व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है
सम्भवत: आज भाग 25 है॥ एक क्रमबद्ध प्रशिक्षण की श्रृंखला आत्म निर्माण की श्रृंखला जिसमें शब्द 'आत्म उत्कर्ष' अधिक उपयुक्त रहेगा॥ आत्म उत्कर्ष की श्रृंखला जिसमें 1) आत्म अवलोकन 2) आत्म दर्शन (दर्शन शब्द में कोई कठिनाई हो तो निरीक्षण कह सकते हो), 3) आत्म परिष्कार 4) आत्म विकास 5) आत्मनिर्माण के चरण हैं॥
आत्म विकास हेतु अधिक महीनता, अधिक सघनता, अधिक स्थिरता और केन्द्रीभूत होने के लिए मनोमय कोष की 'रस साधना' का उल्लेख पिछले सत्संग में आया था; जिसे आपने भली प्रकार समझा, बहुत सहज साधना है॥ अधिकांशत: बहिर्मुखी और अन्तर्मुखी दोनों का बहुत सुन्दर संयोग है, बाहर से चखना और एकाग्रता से भीतर स्मरण में लाना॥ अत: एक सहज साधना है पर उसके द्वारा प्राप्त स्थिरता मनुष्य को केन्द्रित करती है॥ भीतर के उछाड़-पछाड़ से अनेक अंशों में पूरे नहीं अनेक अंशों में मुक्त कराती है॥
बात आती है मैं यह कैसे पहचानूँ कि मेरे भीतर जन्म से आई हुई कौन सी क्षमताएँ हैं जिन्हें मुझे और अधिक विकसित करना चाहिए॥ कुछ क्षमताएँ बहिर्मुखी outward समझ में आ जाती है कि मुझमें जन्म से यह क्षमता है और यह मैं प्राय: अनुभव भी करता हूँ आसपास के और लोग भी कहते हैं॥ समस्या वहाँ आती है जहाँ बाहर से कोई अपनी क्षमता की पहचान तो हो नहीं, क्षमताएँ भीतर हों और हमें पता ही न हो, वहाँ एक जटिलता आ जाती है how to identify. कैसे पता लगे कि मेरे भीतर की निहित वास्तविक क्षमता क्या है? अब मैं एक विचित्र बात करने जा रहा हूँ जिससे सम्भवत: तुम्हें एकाएक धारण करने में समय भी लग सकता है नहीं भी लग सकता॥
अनेकों वर्ष पूर्व, लगभग 18-19 वर्ष पूर्व मैं बहुत से शिक्षा संस्थानों में जाता था वहाँ बच्चे का apptitude जानने के लिए, इसके विशेषज्ञ होते थे जो बच्चे के apptitde test लेते थे॥ मेरा इस राष्ट्र की एक-दो श्रेष्ठतम प्रतिभाओं से व्यक्तिगत परिचय भी हो गया जो apptitude बताने में जाँचने में सहायता करते थे॥ मैंने उनके साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध स्थापित किए॥ अध्यात्मिक होने के कारण सम्बन्ध जल्दी बन गए और वे लोग प्रभावित भी हुए॥ मैंने उन्हें समझने के लिए उनके साथ joint program भी किए॥ सामाजिक सेवा के लिए हम लोग विद्यालयों से कुछ शुल्क नहीं लेते थे, इसे हमारा दायित्व है मानते हुए हम करते थे॥ वे लोग लाखों रुपए लेते थे पर वे अध्यात्म के प्रभाव में आकर नि:शुल्क भी साथ चल पड़ते थे उसके बदले में कुछ और देते थे॥ मैं समझने की चेष्टा करता था कि जो aptitude test कराते थे उसमें 5-10 हजार रुपए प्रति टेस्ट का लगता था जिसमें खूब सारे प्रश्न उत्तर आदि बच्चों से कराते थे॥ विशेष रूप से जो बच्चे 11वीं मे आ गए जिन्हें आगे 12वीं मे आगे दिशा चयन करनी है, या जो 9वीं कक्षा में हैं जिन्हें आगे 10वीं कक्षा के विषय चुनने हैं, ऐसे बच्चों के परीक्षण कराए जाते थे॥
