कुछ दिनों के अभ्यास के उपरान्त यह विश्वास होने लगता है कि आकाशीय मन सुनता है, पर कुछ दिनों के अभ्यास के उपरान्त॥माँगे गए विषय पर प्रतिक्रियाएँ प्रेरणा स्वरूप, विचार स्वरूप, भाव स्वरूप, अनेक स्वरूपों में आती हैं॥ वह मनुष्य जो इस बात का दास है कि केवल आँखों से देखकर अथवा छूकर, सुनकर ही जानकारी प्राप्त होगी उसके लिए यह एक नया अध्याय होता है कि जिस विषय पर भी आकाशीय मन से संवाद किया उसका कोई न कोई साधन जुटा॥ फिर धीरे-धीरे मनुष्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर, (जीवन के सामान्य विषयों पर नहीं, जिसके लिए प्रयास हो सकता है, जिसके लिए स्वयं अपने स्तर पर पुरुषार्थ हो सकता है उन विषयों के लिए नहीं) क्योंकि अध्यात्म खेल तमाशा तो है नहीं॥ उन विषयों के लिए जिन विषयों के प्रति मार्गदर्शन गुह्य गुत्थियाँ सुलझाना बुद्धि के बस का नहीं है; उन विषयों पर मार्गदर्शन और प्रेरणा की आकांक्षा रखनी चाहिए॥
आकाशीय मन, ब्रह्मांडीय मन पूर्ण सम्पूर्ण है, सारे समाधान और सारे प्रश्न उसी में जाके विलय हो जाते हैं॥ इसलिए ब्रह्म मुहूर्त्त की बेला में विचारशून्य होकर के साधक अपने विषय विशेष पर मार्गदर्शन हेतु खाली होता है उपलब्ध होता है तो यह विज्ञान सक्रिय हो उठता है इसका तुम्हें अनुभव कुछ ही दिनों में होने लगेगा॥ आरम्भ में अविश्वास हो सकता है॥ जीवन की कोई विशेष गुत्थी सामने नहीं हो सकती जिस पर मार्गदर्शन माँगा जाए, छुटपुट विषय भी हो सकता है॥ धीरे-धीरे मनुष्य गम्भीर होता जाता है तो अनुभव का पथ प्रशस्त होता है॥ अत: इस ध्यान के द्वारा तुम्हें उस अनुभूति के दर्शन होंगे जो विशुद्ध रूप से अध्यात्म की प्रत्यक्ष देन है - तुम्हारे ही भीतर तुम्हारे ही विषय पर एक गहरा बोध जागृत होता है, जानकारी स्वरूप like an information.
मैं आशा करता हूँ एक साधक का अधिकार है कि वह ब्रह्माण्डीय मन से संवाद करे और उसे जानने की चेष्टा करे॥ सभी कुछ जाना नहीं जा सकता यह भी सत्य है क्योंकि बहुत कुछ है जिसकी योग्यता अभी हमारे पास नहीं है॥ हम भविष्य को पूरी तरह पचा नहीं सकते इसलिए आवश्यक नहीं कि हम चाहें हमें भविष्य का बोध हो जाए॥ हमारी योग्यता, हमारी पात्रता भी तो हो कि हम पचा सकें॥ सत्य कड़वा नहीं सत्य कई बार इतना भारी होता है कि उठाए नहीं उठता॥ इसलिए बाल-हठ की भाँति नहीं कि मुझे तो इन सब पर निदान चाहिए, बाल हठ की भाँति नहीं॥ केवल आत्म उत्कर्ष में आने वाली बाधाओं के समाधान स्वरूप ब्रह्माण्डीय मन आकाशीय मन से संवाद करने की चेष्टा, उपलब्ध होकर के मार्गदर्शन की चेष्टा होनी चाहिए॥ जिससे प्राप्त जानकारी स-अधिकार तुम्हें प्राप्त हो साधिकार और तुम्हारा कल्याण भी हो॥ यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ॥ इस विषय पर अभ्यास अपनी सीमाओं में मैंने 2-4 वर्ष से नहीं किया हुआ, कह सकते हैं 25-30 वर्ष से किया होगा॥ ब्रह्म ऋषि के जाने के उपरान्त किया विशेष रूप से पर किया आत्म उत्कर्ष के लिए ही मात्र और कोई विषय नहीं लिया॥ जीवन में तो लौकिक स्तर पर हजार समस्याएँ प्रतिदिन आती हैं कुछ न कुछ लगा ही रहता है तो यह कोई ब्रह्माण्डीय मन से छेड़छाड़ करके हर समय कोई whatsapp नहीं है कि हर समय छोटी-छोटी बातें जानने की चेष्टा करें॥ न, इससे हमारी पात्रता जाती है और वह क्षमता जो विकसित हो सकती थी उससे हम चूकने लगते हैं॥ अत: इस सावधानी को बरतते हुए आत्म उत्कर्ष हेतु जिन विषयों पर हमारी गुत्थियाँ उलझी हैं, हम मार्गदर्शन चाहते हैं अथवा सम्पर्क चाहते हैं जो जुट नहीं पा रहा वह ब्रह्माण्डीय मन से माँगना जो निश्चित रूप से तुम्हें प्राप्त होगा॥ समय लग सकता है कई बार लम्बा समय लगता है॥ मेरे एक अनुभव में मुझे 3 वर्ष लगे थे, माँगा भी कुछ ऐसा गया था॥ आत्म उत्कर्ष के लिए ही था और कुछ नहीं, पर मुझे उसका परिणाम आने में तीन वर्ष लगे थे॥ 3 वर्ष तक मैं सतत रूप से अपने भीतर उस भाव को उसी प्रकार ब्रह्माण्डीय मन के सामने प्रकट करता रहा॥ हाँ सुबह शाम का थोड़ा अन्तर हो सकता है पर निश्चित रूप से करता रहा जिसका परिणाम प्रत्यक्ष मेरे समक्ष आया॥
इसलिए आत्मिक उत्कर्ष हेतु आप भी ब्रह्माण्डीय मन से संवाद करना और विशेष रूप से यह समय ब्रह्म मुहूर्त्त का समय एक ऐसा अद्भुत समय है जिस समय वे सारी शक्तियाँ, ऋषि तुल्य शक्तियाँ हैं, वे अत्यन्त सक्रिय होती हैं, प्रकृति शान्त होती है, विचारों का मण्डल शान्त होता है, अनगढ़ कल्पनाओं का मण्डल शान्त होता है, कुत्सित भावनाओं का मण्डल शान्त होता है, लगभग सारे मण्डल शान्त होते हैं॥ ऐसे में निर्विचार अवस्था में, शून्य अवस्था में thoughtless अवस्था में माँगा गया मार्गदर्शन और स्वयं उपलब्ध होना, मार्गदर्शन के अवतरण हेतु बहुत बड़े स्तर पर सहायक हैं॥ इससे बड़ा कोई गुरू नहीं हो सकता॥ मनुष्य के जीवन में ब्रह्म ऋषि कब आएँगे यह उसकी अपनी इच्छा पर आधारित नहीं है॥ सिद्धान्त क्या कहता है मालूम है? तुम्हें पचेगा नहीं॥ सिद्धान्त कहता है तुम गुरू नहीं खोज सकते गुरू तुम्हें खोज सकता है, मार्गदर्शक तुम्हें खोज सकता है तुम नहीं खोज सकते॥ मार्गदर्शक तुम्हें अनेक स्वरूपों में खोज कर के तुम्हारी व्यवस्था करता है॥ अत: केवल अपनी पात्रता के धरातल पर इस प्रकार ब्रह्माण्डीय मन से मार्गदर्शन माँगना जिससे जीवन की वे विषम गुत्थियाँ भी सुलझें जो तुम्हारे आत्म उत्कर्ष में बाधा हैं॥ यह जीवन मिला किसलिए है? उत्कर्ष प्राप्ति हेतु॥ आशा है यह भाव तुम तक गहरे रूप से गया होगा॥