श्रीमद्भगवद्गीता के दो श्लोकों की ओर संकेत करते है जिनका अध्याय 3 के अंत में वसुदेव उल्लेख कर गए।
शरीर से सूक्ष्म इंद्रिया हैं, मनुष्य की इंद्रियों से ऊपर सूक्ष्म मन है। जो अधिक सूक्ष्म होगा वही अधिक शक्तिशाली होगा। जो जितना सूक्ष्म होगा उसमें उतने ही अंशों में अधिक शक्ति होगी। इस तथ्य को पदार्थ जगत में भी हम अनुभव करते हैं। पदार्थ जितना छोटा होता जाएगा उसकी शक्ति उतने अंशों में बढ़ती जाएगी। बात नैनो की हो परमाणु की हो, तरंग की हो, ध्वनि की हो अथवा प्रकाश की हो। बात किसी की तथ्य की भी हो, जो जितना सूक्ष्म होगा वह उतना ही ज्यादा शक्तिशाली। आजकल तो वायरस की भी चर्चा बहुत है।
सूक्ष्मता निर्णय करती हैं कि शक्ति कितने अंशों में अधिक और अधिक स्तर पर व्यापक होगी और विस्तार प्राप्त करेगी। उसी प्रकार इस हाड़ मांस के शरीर से कहीं ऊपर सूक्ष्म इंद्रियां शरीर को प्रेरित करती हैं। देख, सुन, चख और इन्हें प्रेरित करने वाले मन जो मूलतः इच्छा पूर्ति का साधन है, स्रोत है वह अधिक सूक्ष्म अधिक बलशाली अधिक प्रभावी है। इसलिए कहते हैं कि मन के जीते जीत है, मन जीते जग जीत।
मन में बहुत बड़ी क्षमता है परंतु मन से कहीं अधिक सूक्ष्म केशव ने बुद्धि को बताया। बुद्धि मन से कहीं अधिक सूक्ष्म है अर्थात बुद्धि की क्षमता बुद्धि की व्यापकता बुद्धि की सामर्थ्य शरीर, इंद्रिय और मन से ऊपर है। हां यह निश्चित है की बुद्धि से कहीं ऊपर आत्मा का क्षेत्र आता है। अर्थात आत्मा बुद्धि से भी कई - कई - कई गुना अत्यंत सूक्ष्म है। पर हम अभी केवल आत्मा तक टिकने वाले नहीं। बुद्धि का उल्लेख गायत्री के में अंतिम चरण में, अंतिम पाद में धियो यो नः प्रचोदयात् आता है। यह इसलिए कहा गया चूँकि “धियो यो नः प्रचोदयात्” में आत्म उत्कर्ष की सारी आशा जाकर बुद्धि पर ही टिकती है। हालाँकि बीच रास्ते में अहंकार भी था, मन भी था, चित्त भी था, इतने सब थे फिर भी इन पर भरोसा नहीं करके बात टिकी बुद्धि पर। ठीक ही तो है, बुद्धि इस माया जगत की और चेतना के उस महा जगत के प्रवेश द्वार की दहलीज पर अवस्थित है।
ज्ञानियों के मतानुसार यह बुद्धि जहां एक तरफ आत्मा के प्रकाश द्वार और माया के बन्धन के बीच बीच स्थित है, इसलिए बुद्धि पर ही सारी आशाएं ठहर गई।
बुद्धि से कहा गया कि अगर इस शक्तिशाली मन को भी संभालना है तो तुम अर्थात बुद्धि ही विचारों को तार तार बेतार कर देना। बुद्धि से ही कहा की विश्लेषण करें निश्चय करें। विश्लेषण करें निश्चय करें। विश्लेषण करें निश्चय करें।
विश्लेषणात्मक बुद्धि जब निश्चय करके जब किसी भी विषय पर आरूढ़ होती है तब सत्य मानो उपलब्धियाँ दूर नहीं रहती। संघर्ष भले ही चलता है पर उसके उपरांत ईश्वर को भी मार्ग देना पड़ता है। यह बुद्धि की इतनी बड़ी क्षमता है। यहां तक है कि वैराग्य की परिभाषा करते हुए आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा, वैराग्य क्या है? वैराग्य है दोष दर्शन, अर्थात बार-बार किसी विषय के दोष अपने आपको याद करवाना। किसी भी विषय के जो आसक्त करता है उसके दोष बार-बार अपने समक्ष लाते चले जाना। यह क्रिया आसान नहीं है। अभ्यास और आसक्ति जल्दी मानने वाले नहीं है -नहीं है - नहीं है। काम का बड़ा क्षेत्र है। वासना है, लिप्सा है, यह आसानी से दूर होने वाली नहीं है। हे साधक तू रो रो कर मत मर। इससे बचाव का रास्ता एक ही है की बुद्धि के द्वारा बार-बार दोष दर्शन कर इस अभ्यस्त मन को पटक दे। इस मन को एक बार विश्वास हो जाना चाहिए मेरी चलेगी तो नहीं। आवश्यक है बुद्धि जो विश्लेषण करें निश्चय करें।