मैंने निकटता से अनुभव किया पर हर टेस्ट का निष्कर्ष आमने-सामने बैठकर संवाद से होता था॥ वे सामने बैठकर बच्चे से प्रश्न करते थे॥ बच्चे ने जो analytical test का पेपर दिया उसे पूरी तरह analyse करने के बाद भी बैठकर 1 घण्टा बात होती थी वह apptitude test के पूरे पैकेज का एक भाग होता था और बातचीत से ही वे निष्कर्ष पर पहुँचते थे कि बच्चा इन-इन क्षेत्रों में जा सकता है इसके भीतर की inborne क्षमता यह है॥ मैं देखता था कि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अच्छे हैं लोग इनमें क्षमता भी है ये बच्चे की अभिरुचियाँ जानने में काफी समर्थ भी हो जाते हैं पर इन्हें एक चीज है जिस पर इनका बस नहीं है॥ वह क्या चीज ऐसी है इतना analytical test कर लिया बातचीत कर ली, वह यह है कि बच्चे का भीतर मन का जगत वह इनके सामने नहीं है॥ इन्होंने उसकी बुद्धि के द्वारा बच्चे की क्षमता जानने की चेष्टा की है और बुद्धि को बच्चा manipulate कर लेता है जो कुछ उसने सुना, जिससे प्रभावित हुआ, आकर्षित हुआ उसके अनुसार उत्तर दे देगा॥
यह बात मैं इसलिए भी कहता था क्योंकि जब छोटे बच्चों में जाते थे तो मैंने प्रयोग किया I epxerimented it, क्योंकि मेरे पास तो सैंकड़ों स्कूलों में जाने का अवसर था| छोटी कक्षा के बच्चों से पूछा कि तुम जीवन में आगे क्या बनना चाहते हो? तो लगभग 70% बच्चे कहते थे कि वे टीचर बनना चाहते थे कयोंकि वे अपने टीचर से obsessed थे प्रभावित थे, मैम से प्रभावित थे तो मैम बनना है॥ पर ज्यों-ज्यों बच्चा बड़ा होता था मैम बिसरती जाती थी॥ टीचर बनने वाले बच्चे पूरी क्लास पूरे ग्रुप में इक्का दुक्का ही दिखते थे, लड़कों में अधिकतर मिलिट्री ईत्यादि लड़कियों में कुछ टीचिंग कुछ अलग प्रोफेशन वाले॥ मैं विशेष रूप से देखता था और मेरा विषय अन्तर्मन में एक ही था कि 'कैसे जानें जीव की क्षमता क्या है?' वह पिछले संस्कारों से क्या लेकर आया है? how to know that? That is difficult. क्योंकि ईश्वर की रचना को हम बुद्धि से जाँचने की चेष्टा करें, एक सीमा तक जाँच पाएँगे बाकी तो वह रंगी हुई है॥ आसपास के peer pressure जो आसपास देखा कोई रिश्तेदार नौकरी में अच्छा पैसा कमा रहा है, business में अच्छा पैसा कमा रहा है तो मुझे वही बनना है॥ सामान्यत: पैसे से, ताकत से इन चीजों से हर व्यक्ति प्रभावित होता है बच्चा भी होता है॥ वह जो उसका वास्तवित aptitude है बाहर नहीं आता था रंगा जाता था॥ इसीलिए IAS की दौड़ में भारत में कितने लोग हैं? लाखों? नहीं करोड़ों॥ इसीलिए ias की दौड़ में करोड़ों हैं, शक्ति है, प्रभाव है और भी कई कारण है मैं उसके उल्लेख में नहीं जाऊँगा॥
