नाभि कमल - उलटे त्रिकोण का महत्व

नाभि कमल  - उलटे त्रिकोण का महत्व

नाभिकमल - कुछ प्रतीकों को विकसित किया गया जिसे आप यन्त्र के रूप में जानते हैं॥ ये विषय बहुत रोचक और बहुत वैज्ञानिक हैं॥ जितने भी ये रेखाएँ खींच कर यन्त्र बनाए गए इनके पीछे मर्म हैं, उद्देश्य हैं॥ जैसे त्रिकोण triangles बहुत देखा होगा आपने अनेकों यन्त्रों में त्रिकोण, वर्ग, वृत्त आदि॥

त्रिकोण का महत्त्व सबसे पहला क्या है?
सबसे पहला महत्त्व यह है कि सृष्टि की रचना manifestation का एक प्रतीक है, रचना manifestation का प्रतीक है॥ ब्रह्म अव्यक्त है, अरूप है, न उसका कोई रूप है न उसे किसी अन्य रूप में जाना जा सकता है as it is. इसीलिए उसे अव्यक्त, अरूप कहते हैं, जिसका कोई रूप ही नहीं है जिसे express भी नहीं कर सकते॥ वह तो शून्य है, महाकाल है; पर सृष्टि तो पदार्थ से रची गई, महाभूतों से रची गई॥ आप खुले आकाश में कैसे सीमाएँ निर्धारित करोगे? बहुत कठिन है॥ जानने वालों ने तारों के अनुरूप आकाश को खंगाला अवश्य है पर आकाश को किसी एक परिधि में बाँधना बहुत कठिन है॥ यह ठीक है कि राष्ट्रों ने अपनी सीमाओं के अनुरूप अपने Airspace को निर्धारित किया, किन्तु व्यावहारिक रूप से आकाश को बाँधना कठिन है इसलिए आकाश खाली है, पोला है, उसमें कुछ दिखाई नहीं देता॥ आप सब कुछ उसमें समाहित कर सकते हो और वह सबमें समाहित हो सकता है॥ पर अगर कोई चीज रचनी है, रचना करनी है create करनी है, manifestation में लानी है, रूप में लानी है, आकार में लानी है तो उसे कहीं बाँधना पड़ेगा॥ खुले आकाश को बाँधने के लिए यदि हम रेखाएँ खींचें तो सबसे पहले जो रेखाएँ खुले आकाश को बाँध सकती हैं वह Triangle त्रिभुज है तीन रेखाओं में आप खुले अव्यक्त अरूप को बाँध सकते हो, इसीलिए इसे शक्ति manifestation ईत्यादि के रूप में जाना गया॥

ज्ञानियों ने सबसे पहले यही मर्म इस प्रतीक को दिया कि यदि खुले आकाश अव्यक्त को बाँधना है तो न्यूनतम किन रेखाओं में बाँधे़? 3 में, तीन से कम में, दो रेखाएँ साथ-साथ चल सकती हैं आप खुले आकाश को बाँध नहीं सकते॥ Open space cannot be enclosed, triangle ही चाहिए, triangle वह न्यूनतम रेखाएँ हैं॥ इसके मर्म केवल इतने ही नहीं हैं, उन्होंने मर्म इसे और भी दिए हैं॥ पहला यह कि रचना का प्रतीक है something has manifested. फिर उन्होंने कहा केवल रचना का प्रतीक ही नहीं, इसमें दो बातें और भी जोड़ दो॥ जो उलटा है जिसका शीर्ष नीचे है उसे नारी के रूप में मानो, देवी के रूप में मानो, और जिसका शीर्ष ऊपर है उसे शिव के रूप में मानो॥ अर्थात शक्ति रचना करती है creativity की और जो ऊपर की ओर शीर्ष है उसे शिव मानो क्योंकि वह मुक्त कराता है, स्रोत है पर मुक्त कराता है॥ इस प्रकार अनेक मर्म उन्होंने देने की चेष्टा की॥ जिसे हम लोग यदि वेदान्त की दृष्टि से भी जानें कि मनुष्य के जीवन के सन्तुलन को कैसे मनुष्य को चाहिए नि:श्रेयस और प्रेयस; यहाँ के लिए भी साधन चाहिए और वहाँ के लिए भी॥ मुक्ति के लिए भी हमें अपने आप को जुटाना होगा, दोनों स्थानों पर हमें अपने आप को लाना होगा॥ इस स्थान पर भी जहाँ हम जी रहे हैं we need resources, money, people चाहिए न? और फिर आगे जाने के लिए ऊर्ध्वगामी होने के लिए नित्य-अनित्य का भेद भी करना होगा॥ एक प्रकार से जो सृष्टि है वह अनित्य है शक्ति से रचित है उसे उल्टा triangle मान लो॥ जहाँ से निकली है और जहाँ जाना है, जो नित्य है उसका शीर्ष ऊपर की ओर मान लो॥ उन्होंने इसे देवी स्वरूप देने के लिए इसे शिव-शक्ति के रूप में कहा ऊपर का triangle शिव का, नीचे की ओर शीर्ष वाला शक्ति का॥ वह माँ शक्ति, और वह पिता शक्ति, इस प्रकार उन्होने समझाने की दृष्टि से, नर मादा triangles के रूप में अभिव्यक्त कर दिया॥ यह सब जो कुछ किया गया, यह सब भाव द्वारा रचित, समझ को आकार दिए गए ताकि हम उस समझ से ईश्वर के अव्यक्त चक्र में से अभिव्यक्ति को समझ सकें॥ Something which is beyond expression how do we comprehend? कैसे समझें? तो उस समझ को सुविधा देने के लिए उन्होंने सबसे कम रेखाओं में जो बाँधा जा सकता है उसे triangle के रूप में प्रयोग किया Female Power & Male Power.

