाव को वहन कर रहा है॥ वहन अर्थात what it imbibes, what it is going to imbibe, it is going to bear कौन सा भाव है॥ शब्द तो एक है, "ये हमारे गुरु हैं", "गुरु आदमी है यह", "यह तो फिजिक्स का गुरु आदमी है"; 'गुरु' शब्द में तो कोई अन्तर नहीं आया, अन्तर किसमें आया? भाव में॥ अध्यात्म के लिए भी , शिक्षा के लिए भी, चालबाजी के लिए भी एक शब्द आ गया॥ अब इसी प्रकार यह निर्मम शब्द है॥ निर्मम शब्द के अन्तर्गत एक शक्ति है, आपको 'शब्द की सामर्थ्य' को पहचानना है जो उसके भाव में है॥ निर्मम शब्द में एक शक्ति है जो बन्दूक की तरह असुर के हाथ में भी है और एक शस्त्र की तरह देव के हाथ में भी है॥ तो निर्मम शब्द एक शस्त्र है, as a word निर्मम, यह एक शस्त्र है॥ इस शस्त्र का हमें प्रयोग करना है और बहुत समझदारी से, बहुत गम्भीरता से करना है॥ क्योंकि अब जो मैं कहने जा रहा हूँ आरम्भ में तुम्हें अटपटा लगेगा॥ पर अब तुम ब्रह्म मुहुर्त्त के एक साधक हो, मनस्वी हो तुम्हें अब धीरे-धीरे शब्दों के पीछे के भाव भी समझने कुछ-कुछ आरम्भ हो गए हैं॥ अत: अब तुम सहजता से समझ पाओगे॥

'करुणा' और 'दया' ने इस पृथ्वी पर जितना अहित किया है उतना सम्भवत: घृणा ने नहीं किया होगा॥ करुणा और दया शब्द ने जितना मनुष्य का अहित किया, एकाएक सुनने में कितना विपरीत लगता है कि करुणा और दया के बिना तो मनुष्य, मनुष्य ही नहीं है॥ सत्य है, किन्तु 'करुणा और दया' ये विवेक विहीन हों तो? ये मनुष्य के द्वारा ही पशुओं को जन्म दे सकती हैं अर्थात किसी सामने वाले को पशु भी बना सकती हैं॥ अविवेक के द्वारा दिए गए दान ने तो धर्म तन्त्र में इतना बड़ा विकार उत्पन्न कर दिया॥ अविवेक के द्वारा दिए गए इस 'करुणा और दया' ने ही अनेकों प्रकार के अपराधों को, ऐसे लोगों को राजमार्ग दे दिया जिनके लिए समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए॥ यह करुणा और दया अगर अविवेकी स्वरूप में प्रयोग की जाए तो यह अत्यन्त घातक है जिसके लिए मुझे किसी पक्ष, किसी विवरण, किसी कहानी को सुनाने की आवश्यकता नहीं है, आप मनस्वी हैं, मनन करेंगे तो पाएँगे॥ और तो और इसी 'करुणा' के द्वारा हम अपने बच्चे भी तो बिगाड़ देते हैं और फिर अनुशासन लागू करने के लिए करुणा को हटाना पड़ता है॥ कई बार समय निकल जाता है तो कुछ भी करते रहो बात बनती नहीं, फिर बिगड़ी कहाँ से थी? उसी वात्सल्य भाव से उसी करुणा के भाव से, उसी दया के भाव से॥ विवेक विहीन करुणा और दया मनुष्य के लिए अशान्ति, अराजकता, law & order की समस्या उत्पन्न करती है॥ फिर चाहे वह कानून की व्यवस्था, अनुशासन की व्यवस्था, बाहर हो या भीतर हो, चाहे भीतर के देवासुर संग्राम की बात हो या बाहर के संग्राम की, यह करुणा और दया, discounting बहुत बड़ा अहित करती है॥

