बुद्धि ज़ब कल्याण औऱ आत्मउतकर्ष का सोचे औऱ किसी विषय पर ज्यादा ध्यान न दे तो समझना वहाँ पवित्रता है.. दोषरहित, मिथ्यारहित, कल्याणकारी बुद्धि...जहाँ मन का हस्तक्षेप समाप्त हुआ, बुद्धि स्थिर हुई,शांत हुई वो ही पवित्रता है...
पूर्ण पवित्रता ईश्वरीय क्षमताओँको उपस्थित, अवतरित होने को बाध्य करती है... निरंतर अभ्यास, वैराग्य भाव ये पवित्रता को विकसित करती है... हम सब अपने अपने अंशो मे पवित्र है.... पवित्रता यह एक अवस्था है, स्थिति है, क्षमता है... क्यों की दुर दुर से पवित्र योनियाँ उस जीवात्मा के पास खींचकर आती है... और निरंतर उसका अध्यात्मिक विकास करती है...
सड़क के नियम आकाश मे नहीं होते... और आकाश के नियम सड़क पर नहीं होते.. वैसेही सामान्य जीव के नियम आध्यत्मिक जीवन के नहीँ होते औऱ अध्यात्मिक के सामान्य नहीं होते.... ईश्वर को पता होता है की हम साधक है साधु नहीं बने अबतक... साधु बनने के लिए वो हमें साथ देते है... यही पवित्रता होती है...