एक ही खेल कई प्रकार से सम्भव है, ध्यान से प्राण के संघान से और लय योग के द्वारा, कई प्रकार से सम्भव है॥ सरल सुभीता मार्ग अपनाते हुए ही आगे बढ़ना उपयुक्त रहता है॥ जिन्हें कठोर मार्ग अपनाने होते हैं उनके जीवन की तैयारी पूर्वजन्म से ही उसी स्वरूप में आती है॥ गन्तव्य एक ही है, अलग-अलग अभिरुचि के लोग अपने-अपने स्वरूप की पूर्वजन्मों में तैयारी करके वर्तमान जीवन में पहुँचते हैं और उसी के अनुसार उन्हें आगे चलना चाहिए॥ अपनी अवस्था, अपने परिवेश के विपरीत जाकर किसी अन्य पद्धति की चेष्टा मनुष्य को सफल नहीं होने देती॥
ईश्वर की लीला सामान्य जीवन जीने वालों की बहुतायत majority से है, जिन्हें सामान्य जीवन जीना है॥ कठोर हठयोग के द्वारा क्रियाएँ करने वाले नगण्य होंगे, decimated. अत: सामान्य जीवन में भी धीरे-धीरे तप इतना कठोर हो जाता है कि जिसकी सीमा नहीं है, सामान्य जीवन में भी॥ अपितु मुझसे पूछो तो मैं कहूँगा सामान्य जीवन का तप, मैं किसलिए कह सकता हूँ? क्योंकि मैंने कभी हठयोग की चेष्टाएँ की हुई हैं॥ किस कार्य के लिए? मणिपुर क्षेत्र की? नहीं इसके लिए नहीं, किसी अन्य कार्य के लिए की हुई हैं॥ कितना हठ? बहुत हठ किया हुआ है॥ पर मेरा यह मानना है कि उस हठ से, जल के बिना रहना, केवल जल पर रहना, एक ही पदार्थ के लम्बे-लम्बे कल्प कर देना, यह सब मैंने किया हुआ है॥
मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि यह तप, उस तप के सामने कम पड़ता है जो विचारों के स्तर पर हमारे भीतर होता है॥ जो वैचारिक स्तर का संयम है उससे कठोर तप जल का त्याग अथवा केवल जल पर कितने सप्ताह रह लो, वह सामने नहीं टिकता॥ आवश्यक नहीं कि जिसने जल त्याग कर दिया कुछ दिनों अथवा सप्ताह के लिए, वह जल पर रहा तो क्या उसका मन पर अधिकार हो जाएगा? न, बिलकुल आवश्यक नहीं है, मैं अनुभव से बोल रहा हूँ, अनुभव से बोल रहा हूँ कि यह आवश्यक नहीं है॥ आपने शरीर के साथ हठ कर लिया आप किसी एक स्वरूप में चले गए, हठ कर लिया, क्या आवश्यक है कि आपका मन पर भी अधिकार प्राप्त हो जाए? नहीं होगा॥ फिर जो मन के धरातल पर किए जाने वाले तप हैं वे कहीं कठोर हैं॥
ये बातें मैं क्यों कर रहा हूँ? ये बातें मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि पुस्तकों से पढ़कर के, किताबों से पढ़कर के, सुनकर के, लोगों में कौतुक जागता है - कुण्डलिनी॥ और उस कौतुक में वे बेचारे पढ़ते जाते हैं, छुटपुट प्रयोग करते हैं, पहुँचते कहीं भी नहीं हैं॥ मैं तो स्पष्ट कहता हूँ मेरी नहीं जगी न मैं जगाता॥ केवल ये ध्यान जो हमने किए इतने दिनों तक, ये हमने पाचन क्षमता को दृष्टि में रखते हुए, metabolism को दृष्टि में रखते हुए किए हैं॥ हाँ, यही कक्षाएँ उत्तरोत्तर प्रगति करके उस जागरण की ओर भी जाती हैं, पर उसमें और भी बहुत कुछ साथ में जोड़ना पड़ता है॥ केवल किताब में से बीजमन्त्र पढ़ कर के 'औंङ औङ' करके बैठ जाएँ और हम कहें कि हम कर लेंगे; गड़बड़ियाँ हो सकती हैं॥ पेट पिचका करके बन्ध लगाकर लम्बे समय बैठ जाएँ, नहीं॥
यदि मन के धरातल पर संयम का अधिकार नहीं हुआ है, और यह सब कुछ करना हम आरम्भ कर दें तो क्या होगा? वह सारी उत्पत्ति जितनी भी हुई थी वह सारी की सारी कहीं न कहीं , कहीं और निकलनी शुरू हो जाएगी॥
