कल रात सोने से पूर्व भाव रूप ब्रह्म ऋषि देवरहा बाबा जी का ध्यान आ गया और उस ध्यान में भी कुछ देर स्थिर होने का अवसर प्राप्त हुआ॥ उनकी वीडियो भी देखी, पहले भी देखी है पर उनके दर्शन तो जितनी बार भी हों कम हैं, ब्रह्म ऋषि हैं॥ जिस सरलता से वे संवाद करते हैं योग के चरम को प्राप्त होने के उपरान्त वह अद्भुत है॥ उनका ऋण मनुष्यता के बहुत बड़े वर्ग पर है इसमें कोई सन्देह नहीं है॥ उनकी आयु कितनी थी इस पर कोई सुनिश्चित बात नहीं कह सकता॥ पर उसके पीछे का बड़ा कारण यह भी है कि उस प्राचीन काल में, प्राचीन ? हाँ आप कहोगे 800-900 वर्ष, फिर भी मैं उसे प्राचीन कह रहा हूँ॥ उसका कारण है कि हिमालय में जिसने इतना तप किया कि उनके नाम का वहाँ एक ताल एक स्थान प्रसिद्ध हो गया॥ कब किया इसका बोध किसी को नहीं है॥ देवरिया ताल, वहाँ उन्होंने कब तप किया इसके विषय में कोई नहीं जानता॥ 200 वर्ष अथवा 500-700 वर्ष कोई नहीं जानता, वहाँ के स्थानीय लोग भी नहीं जानते॥ पर उनके नाम से वहाँ ताल है जिसके निकट उन्होंने वहाँ तप किया॥
एक बहुत ही सुन्दर बात वे अपने शब्दों में कहते हैं - साधक को यह निश्चित रखना चाहिए कि दिन में बायाँ स्वर चले और रात में दायाँ स्वर, दिन में चन्द्र नाड़ी और रात में सूर्य नाड़ी चले, इस पर चले नासिका॥ जिससे अनेक प्रकार से शरीर और मन में ऊर्जा का सन्तुलन बना रहता है॥ छोटा सा सूत्र है बहुत बड़ा नहीं है पर इसके प्रभाव इतने गहरे इतने गहरे कि कोई सीमा नहीं है॥ आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे योग की टोह ले रहा है और धीरे-धीरे जान रहा है कि मनुष्य रूपी इकाई ईश्वर ने रची है उसके हाड़ माँस की क्षमताएँ भी मात्र उतनी नहीं हैं जितनी अभी तक हम जान पाए हैं॥ हाड़ माँस की क्षमताएँ भी बहुत बड़ी हैं॥ मनुष्य की चेतना, योगियों के हाड़ माँस जो नष्ट हो जाता है, उसे भी अद्भुत स्तरों तक ले जाती हैं॥ अन्यथा पूर्ण नग्न रूप से, पहाड़ों की तो क्या बात करना, उत्तर भारत में भी क्या आप बिना वस्त्रों के सर्दियों में रह सकते हैं? तब तो और भी कठिन था, आज तो वातावरण बदल गया॥ यह क्या है? केवल यहाँ उत्तर भारत में ही नहीं, हिमालय में बर्फ में भी, उस आयु में सैंकड़ों वर्षों तक, इतनी सर्दी में बिना वस्त्रों में सहज होकर रहना, क्या है यह? हाड़ माँस की क्षमताओं का ही तो परिचय है॥
