शिव मानस पूजा भाग - 3 के लेख का लिंक

शिव मानस पूजा भाग - 3 के लेख का लिंक

शिवमानस पूजा आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित भाग - 3

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदंगकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।
साष्टागं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत् समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ।।3।।

आज हम अगले श्लोक पर आते हैं॥ भाव रूप में शिव की अर्चना हो रही है॥ कोई सामग्री नहीं, कोई सामान नहीं, कुछ नहीं, केवल साधक अपने आसन में आसीन और मन ही मन भाव रूप अपने इष्ट को दर्शन करते हुए भाव रूप में अपनी श्रद्धा अर्पित कर रहा है॥ भगवान भावना है, ये शब्द मेरे ब्रह्म ऋषि ने मुझे प्रत्यक्ष कहे थे, "भगवान भावना है बेटा, भगवान सेवा है संवेदना है॥ भगवान सेवा है जब-जब मन में सद्भाव आए संवेदना जागृत हो सेवा में मन रत हो, जानो भगवान आ गए"॥ अत: शिवमानस, भाव रूप मन से की गई आराधना है, पूजा है॥ भाव रूप में भक्त अपने इष्ट को एक बहुत श्रेष्ठ आसन पर बैठकर देखता है जिसके आसपास वह सब कुछ उस समय जुटाया गया जो उस काल में सुविधा, सुख, ऐश्वर्य और वेभव के रूप में जाना जाता है॥

छत्रं - छत्र जो हमारे यहाँ हम लोग अपने इष्ट देवताओं को माँ जगदम्बे को, और कहीं मन्दिर आदि में जाते हैं तो छत्र चढाते हैं॥ भोलेनाथ को एक छोटी सी चाँदी स्वर्ण अथवा किसी अन्य बहुमूलय धातु से बनी हुई canopy जैसा छत्र॥
चामरयोर्युगं - चामर + यो: + युगं; चामर अर्थात चँवर झुलाया जाता है जिससे किसी प्रकार का कीट मक्खी मच्छर पास न आ पाए तथा कुछ हवा भी की जा सके; युगं अर्थात दो चँवर हैं॥
व्यजनकं - और साथ ही खड़े हैं दो पंखे वाले भी, खडे़ हुए पंखा कर रहे हैं॥ अर्थात ऊपर से भी कोई चीज न गिरे, कोई मक्खी मच्छर भी आकर व्यवधान न करे, और गर्मी भी न लगे॥ यह सारी सुविधा comfort है जो भाव रूप वह दे रहे हैं जो कुछ अर्पित हो सकता है whatever is possible
चादर्शकं - च आदर्शकं; जिस प्रकार हम सामने देखने के लिए, वॉशरूम में, घर में, आते जाते निकलते देखने के लिए mirror दर्पण लगाते हैं, अपने आप को देखने के लिए, अपने looks को देखने के लिए, उसी प्रकार च आदर्शकं निर्मलं, स्वच्छ दर्पण है जिसमें आप अपनी स्वयं की छवि भी देख सकें you can even see yourself, how it looks

वीणाभेरिमृदंग - आपके आसपास संगीत बज रहा है विभिन्न प्रकार के वाद्य बज रहे हैं॥ यह पूरी स्वर लहरी है well orchestrated कह सकते हैं॥ एक symphony है जिसमें वीणा बज रही है भेरी है मृदंग है ढोल नगाड़े सब कुछ बज रहे हैं॥
काहलकला - एक बड़ा कलात्मक स्वरूप है जिसे आप कह सकते हैं एक बहुत बड़ा cultural feast है एक बड़ा सांस्कृतिक मेला लगा है जो बहुत अद्भुत है दिव्य है मनुष्यतो यही कुछ सोच सकता है न? यही सब कुछ उसने अपनी इन्द्रियों से जाना, अपनी इन्द्रियों को सुविधा दी, इन्द्रियों के द्वारा भोगा, तो उसकी श्रेष्ठतम पराकाष्ठा the ultimate वह अपने इष्ट को सौंप रहा है॥
गीतं च नृत्यं तथा - जिसमें गीत और नृत्य भी साथ में चल रहे हैं

साष्टाङ्गं प्रणति: - साष्टाङ्ग प्रणाम करता है, साष्टाङ्ग अर्थात स अष्ट अंग आठ अंगों सहित, मस्तक छाती, दो भुजाएँ दो घुटने दो पैर जब स्पष्ट करते हैं ये सब धरा को स्पर्श करते हुए, आपको साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं॥
स्तुतिर्बहुविधा - सतुति बहु: विधा - अनेक प्रकार की स्तुति करते हैं, अनेक प्रकार की अनेक विधियों से स्तुति हम कर रहे हैं॥ हम इतने आत्म विभोर हैं आपको देखकर आपकी स्तुति करते हैं॥
ह्यतेत्समस्तं - हि एतत् समस्तं - यह समस्त आपको
मया संकल्पेन समर्पितं - संकल्पित भाव से हम आपको समर्पित करते हैं
तव विभो - हे इष्ट! हे सर्वव्यापी!
पूजां गृहाण प्रभो - हे प्रभु ! इस पूजा को ग्रहण कीजिए

यह आराधना साधक करता है और करते हुए अपने आपको मन ही मन, मन ही मन, मन ही मन, स्वयं में ही वह आत्म विभोर होता है स्वयं में ही गदगद होता है, स्वयं में ही आनन्दित होता है॥ इस प्रकार अपने इष्ट और अपने बीच का जो भेद है उसे समाप्त करता है॥ अर्थात् इतनी सशक्त करने के लिए यह वस्तुत: यह शिव मानस पूजा एक प्रकार से ध्यान की ही विधि जानो॥ क्योंकि मनसा है न यह, कुछ जुटाने की आवश्यकता नहीं है, कुछ जुटाना नहीं है, बाहर से कोई सामग्री नहीं जुटानी॥ क्योंकि बाहर से कोई सामग्री नहीं जुटानी जो होना है मन से ही होना है तो मन से जो कुछ है वह हो रहा है॥ मन से होने वाली आराधना एक सशक्त धारणा है जिसे वह देखते, देखते, देखते ध्यान में डूब जाएगा॥ जो कुछ श्लोक कह रहा है, साधक उसे अपने भीतर होता हुआ देख रहा है, उसे घटा रहा है और उसी में आत्मविभोर होते हुए अपने इष्ट के समक्ष लीन हो रहा है॥ यह भाव इस शिवमानस पूजा के, पूजा रूपी मनसा, धारणा हेतु ध्यान की एक विधि ही जानो॥ ध्यान को प्रेरित करने वाली एक धारणा की विधि है॥

   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख