ट्रांसक्रिप्शनअशोक सत्यमेव
प्राचीन काल से एक सुदृढ़ प्रथा है॥ जीवन के महत्वपूर्ण संकल्प किसी ऐसे की साक्षी में होने चाहिए जिसकी पावनता पर कोई प्रश्न नहीं हो, जिसकी सामर्थ्य पर कोई प्रश्न नहीं हो, जिसकी दिव्यता पर प्रश्न नहीं हो॥ किसी ऐसे की साक्षी में लिए गए संकल्प व्यक्ति में उस स्तर की सजगता को जन्म देते हैं कि "मैंने इनके समक्ष इस संकल्प को उठाया है, अब मुझे उसका निर्वहन करना पड़ेगा॥ क्योंकि मैंने उनकी साक्षी में संकल्प लिया है, वे इसके साक्षी हैं"॥ इसीलिए अधिकांश संकल्प या तो 'गुरु तत्त्व' की साक्षी में, किसी महान आत्मा की साक्षी में अथवा सार्वभौमिक कहेें तो प्राचीन काल से अग्नि की साक्षी में संकल्प लिए जाते हैं॥ क्योंकि अग्नि पंचभूतों में पहला प्रत्यक्ष देव है॥ आकाश और वायु यूँ खुली आंखों नहीं दिखते॥ अग्नि सबसे पहला है, the foremost, उसके बाद जल दिखता है, पृथ्वी दिखती है॥ इस अग्नि को पहला देव, Visible प्रत्यक्ष देव मानकर, उसकी साक्षी में संकल्प लिए जाते हैं॥ इसीलिए यज्ञ के समय जो प्रावधान थे जो बाद में बदल गए॥ जब पण्डित जी अक्षत देकर के, कलावा बाँधकर के मुट्ठी उलटी कराते हैं, वह वस्तुत: अक्षत और पुष्प अर्पित करते हुए, साक्षी देव को अर्पित करने योग्य हमारे पास क्या था? संकल्प॥ प्रथाएँ बदल गई॥मेरे ब्रह्म ऋषि ने एक बड़ी सुन्दर व्यवस्था दी और वह बहुत प्रभावी व्यवस्था है॥ उनका कहना था कि मनुष्य के जीवन में यदि कोई सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है तो वह दो ही हैं॥ एक शेर हैं बहत सुन्दर जो इस पर बहुत सटीक बैठता है -'दो ही घड़ियाँ होती हैं अजीब, एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद'आने से पहले - जन्मजाने के बाद - मृत्युजन्म और मृत्यु का दिन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सारी क्रिया कलाप उसी में सिमटते हैं॥ ब्रह्म ऋषियों के अतिरक्त सामान्य लोगों को मृत्यु का तो बोध नहीं, पर जन्म दिन का तो बोध है॥ जन्मदिन मनाने की परिपाटी केवल पाश्चात्य राष्ट्रों में ही हो ऐसा नहीं है॥ प्राचीन भारतीय मनीषा में इसका प्रावधान पूर्व से है, अब से नहीं हजारों-हजारों वर्षों पूर्व से है॥ यह संस्कृति 5000 वर्ष पहले नहीं हुई थी॥ विदेश में भारतीय मूल के एक प्रोफेसर ने कम्प्यूटर गणना करके महाभारत काल को 5000 वर्ष का जान लिया॥ वह भूल गया कि ग्रह नक्षत्रों के योग तो कई बार दोहराए जा चुके हैं॥जन्म दिन मनाने की यह प्रथा हजारों वर्षों से है॥ पर क्यों? विचार किया जाए तो दिन व्यतीत हुए हैं न? जो चेक हम बैंक से इशू करा कर आए थे वह पैसा खर्च हो गया॥ बचत समाप्त हुई तो दुख होना चाहिए या प्रसन्नता? बचत तो समाप्त हो गई चेक मिला था ₹100 का उसमें से मान लीजिए किसी के ₹80 खर्च हो गए तो Its not a moment of celebration. 80 रुपए खर्च हो गए ₹20 बचे बस॥पर हम जन्म दिन मनाते हैं॥ क्या मनाना नहीं चाहिए? मनाना चाहिए॥ पर जन्मदिन मनाने से कहीं ऊपर मनन का दिवस है इसे 'जन्ममनन दिवस' कहा जाए तो अधिक उत्तम होगा॥एक प्रश्न अपने आप से - 'Why was I born? What have I accomplished so far?' कयों जन्म हुआ? अभी तक क्या कर पाए?यह मनन होना चाहिए पर यह नहीं होता है॥ इसका स्थान ले लेती है तिकोनी टोपी, conical cap बस केवल वही रह जाता है॥ क्या वह नहीं होना चाहिए? होना चाहिए॥क्या आपके परिवार में लोग मनाते हैं? मनाते हैं?क्या वे Happy Birthday नहीं बोलते? बोलते हैं॥क्या वे केक नहीं काटते? काटते हैं॥