आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिवमानस पूजा का आज पाँचवाँ श्लोक है॥
प्राचीन भारतीय मनीषा का सौन्दर्य है कि यह सभी की सोच का सत्कार करती है॥ अपना अस्तित्व गँवाए बिना सभी का सत्कार॥ काल की गणना हमारे यहाँ उस अनजाने समय में आरम्भ हुई जो कितने लाख या कितने करोड़ वर्ष पूर्व हुआ इसका उल्लेख पूर्व के एक सत्संग में मैंने किया॥ जब संवत्सर रचे गए, मन्वन्तर रचे गए, काल के बड़े-बड़े खण्ड रचे गए; फिर भी वर्तमान समय का सत्कार करते हुए आज के इस दिन प्रतिपल मंगलमयी हो इस भाव के प्रसार से आज का सत्संग आरम्भ करते हैं॥
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ।।5।।
एक-एक शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण और भावरूप सिर का बहुत बोझ उतारने वाला है॥ जिस प्रकार यज्ञ के उपरान्त हम प्रार्थना करते हैं:
न आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम्
विसर्जनम् न जानामि क्षमस्व परमेश्वरम्
मन्त्रहीनम् क्रियाहीनम् भक्तिहीनम् सुरेश्वरम् ... इस प्रकार एक क्षमा याचना हम करते हैं॥ अपने भीतर की उस निर्मलता the innocence को बनाए रखने के लिए, उसी स्वरूप में यह श्लोक कहता है॥
करचरण कृतं - कर अर्थात् हाथ, चरण - पैर, कृतं - किया, मैंने जो कुछ भी किया, हाथों से पैरों से किया जो भी किया, वाक्कायजं - वाक् - वाणी, कायजं - काया से, अपनी वाणी से अथवा समस्त शरीर के किसी अंग से, कर्मजं - कोई कर्म किया॥ श्रवण - सुनकर, मैंने कुछ भी ऐसा श्रवण किया, सेवन किया, नयनजं - नेत्रों के द्वारा, मानसं - मन से, वापराधम् - अथवा अपराध किया॥ अर्थात् -जो न करने योग्य था, जो वर्जन की दृष्टि में आता था, जो सिद्धान्त की दृष्टि पर अनीतिपरक था, जो मुझसे किसी भी प्रकार से हो गया॥ इसीलिए उल्लेख किया - हाथों से, पैरों से, वाणी से, काया से, कर्म से, नयनों से, यहाँ श्रवण से, कानों को मुख्य माना जाता है, यूँ तो श्रवण शब्द का तात्पर्य कुछ भी प्राप्त करना, सेवन करना, absorb करना, पर यहाँ इसको कानों की दृष्टि से भी जाना जा सकता है, मन से - चाहे वह कल्पना हो, विचार हो, कुछ भी हो, अपराध किया
विहितम् अविहितम् - विविहितम् बड़ी टेढ़ी खीर है, विहितम् तो समझ में आ गया जो कर्म मुझसे हो गए, जो गलतियाँ मुझसे हो गई, अविहितम् - जो नहीं कर पाया, नहीं कर पाया का अर्थ यह नहीं जो गलतियाँ नहीं कर पाया, अविहितम् का अर्थ यह है कि जो करने योग्य था और नहीं कर पाया, करने से चूक गया, करने से रह गया॥
वा सर्वम एतद् - ऐसे जो भी हैं उन सबके लिए
क्षमस्व - क्षमा करना
जय जय - जिसकी कभी पराजय नहीं हो सकती॥ किसकी जय हो रही है? यहाँ साथ में जोड़ा - करुणाब्धे
करुणाब्धे - करुणा compassion अब्धे - सागर, विराटता का प्रतीक है, हे करुणा के सागर! आपके समक्ष क्षमा याचना है
और अन्त में उनके लिए सम्बोधन महादेव शम्भो - जो कल्याणकारी है महादेव शम्भो
आज यह शिवमानस पूजा का सत्संग पूर्ण होता है पर इसके साथ जो हमें इसे दोहराने स्मरण करने का जो क्रम है वह पूर्ण नहीं हो रहा॥ अत: हम इस ध्यान के साथ शिवमानस स्तुति को कुछ दिन अवश्य गाकर प्रतिदिन स्मरण करेंगे ॥ प्रतिदिन गाएँगे और स्मरण करेंगे जिससे हमारी स्मृति में चला जाएगा॥ कुछ दिन यह दोहरा जाएगा तो स्मृति में जाना आरम्भ हो जाएगा॥ बाकी आप भी इसे अपने स्तर पर स्मरण करते रहना॥