तो aptitude कहाँ से पता लगे? मेरी चेष्टा थी हालांकि मैं उसपर विशेष कार्य नहीं कर पाया, पर मेरी चेष्टा थी कि यदि बच्चे के भीतर के आए हुए गुणों को पहचानना है तो वह एक स्रोत से निश्चित नहीं हो सकता॥ बाहर से आप उस जीवात्मा के संस्कार के गुण को केवल एक स्रोत से केवल प्रश्न उत्तर करके नहीं जान सकते॥ मैंने एक स्कूल को इसका प्रयोग दिया था उन्होंने अपनी लैब बनाकर इसे देखने की चेष्टा की॥ बाद में उनका वह प्रयोग सफल हुआ अन्यत्र वह replicate नहीं हो पाया, ईश्वर की इच्छा नहीं रही होगी, पर मैंने वह प्रयोग उनको दिया॥ क्योंकि इसमें मेहनत बहुत अधिक थी स्कूल इतना कुछ करने के लिए तैयार नहीं होते, मैनेजमेंट भी नहीं मानती, प्रिंसिपल को भी टीचर से सौ काम लेने हैं तो अड़चन आ जाती है॥ मैंने कहा माँ से पूछो, आपको इसमें कौन से गुण दिखते हैं॥ बच्चा भले ही 70 वर्ष का हो जाए और माँ 90-95 वर्ष की हो, वह तुरन्त क्षण में बताएगी कि इसमें क्या कमी है क्या गुण है वह बता देगी॥ यद्यपि आप उसे सीरियस करके न पूछो, माँ को अगर आपने सीरियस कर दिया, गम्भीर कर दिया तो वह घबरा जाएगी कि मैं कहीं अपने बच्चे के विषय में कुछ ऐसा न बोलूँ जो उसके लिए अहितकारी हो॥ spontaniety में पूछो, अर्थात बिना अधिक सजगता के, कि बच्चे में क्या क्षमता है? वह सत्य तो वैसे ही बोलेगी, पर वास्तविक तथ्य को यथावत बताएगी॥ आप उसे गम्भीर कर देंगे तो वह छुपा भी सकती है cook up भी कर सकती है॥ आप उसकी माँ से पूछो,
आप उसकी टीचर से पूछो॥ इसके भीतर आपको क्या क्षमता दिखती है॥ सम्भव है मिडल बेंच वालों के विषय में टीचर बता देगी, बैक बेंच वालों का भले ही न बता पाए॥ तो और किससे पूछो इसके आसपास के मित्रों से पूछो, मित्र रंगे हुए भी हो सकते हैं॥ फिर किससे पूछो?
फिर पूछो ज्योतिषी से॥
ज्योतिष? आप तो ज्योतिष का समर्थन नहीं करते॥
मैं विद्या का समर्थन करता हूँ, पर जिस प्रचलन में लोग फँस गए उसका समर्थन नहीं करता हूँ॥ लोग अपने भय, अपनी आशंका, अपनी अकर्मण्यता को मैनेज करने के लिए ज्योतिषी के पास जा रहे हैं न कि इसलिए कि हम ज्योतिष के उस विज्ञान से वह जानना चाहें जो वस्तुत: विज्ञान के धरातल पर हमारी सहायता कर सकता है, जो पूछने योग्य है॥ सत्य तो यह है कि जितना प्रशिक्षण ज्योतिषाचार्य का होना चाहिए उतना ही प्रशिक्षण प्रश्नकर्त्ता का भी होना चाहिए कि तुझे पूछना क्या है॥ आप उलटासीधा प्रश्न करोगे वह उलटा-सीधा उत्तर देगा, वह बेचारा क्या करेगा?