ये महायोगी हिमालय में बहुत सहजता से विचर लेते हैं॥ क्षमता किसकी ? शरीर की है जो नष्ट हो जाता है॥ कहाँ से आई वह क्षमता? शरीर में इतनी ऊष्मा कौन जन्म दे रहा है? योगी नग्न रूप में भी हिमालय में विचर सके, कहाँ से आई वह ऊर्जा? क्या आधुनिक विज्ञान शरीर का अनुसन्धान करके यह बता सकता है कि ऊर्जा कहाँ से आई? बाकी शक्तियों की बात छोड़ो उनका अस्तित्व है कि नहीं, पर यह तो सामने है स्पष्ट है॥ देवरहा बाबा के जाने के उपरान्त, ऐसा भी नहीं कि ऐसे अन्य योगी अस्तित्व में नहीं हैं, बहुत हैं॥ पृथ्वी पर कभी बीज नाश नहीं होता लोग जाकर उनकी छोटी-छोटी वीडियो तो बनाते हैं पर समझ नहीं पाते कि शरीर में इतनी क्षमता, इतनी प्रचण्ड ऊर्जा जहाँ सर्दी में हम जैसा सामान्य जीव इतना कुछ पहनता ओढ़ता है वहाँ ये महायोगी पूर्ण सुविधा विहीन होकर, पूर्ण सुविधा विहीन होकर कैसे इस प्रकार से रह लेते हैं? इस शरीर को जिसकी क्षमताएँ विज्ञान ने नाप ली हैं कि इससे आगे शरीर सहन नहीं कर पाता, तो फिर कौन कराता है? कैसे हो रहा है, कैसे सम्भव है? इसीलिए कहा जाता है सजगता को अभी जाना नहीं गया॥ सजगता जब एक दिशा में चल पड़ती है, केन्द्रित हो जाती है, तो अद्भुत कर सकती है ऐसा अद्भुत जिसकी सीमा नहीं है॥
कलयुग का प्रकोप चलने से हमारी विद्याएँ लुप्त हुई॥ कलयुग का प्रभाव होने से महान सत्ताओं का प्रभुत्व मनुष्य की सोच पर कम हुआ इसका तात्पर्य यह नहीं कि अध्यात्म झूठा है इसका तात्पर्य यह नहीं कि अध्यात्म है ही नहीं॥ महाकाल के चक्र में काल का प्रवाह बदलता है महाकाल के संकल्प से काल का प्रवाह बदलता है॥ जब काल का प्रवाह बदलता है तब स्रष्टा की शक्तियाँ तदनुरूप कार्य करती हैं॥ जिस प्रकार रात्रि में सूर्य का दर्शन का न होना, ठीक उसी प्रकार से कलयुग के प्रभाव से भी अनेकों महान योगी, लोग सामान्यत: पूछ लेते हैं कि तब ये कहाँ थे? तब वे कहाँ थे? तब वे कहीं नहीं थे यहीं थे, पर तुम महाकाल और काल के प्रभाव को तो जानो॥ तुम्हारी बुद्धि छोटे-छोटे Trend से तो इतनी ग्रसित है तुम छोड़ो महाकाल को, तुम छोड़ो कलयुग को, वह फिर भी अनजानी बात है॥ Bellbottom पहन कर घूम सकते हो 40" के पाँवचे वाली? नहीं घूम सकते, क्यों? वस्त्र उतारने के लिए नहीं कहा, पहनने के लिए कहा तो इसमें लज्जा की क्या बात है? कोई सात्विक है राजसिक है तामसिक है तीनों को कहो अपनी इच्छा से bellbottom पहन कर घूम लो॥ जरा कुछ दिन bellbottom में रहो जिसका 40" का पाँवचा है विशेषकर पुरुष, पहन पाओगे? यदि तुम कामकाजी हो कुछ भी हो पहन पाओगे? सहज नहीं है, लोग देखेंगे अजीब लगेगा, अपने आपको भी विचित्र लगेगा॥
क्या हुआ?
trend नहीं है न॥ क्यों बेलबॉटम पहनना कोई नग्न घूमना तो नहीं है॥ नहीं, यह नग्न घूमना नहीं है तो फिर क्या समस्या है घूमो न?
trend नहीं है॥
अच्छा, trend कहाँ है दिखा सकते हो?
अरे जो सब चल रहा है जो प्रचलन में है वह frend ही तो होता है॥
नहीं Trend का कोई शरीर है?
