Part - 9. द्रौपदी प्राण ऊर्जा है, सारा संग्राम उसी निमित्त है - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार है

Part - 9. द्रौपदी प्राण ऊर्जा है, सारा संग्राम उसी निमित्त है  - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार है

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

हमारी यह श्रृंखला चल रही है संभवत: आज छठा अथवा सातवाँ इसका आज यह संस्करण है, पक्ष है॥ श्रीमद भगवत गीता के प्रथम श्लोक पर आधारित होकर एक आत्म अवलोकन आत्म दर्शन हेतु एक युक्ति हम सीख रहे हैं; A Technique to introspect, disect our ownself; अपने आप को समझने हेतु॥ हमने अभी तक पूरे श्लोक की पृष्ठभूमि और उसका सबसे अद्भुत सौंदर्य कि भगवत गीता का प्रथम श्लोक दिया भी तो किसको? धृतराष्ट्र को॥ और उसी के प्रकाश में हमने जानने की चेष्टा की कि मर्म कहीं अधिक गहरा है॥ मर्म हर जीव को आत्म अवलोकन के लिए प्रेरित करता है॥ क्योंकि धृतराष्ट्र जैसे अनधिकृत चेष्टा करने वाले जीव One who wants to usurp the rights of others. एक ऐसे अनधिकृत चेष्टा करने वाले पात्र के द्वारा पहला शब्द क्या निकला - धर्मक्षेत्रे फिर कुरुक्षेत्रे॥ तो प्रकाश सामने आ गया कि हमें कुछ और गहरी प्रेरणा है॥ यह श्लोक केवल शब्दों के अर्थ तक सीमित करके नहीं छोड़ा जा सकता॥ इसलिए पहले ही श्लोक से अपने ही अंत:करण में डुबकी लगाने की प्रेरणा है॥ अपने देवत्व को उभारने के लिए The Divinity within, अपने देवत्व को उभारने के लिए जो भीतर का गोता है उसे लगाने के लिए यह श्लोक एक टेक्निक है॥ जो सबसे पहले इस बात को मानता है कि हर जीव में पांडव हैं, हर जीव में कौरव भी हैं॥ कोई जीव ऐसा है ही नहीं जो प्राण ऊर्जा से विहीन है क्योंकि जब तक प्राण ऊर्जा नहीं तब तक कुछ नहीं क्योंकि शक्ति के बिना शिव, शव है॥ इसीलिए चीरहरण का प्रसंग बीच में आता है॥ द्रौपदी रचनात्मक प्रेरक ऊर्जा है जो सभी पंचभूतों को भी अभिप्रेरित करती है तभी तो प्रपंच रचा जाता है॥ पांचों द्वारा अभिप्रेरित रची गई लीला जिसे प्रपंच कहते हैं, द्रौपदी के बिना वह सम्बन्ध नहीं है॥

द्रौपदी अर्थात प्राण ऊर्जा, प्राण शक्ति॥

बिना प्राण शक्ति के क्या कोई भोग आप भोग सकते हो? आपमें एनर्जी नहीं है, आप इस पूरी पृथ्वी का कोई भी भोग क्या भोग सकते हो? आप में एक क्षण की भी ऊर्जा नहीं है, You have no energy left into you, Just like a dead wood, बस, तो क्या आप कार का आनंद, मोबाइल का आनंद, या जो लोग घड़ियाँ पहनते हैं या सोने की चेन पहनते हैं, अँगूठियाँ आदि अथवा कुछ भी ... posession of any kind, कोई भी सम्पत्ति; क्या बिना ऊर्जा भोग सकते हो? कोई कामना, बिना ऊर्जा क्या उसकी पूर्त्ति सम्भव है? नहीं है॥