Female Power कहने का तात्पर्य यहाँ पर केवल male, female जैसे हम हैं उससे नहीं; यहाँ सृष्टि का उल्लेख है न कि पुरुष स्त्री का, यह ध्यान रहे॥ जब male female कहा जाए तो यहाँ किसका उल्लेख है? यहाँ सृष्टि के उत्पादक, कौन? जो नित्य हैं, कौन? जो नित्य हैं, जहाँ से शक्ति की भी उत्पत्ति हुई है, जहाँ शक्ति का भी विलय हो जाता है; उस अव्यक्त को, ब्रह्म को॥ ब्रह्म तो एक है न, वह दो नहीं है॥ वह तो, जब उसको अपने आपको व्यक्त करना होता है तो वह दो के रूप में बँटता है, वह अपने में से ही शक्ति को उत्पन्न करता है जिससे रचना सम्भव होती है॥ तो अपने में से जो अव्यक्त है उसका triangle inverted है, और शिव जो नित्य है उसका शीर्ष ऊपर की ओर है॥ अब हमने उन्हें स्वरूप भी दे दिए माँ पार्वती अलग-अलग देवियाँ बना दी, भोलेनाथ बना दिए, यह इस रूप में हमने किया, अपनी सुविधाओं के लिए किया॥ पर भाव रूप को कुछ स्थूल समझ देने के लिए बुद्धि को कुछ दिखाकर के समझाने के लिए यह रचना हुई॥

अब मणिपुर क्षेत्र जो है, जो नाभिकमल है यहाँ शक्ति का पहला स्वरूप पहली बार आता है॥ नीचे शक्ति के स्वरूप नहीं हैं, triangle नहीं है, वह केवल मणिपुर से आरम्भ होता है और मणिपुर से पहला triangle आरम्भ होता है अर्थात नीचे की ओर शीर्ष॥ क्या हमारे यहाँ मणिपुर क्षेत्र में triangle बने हुए होंगे? नहीं त्रिकोण बने हुए तो नहीं होंगे सब कुछ अव्यक्त है पर हाँ जब साधक को ध्यान कराने की सुविधा देने के लिए कहा जाता है तो उसे कहा जाता है - "शक्ति का ध्यान करो, एक उल्टा त्रिकोण इसे शक्ति का मानकर ध्यान करो"॥ बाकी वहाँ क्या त्रिकोण होंगे? मेरी छोटी समझ से मैं क्या कहूँ? मैं उस पर नहीं जाना चाहूँगा पर मोटे रूप से मान लो अव्यक्त सृष्टि को अभिव्यक्ति देने के लिए बुद्धि को समझाने के लिए बहुत कुछ जुटाया गया है॥ और फिर होता क्या है? होता यह है कि भगवान कौन है? भावना है॥ जब आप उसे दिशा देते हो तो वह वैसा होना आरम्भ हो जाता है॥ सभी ज्ञानियों के मत एक से रहे हों यह सम्भव नहीं क्योंकि सबके अनुभव अपने-अपने हैं॥ पर मोटे रूप से सभी इस बात को मानते हैं कि यह अग्नि का क्षेत्र है, अग्नि तत्त्व का क्षेत्र है नाभिकमल॥

