सूर्य ही आधार है। शंकराचार्य द्वारा रचित आत्म बोध श् -20

सूर्य ही आधार है। शंकराचार्य द्वारा रचित आत्म बोध श् -20

ब्रह्म मुहूर्त ध्यान उपरांत सत्संग. आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित आत्मबोध श्लोक नंबर 20...

आत्मचैतन्यम (आत्मा चैतन्य रूप) आश्रित्य देहेन्द्रियमनोधियः। स्व क्रिया अर्थेषु वर्तन्ते (संलग्न) सूर्यालोकं यथा जनाः (सूर्य आधारित जैसे जन)

आत्मा चैतन्य रूप है, वेदांत दृष्टि से ही नहीं कुछ-कुछ पुष्टि अभी आधुनिक विज्ञान पर भी प्राप्त हो गई है की चेतना पर समूचा पदार्थ आधारित है मुक्त नहीं है। हालांकि हमारे यहां प्राचीन पद्धति का एक पक्ष ऐसा भी है जो पदार्थ के अस्तित्व को स्वतंत्र मानता है। उसकी क्रियाकलाप को पदार्थ इंद्रिय मन बुद्धि इत्यादि को पर वेदांत के निष्कर्ष यह कहते हैं कि नहीं चेतना है तो यह सब है अन्यथा कुछ सक्रिय नहीं है। चेतना के होने से ही सक्रिय है उसके सान्निध्य का सिद्धांत है. चेतना के सान्निध्य में ही सब कुछ चलायमान है। सब कुछ, सब जन अपना - अपना काम कर रहे हैं इंद्रियाँ शरीर मन बुद्धि इत्यादि.. पर आश्रित किस पर है?... चैतन्य रूप आत्मा पर... जैसे सूर्य के प्रकाश से मनुष्य के समूचे क्रियाकलाप चलते हैं.. सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा से हमारे सभी काम चल रहे हैं.. सूर्य क्या कहीं हस्तक्षेप आकर करता है?. तो फिर क्या करता है केवल एक काम करता है.. क्या?.. सान्निध्य। सत्य तो यह है की उसके केवल होने से ही सब कुछ अपने - अपने क्रियाओं को प्राप्त होते है। ठीक वैसे ही जैसे सूर्य निर्लिप्त हो आकाश मे अवस्थित है और पर उसके होने से ही मात्र गतिविधियां हो रही है ठीक वैसे ही चैतन्य रूप आत्मा से समूचे गतिविधियां चल रही है ... केवल उसके उपस्थिति सान्निध्य में सब कुछ हो रहा है। उसके आलोक मात्र से हो रहा है... वह है तो सब कुछ हो रहा है... उदाहरण सटीक है....सूर्य स्वयं कुछ नहीं करता केवल अपने आप स्वप्रकाशित है वह। यही भाव यहां देने की चेष्टा आदि गुरु ने की है विचार करके देखने पर इस श्लोक से उस बात को पुष्टि मिलती है जिस पर संदेह होता है आत्मा अगर है तो निर्लिप्त कैसे बनी रहती है। इतना सब कुछ होते हुए भी कहने को उसके होने से सब कुछ और निर्लिप्त है पर निर्लिप्त कैसा इसलिए सूर्य का उदाहरण यहां पर सटीक है। इस श्लोक को साधक तुम बुद्धि का स्नान मानना। गायत्री के प्रकाश में स्नान किया हमारे बुद्धि ने.. पवित्र भूमि आलोकित हुई जागृत हुई।

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