मैं कभी रहा नहीं पर हर व्यक्ति का एक शौक होता है, शौक अथवा अभिरुचि मान लो॥ मेरी अभिरुचि है मैं कभी रहा नहीं, न रहने वाला हूँ, पर एक अभिरुचि है जो मैं बता रहा हूँ; अपने थोड़े से पत्ते खोल रहा हूँ॥ शून्य से कम तापमान में जीव किस प्रकार रह सकता है और मैं उसके अनुरूप वीडियो भी देखता हूँ॥ लोग शून्य से कम तापमान में केवल एक टैन्ट लगाकर -10 अथवा -15-20 के तापमान में कैसे रहते हैं॥ वे लोग अपनी वैन ईत्यादि गाड़ियों में कैसे रहते हैं, क्या-क्या कठिनाइयाँ उनको आती हैं॥ सम्भव है उनको किसी अन्य जीवन की तैयारी होगी, ऐसा मन में आता है॥ तो वह अनुभव करता हूँ कि क्या कठिनाइयाँ हैं और उनके जीवन को देखता हूँ तो उसको अनुभव करता हूँ॥ इस विषय पर मैंने बहुत गम्भीरता से अध्ययन किया है॥ मैं देखता हूँ कि वे एक चीज को सँभालने जाते हैं तो दूसरी चीज बिखर जाती है॥ यदि वे condensation को सँभालते हैं तो battery बिखर जाती है, कुछ न कुछ बिगड़ता चला जाता है॥
योगियों के साथ भी ऐसा होता है क्या? नहीं॥ योगी बिना वस्त्र भी -20, -30 डिग्री कछ नहीं है उसके लिए॥ क्यों नहीं है? उनके पास कोई उपकरण नहीं, कोई ऑक्सीजन नहीं, कोई डाइट नहीं, बैटरी नहीं, गैस नहीं, लकड़ी नहीं, उसे यह सब नहीं चाहिए॥ वे धूना रमाते भी हैं तो अपने भीतर की प्रचण्ड अग्नि का एक प्रतीक ले लेते हैं अन्यथा उन्हें आवश्यकता नहीं है उसकी भी, रमाते हैं॥
अत: मनुष्य जब तक वैचारिक स्तर पर अपने आपको सन्तुलित और संयमित नहीं करेगा, वह छुटपुट इधर-उधर किताबों से तकनीक पढ़कर, सुनकर के आरम्भ भी करेगा और यदि कुछ छुटपुट अर्जन भी होने लगा तो वह क्या करेगा? वह कहीं न कहीं से रिसना और बिखरना आरम्भ करेगा और तंग करेगा॥ ये साधनाएँ क्यों गुह्य रखी जाती थी? एक ही कारण था उसके लिए there is enough preparation which is required. किसकी preparation? मन की preparation, क्योंकि जो कुछ भी घटना है वह सूक्ष्म में घटित होना है॥ स्थूल शरीर में MRI, Ultrasound लेने से वहाँ कोई मणिपुर क्षेत्र नहीं है॥ उस मणिपुर क्षेत्र की हम कल्पना करके रीढ़ की सीध में उस क्षेत्र में जाते हैं, क्षेत्र बोला मैंने चक्र नहीं बोलता हूँ, क्षेत्र कहा; और जाकर वहाँ हम कुछ समय बिताते हैं॥ हम तो केवल safe zone जिससे उतनी ऊर्जा के उपार्जन की चेष्टा की जाए जो पाचन क्षमता metabolism के लिए आवश्यक है उससे अधिक हम नहीं जाते॥ पेट भी उसी रूप में धीमे से पिचकाते हैं और छोड़ देते हैं॥ हम कोई प्रचण्ड अग्निसार नहीं कर रहे हम और कोई क्रियाएँ ईत्यादि नहीं कर रहे॥ पर जो लोग ये सब कुछ करते हैं पर अभी मन के धरातल पर संयम सन्तुलन नहीं आया वे क्या करते हैं? क्या वे अपने आपको आगे ले जाते हैं? नहीं, पछाड़ते हैं॥ प्रचण्ड वेग से मन का विकार अपने मार्ग ढूँढता है और बड़े स्तर से योग भ्रष्ट होता है अर्थात 'छलाँग लगाएँगे चलो और ऊँचे से लगाएँ'॥ इसीलिए पिपलिका मार्ग जिसे कहा जाता है एक संयमित मार्ग, मैंने पूर्व में भी आश्वासन दिया कि वह सभी कुछ सम्भव है॥ मेरी कुण्डलिनी जागृत नहीं हुई, मैं यह घोषणा दस बार कर चुका, पर जिनकी हुई उनके शब्दों में बोल रहा हूँ कि पिपलिका मार्ग के द्वारा वह सब कुछ सम्भव है, गायत्री के द्वारा वह सब सम्भव है जो इस पृथ्वी पर किसी भी अन्य साधना से कल्पना की जा सकती है, उलटा भी सीधा भी॥ गायत्री ही ब्रह्मास्त्र भी है विध्वन्स करने वाला, उसके अलग स्वरूप होंगे, मैं नहीं जानता॥ थोड़ा बहुत पढ़ा भी होगा तो उतना नहीं जिससे मुझे कुछ विशेष ज्ञान हो॥
अत: इस सहज मार्ग से हमें अवसर मिलता है कि हम अपने मन की तैयारी भी करते चलें और अपने शरीर के अन्तर्गत होने वाली उन सूक्ष्म गतिविधियों को भी सँभालते चलें॥ अनततोगत्वा उस पूर्ण जागृत अवस्था को भी हम अनुभव में ला सकें॥ मैंने आज इसके कौतुक इसलिए समाप्त किए क्योंकि आज हम इस साधना को अभी के लिए विराम देने वाले हैं॥ लगभग 12-14 दिन की आपकी यह साधना रही है अत: अब इसको विराम दिया जाएगा॥ इसके लिए इतना पर्याप्त है, इतना ज्ञान पर्याप्त है, साधक को इसका परिचय प्राप्त है, इस क्षेत्र का परिचय प्राप्त है॥ जब उसका मन करे, वह इस परिचय प्राप्त ज्ञान और प्रकाशित लेख के आधार पर इतना अपने लिए कर सकता है, इतना जुटा दिया गया॥