Part - 17. "जो भय और आशंका से परे वही निराशि है " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 17. "जो भय और आशंका से परे वही निराशि है " - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

श्रृंखला आगे बढ़ रही है - व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

शब्द तो विचारों का है, पर वस्तुत: साधना अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय कोष तक जाती है॥ उद्देश्य इतना सहज प्रतीत होता है पर साधना उसकी बडी गहरी जाती है॥ हम श्रीमद भगवद गीता के केशव वाणी के श्लोक पर हैं जहाँ 3 बातों का उल्लेख आया॥ किसी भी काल के अर्जुन को अपने उद्देश्य पर समर्पित होकर उन तीन बातों का अनुपालन करते हुए युद्ध में सतत संलग्न रहने के लिए कहा गया॥ उन तीन बातों में मुख्यत: निराशी, निर्मम, विगतज्वरा॥

निराशी शब्द पर अभी हमारी यात्रा चल रही है॥ अर्जुन से आशा है कि संग्राम में खड़े हो, जीवन के संग्राम में, जीवन में देवों और असुरों का संग्राम बाहर भीतर हर स्थान पर है॥ क्या असुर भीतर नहीं हैं? क्या केवल बाहर दिखते हैं? खुली आँखों से दिखने वाले असुर से तो किसी प्रकार आप बच भी जाएँ पर बन्द आँखों में रमण करने वाले असुर, उनसे बचना सहज है क्या? वही हैं जो जैसे ही दुर्योधन के प्रति हम युद्ध आरम्भ करते हैं, अपना संयम अपना तप आरम्भ करते हैं वे मुखर होकर सामने आ जाते हैं, आगे नहीं बढ़ने देते॥ हमें चाहिए शक्ति एकत्र करके एक साथ एक शक्ति का समुच्चय, शक्ति का संग चाहिए जिससे हम अपने भीतर के दुर्योधन को परास्त करें॥ अपनी समस्त ऊर्जा को शक्ति को अपने महान उद्देश्य के प्रति केन्द्रीभूत कर सकें, अन्यथा बिखरे हुए मनुष्य को जीवन पूर्व में भी ठेलता चला आया और आगे ठेलता चला जाएगा॥

निराशी भाव का तात्पर्य समझने के लिए एक अवस्था जाननी होगी॥ मनुष्य जब किसी भी लक्ष्य पर आगे बढ़ता है तो वस्तुत: मूल उसके भीतर उसका उत्साह, उसकी उमंग होती है॥ उसके उत्साह और उमंग ही उसे जुझारू बनाते हैं॥ वह कभी भी जब संघर्ष आरम्भ करेगा, सामने की चुनौती का सामना करेगा, वह सामने की चुनौती भीतर भी तो होती है जब आप कोई तप अपने ऊपर ओढ़ते हो (मैं अभी ओढ़ने वाला शब्द प्रयोग कर रहा हूँ), तप का संकल्प लेना नहीं आरम्भ में तप ओढ़ते हो॥ यदि आपके भीतर की जुझारू क्षमता विकसित नहीं है तो क्या होगा? दो क्षण में ही चूँ निकल जाएगी॥ लम्बी बात क्या करनी, आप कोई छोटा सा पद्मासन लगाकर देख लीजिए॥ एक क्षण मेे टाँगों की चूँ निकल जाएगी॥ उसी प्रकार भीतर के किसी संग्राम में तप करते समय साधक जब तक उसके भीतर की क्षमता दृढ़ नहीं है उसके भीतर जुझारू क्षमताएँ Endurance दृढ़ नहीं हैं, तब तक वह अपने भीतर के असुरों का सामना नहीं कर पाएगा, तप का निर्वहन नहीं कर पाएगा, ऊर्जा शक्ति का संग्रहण नहीं कर पाएगा॥