नाभिकमल - यहाँ से उठने वाली अग्नि उन सभी, उन सभी दोषों को भस्म करती है जो बार-बार नीचे की ओर धकेलते हैं॥ यहाँ एक जबरदस्त energy generation है॥ जिसके द्वारा पहली बार मनुष्य के ऊर्ध्वगामी होने की सम्भावनाएँ जागृत होती हैं, ऊर्ध्वगामी होने की सम्भावनाएँ जागृत होती हैं वह पहली बार यहीं से सम्भव है॥ नीचे? नीचे झगड़े बहुत लम्बे चलते हैं॥ यहाँ से सम्भव है॥ यहीं से जैसे-जैसे परिष्कार होता है, दस प्रकार का परिष्कार होता है इसीलिए यहाँ के कमल को 10 पंखुड़ियाँ दी हैं॥ दस परिष्कार होते ही 10 गुण जन्म लेते हैं, दस गुण जन्म लेते ही सबसे बड़ा गुण जो सबके समूह से निकलता है वह क्या है? 'संकल्प शक्ति'; जिसका उल्लेख कल किया था॥ अर्थात पीछे नहीं जाना अब ऊपर ही जाना है॥ अब नियम टूटेंगे तो भी मैं अपने आप को आड़े हाथों लूँगा॥ जब यह संकल्प जागृत हो तो यह समझ लेना चाहिए कि मणिपुर के क्षेत्र में हलचल मच गई है॥ सम्पूर्ण जागरण में और हलचल में अन्तर है॥ सम्पूर्ण जागरण और भी बहुत कुछ प्रचण्ड करता है पर हलचल उस प्रकार है जैसे सूर्य के उगने से पहले सूर्य का कोई पता नहीं परन्तु अन्धकार लगभग लगभग जाने को प्रतीत होता है भोर हो गई, सूर्य नहीं आया भोर हो गई॥ अब प्रकाश हल्का-हल्का आया है॥ उसी प्रकार जागृत भले ही मणिपुर में कुछ न हो, भोर हो गई, प्रकाश आया है॥

फिर इसी भाव से यहाँ से धीरे-धीरे साधक एक संकल्प resolve लेकर उठना आरम्भ करता है॥ वह संकल्प की शक्ति फिर उसे साधना में हारने नहीं देती; वह गिरता भी है तो उठा लेती है॥ अब वह कितनी बार गिरेगा? इसकी संख्या के लिए तीन बिन्दु लगा दो '...', कितनी बार उठेगा? इसकी संख्या के लिए तीन बिन्दु लगा दो '...', अनगिनत बार गिरेगा अनगिनत बार उठेगा, पर अब वह रुकेगा नहीं॥ यह क्या है? यह संकल्प शक्ति है तो इस संकल्प शक्ति के द्वारा इस क्षेत्र से जीव उठना आरम्भ होता है॥ शरीर पर, शरीर पर इसका प्रभाव metabolism पर पड़ता है पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि साधक नाभिकमल का ध्यान करके metabolism को जागृत करे और जो मन में आए खा जाए, यह सम्भव नहीं है॥ आपको इतने पैसे मिल गए कि आप अपना आवश्यक खर्च है वह निर्वहन कर सकते हो, आप कहो साहब मैं इसमें 10 लोन ले लूँ, मैं इसमें यह सब खरीद लूँ, वह सब आपके बस का नहीं है, तो क्या होगा? आप उसमें दब जाओगे, फिर कुछ नहीं होगा॥

अध्यात्म में शक्तियाँ परास्त क्यों होती हैं? क्योंकि साधक अव्यावहारिक हो जाता है impractical, no pragmatism बस एक चीज सुन ली मणिपुर के बाद metabolism जागृत, पाचन क्षमता जागृत, परिष्कार हो गया, बस अब ठीक है, अब सुबह 10-15 मिनट, एक घण्टा ध्यान उसके बाद जो मन में आया खाएँगे॥ तो आपने क्या किया? आपने इतना कमाया था कि आपके आवश्यक खर्च चल जाएँ, पर आपने मोटरसाइकिल का भी लोन ले लिया, कार का भी लोन ले लिया, पर्सनल लोन भी ले लिया, आपने और भी बहुत कुछ ले लिया, अब क्या होगा? अब आप दब गए॥ साहब मैंने तो साधना की थी॥ खाक साधना की थी, अभी इतनी नहीं की थी कि तुम इतना खर्च करो, इसीलिए बहुत व्यवाहारिक होना पड़ेगा॥ साधना के साथ संयम आवश्यक है तभी वह परिणाम देता है॥