क्या बच्चों वाली बात करते हो, trend का भी कोई शरीर होता है़? ट्रेंड तो जो चल रहा है जो प्रचलन में है वह होता है, यह तो प्रवाह है॥
अच्छा, यह ट्रेण्ड का प्रवाह है॥ वैसे लम्बे बाल रख सकते हो जैसे आज से 30-40 वर्ष पूर्व फिल्मी कलाकार रखते थे पुरुषों की बात कर रहा हूँ॥ नहीं, नहीं रख सकते॥ क्यों? ट्रेण्ड नहीं है॥ कौन है trend ? कहाँ रहता है दिखता नहीं है? अरे वह ऐसे नहीं दिखता उसके प्रभाव में सब कुछ दिखता है॥ अच्छा मान ली तुम्हारी बात॥ यह भी मान लो कि काल के प्रवाह में काल के चक्र में भी trend होते हैं जो बुद्धि की सूक्ष्मता को दुष्प्रभावित कर जाते हैं या अच्छा प्रभाव देते हैं सद्प्रभाव॥ और कलयुग का trend भी ऐसा ही है जिसमें महाविद्याएँ अध्यात्म के गहरे सनातन सूत्र लुप्त हो गए, इतने लुप्त कि संशय होने लगे, अविश्वास होने लगे, कुतर्क जन्म ले गए, बुद्धि प्रश्न खड़े करती है, मानने को तैयार नहीं है॥ नकारात्मकता इतनी व्याप्त हो जाए कि भूत के होने पर विश्वास और देव के होने पर अविश्वास; क्या है यह? यह काल का trend है बाबू, काल का trend. जैसे तुम्हारा सामान्य खान-पान, रहन-सहन, उठना बैठना बालों का स्टाइल ईत्यादि का trend होता है उसी प्रकार बुद्धि की सूक्ष्मता का भी एक trend है एक अवस्था है॥ जब बुद्धि सूक्ष्म नहीं होती, मोटे विषयों को पकड़ती है तो सूक्ष्म विषयों पर अविश्वास भी होने लगता है॥
उस महान ब्रह्म ऋषि का कल रात्रि भाव इतना सघन रहा कि मैं एक प्रकार से उसी भाव में सो गया, उसी भाव में उठा, मुझे पता था कि आज सत्संग में उस ब्रह्म ऋषि की प्रेरणा से ही कुछ होगा॥ तैयारी कोई नहीं थी, और यह बात इसलिए है कि खुली आँखों से दिखने वाले सत्य द्वारा अध्यात्म की गहरी विद्याओं की स्थापना है, अनदेखे जगत की बात तो छोड़ ही दें आप॥ अनदेखे जगत की बात तो छोड़ ही दें
बेटा कितना भी बाहर अनाचार तुम्हें दिखे, कितनी भी कालिमा तुम्हें बाहर दिखे, कितना भी घोर अन्धकार तुम्हें बाहर दिखे, अविश्वास के लिए हर चीज तुम्हें विवश कर रही हो, अविश्वास के लिए, तो भी अध्यात्म के सनातन अस्तित्व के विषय में अविश्वास नहीं करना॥ कुछ हठ सार्थक होते हैं, कुछ मूर्खताएँ बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियों की स्थापना देती हैं॥ इसलिए जल्दी से अस्वीकार मत करना, कर्मफल के सिद्धान्त के न होने को अस्वीकार मत करना, यह है॥ जब कभी यह अविश्वास होने लगे, यह एक उदाहरण अपने आपको स्मरण कराना जो आज मैंने दिया है॥ यह एक उदाहरण दिया है जो सहज सामान्य रूप से कहा जा सकता है, देखा जा सकता है, बताया जा सकता है॥ कभी कहीं हिमालय में किसी के दर्शन हो जाएँ तो अनुभव में भी आ जाएगा॥ बहुत सामान्य सा उदाहरण दिया है॥ इसलिए काल के प्रवाह को जानकर उसके प्रभाव में न आते हुए अपनी साधना उसके प्रभाव उस पर संशय मत रखना॥ उसके परिणाम तो तुम अनुभव कर भी रहे हो॥