निराशी भाव मनुष्य के उत्साह और उमंग की सुरक्षा है॥ मैंने इसका उल्लेख पूर्व में भी किया कि पाश्चात्य राष्ट्रों में बहुत प्रचार किया गया Be Passionate, Be passionate, जो करना है उसके लिए passionate बनो॥ प्राचीन भारतीय मनीषा इसे नहीं मानती है और अब विश्व भी धीरे-धीरे उसे मानना आरम्भ कर चुका है उनका कॉलर नीचे न हो जाए, अन्यथा 115-20 वर्ष से अधिक हो गए मानना आरम्भ कर चुका है॥ Passion अर्थात उन्माद, मनुष्य को एक क्षण उठाएगा अगले दिन पटक देगा॥ जीवन के संग्राम उन्होंने विजय किए जो हार और जीत से ऊपर थे और जो passionate थे वे अपने उद्देश्य से किसी भी क्षण dispassionate भी हो सकते हैं dissuaded हो सकते हैं, हतोत्साहित हो सकते हैं, दिल टूट भी सकता है॥ जरा सी चुनौती, जरा सी हार, दिल टूट सकता है छोड़ सकते हैं बीच में॥

पर जो passionate नहीं जिसका लक्ष्य ही उसका स्वयं का इष्ट हो गया, जिसका अस्तित्व उसका उद्देश्य ही हो गया अर्थात उसके श्वासों में उसका उद्देश्य हो गया, उसका तप हो गया क्या उसे passionate होने की आवश्यकता है? उसके भीतर के उत्साह और उमंग को आप उस ज्वाला के समान मानें जिसे बुझाया नहीं जा सकता॥ वह फिर नचिकेता हो गया, न + चिकेता, अग्नि की वह लौ जिसे डिगाया नहीं जा सकता॥ चिकेता जो हर घड़ी लुंज-पुंज गिर जाएगी लौ, flickering flame. और जो प्रचण्ड वेग से उठती ज्वाला है जिसे हिलाया नहीं जा सकता जो ऊर्ध्वगामी है उसे कहते हैं नचिकेता॥ यह यमाचार्य जी ने आशीर्वाद रूप नचिकेता को नाम दिया था कि तेरा नाम आज से नचिकेता, कठोपनिषद में वर्णन आया न? तो नचिकेता चाहिए, passionate नहीं चाहिए, passionate तो बहुत जल्दी depression में जा सकता है॥ अभी एक क्षण उठ गए, अगले क्षण ठप्प॥ उत्साह और उमंग को ही असुरता सबसे पहले परास्त करती है॥ वह एक ही बात तो कहते हैं हिम्मत तोड़ो इसकी, साहस तोड़ो इसका॥ जिसका साहस तोड़ दिया उसकी देखा-देखी हजार और नहीं करेंगे॥ हिम्मत तोड़ दो, साहस तोड़ दो॥ आपका अगर साहस टूट गया तो दोबारा जल्दी से किसी नए तप पर आप आरूढ़ नहीं हो पाओगे॥ फिर से अपने आपको एकत्र करके उठाने में बहुत शक्ति लगेगी॥ इसीलिए तप की दृष्टि से बाबू, इस बात को गाँठ बाँध लो, निराशी भाव से तात्पर्य है किसी भी कारण से अपने उत्साह और उमंग की लौ को नीचे नहीं आने देना॥ निराशी अर्थात जहाँ कोई सम्भावना ही नहीं है कोई अन्य दुष्प्रभाव आकर प्रभावित कर दे॥

