यज्ञोपवीत और गायत्री का सम्बन्ध
जिस प्रकार वनस्पतियों में तुलसी को जो स्थान प्राप्त है उसके समतुल्य अन्य किसी वनस्पति को नहीं है। मेरे ब्रह्म ऋषि ने कहा कि जो अमृत गुण तुलसी में हैं वह अन्य किसी वनस्पति में नहीं है। अर्थात तुलसी जितनी मात्रा में नहीं है। संभवतः इसीलिए तुलसी हमारे आंगन के बीच में आ कर के अवस्थित होती है, प्रतिष्ठित होती है। आज घरों में आंगन भले ही नहीं है, घरों के स्वरूप बदल गए हैं, परंतु जहां जिसके पास जितनी क्षमता होती है वहां वह बालकनी में कहीं भी इसे लगाने की चेष्टा अवश्य करते हैं। हम चेष्टा करते रहते हैं कि तुलसी घर में होनी चाहिए।
सनातन पद्धति के अंतर्गत तुलसी का सान्निध्य हमें प्राप्त होना चाहिए। ना केवल उसके वनस्पति गुणों के कारण जो कि शरीर और मन के लिए अतुलनीय है, अपितु जो भाव तरंगे उस वनस्पति के आसपास, जो उसका प्राण है उसके कारण तुलसी को इतना श्रद्धेय स्थान प्राप्त है। अगर वनस्पति में पदार्थ रूप में तुलसी है, तो वहीं तुलसी अपने सूक्ष्म स्वरूप मे गायत्री है। अर्थात मैंने तुलसी का भाव जो भी कहां अर्थात जो कुछ वनस्पति तुलसी में है वही भाव स्तर पर उच्चतम पद गायत्री को प्राप्त है। हालांकि पदार्थ से भाव बहुत बड़ा होता है। पदार्थ भाव के अधीन है।
केवल मर्म समझाने की दृष्टि से तुलसी का इतना उदाहरण दिया गया है। मर्म यही है कि जिस प्रकार वनस्पतियों में उसकी कोई तुलना नहीं उसी प्रकार भाव स्तर पर भी गायत्री की कोई तुलना नहीं है। इसलिए गायत्री की प्रतिष्ठा हम यज्ञोपवीत द्वारा करते हैं। यज्ञोपवीत और कुछ नहीं बल्कि यह धागों के स्वरूप में गायत्री ही है। सामान्य रूप से यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ के नाम से जाने गए यह धागे किसी कर्म कांड के समय यज्ञ इत्यादि में ही पहने जाते हैं।
अगर हमने सनातन पद्धति में जन्म लिया है तो यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ का स्वरूप भी जानना ही चाहिए। यह केवल धागा नहीं है। यह वस्तुतः धागों में बनाई गयी गायत्री की प्रतिमा है। प्रतिमा भावनाएं से बनाई जाती है। यह प्रतिमा धागे की है इसमें गायत्री के मर्म को खोजना होगा। इन धागों में ॐ को ढूंढो, भुर भु: स्व: को ढूंढो… तत्सवितुर्वरेण्यम् को ढूंढो… भर्गो देवस्य धीमहि को ढूंढो, धियो यो नः प्रचोदयात् को ढूंढो.... इनको ढूंढने निकलोगे तो पता चलेगा कि यह तो गायत्री की ही प्रतिमा है।
गायत्री से ऊपर कुछ नहीं। वह 24 महा सूक्ष्म तरंगे जिसकी उत्पत्ति यह पूरा ब्रह्मांड है। उन्हीं 24 सूक्ष्म तरंगों की धागों में प्रतिमा है यह यज्ञोपवीत। इसीलिए यज्ञोपवीत को हम अपनी छाती से लगाकर रखते हैं। इसको कंधे पर जिम्मेवारी समझकर ओढ़ते हैं। कंधो पर आया हुआ यह एक दायित्व है। इसके विस्तार हेतु चैनल पर एक विस्तृत वीडियो भी है जिसे आप इस लिंक द्वारा देख सकते हैं। https://youtu.be/w8XUY_DcTp4
ट्रांसक्रिप्शन सुजाता केलकर