यही वह द्रौपदी है जिसकी गति बहुत तेज है, द्रु = द्रुत Fast at the speed of light, पद = steps, बहुत तेज गति से चलने वाली बिजली की गति से चलने वाली द्रौपदी - प्राण ऊर्जा ॥ साढ़े तीन कुंडल मारकर भी बैठी है वह, पर प्राण के रूप में उसकी आभा तो पूरे शरीर में बिखरी है॥ उसी प्राण को ही तो कौरव नोचना चाहते हैं, मजा करेंगे, अपने मजे के लिए॥ जबकि होना चाहिए उसे पाण्डवों के पास, क्यों? क्योंकि यदि पंचभूत अभिप्रेरित होते हैं तो एक-एक सूक्ष्म अवस्था में पड़ा हुआ, सुप्त अवस्था में पड़ा हुआ, क्षमताओं का चक्र जागृत होता है॥ कब? जब वह ऊर्जा समस्त रूप से केवल पाण्डवों को उपलब्ध है, कौरव नोच नहीं रहे॥ जब तक कौरव उसे नोचते रहेंगे for their demeaned objectives, अपनी कामनाओं की, कौतुक की पूर्त्ति के लिए, पाण्डवों के लिए नहीं बचेगा उतना, पाण्डव व्यथित रहेंगे॥ क्योंकि यहाँ पंचभूत केवल उतने ही Elements नहीं हैं. यह हम पहले भी भगवद गीता में अध्ययन कर चुके कि पंचभूतों का वैज्ञानिक स्वरूप सूक्ष्म भी है॥ स्थूल तो है जितना हम जानते हैं, जितना हम अनुभव कर पाते हैं॥ अग्नि से ऊपर तो पूरी तरह अनुभव भी नहीं कर पाते क्योंकि वायु दिखती नहीं अनुभव में तो है, आकाश दिखता नहीं है पर खाली है तो अनुभव में है॥ पर इनके सूक्ष्म तत्व हैं दिखने वाले जगत का स्रोत, न दिखने वाला जगत The subtle dimension

द्रौपदी वह ऊर्जा है जिसका वह हरण करना चाहते हैं वही चीर हरण है॥ When you drain out the creative resource for unmindful purposes, mallific intentions, बुरे कामों के लिए, बुरी नीयत से, जब आप रचनात्मक ऊर्जा का क्षय करोगे तो परिणाम क्या होगा? अराजकता दु:शासन॥ इसीलिए बचाना द्रौपदी को है॥

द्रौपदी पाँचों की पत्नी; मैंने पूर्व में भी कहीं उल्लेख किया था 'यह पति शब्द और पत्नी शब्द को अंग्रेजी में इसका ट्रांसलेशन केवल कर देना पूर्ण अन्याय है॥ Husband & Wife, no. पत्नी और पति शब्द बहुत बड़ा है अगर ऐसे हो तो राष्ट्रपति Husband of a Nation? कुलपति Husband of a University? ऐसा हो सकता है क्या? नहीं॥ तो इसका तात्पर्य यह है कि पति और पत्नी शब्द का मर्म बहुत बड़ा है॥ वह पाँचों की पत्नी है इसका तात्पर्य है कि अंग्रेजी के अनुवाद में आप उसे Wife नहीं कह सकते॥ वह पाँचों का एक Resource है, पाँचों का आधार है, पांचों की प्रेरक है, अगर वही नहीं होगी तो पाँचों किसी काम के नहीं हैं॥ इसीलिए पांचों की साँझी है, उन्हें आप अगर केवल शरीर मानकर मनुष्य मानेंगे तो आप ब्रह्मऋषि के उस विज्ञान के साथ अन्याय करेंगे॥ कहानी अपनी जगह है, उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं॥

पर हम उसके उठते विज्ञान को समझें, हमारे भीतर उपलब्ध जितनी भी रचनात्मक ऊर्जा है, जिसे हम प्राण के नाम से हम जानते हैं॥ बिना प्राण, निष्प्राण व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता, कोई भोग नहीं भोग सकता, कोई साधना नहीं कर सकता, लौकिक, पारलौकिक कहीं कुछ नहीं कर सकता, न इस जगत में न उस जगत में, नहीं कर सकता॥ यह सत्य है कि एक सीमा के बाद इसकी आवश्यकता नहीं रहती है॥ पर उस सीमा तक जब तक रॉकेट अंतरिक्ष में सैटेलाइट को लेकर नहीं पहुंचे, रॉकेट की आवश्यकता है॥ तो यह कसरत प्रेरित करती है कि प्राण की शक्ति को बचाना है॥ प्राण की शक्ति का क्षय सर्वाधिक सबसे अधिक किससे होता है? भाव और विचार के द्वारा॥ प्राण की सबसे अधिक क्षय, सबसे अधिक कमाई किसके द्वारा? भाव और विचार के द्वारा॥