Subsidy शब्द कितना सुन्दर लगता है welfare का शब्द, कल्याण का शब्द 'सबसिडी', पर वही सबसिडी धीरे-धीरे एक अभिशाप भी तो बन सकती है॥ इसलिए सोचना विचार करना क्योंकि करुणा के और दया को इस प्रकाश में इस रूप से तुमने समझ लिया, तो निर्मम तुम्हारे लिए बुरा नहीं रह जाएगा॥ निर्मम शब्द का भाव तुम्हारे लिए तब तक बुरा है जब तक तुमने करुणा और दया, वात्सल्य इत्यादि को न्यायोचित in the right perspective पूरी तरह से समझा नहीं॥ जब इन्हें समझ लोगे तो निर्मम से तुम्हें घृणा नहीं होगी, निर्मम अच्छा लगना आरम्भ हो जाएगा॥ क्योंकि निर्मम फिर तुम्हें अनुशासन देगा॥ किसी भी देव प्रतिमा में शास्त्र समझ में आता है, शंख समझ में आता है, षटदल अर्थात कमल समझ में आता है, सब कुछ समझ में आता है शस्त्र समझ नहीं आता, किसके लिए है वह शस्त्र? वह शस्त्र उसी अत्यधिक, अनावश्यक 'करुणा और दया' को सन्तुलित, संयमित करने के लिए है॥ कभी जब आवश्यकता पड़ी तो बिना निर्ममता जब उत्कर्ष सम्भव ही नहीं है, शान्ति सम्भव ही नहीं है तो फिर निर्ममता का भी प्रयोग आवश्यक है॥ इसलिए निर्मम शब्द के मर्म को समझने के लिए तुम्हें इसके साथ-साथ चलने वाले करुणा. दया. वात्सल्य ईत्यादि जैसे सकारात्मक प्रतीत होने वाले भाव होते हैं उन्हें भी समझना पड़ेगा॥ इनको समझ लिया और इनके द्वारा उत्पन्न अविवेकी उपयोग द्वारा जितने अभिशाप जन्म ले गए पूरी पृथ्वी पर, यह पूरी पृथ्वी पर जो करुणा दया के अविवेकी प्रयोग से जो अभिशाप जन्म ले गए चाहे वे कब से क्यों न हो, तो समझ में आएगा कि निर्मम शब्द बुरा नहीं है॥ हम ही हैं जो एकाएक अपनी दृष्टि बनाकर उसपर अड़ जाते है कि बस यही ठीक है यही बस॥ न, तमोगुणी नहीं बनना, सतोगुणी बनना है॥ तमोगुणी बस एक निर्धारित भाव को पकड़ा उसके बाद विवेक से कभी विवेचना ही नहीं करेगा, सतोगुणी विवेचना करेगा, नहीं let me understand more.

इसलिए सतोगुणी भाव से 'निर्मम' शब्द को जानने के लिए इसके प्रतिकूल जाने वाले शब्द को भी समझना है तो समझ में आएगा कि यह हर इष्ट के हाथ में आया शस्त्र है॥ हर इष्ट के पास यह वह क्षमता है जो अराजकता को अमानवीयता को असन्तुलन को सन्तुलित करती है॥ इसीलिए तो यमराज शब्द से लोग कितना भागे, अन्यथा 'यम' क्या है? Rule of Law को ही तो यम का राज कहेंगे न? यदि Rule of Law समाप्त हो जाए तो क्या होगा? अराजकता फैल जाएगी, लोग नोच देंगे एक दूसरे को॥ इसीलिए rule of law यमराज है, यम + राज rule of law. इसलिए निर्मम शब्द को बहुत समझदारी से समझना होगा॥ पर ज्यों-जयों यह समझना आरम्भ होगा त्यों-त्यों एक नई शक्ति का अभ्युदय तुम्हारे अपने भीतर होगा॥ सही स्वरूप में समझे गए शब्द और उनके भाव मनुष्य में एक नए बोध का अभ्युदय कराते हैं जन्म कराते हैं॥ अत: ज्ञान की यही सेवा है कि वह तुममें एक नए बोध का अभ्युदय करे॥ और अब तुम्हें परिचय कराया निर्मम शब्द से, आज केवल उसके निकटता तक ही सत्संग रहेगा॥ इस प्रशिक्षण की श्रृंखला में यह सत्संग आगे बढ़ेगा॥ भारत में और हिन्दी में सत्संग इसी रूप में चलेगा पर अंग्रेजी में पाश्चात्य राष्ट्रों के लिए इस संस्करण के साथ इस पूरे कार्यक्रम इसकी फीस ईत्यादि भी बनाई जाएगी इसलिए इसे गम्भीरता से वहन करना और धीरे-धीरे नए अभ्युदय नए बोध को प्राप्त होना॥

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