आप उसे अपनी किसी वर्तमान समस्या का प्रश्न पूछते, प्रश्न ऐसा हो और जिसका आप पूरा निदान भी चाहते हो॥ अब तो वे लोग psycohology भी पूरी जानते हैं॥ उन्हें पता है how to keep you in comfort zone यजमान को हमने प्रसन्न भी रखना है उत्साहित भी रखना है॥ फिर आप यह सोचते हो कि मुझे कोई ऐसा उपाय बता दिया जाए कि मैं अपने हिस्से का आत्म विश्लेषण न करूँ, अपने व्यक्तित्व में परिष्कार न करूँ, कोई उपाय बता दो टंटे की तरह निपटा दिया बस कर आए॥ हम परिपक्व नहीं हैं, दोष किस पर जाता है? विद्या पर ॥ क्या करें? यह विडम्बना काल की है पर यदि गम्भीर साधक है और अपने विषय में जानना चाहता है तो ज्योतिष, व्यक्तिगत स्तर पर यह जानने का एक बहुत सुन्दर माध्यम है कि मैं जन्म से आया, मेरे जन्म लग्न में कौन कौन से प्रबल ग्रह हैं (यदि कुण्डली ठीक बनी हो)॥ मेरे जन्म से कौन से लग्न के अन्तर्गत कौन सा ग्रह प्रभावी है और कौन सा ऐसा ग्रह है जो मेरे लिए बाधक है? अब ग्रह का नाम सुनकर यह नहीं समझना कि जो सौरमण्डल में बैठा है वह आकर टाँग अड़ा रहा है॥ वह सौरमण्डल वाला टाँग नहीं अड़ा रहा उस ग्रह का अनुवाद करो Translate into your own individuality॥ personality शब्द नहीं लेना, Individuality लेना, persona का अर्थ मुखौटा होता है Individuality व्यक्तित्व है॥ तुम्हारे व्यक्तित्व में, तुम्हारे अस्तित्व में उस ग्रह के क्या गुण हैं; यह जानने की चेष्टा करो॥
मैं ज्योतिष नहीं जानता, उदाहरण देते हुए बोल रहा हूँ - साहब, इसमें शुक्र है, चंचल है, अस्थिर है, इसमें कला का गुण है, इसका चन्द्र यहाँ है, मन अस्थिर रहेगा, इसका गुरू यहाँ है तो इसे विद्या में बहुत प्रभावित करेगा आदि॥ तो इस प्रकार गहरा analysis कि कौन सा ग्रह वस्तुत: किस प्रकार के गुणों को व्यक्त करता है॥ मेरे भीतर कौन सा ग्रह ऐसा है जो अच्छे स्थान पर है अर्थात प्रबल है॥ अब इसका अर्थ यह नहीं लेना कि उस ज्यामिति में जो खाँचे बने हुए है शुक्र राहु आदि वह कोई और खेल है॥ इसे केवल अपने भीतर की Individuality के aptitude तक सीमित रखना; तब तो यह विज्ञान की तरह काम करेगा अन्यथा फिर उसमें बहुत कुछ और जुड़ जाता है जिसके विषय में मैं नहीं कहूँगा॥ है यह विज्ञान, विशुद्ध विज्ञान॥ कौन सा बाधक ग्रह है फिर उसका मिलान अपनी individuality से करो॥ उन्होंने बता दिया, आपने सुन लिया, पहले सारे विश्लेषण कि इस ग्रह के क्या क्या गुण हो सकते हैं उनकी सूची ले लो॥ 10-15 ये गुण हो सकते हैं, इस ग्रह की क्या बाधा हो सकती है, मुख्य-मुख्य, सबका हिसाब मत लो, केवल मुख्य बात॥ उसके उपरान्त फिर अपने भीतर analyse करो, इस प्रकार सोच करके कि क्या मेरे भीतर इस-इस प्रकार के गुण हैं॥ ये बाधाएँ क्या मेरी हैं?