तुमने सुना होगा, सिर पर कफन बाँध लिया , देश की रक्षा के लिए निकले, तात्पर्य क्या है इसका? सिर पर कफन बाँध लिया, हम देश के लिए अब संग्राम कर रहे हैं, इसका अर्थ क्या निकला? इसका अर्थ निकला 'निराशी' अर्थात जीने और मरने से ऊपर उठ गए हम॥ अन्यथा मनुष्य के उत्साह और उमंग को कौन चाटता है? भय और आशंका कौन? भय और आशंका, Fear & Anxiety कहीं यह न हो जाए, पता नहीं क्या जाए॥ ये दोनों एक ही सिक्के के दो पक्ष है पर नाम अलग-अलग हैं॥ यह न हो जाए - भय, पता नहीं क्या हो जाए - आशंका Anxiety. भय और आशंका का असुर आकर मनुष्य की रचनात्मक शक्ति को चाट जाता है॥ जिस दिन सिर पर कफन बाँध लिया वह न तो भय का ग्रास न आशंका का ग्रास ॥ इसीलिए निराशी भाव को तुम्हें समझना होगा॥ निराशी भाव अर्थात अब न उसे भय प्रभावित करेगा न आशंका प्रभावित करेगी॥ Fear & anxiety will not be able to infilter ate or impress or impact the intensity of flame of one's pursuit, अब जो उसका endeavor उसका पुरुषार्थ और प्रयास है उसकी लौ को प्रभावित नहीं कर सकते क्योंकि वह निराशी हो गया॥ जो निराशी हो गया अब उसे प्रभावित नहीं कर सकते॥ देखो प्राचीन भारतीय मनीषा ने इस शब्द के पीछे मनुष्य की गहरी मानसिकता के कितने बड़े असुर को समेटने की चेष्टा की है॥ कभी भी देखो मनुष्य को दो बातें ही मुख्यत: कुछ करने से रोकती हैं fear and anxiety भय और आशंका, अच्छा कार्य करने से भी रोकते हैं॥ और निराशी कौन जो इससे ऊपर उठ गया॥ अब उसे चिंता नहीं है कि क्या होगा, जो होगा देखा जाएगा, चलो संघर्ष करो, संयम करो, तप करो, तप टूट गया कोई बात नहीं, हजार बार टूट चुका, तो भी क्या हुआ हमने सोच लिया न अब जो हो सो हो, हम करते रहेंगे॥

और साहब नहीं सफल हो पाए तो? लो सनातनी हैं सनातन में जन्म लिया है, हमारे यहाँ तो माना जाता है कि जीव एक जन्म के लिए तो आता ही नहीं है उसका अगला जन्म भी है, अभी गया, अभी आया॥ तो हमारे यहाँ इस मिट्टी की जितनी भी क्रान्तियाँ हैं जैन, बौद्ध आदि प्राय: सभी में इस भाव को अपने-अपने शब्दों में व्यक्त किया गया है कि मनुष्य अभी गया अभी आया॥ क्योंकि जो जा रहा है वह तो नष्ट हो ही नहीं रहा॥

तो ऐसे में साधक तपस्वी स्वयं को यह कह देता है कि अगर मैं असफल भी मरा तो मुझे क्या घाटा, मेरा तो फायदा ही फायदा है॥ क्यों? क्योंकि केशव ने कहा है किसी का किया गया तृण मात्र भी तप वृथा नहीं जाता॥ तुमने तण मात्र भी तप किया है तो वह व्यर्थ नहीं जाएगा सार्थक होकर ही जाएगा॥ इसलिए निराशी भाव का तात्पर्य है अपने भीतर के उत्साह और उमंग की लौ को किसी प्रकार से प्रभावित नहीं होने देना॥ It has now been immune from every any impact that might come to entrap it. अब वह किसी के काबू नहीं आएगा क्योंकि अब वह हार और जीत से उठ गया, अब कफन बाँध लिया अब कमर कस ली अब नहीं मानेगा, अब वह अपने तप में चला गया अब वह हजार बार भी तप में असफल होगा तो भी उठेगा॥ इससे कम में तपस्वी का निर्माण नहीं होता है॥

संत सुधारक शहीद तीनों एक ही माने गए हैं॥ क्योंकि तीनों निराशी हैं, तीनों को अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि उनके लिए outcome कल्याण ही कल्याण है, ब्रह्मतेज तो मिलना ही है॥ जीकर या मरकर, उनके लिए जीना मरना समाप्त, अब वह अपने मूल पर चले गए, अपने अस्तित्व जीवात्म पर चले गए॥ यह सोच कर तप करो बाबू, यह सोचकर तप करोगे तो कभी हार नहीं मानोगे और साधना फलित होगी॥

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