आध्यात्मिक साधना के प्रकाश में मनुष्य में भाव का बीज बहुत बड़े कार्य कर सकता है। भाव का बीज जप और तप की शक्ति को दिशा देने का कार्य कर सकता है।
भाव और विचार में भेद है, हलाकि किसी भी विचार का आधार विचार ही होता है। विचार विस्तार है। विचारों का विस्तार मनुष्य को योजना बनाने, अनेक प्रकार के विवरण इत्यादि के विस्तार में ले जाता है। जबकि भाव का बीज एक मर्म की भाँति मनुष्य की किसी भी मंशा (Intention) है।
भाव का बीज हमारी किसी भी इच्छा की पूर्ति का एक आभास बनकर भीतर उभरता है। इसी भाव के बीज का बीजारोपण संकल्प से साधना में बहुत बड़े स्तर का दायित्व निभाता है। साधक अपने संकल्प पर आधारित होकर अनुष्ठान आरंभ करने से पूर्व इसी भाव के बीज का संघन करते हुए, अर्थात भाव के बीज का स्मरण करते हुए जिस किसी उद्देश्य के पूर्ति के प्रति भी वह अनुष्ठान की ऊर्जा को मोड़ना चाहता है, वह उसे वांछित दिशा दे सकता है।
"प्रतिदिन जप साधना पर बैठने से पूर्व अपने संकल्प के भाव का बीज मन में दोहराते हुए जप आरंभ किया और जप पूर्ण करने पर पुनः उसी भाव के बीज को दोहरा दिया"। आपकी मनोकामना अर्थात अनुष्ठान का संकल्प/उद्देश्य वह भले ही किसी लौकिक कारण अथवा अपने व्यक्तिगत अध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए हो। इसमें कोई अंतर नहीं है। जप तप का उद्देश्य जगत की इच्छा पूर्ति हो, किसी अन्य के कल्याण की अथवा अपने आत्म उतकरष की हो, सभी की पूर्ति में भाव के बीज का बड़ा योगदान है।
विशेष महत्व इस बात को समझने का है कि जिस प्रयोजन के लिए आप ने संकल्प लिया है और अब आप अनुष्ठान कर रहे हैं उस प्रयोजन की पूर्ति के लिए आप प्रतिदिन अपने जप की ऊर्जा को उत्पन्न करने से पूर्व और पश्चात भाव के बीज रूप में उसका स्मरण अवश्य करें। इस प्रकार की विधा को अपनाने से आप अपनी अर्जित ऊर्जा का नियोजन उस दिशा में कर पाएंगे।
एक महत्वपूर्ण एवं मुख्य सिद्धांत का आपको सदा स्मरण रहना चाहिए कि जितनी उर्जा का अर्जन आप करेंगे उतने अंशों की उर्जा के अनुरूप आप परिवर्तन अर्थात जीवन में उपलब्धियां भी प्राप्त कर पाएंगे। जितनी उर्जा उतने ही बड़े कार्य उसके द्वारा संपन्न किए जा सकते हैं। छटांक भर ऊर्जा से बहुत बड़े कार्य संपन्न करने का विचार करना कोई समझदारी नहीं है।
जो लोग थोड़े से जप तप पर आधारित होकर जीवन में बड़े-बड़े परिवर्तन लाना चाहते हैं। उन्हें जब कुछ प्राप्त नहीं होता। तो वह मंत्र की ऊर्जा शक्ति और अपने जप तप इत्यादि पर संशय करने लगते हैं, और यह कदापि उचित नहीं है।
इसलिए आवश्यक है कि इस बात का पूरा आभास साधक के मन में बना रहे कि जितने अंशों में ऊर्जा का उपार्जन मेरे जप तप के द्वारा होगा उसके समतुल्य ही कार्य मैं कर पाऊंगा। उससे अधिक की आशा करना उचित नहीं होगा। इस बात का जितना गहरा स्मरण रखेंगे उतने अंशों में हम इस जप और तप के मार्ग में निरंतर सफलता प्राप्त करते हुए आगे बढ़ते जाएंगे।
आज के इस उल्लेख में दो मुख्य बातों का ध्यान रखना है। एक की किस प्रकार अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने संकल्प अनुष्ठान से पूर्व और पश्चात भाव का बीज बोना है ताकि आपकी ऊर्जा को दिशा प्राप्त हो और दूसरे स्थान पर यह भी स्मरण रखना है कि जितनी ऊर्जा अर्जित होगी, उसी की तुलना में कार्य संभव होंगे। उससे अधिक की आशा करना उचित नहीं है।