ये नहीं जो सबके साथ comon हैं:
'अरे साहब आप तो सबके लिए करते हो पर आपके लिए कोई नहीं करता'
हर व्यक्ति कहेगा हाँ, नहीं
जो इच्छुक है उसके विषय में इतना तो पता होता है कि दु:खी है तभी आया है॥ वह तो स्वयं आपसे नब्ज पकड़ते हुए उगलवाएगा॥ इसलिए आपको जो पूछना है वहीं तक सीमित रहना इससे आगे नहीं जाना॥ इससे आगे जाने का तात्पर्य है फिर से भ्रम की ओर चले जाना॥ नहीं, विज्ञान तक रहो, यदि आप विज्ञान तक नहीं रह सकते तो फिर मत जाना, फिर छोड़ो इस विषय को॥ फिर अपने-आप अपने मूल्यांकन के लिए स्वयं के गोते लगाओ वह विधि भी मैं दूँगा॥ पर यह एक ऐसी विधि है जो सहज है यदि व्यक्ति वयस्क है, परिपक्व है mature है उसका काम बहुत अच्छी तरह बन सकता है॥ बच्चों के लिए तो विशेष रूप से इसी प्रकार होना चाहिए॥ inborne propensities को जानने की चेष्टा करो और फिर मिलान करो, अपने अन्दर उसका मिलान करो कि does it match with me or not. साहब मेरी जन्म कुण्डली का समय ठीक ज्ञात नहीं है, तो फिर और भी मार्ग हैं ज्योतिष में, प्रश्न कुण्डली के माध्यम से या और कोई तरीका है, कोई मस्तक पढ़ने वाला, मैं नहीं जानता इस विषय में क्योंकि इसमें बहुत भ्रामक भी शुरु हो जाता है जिनके विषय में मुझे ज्ञान नहीं है॥ मैं केवल वहीं तक रहूँगा जिसमें जन्म कुण्डली की विद्या और विज्ञान का विषय है बस इससे अधिक नहीं॥
इससे जीव को यह बोध हो जाता है कि मेरे भीतर आई हुई क्षमता यह थी, मैं शिक्षा के बाद इधर आ गया॥ जाना मुझे वहाँ था पर आयु मेरी इतनी निकल गई, मैं अब इतने वर्ष का हो गया, मेरे इतने वर्ष बीत गए॥ अब व्यवसाय तो मैं बदल नहीं सकता जो पढ़ाई मेरी छूट गई अब मैं फिर से शुरु भी नहीं कर सकता॥ पर ऐसा क्या सम्भव है, ऐसा भी नहीं कि तुम कुछ कर ही न सको, अगर तुम कुछ भी कर सको थोड़ा सा भी तो अपने आप को गिलहरी की तरह एक बालू के कण में भी सन्तोष होगा कि मैं जो ईश्वर की रचना बनकर के आया, जो लाया था उससे अनजाना नहीं रहा॥ अन्यथा जन्मों बीत जाते हैं 'पुनरपि जननम् पुनरपि मरणम्' में, नहीं खिलता तो मनुष्य का अस्तित्व नहीं खिल पाता॥ उसे पता ही नहीं चल पाता कि मैं क्या लेकर आया था, क्या मुझमें विकसित होना था, क्या निर्मित होना था॥ बन्द डिब्बा आता है बन्द डिब्बा चला जाता है॥ मुझे भूलती नहीं वह बात जो किसी किसान से सुनकर मैं उदाहरण देता था कि मोबाइल को देखकर वो कहता था 'मने ना आवै, लाल ते काटूँ हूँ हरे तै सुणु हूँ'॥ बाद में फीचर और भी आ गए पर यह हरा और लाल बटन और अब स्मार्टफोन की टच स्क्रीन॥ अभी भी बहुत से लोग हरे और लाल बटन तक सीमित होंगे फीचर नहीं जान पाए॥ जबकि मोबाइल फोन अब केवल फोन नहीं एक प्लेटफॉर्म बन गया है॥