विचारों की खिचड़ियाँ ख्वाहमख्वाह पकाते-पकाते हम चिंतन को चिता भी बना देते हैं॥ इसीलिए कहते हैं न चिंता चिता समान है, वस्तुत: तो चिंता, चिंतन से ही आरम्भ हुई न? तो चिंतन चिता भी बन सकता है, You are depleting, आप में से जा रहा है प्रतिपल, प्रतिपल आप में से वह प्राण बाहर जा रहा है॥ अतः यह भाव आप को समझना होगा॥ इस भाव को समझे बिना इसके साथ न्याय नहीं हो सकता॥ यह सारा खेल इसी बात का है॥ यह सारा त्याग तप तितीक्षा, त्याग तप तितीक्षा, पहला श्लोक त्याग तप तितीक्षा के लिए भी है, न केवल आत्म अवलोकन के लिए, Self Introspection के लिए अपितु त्याग तितीक्षा तप के लिए है॥ पहला श्लोक त्याग तितीक्षा तप के लिए है॥

अभी आपने 3 दिन पूर्व श्रीमद भगवद गीता जी का श्लोक पढ़ा, क्या कहा उन्होंने 'सर्व द्वाराणि संयम्य' - सभी द्वारों से संयम करो, वे सारे द्वार जहाँ से भटकाव है, भटकाव अर्थात प्राण का क्षय॥ क्योंकि प्राण की शक्ति को सबसे पहले संचित करना है, क्षय से बचाना है॥ बिना प्राण ऊर्जा खर्च किए हुए न कल्पना कर सकते हैं, न भाव कर पाओगे, न विचार कर पाओगे, न स्मृति याद आएगी, You need energy.

आपने तो नहीं किया होगा, न मैं करने के लिए कहूँगा पर मैंने यह अनुभव जीवन में किया हुआ है॥ लंबे-लंबे समय तक जल त्याग हुआ है और एक सीमा आती है ठीक है बीच में बहुत प्रचंडता भी आ जाती है, बहुत प्रचंडता आती है पर उसके उपरांत एक सीमा आती है जब स्मृति चली जाती है, even memory. यदि कोई पूछे आज से 2 महीने पहले क्या था? स्मृति नहीं होगी॥ क्यों? प्राण नहीं है भीतर॥ इतना प्राण नहीं है कि स्मृति की फाइल खोल सके॥ स्मृति भी संचालित है तो प्राण से संचालित है बाबू, मैं कर के देख चुका हूँ मुझे पूछने की आवश्यकता नहीं है॥ मैंने पढ़ा था और कर भी लिया था लम्बे समय तक किया था बिना जल के, स्मृति लगभग गई उतनी थी जितनी मामूली काम चलाने लायक॥ आध्यात्मिक स्तर पर देखो तो भौतिक जगत में जल ही प्राण का स्त्रोत है, या आप प्राण के एक भिन्न आयाम पर चले जाएँ फिर आपको प्राण की आवश्यकता जल पर नहीं है, पर मैं वहाँ नहीं गया था उस समय मैं केवल जल तक सीमित था॥ मैं भाव रूप में प्राण को वहाँ अवतरित नहीं कर रहा था न मैंने वह साधना की॥ वैसे की है पर जल त्याग करके वह साधना नहीं की॥

अत: सब कुछ प्राण आधारित है और उस प्राण को बचाना है॥ कौरवों पाण्डवों का युद्ध प्राण की शक्ति के लिए हो रहा है॥ वह अमृत कलश प्राण ही जिसके लिए देवासुर संग्राम है॥ तुम्हारी एनर्जी Unmindfully भटकती है उसी को व्यवस्थित करने के लिए एक साधना का बहुत सुंदर अनूठा अनुपम तरीका है यह - व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार॥ विचारों की शक्ति तभी आएगी जब प्राण संचित होगा बिना प्राण के संचय के विचारों में शक्ति कहाँ से आएगी? और यदि व्यवस्थित चिंतन जो जाएगा तो प्राणशक्ति बहुत बड़े बचेगी॥ अचिंत्य चिंतनम् नहीं होगा अकल्पनीय की कल्पना नहीं करेंगे, भटकाव समाप्त होगा॥

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