नाभि कमल रीढ़ में, उसके प्रति अधिक संवेदनशीलता विकसित करो

 नाभि कमल रीढ़ में, उसके प्रति अधिक संवेदनशीलता विकसित करो

एक अभ्यास इस हेतु बहुत सहज होकर आरम्भ करो॥ ध्यान के समय नहीं, ध्यान से उठने के उपरान्त, कुछ समय बाद खाली पेट, जो लोग चाय पीते हैं वे चाय पीने के आधे घण्टे बाद, खाली पेट एक अभ्यास करना है॥ कौन कर सकता है? कोई भी कर सकता है इसमें कोई बन्धन नहीं है कि उच्च रक्तचाप वाला रोगी नहीं कर सकता है॥ बहुत सहज रूप से, मेरे शब्द बहुत ध्यान से सुनना, मैंने क्या कहा, सहज, असहज नहीं, सहज॥ सूक्ष्म क्रियाएँ सजगता के द्वारा सहज होकर ही सम्भव हैं अथवा यूँ कहें कि सहज होकर ही सजगता से सम्भव हैं॥ हठ से नहीं, हमारा मार्ग हठ नहीं है, हठ में आप असहज भी होते हो॥ अत: सहज होकर सजगता से करना है, हठ से नहीं॥ क्या करना है? श्वास को बाहर छोड़ना है, नाभि पीठ की ओर जाएगी, पेट अन्दर आएगा पिचकेगा, साँस छोड़ने से with exhalation, जब पेट पिचकेगा, नाभि पीठ की ओर आएगी, पीठ से जाकर चिपकेगी॥ क्या स्थूल में चिपकती है? नहीं स्थूल में तो नहीं चिपकती, पेट की एक मोटाई होती है पर एक आभास होता है कि नाभि पीठ से चिपक गई॥ तो वह बहुत सहज रूप से, मैने क्या कहा? दोहराओ मेरे साथ बहुत सहज रूप से, श्वास को छोड़ो, पीठ से नाभि चिपकाओ, वहाँ रुकना है? न, अधिक नहीं रुकना, मैं कोई बन्ध नहीं लगवा रहा, कोई मूल नहीं, कोई उदयान नहीं, कोई जालन्धर नहीं| बस गए, चिपकाया, जहाँ चिपका पीठ से उसका एक आभास पीठ पर प्राप्त किया और पेट खोल लिया॥ पेट खोल लिया उसके बाद साँस लिया अर्थात यदि आप चाहो तो चिपकी हुई नाभि से भी, पेट पिचका, नाभि चिपकी, आप साँस लेकर बाहर आ सकते हो पर ऐसा नहीं करना॥ आप खाली श्वास छोड़ते हुए अन्दर जाना और बिना श्वास लिए पेट खोल लेना सहज और उसके बाद श्वास भर लेना॥

श्वास छोड़ते हुए पेट पिचकाया, नाभि पीट से चिपक गई, जहाँ चिपकी आभास लिया, observe किया, यहाँ चिपकी और फिर पेट को ढीला छोड़ दिया, बाहर आने दिया, जब पेट बाहर आ गया फिर श्वास भरा॥

यह आप कितनी बार कर सकते हो? बहुत आराम से अपने अभ्यास के अनुसार जितना समय हो, 5 से 11 बार तक कर सकते हो, पर सहजता से ही करना है॥ मैंने समय क्यों कहा? समय इसलिए कहा, क्योंकि सहज रूप से जब करोगे तो उसमें समय लगेगा॥ आपके पास जितना समय है उतना करो, समय नहीं है तो उतना मत करो॥ यह पेट साफ होने के बाद, निवृत्त होने के बाद की क्रिया है, खाली पेट की क्रिया है॥ आप चाय पीते हैं तो चाय के आधे घण्टे बाद की क्रिया है॥ श्वास छोड़कर पेट पिचकाया, अनुभव किया 'यहाँ चिपका' और पेट ढीला छोड़ दिया, उसके बाद श्वास लिया॥ 5 बार, 11 बार जितना हो सके उतना दिन में केवल एक बार करना है॥ 2 बार 3 बार नहीं, क्योंकि दिन में उसके उपरान्त पेट खाली नहीं मिल पाता॥ कहने को तो 6 घण्टे में भोजन पच जाता है पर नहीं, आप इसको प्रात: काल ही करें, जिस समय आप बिलकुल स्वच्छ हैं उस समय यह क्रिया आपने करनी हैं॥ इससे जब आप यह साधना कर रहे होंगे तब उसमें इसकी सहायता मिलेगी॥ जब आप साधना कर रहे होंगे तो इस क्रिया का बहुत बड़ा लाभ उस समय न केवल आभास प्राप्ति अपितु साथ-साथ उस मर्म स्थल को और अधिक स्पन्दित करने से होगा॥