अत: यह मणिपुर क्षेत्र में ज्ञानियों ने एक साँझी समझ करने के लिए, to create a common understanding, यहाँ एक त्रिकोण दिया है, उल्टा त्रिकोण जिसका तात्पर्य है शक्ति जिससे सृजन होता है, जिससे रचना होती है वह पहली बार मणिपुर में आता है॥ फिर कई साधकों को अपना ध्यान केन्द्रित करने के लिए उस त्रिकोण पर जाने के लिए कहा जाता है॥ आप उस पर ध्यान करेंगे कि नहीं? इसके लिए आवश्यक नहीं कि आप इस बात से लड़ें कि मुझे वहाँ त्रिकोण दिखना चाहिए॥ जो वहाँ है नहीं वह दिखेगा भी नहीं बाबू॥ मेरा अनुभव, अब मैं क्या करूँ जरा-मरा तो मेरा अनुभव है, क्या बताऊँ मैं॥ मूल रूप से इतना जान लो कि अव्यक्त सृष्टि को अभिव्यक्ति देने के लिए ये साधन बनाए गए geometry has been invoked जिसे अंग्रेजी में बहुत सुन्दर रूप से कहते हैं sacred geometry. Yes, sacred geometry has been invoked उसे लाया गया है॥ अव्यक्त को रेखाओं में बाँधने के लिए, बुद्धि को बाँधने के लिए, किसे? बुद्धि को बाँधने के लिए, चित्त को एक स्थान देने के लिए, चित्त को एक स्थान पर ले जाने के लिए, वहीं पर उसे आभास देने के लिए कि हाँ शक्ति है ऊपर उठाएगी॥ वे स्वरूप बदलते हैं, त्रिकोण हमारे इस पूरे शरीर के system में सभी स्थानों पर तो नहीं हैं॥ शिव और शक्ति का समागम है हृदय में अनाहत में और ऊपर है पर सब स्थानों पर आवश्यक नहीं है वह॥ मूलत: it is all for an explanation to a Sadhak.

अब ध्यान रखना, तुम्हें सबसे पहली बात मैंने सिखाई थी 5-11 बार खाली पेट पिचकाना नाभि तक ले जाना बहुत धीरे से और फिर पेट को वापिस बाहर छोड़कर उसके बाद साँस लेना॥ और गर्भवती महिलाएँ बिलकुल नहीं करेंगी, यह सब कुछ नहीं करेंगी न ध्यान करेंगी न यह अभ्यास करेंगी॥

क्या करना? साँस बाहर छोड़ देना, नाभि को पिचकाया पीछे तक ले गए, रीढ़ की सीध में ले गए, और फिर रोकना? नहीं रोकना नहीं है, बस ढीला छोड़ दिया, ढीला छोड़कर पेट बाहर आ गया, अब साँस भीतर लो॥ अरे इतने में हाँफ जाओगे; इतने में ही आरम्भ में हाँफ जाओगे॥ 5 से 11 बार, बस इतना अवश्य करते रहना जिससे इसमें सहायता मिलेगी॥ इसमें और भी बहुत कुछ करने की चेष्टाएँ होती हैं पर वे उनको करनी हैं जिन्हें इसका हठयोग के द्वारा जागरण करना है वह हमारा क्षेत्र नहीं है, हमारा मार्ग दूसरा है॥ क्या हमें वह सब प्राप्त नहीं होगा? इसका तुम्हें पूर्ण रूपेण आश्वासन है वह सब प्राप्त होगा इसमें कोई सन्देह नहीं है सब करते हुए होगा॥ वे सब करते हुए सब प्राप्त नहीं कर पाते, उन्हें सब छोड़ना पड़ता है सब छोड़कर वे जाते हैं और उसमें भी इतने खतरे हैं जिसकी सीमा नहीं है, इसमें नहीं॥

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