शिवानन्द लहरी श्लोक नंबर 29 ;
हे शिव शंभो कण-कण में व्याप्त समस्त संसार के गुरु तत्व..
प्रतिदिन आपके चरण कमलों में अर्चना है, की हे परम आपका ध्यान करते, आप की शरण लेते हैं आपकी याचना करते हैं, देवताओं द्वारा चिरकाल से आप की पूजा हो रही है, आपसे प्रार्थना है कि इन नेत्रों से करुणायुक्त दृष्टि इस याचक पर डालिए और मेरे मन को आनंद का उपदेश दिया कीजिए हे महादेव।
हे शंभू मेरे मन को प्रेरणा का उपदेश दिया कीजिए। आनंद का उपदेश दिया कीजिए, मन को छू जाया कीजिए महादेव… मन को छू जाया कीजिए… हे महादेव ! याचना करते हुए साधक भोलेनाथ के समक्ष नाना प्रकार से अपने भाव समर्पित करता है। यह याचना एक प्रकार से ईश्वरीय अनुकम्पा को खींच लाने का ही प्रयास है। किसी प्रकार से भाव ऐसा बने कि उनको अवतरित होने के लिए विवश होना पड़े, चूँकि भाव भगवान है। पवित्र वेदना पूरित भाव का निर्माण इष्ट को अवतरण हेतु विवश करता है। इसीलिए भाव इष्ट की विवशता बन जाता है। इसलिए साधक बार-बार महादेव का भाव उस रूप में दोहराते हैं कि वह इष्ट के लिए विवशता बने, और उनको आना ही पड़ेगा आना ही है। ट्रांसक्रिप्शन सुजाता केलकर।