बाएं हाथ के अंगूठे द्वारा नाभि कमल का अनुमान

बाएं हाथ के अंगूठे द्वारा नाभि कमल का अनुमान

नाभिकमल का पीठ में सटीक अनुभव अनुमान प्राप्त करने हेतु मैंने कल संदेश भी दिया था॥ आप दिन में एक कार्य करें, मैं ध्यान करने के लिए नहीं कह रहा, एक छोटी सी क्रिया जिसके द्वारा नाभि की सीध रीढ़ में अनुमान प्राप्त करने में सहायता होगी॥ दिन में जब भी समय हो, हल्का सा आधा मिनट, एक-दो मिनट का आभास प्राप्त करो॥ अधिक कुछ नहीं करना, साँस रोकनी है? बिलकुल नहीं, और कुछ नहीं करना, जितना कहा बस उतना ही॥ आप ध्यान में पाँचों उँगलियाँ एक साथ करके आप नाभि पर लगाते हो, मैंने कहा हल्का सा दबाव देना जिससे दबाव देने से चित्त को उस क्षेत्र की अनुभूति में सहायता प्राप्त होती है॥ शरीर में जहाँ भी थोड़ा दबाव हो पूरा चित्त वहाँ दौड़ता है तो हल्का सा दबाव पाँचों उँगलियों से वहाँ देने से पूरे चित्त का ध्यान उस केन्द्र में जाता है॥ अब आपने वहाँ से उसको सीध में रीढ़ में लाना है॥ पेट की मोटाई तो सबकी अलग-अलग है जितना भी हो उससे कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि भाव की क्रियाएँ हैं सूक्ष्म हैं॥ दूसरे हाथ का अँगूठा पीठ के पीछे ले जाकर, अनुमान से एक काल्पनिक रेखा नाभि से रीढ़ तक आर-पार करती हुई रीढ़ के उस स्थान पर अँगूठा टिका दो॥ मंतव्य आगे और पीछे से दबाव देकर रीढ़ का केन्द्र स्थापित करने से है॥ नाभिकमल कहाँ है रीढ़ में? नाभि तो आगे है पर जो उसका मर्म केन्द्र है जहाँ से ऊर्जा ऊष्मा को उपार्जित करना है वह नाभि में न होकर रीढ़ में है॥ एक प्रकार से suction point आगे है पर मूल पीछे रीढ़ में जाता है॥ जैसे कोई भँवर बना हो whirlpool, तो भँवर का जो नीचे का कोण है bottom part, वह रीढ़ में है, यह मैंने समझाने के लिए उदाहरण दिया है॥ तो हमें रीढ़ के उस बिन्दु तक पहुँचना है, इसलिए बार-बार दोहराता हूँ ताकि चित्त भटके नहीं॥चित्त वहाँ रखिए, नाभि की सीध में रीढ़ में॥ उस आभास को और घनीभूत करने के लिए दिन में यह अभ्यास करो॥ आगे से पाँच उँगलियाँ नाभि में और पीछे अँगूठे से रीढ़ के उस भाग में स्थापित करो॥ अब उस स्थान पर ध्यान रखना है॥ मैं उसमें यह नहीं बताऊँगा कि उसमें हमारी रीढ़ के इतने कशेरुक हैं, इतने ऊपर इतने नीचे, इससे भ्रम होगा, उसके अभ्यास मैंने देखे हैं, बाहर से गिनती ठीक से हो नहीं हो पाती और गड़बड़ हो जाती है॥ इसलिए अनुमान सबसे अच्छा है क्योंकि जैसे ही आगे से पाँच उँगलियाँ नाभि में लगाकर दबाव पड़ा तो वह दबाव सीधा रीढ़ के उस बिन्दु की ओर ही जाएगा और पीछे अँगूठे से रीढ़ के उस बिन्दु में चित्त स्थापित हो जाएगा॥

जहाँ आप बार-बार जाते हो, जिस विचार पर आप बार-बार जाते हो , आपका चित्त वहाँ अपना घर बना लेता है॥ इसीलिए एकाग्रता का इतना महत्त्व है॥ आसुरी रूप देखा जाए demonic face तो चिंता चिता बन जाए और सकारात्मक देखा जाए तो केन्द्रित होने पर, एकाग्र होने पर बहुत कुछ हो जाता है॥ अत: चित्त वहाँ अपना घर बना लेता है जहाँ आप बार-बार जाते हो॥ यदि आप अपना अभ्यास इस प्रकार बार-बार करते हो तो आपको इस प्रकार बार-बार करते हुए देखकर कोई पूछ सकता है कि क्या कोई समस्या है? 'नहीं, समस्या कुछ नहीं है मुझे हल्का सा इस स्थान का अनुभव देना होता है, तो फिर वह देखने वाला नहीं कहेगा॥ अत: इसके द्वारा अपने आभास को घनीभूत करना है॥ जितने अंशों में हमारा ध्यान, आभास, अनुभव, चित्त, उस बिन्दु पर केन्द्रित होगा और उस समय जब हम मन्त्र का संधान करते हैं वह जाएगा कहाँ? वह उस केन्द्र पर जाएगा॥ जहाँ आपने नाभि की सीध रीढ़ में मिलाया, उस केन्द्र को जगाएगा॥ मन्त्र 'ॐ भूर्भुव: स्व:' रीढ़ में उस केन्द्र को जगाएगा, वह क्षेत्र स्पन्दित, तरंगित होता है॥