हठ योगी इसकी क्रियाएँ अलग रूप से करते हैं॥ हठ योगी इनकी क्रियाओं को तीव्रता से ले आते हैं॥ वे तीव्रता से करते हैं, हमारा क्षेत्र पिपीलिका मार्ग है हम तीव्रता से नहीं जा रहे॥ जाना हमने बिलकुल वहीं है बिलकुल वहीं जाना है पर हम हठ से नहीं जा रहे क्योंकि हमें जीवन में सब कुछ करते हुए चलना है॥ हमने कॉफी भी तो पीनी है, मूवी भी देखनी है, हमने नई ड्रेस भी लेनी है, हमने बाहर घूमने भी जाना है इसलिए हम हठ वाले काम नहीं कर सकते॥ उसमें कट जाना पड़ता है, सब ओर से कट जाना पड़ता है अन्यथा अनर्थ हो जाता है॥ और हम नहीं कट रहे इसलिए हम वह मार्ग अपना रहे हैं जिसमें हम सब कुछ करते हुए वहीं पहुँचें, अपने सहज रूप से ठीक है?

अत: जैसे मैंने कहा सहज, उस रूप से यह क्रिया आपने करनी है 5 बार से 11 बार॥ क्या 21 बार से अधिक लाभ हो जाएगा? न, जितना कहा जाए उतना करो॥ उतने भर से ही धीरे-धीरे एक आभास अनुभव होना आरम्भ हो जाएगा॥ यह जो क्रिया है 5-11 बार की, अधिक इसलिए नहीं करना, क्योंकि कुछ साधकों को इसमें बहुत आनन्द आएगा॥ आनन्द आएगा ? हाँ आनन्द आएगा कुछ साधकों को॥ वे अपने आनन्द के चक्कर में 11 से 21 बार न चले जाएँ॥ इसमें कया मजा पेट चिपकाने का? बाबू, जो नहीं किया उसका क्या पता हमें, हम जब करेंगे तो पता चलेगा न? आपमें से बहुत लोगों को इसका बड़ा आनन्द आएगा॥

दूसरी बात - आज आपको एक नया आभास भी कराया॥ कुछ साधक जिनकी पूर्व की यात्रा है, कल ही एक साधक शायद 'सुजीत' नाम था, वह यही अनुभव कर रहे थे कि ध्यान से अनुभव करो तो नाभि की सीध रीढ़ में टप-टप pulsation आकुंचन प्रकुंचन contraction expansion होता है॥ निश्चित रूप से होता है॥ वह है ही प्राण का भँवर, वहाँ वह प्राण का whirlpool ही है॥ तो वहाँ जब चित्त और अधिक एकाग्र होगा तो वहाँ कुछ अनुभूति होगी॥ उसे मैंने आज जोड़ना था और साधक ने कल ही बता दिया, मैंने कहा बिलकुल ठीक जा रहे हो॥ तो इस प्रकार की एक अनुभूति लेनी है, हल्की हल्की तेज नहीं, 'हाँ, यहाँ sensation है'॥ उससे उस मर्मस्थल पर हम और अधिक एकाग्र होंगे॥ वह तीव्रता और अधिक आती है जब आप 'ॐ भूर्भुव: स्व:' मन्त्र का संधान कर चुके॥ उसके बाद जैसे-जैसे वह सजगता विकसित होती है , इस प्रकार का अनुभव हो सकता है॥

अब आपने इतना अभ्यास बनाकर रखना है॥ बाकी आप साधक लोग हैं स्वयं बहुत कुछ आपका सन्तुलित रहता है॥ हमारी इस साधना के सन्तुलन में चाट-पापड़ी आराम से खा सकते हैं, तेज मसाले ईत्यादि रोज हम साधकों के बस के न हैं न हमें खाने चाहिए॥ पर हाँ कभी-कभी हम समोसा भी खाएँगे, चाट-पापड़ी भी खाएँगे, हमारे मार्ग में हम खा सकते हैं॥ हठ योग में तो ताले लग जाते हैं, फिर वह सामान्य जीवन जीते हुए सम्भव नहीं है॥ जिन्होंने करने की चेष्टा भी की है उन्हें बहुत घनघोर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, घनघोर कठिनाइयों का॥ तो फिर उतना परेशान होने की आवश्यकता क्या है? आत्मानो मोक्षार्थ जगत हिताय च करते हुए आगे जाना है न?

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