क्या वे मोमबत्तियाँ नहीं जलाते? जलाते हैं॥क्या वे मोमबत्तियाँ नहीं बुझाते? बुझाते हैं एक छोड़कर॥तो क्या आपके परिवार में यह सब आपने बताया नहीं? बताया है क्यों नहीं बताया?इसका तात्पर्य नहीं कि मैं जो कहने जा रहा हूँ उसको लादना है॥ प्राचीन भारतीय मनीषा के परिपालन में, अनुपालन में कमी क्यों आई? क्योंकि उसे रोचक स्वरूप और मनन के साथ नहीं परोसा बल्कि लादा जाने लगा॥ "ऐसे नहीं करते, वैसे नहीं करते, ऐसे नहीं होता"; तो फिर डरने वाले ने 1 दिन कहा भाड़ में गया कौन इसको करता रहे, ऐसे नहीं करते, वैसे नहीं करते हैं॥ कौन डर-डर के जिएगा?जन्म दिवस एक मनन दिवस है जिसमें दीपक या मोमबत्ती जो भी, जलाना चाहिए या बुझाना चाहिए यह भी आप पर छोड़ा॥ सत्य यही है कि प्रकाश आ गया तो उसे यूँ ही क्यों बुझाया जाए?साहब इतनी समझ विकसित नहीं हुई कि मनन करें जीवन क्यों मिला, अभी तक क्या पाया? इतनी समझ हमारे पास नहीं है॥ यह दिन मनन का है और व्यक्ति यदि मनन भी नहीं कर सके कि साहब इतनी समझ विकसित नहीं हुई कि मनन करें॥ अभी हम इतने ज्यादा आध्यात्मिक नहीं हुए कि हम यह सब करें॥ बिलकुल ठीक है, एक काम कर सकते हैं॥ इसके लिए मेरे ब्रह्म ऋषि का उपाय बहुत प्रभावशाली है॥तो एक काम करो - आज जन्म दिवस में, जन्म दिवस की साक्षी में एक बुराई आज छोड़ दो॥ Something which you consider कि मेरे अंदर एक बुराई है और उसके स्थान पर एक अच्छाई आवश्यक है॥ वे कहते थे खरपतवार हटा देने से मैदान साफ हो गया, परन्तु आपने कोई अन्य फसल नहीं बोई तो आपने पुन: खरपतवार को अवसर दे दिया, वह फिर से आ जाएगी॥ यदि आप चाहते हो कि जंगली घास नहीं आए तो पहले साफ करो और फिर उसके स्थान पर कुछ सार्थक रोप दो, लगा दो, बीज बो दो॥ जिससे खरपतवार the weed नहीं आए, unwanted vegitation नहीं आए॥ उसी प्रकार जन्मदिवस के अवसर पर कोई एक बुराई, आवश्यक नहीं सबके सामने, बस मन ही मन त्याग दो, और एक अच्छा संकल्प ले लो॥ क्या वह निभ जाएगा? यह तो कहना कठिन है॥ तो फिर फायदा? फायदा है, फायदा इसलिए है क्योंकि आप कोई भी संकल्प लेते हो तो आपको सामान्यत: उस संकल्प की तिथियाँ क्या याद रहती है कि मैंने कब संकल्प लिया था? थोड़ा बहुत याद रहता होगा तो केवल इतना कि हाँ मैंने सोचा तो था॥पर जन्मदिन एक बड़ा महत्वपूर्ण पर्व है, है न? प्राय: सबको अपना जन्म दिन याद रहता है॥ जन्मदिवस पर लिया गया संकल्प छोड़ी गई बुराई यह जल्दी से विस्मृत होने वाली नहीं है॥ अनुपालन नहीं भी हो पाए तो भी विस्मृति में जाने वाला नहीं है॥ You will not become oblivion to that. आप भूलोगे नहीं उसको॥ आप पालन नहीं भी कर पाए तो एक टीस जन्म लेगी॥ तो फिर क्या आवश्यकता है अपने अन्दर एक टीस जन्म देने की? लेते ही नहीं संकल्प॥नहीं, आवश्यकता है॥अगर आप मनन नहीं कर सकते कि जीवन क्यों मिला? या अगर आप मनन नहीं कर सकते या करा सकते कि अभी तक जीवन में क्या पाया? तो कम से कम इतना होना चाहिए 'आत्मानो मोक्षार्थ' के निमित्त कि एक अपनी बुराई के त्याग का संकल्प लिया जाए॥ जिसका जन्म दिवस उसको पहले से स्मरण करा दिया जाए क्या छोड़ना है, और क्या संकल्प लेना है, ध्यान रख लेना॥ मन ही मन, मन ही मन, गायत्री मंत्र बोल कर मन ही मन कर लेना किसी को मत कहना॥ तो क्या आप सोचते हैं कि जल्दी भूलेगा व्यक्ति? मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि वह निभेगा॥ मैं मान लेता हूँ कि वह संकल्प 2 दिन में ही टूट जाएगा॥ पर मैं इस बात की स्थापना हृदय की गहराई से देता हूूँ कि अगर 365 दिन बाद अनुमान से, पुन: जन्मदिन आना है और 2 दिन में संकल्प टूट गया तो बाकी के 363 दिन वह संकल्प रह-रहकर स्मरण आएगा कि मैंने पिछले जन्मदिन को यह बुराई छोड़ी थी, अच्छी खासी छोड़ी थी, निभा ही नहीं मुझसे॥ तो क्या होगा? तुम्हें नहीं पता कि क्या होगा॥हर असफलता नींव का पत्थर होती है बेटा॥ बाबू हर असफलता नींव का पत्थर है, तुम्हें नहीं पता पर तुम्हारे अंतर्मन में जिसे अर्द्धचेतन कहते हो Subconscious Mind, असफलता का पड़ा वह पत्थर, वे सब पड़ते हुए पत्थर जो बार-बार याद आएँगे उस जन्मदिन पर, हो सकता है अगले जन्मदिवस तक असफल हुआ संकल्प केवल 10 बार याद आए॥ 10 बड़े-बड़े नींव के पत्थर डल चुके हैं॥ तुम्हें संकल्पित कराने में कुछ ही वर्षों में वह आधार विनिर्मित हो चुका होगा जो इस पूरे जन्म नहीं होना था॥ ब्रह्म ऋषियों ने मनुष्य की चेतना, मनुष्य की सजगता, उसके मन बुद्धि चित्त अहंकार के संपूर्ण संविधान को आद्योपांत देखा है॥ कि जन्मदिवस के अवसर पर एक बुराई छोड़ना एक अच्छाई अपनाना एक संकल्प लेना, उन्हें भी मालूम है "व्यक्ति में अभी संकल्प उतना दृढ़ नहीं है कि उसका निर्वहन कर पाए, यह चूक जाएगा"॥ पर उन्हें यह भी पता है कि हर असफलता की स्मृति से नींव का ऐसा पत्थर पड़ेगा कि आने वाले समय में कुछ वर्षों में इस में संकल्प स्वत: जागृत होगा॥ क्योंकि असफलता के वे सारे पत्थर जो स्मृति में बार-बार आते हैं 'यार वह भी संकल्प लिया था मैंने, यार वह भी संकल्प लया था, मैंने वह भी लिया था, मुझसे नहीं होता'॥मेरे एक साधक है विदेश में वह कहता है मुझसे शराब नहीं छूटती है दुखी हूँ बहुत दुखी हूँ अपने आप से॥ तुम क्या सोचते हो कि क्या उसमें परिवर्तन नहीं हो रहा है? उसमें अपने प्रति अप्रसन्नता और खिन्नता ने जन्म ले लिया है॥ उसने बहुत संकल्प लेकर के तोड़ दिए, संकल्प से बोतल और बोतल से संकल्प टूटते गए॥ तो क्या हुआ? वह कहीं तो टूटा कांच बिखरा॥ कोई तो आधार बन रहा है 1 दिन वह निश्चित रूप से उठेगा॥ इसी बड़े की साक्षी में अग्नि की साक्षी में जन्म दिवस जैसे महत्वपूर्ण पर्व के दिन लिए गए दो प्रकार के संकल्प, छोड़ी गई एक बुराई, अपनाई गई एक अच्छाई, ये मनुष्य के जीवन में वह कार्य कर सकते हैं जो अन्यथा वह हजार बार भी संकल्प ले और भूलता जाए तो नहीं होगा॥ पर जन्म दिवस के दिन लिए गए ये दो संकल्प, To abandon something bad and to absorb something good, leave the ignoble and absorb the noble, ये बहुत बड़ा परिवर्तन लेकर आएँगे॥ इसे अपने बच्चों में आरम्भ करा दो॥इसकी चिन्ता नहीं करना न ही उनको टोकना 'देख तू ने संकल्प लिया था जन्म दिवस के दिन', Don't do that, यह policing मत करना उनके पीछे जाकर के॥ Allow them to develop. उन्हें अपने भीतर का बोध जागृत करने दो॥ बाहर से किसी से कोई बदला जा सका आज तक? नहीं बदला जा सका? मैं प्राय: कहता हूँ कि middle east की तरफ जाने वाले लोग 5-5 वर्ष वहाँ रहते हैं बिना शराब पिए रहते हैं, भय के कारण॥ वापसी में हवाई जहाज में बैठते हैं तो, अब का पता नहीं पर पहले कई बार सुनते थे कि सराबोर होकर उतरते थे; क्योंकि 5 साल तो पी नहीं॥ भय नहीं बदलता किसी को और न कोई और, किसी के कहने से बदलेगा॥ जब भी बदलेगा अपने भीतर की हूक से बदलेगा॥ उसमें भीतर की हूक विकसित होने दो॥ यह कार्य आरम्भ कराओ॥ यह प्राचीन भारतीय मनीषा का एक ऐसा माणिक है जो नव संतति में देवत्व का उदय कराएगा दिव्यता का उदय कराएगा॥ ब्रह्म ऋषियों के वाक्य यूँ ही नहीं छोड़ देने चाहिए॥