मनुष्य अपने अस्तित्व को भी देखे तो जीवन की छोटी-छोटी गतिविधियाँ पूरी करते हुए ही 'पूरा' हो जाता है, लाल और हरा बटन दबाते हुए; अपने फीचर का पता ही नहीं चल पाता॥ आसपास देखा-देखी हम भी करना शुरु हो जाते हैं 'सब साइंस ले रहे हैं हम भी साइंस लेंगे, फिजिक्स ले ली'॥ जिसमें एडमिशन मिल गया, नम्बर आ गए उसमें ले लिया॥ नम्बर तो कई अन्य कारणों से भी आ सकते हैं आवश्यक नहीं कि जो तुम्हारे भीतर की नैसर्गिक गहरी अभिरुचियाँ थी उन्हीं में नम्बर आएँ, not necessary. बुद्धि के द्वारा आँकड़ो की कुश्तियाँ जीती जाती हैं अस्तित्व खो जाता है॥ अधूरा मनुष्य अधूरे अस्तित्व के साथ 'पूरा' हो जाता है॥ अत: अपने अस्तित्व का बोध प्राप्त करने के लिए माँ से पूछो, माँ सटीकता देगी, if not absolute अधिकतम सटीकता देगी॥ फिर ज्योतिषी के सामने जाकर के precise question पूछो॥ मेरे इस जन्म लग्न में कौन सा ग्रह प्रभावी है कौन सा न्यून है, इन ग्रहों के गुण मुझे बताइए॥ मुझे और interpretation नहीं सुनना, मेरा समय कैसा चल रहा है, कैसा नहीं चलने वाला वह सब छोड़ो, वह सब छोड़ दो॥
'आपका जो पत्नी का घर है न वह शत्रु के घर में बैठा हुआ है'
'आह! तभी, तभी यह मेरी शत्रु आई है enemy no. 1'
क्या आपने उसकी विवेचना वैज्ञानिक स्वरूप में करने की चेष्टा की कि वह शत्रु घर में बैठा है इसका तात्पर्य क्या है?
अगर वह शत्रु घर में बैठी है तो आप कोई देवता घर में नहीं बैठे हो॥
आप विश्लेषण करो, what is there which is creating a problem? वह विश्लेषण किए बिना आप यह कहो कि नहीं साहब धारणा बना लो, कि भाई साहब मेरे तो शत्रु घर में बैठी है॥ अच्छा आप देवता घर में बैठे हो?
इस विद्या को इस विज्ञान को लेकर लोगों ने धारणाएँ बनाने में तो क्षण लगाए, विश्लेषण analyse करने में बुद्धि नहीं लगाई॥ इसलिए वह विज्ञान अनर्थ करता है॥ विज्ञान को दोष क्यों देते हो? अनर्थ आप कर रहे हो विज्ञान के साथ॥ You are asking science to act like a weird person तो वह गलती आपकी है॥ इससे मनुष्य को अपने भीतर उन नैसर्गिक गुणों का पता चल जाएगा, निर्माण का पता नहीं लग पाएगा कि मुझे अपने भीतर क्या विकसित करना चाहिए, वह इतनी जल्दी नहीं पता लगेगा पर भीतर के नैसर्गिक गुणों क्षमताओं का पता चल जाएगा॥ फिर उस पर विशेष रूप से एक prescription बनाकर तैयारी की जा सकती है कि यह भीतर आए हुए ऐसे सद्गुण हैं जिन्हें मैं अपनी क्षमता में जितना भी विकसित करके जा सकता हूँ मैं करूँ क्योंकि इन्हें मेरे माध्यम से ईश्वर व्यक्त कराना चाहता है॥
ईश्वर की हर कृति अनूठी है जिसका उदाहरण मैं 25 वर्षों से अधिक समय में हजारों वर्कशॉप में दे चुका हूँ॥ मनुष्य के एक अँगूठे का thumb impression क्या इस पूरी पृथ्वी पर एक व्यक्ति का दूसरे से मिल सकता है॥ शक्लें मिल सकती हैं thumb impression मिल सकता है क्या? नहीं मिल सकता॥ यह 500-600 करोड़ जितने भी हैं इनमें से किसी का भी मिला हो आज तक॥ आज तक विज्ञान ने यह सिद्ध नहीं किया कि thumb impression can be same. आप artificially create कर लो manipulate कर लो अलग बात है॥ इसका तात्पर्य क्या है? ईश्वर की वर्कशॉप में एक unique identity के निर्माण की व्यवस्था है॥ वह एक unique identity बनाकर भेजता है जिसका प्रतीक अँगूठे पर आई हुई छाप है और जीवात्मा की तो बात ही क्या पूछो भाई॥ जीवात्मा के विषय में पूछोगे? वह अपने आप में अनूठी है अद्भुत है॥ उसके विषय मे जानने के लिए तुम्हें गोता लगाना पड़ेगा बिना गोते लगाए नहीं पता लगने वाला॥ जब तक वह नहीं करोगे, बात बनने वाली नहीं है॥ मुझे पढ़ाना है मुझे केवल पढ़ाना है मुझे इस विद्या के नाते अपना आत्मविकास करते हुए आगे बढ़ना है यह मुझे बोध हो चुका कि मेरा काम यही है I have to be in teaching, I can teach and teach. मैं कहूँ मैं अब प्रोडक्शन में जाऊँ यह करूँ वह करूँ सम्भव नहीं, क्योंकि पीछे कुछ न कुछ ऐसा है जो निरन्तर अनेकों जन्मों से कुछ-कुछ करके बढ़ता रहा पर गम्भीरता से विकसित नहीं किया॥
जो जीव आत्म उत्कर्ष चाहता है वह आत्म विकास के माध्यम से 'आत्मानो मोक्षार्थ जगत हिताय च' सार्थक कर सकता है जिस कार्य के लिए उसे सृष्टि में अभिव्यक्त होना है वह हो गया॥ ईश्वर फिर आगे की यात्रा का पड़ाव देता है OK now move on to next. फूल खिल ही नहीं पाते, फूल बस इतनी सा बौर बन कर आते है और ऐसे ही चले जाते हैं खिलने की चेष्टा तो हमें करनी है न इसी को तो आत्म उत्कर्ष कहते हैं जिसमें आत्म विकास का पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण है॥ इसको यूं ही नहीं बिसरा देना, मेरा बस होता मेरे पास यह गुरूकुल होता तो मैं सबको बैठाकर कहता मुझे इन सबका एक-एक करके analysis बताओ॥
देखो किसी काल में ऋषि के समक्ष बालक जाता था तो ऋषि पूछते थे क्या बनना चाहता है? उदाहरण के लिए, वह पहले तो बोल देता कि अर्थशास्त्री बनना चाहता है, और ऋषि ने देख लिया कि नहीं इसमें यह गुण नहीं है॥ ऋषि अपनी दृष्टि से सुझाव देते थे कि यह नहीं यह बन जाओ, यह बन जाओगे तुम॥ मान लो वह बालक स्वीकार नहीं भी करता तो ऋषि उसमें उस क्षमता को विकसित करने के लिए एक लम्बी अवधि के लिए एक साधना देते थे, उस समय तुरन्त शिक्षा आरम्भ नहीं करते थे पहले साधना देते थे॥ यह उदाहरण है सबके लिए ऐसा नहीं करते थे, कि यह एक गाय एक बछिया ले जाओ जब ये तीन या 4 हो जाएँ तब तुम्हारी शिक्षा आरम्भ करेंगे॥ अब एक बछिया को गाय और फिर 3-4 होने में इस प्रक्रिया में कुछ वर्ष लगेंगे it is going to take a few years. तब तक वह उस बछिया की सेवा, पालन पोषण किए बिना उनकी वृद्धि नहीं कर सकता॥
आधुनिक परिवेश में यह बात समझ नहीं आएगी न हमें समझानी है, पर मूल बात एक ही है कि उसमें उन नैसर्गिक क्षमताओं को भी साथ-साथ विकसित करते थे जिससे उसमें वांछित विद्या को धारण करने की क्षमता भी साथ-साथ विकसित हो॥ पर अब वह समय चला गया अब वह समय नहीं है, तो बदले समय में बदले परिवेश में हम आगे बढ़ेंगे॥ पर अपने भीतर की उस क्षमता को जानने के लिए बाबू विज्ञान की सहायता लो यह ज्योतिष जो एक विशुद्ध विज्ञान है॥ प्रश्न वह नहीं पूछो जो तुम पूछना चाहते हो, वह पूछो जो मैंने कहा तुम्हें पूछने के लिए॥ वैसे नहीं पूछो जैसे तुम पूछना चाहते हो, वैसे पूछो जैसे मैंने कहा पूछने के लिए