चित्त के सौन्दर्य से अभी विश्व उतना परिचित नहीं है हम psychology से अभी उतना परिचित नहीं है कुछ विज्ञान की धाराएँ है जो सामान्य लोगों में आने नहीं दी गई, हाँ उन्होंने प्राचीन भारतीय मनीषा को पढ़ते हुए चित्त की क्षमताओं को बहुत कुछ तो नहीं पर कुछ जाना है॥ चित्त की क्षमताएँ बहुत अद्भुत हैं, चित्त की क्षमताएँ वह सब कुछ मूर्त्त रूप में tangible एक सशक्त अनुभूति के रूप में प्राप्त कर सकते हो॥ स्थूल अनुभूति के रूप में भी प्राप्त कर सकते हो, चित्त का यह सौन्दर्य है॥ अत: यह छोटा सा सूत्र इसे छोटा न मानकर इसे दृढ़भूमि करते हुए गहराई से इसका पालन करो, जिससे इसके ध्यान में बहुत सहायता मिलती है॥

इसके साथ मैं एक महत्त्वपूर्ण बात कहूँगा, यह हम पाचन क्षमता metabolism विकसित करने के लिए कर रहे हैं॥ मेरा अपना अनुभव व्यक्तिगत जीवन का, मैं बार-बार पुन: दोहराऊँगा कि बिना संयम ये प्रयास किसी काम के नहीं हैं॥ तो क्या संयम ही सब कुछ है? संयम आधार है॥ जब तक रनवे नहीं हो तो कोई land कहाँ करेगा? फुटबॉल का पूरा मैच खेलना है, तो मैदान चाहिए न? गली में आप मन भर सकते हो, थोड़ा बहुत बहला सकते हो, पर पूरा मैच तो मैदान में ही खेला जाएगा न? कोई भी कार्य उपयुक्त रूप से करने के लिए you need the right fulcrum for that. उसके लिए आधार चाहिए बिना आधार नहीं, संयम आधार है॥ संयम के बिना कुछ भी काम नहीं करेगा, क्योंकि अभी हममें यह सब कुछ अविकसित स्तर पर है॥ अविकसित स्तरों पर हम और असंयम करें फिर आशा करें कि परिणाम आ जाए, नहीं आएँगे॥ इसीलिए जो असंयम करके यह ध्यान कर रहा है उसको परिणाम नहीं मिलने वाले, क्योंकि अभी अविकसित स्तर पर है॥

मैं स्वयं अपने अनुभव से बोल रहा हूँ मैंने जब भी कभी असंयम किया कोई काम नहीं आया॥ जब संयम किया तो फिर काम आया॥ किसी के लिए भी वही नियम है हमारे लिए भी आपके लिए भी॥ संयम आधार है बाबू, संयम सफलता का आधार है तुम इसे नकारो मत॥ वह रामबाण है? हाँ संयम रामबाण ही है॥ तो संयम के द्वारा अपने इस अभ्यास को आगे साथ-साथ पकाओ, केवल अभ्यास से बात नहीं बनेगी साथ में संयम भी आवश्यक है॥ बिना संयम के आप करोगे तो फिर दुकानें बहुत हैं, पता नहीं दुनिया कुण्डलिनियाँ जागरण करती फिर रही है पता नहीं क्या-क्या कर रही है तो हो जाएगा? कैसे हो जाएगा? नहीं ऐसे नहीं होता कभी भी॥ यदि ऐसा होता तो पता नहीं किन-किनकी कुण्डलिनी जागरण हो गई होती, पूरी दुनिया कर चुकी होती॥ बिना तप नहीं मिलने वाला बाबू, कुछ भी नहीं मिलने वाला॥ संयम अर्थात तप, संयम अर्थात तप, संयम अर्थात तप, बिना संयम कुछ मिलता है? नहीं, कभी नहीं मिलता॥ कम से कम मैं जिन ब्रह्म ऋषि की सन्तान हूँ उन्होंने जो पढ़ाया और मैंने जो अनुभव किया, बिना संयम कुछ नहीं मिलता आपको तप करना पड़ेगा॥ तप के आधार के बिना मनुष्य जो कुछ भी पाना चाहे उसके सपने देख सकता है, उसकी कल्पनाओं में रमण कर सकता है, अपने आप को भ्रमित कर सकता है पर यथार्थ में आप कुछ हस्तगत कर पाएँगे असम्भव है, कुछ नहीं होगा॥

यह संयम का आधार लेकर इस अनुमान को जो मैंने आज बताया इसे प्राप्त करके आगे करो॥ और कोई कौतुक नहीं जगाना, कोई कौतुक नहीं जगाना, साधना कौतुक नहीं है, कौतुकी की साधनाएँ कभी फलित नहीं होती, कौतुकी की साधनाएँ कभी फलित नहीं होती, जो कौतुक में भागता है न वह कभी साधना नहीं कर पाता॥ साधना तुम्हारी ऐसी होनी चाहिए कि किसी को क्या पता कि तुम क्या करते हो॥ मुझे आप लोग 4 एक हजार लोग सुबह देखते हो इस पर कैमरे पर, वर्षों हो गए, इतनी आयु हो गई मेरे पड़ोसियों को नहीं पता कि मैं क्या करता हूँ॥ न यहाँ न अन्य कहीं भी जहाँ रहा, मेरे पड़ोस में भी नहीं पता॥ मैं क्या हूँ कया करता हूँ मेरी दिनचर्या क्या है, बहुतों के लिए तो मैं एक रिटायर्ड व्यक्ति हूँ, बस कहीं से रिटायर हुआ अपने कमरे में पड़ा रहता है बस, इससे अधिक नहीं॥ जैसे ही आप कौतुक में चले गए, अपनी साधना को दूसरों की आँखों में देखना आरम्भ कर दिया आपने, गए काम से, गई भैंस पानी में॥ इसलिए बाबू, साधना कौतुक का विषय नहीं है, इन बातों का सतत ध्यान रखते हुए आगे बढ़ते रहो॥

   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख