ट्रांसक्रिप्शनअशोक सत्यमेव
मेरा रात्रि का अभ्यास है थोड़ी देर पद्मासन पर बैठकर मैं भी गोता लगाने की चेष्टा करता हूँ॥ भाव आ जाता है, एक बड़ा सशक्त भाव आया, पहले भी कई बार आया॥ तीन बातें केवल समर्थ ऋषि सत्ता, समर्थ क्षेत्र से मिलती हैं - समझ, सामर्थ्य और अवसर॥ किसे मिलते हैं? जिसे कोई बड़ा काम करना है, जीवन में कोई बड़ा कार्य करना है, अपने से उठ करके करना है॥ अपने तक के काम के लिए आप को बहुत हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है फिर भी, अपने से उठकर लोक कल्याण के लिए, जगत हित के लिए कोई कार्य करना हो॥ जब मैं कोई कार्य कहूँ तो इसमें कर्मयोग का सिद्धांत आ जाता है कि कर्म का तात्पर्य with profit अथवा without profit नहीं होता॥ आप चाहे लाभ के लिए करें, अथवा लाभ रहित करें, कर्म किस दृष्टि से हो रहा है यह महत्त्वपूर्ण है॥ संकीर्ण मनस्थिति से की गई सेवा कर्म-बन्धन है॥ पूर्ण समर्पण से किया गया व्यापार कर्म-बन्धन को खोलेगा क्षय करेगा॥ यह कहने के बाद और स्पष्ट रूप से कहूँगा कि 'समझ, सामर्थ्य और अवसर' ये तीनों समर्थ क्षेत्र, समर्थ सत्ता के घर से ही प्राप्त होते हैं॥ विशेष रूप से उन्हें, जिन्हें कोई बड़ा कार्य करना है॥ अपने से उठकर करना मनुष्य के बूते का नहीं है, यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ॥ बुद्धि खिचड़ियाँ पका सकती है, बुद्धि असमंजस में रह सकती है, बुद्धि ऊहापोह में रह सकती है, बुद्धि आधी अधूरी रहेगी॥ बुद्धि निश्चित ही नहीं कर पाएगी क्या करूँ क्या ना करूँ॥ बुद्धि को हर थाली में कुछ दिख जाएगा उधर को लपक लेंगे॥ बुद्धि निश्चयात्मिका नहीं हो पाएगी॥परन्तु समर्थ सत्ता के क्षेत्र से, मेरे अनुसार ऋषियों के क्षेत्र से जब कुछ समझ प्राप्त होती है तो उस समझ को मैं संकल्प कह सकता हूँ॥ और फिर उस संकल्प की पूर्ति हेतु 'कुछ नहीं' में भी व्यवस्थाएँ बननी आरम्भ हो जाती हैं॥ परीक्षा का काल भी होता है और कई बार बड़ा लंबा भी होता है, 20-20 साल का भी हो सकता है॥ पर एक बात है जो मैं यहाँ बड़ी स्थापना से कहना चाहता हूँ॥ मेरे जीवन से तो नहीं अपितु ब्रहम ऋषि के जीवन से कहता हूँ, किसी व्यक्ति ने किसी जीवन में संघर्ष किया और उसे उसके जीवन की सफलता बहुत देर बाद मिली, बहुत लम्बा समय लगा 20 साल मान लीजिए॥ 20 साल का समय कम नहीं होता॥ तो क्या उसने बहुत खोया? नहीं॥ उसने बहुत कुछ पा लिया क्योंकि आने वाले समय में उस की प्रमाणिकता के आधार पर वर्तमान जीवन ही नहीं आने वाले अगले जन्म में भी उसे पहले से ही अवसर परोस दिए जाएँगे॥ 'समझ, सामर्थ्य और अवसर', समझ सामर्थ्य और अवसर - 'The Right Understanding, The Capabilities & The Opportunity' ये लोक कल्याण के बड़े कार्य करने के लिए समर्थ सत्ता के क्षेत्र से ही आते हैं॥ इन्हें बुद्धि उत्पन्न नहीं कर सकती॥ बुद्धि कौतुक में नाच सकती है, कर नहीं पाएगी॥ जैसे योग कभी सहज होकर नहीं सधता, योग के लिए तप आवश्यक है॥ हालांकि जिसे राजयोग कहते हैं कहने को॥ राजयोग अर्थात् राजमार्ग - नैशनल हाईवे पर एक्सीलेटर दबा दो राजमार्ग पर बस चलते रहो, तो क्या राजमार्ग पर ड्राइविंग के रिस्क फैक्टर कम होते हैं? बल्कि शहर के यातायात से अधिक होते हैं॥ जितनी स्पीड उतनी अधिक vulnerability भी॥ तो राजयोग, जिसे कहते हैं सहजयोग - जिसमें आराम से चलते जाओ, वह भी तप के बिना संभव नहीं है॥राज योग भी सधता नहीं क्योंकि यम नियम आदि इतनी सहजता से पकते नहीं है॥ आत्म परिष्कार इतनी जल्दी होता नहीं है॥ इसलिए इतना सहज नहीं है कि हम समर्थ सत्ता के क्षेत्र से लोक कल्याण के बड़े कार्य के लिए सही समझ, सही सामर्थ्य और सही अवसर हम स्वयं प्राप्त कर सकें॥ इसके लिए तप चाहिए और जब यह अवसर आ जाता है और मनुष्य उसमें जुट जाता है तो प्रतिपल जीवन धन्य प्रतीत होता है॥ एक अनुभूति जिसे आनंद कहते हैं, जो केवल ध्यान के कुछ क्षणों तक एक सुखद अनुभूति की तरह सीमित है, उसका विस्तार जागते हुए, बहिर्मुखी होकर के भी अनुभव होने लगता है॥ उस आनंद की अनुभूति जिसे हम आँखें बंद करके गहरी ध्यान की अवस्था में जाकर के, जब बाहर आने का मन नहीं कर रहा, वह जो एक अद्भुत सा आकर्षण, कुछ उसका स्वरूप खुली आँखों से जीवन जीते हुए भी अनुभव होना आरम्भ हो जाता है॥ क्योंकि उसमें आत्मतत्व के द्वारा हम जीवन के कर्म करते हैं॥ सहायता करने के लिए मन, मस्तिष्क होता है बीच में, और वे अपनी मनमानी भी करते हैं, पर मूलत: आनंद भीतर से छलकता है॥ जिन्हें भी जीवन में बड़े कार्य करने हैं उन्हें समझ, सामर्थ्य और अवसर के लिए बहुत आवश्यकता है कि वह इस प्रकार के ब्रह्म मुहूर्त जैसे ध्यान, ब्रह्म मुहूर्त जैसी इन अवस्थाओं को प्राप्त होते ही रहें॥ उन्हें ज्ञात भी नहीं होगा और उनके द्वारा धीरे-धीरे उन्हें स्वयं ही समझ, सामर्थ्य और अवसर प्राप्त होंगे॥ उनकी समझ, सामर्थ्य और अवसर से लोक कल्याण स्वत: ही आरंभ हो जाएगा॥ लोक कल्याण होते ही मनुष्य जीवन सार्थक होना आरम्भ हो जाएगा॥ बहुत से साधकों के मन में वेदना होती है॥ 'आत्मानो मोक्षार्थ जगत हिताय च' सधना चाहिए॥ उन्हें विशेष रूप से जानना है - समझ, सामर्थ्य और अवसर ये समर्थ क्षेत्र की संपदाएँ हैं जो वहीं से आएँगी और उससे जुड़ने की पहली सीढ़ी ब्रह्म मुहूर्त का ध्यान है, पर केवल ध्यान ही नहीं है, केवल ध्यान ही नहीं है॥ ध्यान के द्वारा प्राप्त उस सुखद अनुभूति, आनंद की अनुभूति के अनुरूप पूरे दिन का आत्म अवलोकन भी है आत्म परिष्कार भी है॥मुझे किसी ने मेरे ब्रहम ऋषि का एक उल्लेख दिया था - 'गायत्री साधना किस की सफल नहीं होती?'जिसका उल्लेख मैं अपने शब्दों में, उनसे प्राप्त मेधा जितनी मेरे पास है उसके अनुसार, करता ही रहता हूँ॥ सत्य यही है कि कोई भी साधना, केवल गायत्री ही नहीं, बिना आत्मावलोकन आत्म परिष्कार के संभव नहीं है जिसे साधना कहा जाता है॥ कोई भी मंत्र कोई भी साधना, जिसे हम सामान्यत: साधना शब्द से संबोधित करते हैं वह वस्तुत: 'उपासना' है॥ मैंने पूर्व में भी उल्लेख किया था॥आत्म अवलोकन, आत्म दर्शन, आत्म परिष्कार, यह साधना है॥ जिसमें कमर टूटती है अपने आप को ही सँभालने में, अपने आपको ही बदलने पाने में, वह 'साधना' है॥ उसके बाद ही 'आराधना - अर्थात ईश्वर के विराट खेत की सेवा' करने की योग्यता प्राप्त होती है॥ तीनों का युग्म जोड़ा 'उपासना, साधना, आराधना'॥ बिना आत्म परिष्कार के साधना, जिसे हम साधना कहते हैं वस्तुतः वह 'उपासना' है॥ बिना आत्म परिष्कार के उपासना भी चरितार्थ नहीं होगी॥ खट्टे बर्तन में दूध डालेंगे तो वह भी खट्टा ही हो जाएगा॥ इसलिए आत्मावलोकन, आत्म परिष्कार बहुत आवश्यक है॥ ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान के उपरान्त, स्वभाव के परिवर्तन को अगर आत्मावलोकन की पीठ पीछे की हवा मिल जाए तो आपमें बहुत बड़े परिवर्तन करने आरम्भ कर देगा॥ उसके उपरांत स्वत: कुछ आएगा, जो अपने आप आता है, जिसे लाने के लिए और कुछ नहीं करना॥ लोग समझते हैं पता नहीं कहाँ से कोई टेक्निक आती है॥ समझ, सामर्थ्य और अवसर इनका अवतरण साधक के अंतःस्थल में स्वत: ही होना आरंभ हो जाता है॥विवेकानंद ने यूँ ही थोड़े ही कहा, "भीतर का मौन भी तुम्हें पावर हाउस बना देगा"॥ अभिप्राय यही है कि समझ, सामर्थ्य और अवसर ईश्वर की बपौती है, उस समर्थ सत्ता का क्षेत्र है, उन ब्रह्म ऋषियों का क्षेत्र है जिनके साथ सम्पर्क सूत्र जुड़ने के उपरांत लोक कल्याण के लिए बड़े मार्ग प्रशस्त होने आरम्भ हो जाते हैं॥ किसी के भी, इसमें कोई पक्षपात नहीं है और जो यह सोचता है कि इसके होंगे उसके नहीं होंगे वह अभी ईश्वर को नहीं जानता, वह अन्याय कर रहा है॥ईश्वर का पक्षपात केवल एक ही बात से है पात्रता से, एलिजिबिलिटी से, बस और कुछ नहीं, बाबू, सारा खेल ही एलिजिबिलिटी का और कुछ नहीं साधक की पात्रता ही सब कुछ है, यही पात्रता ही सब कुछ है॥ इसमें Eligible होते जाओ, 'समझ, सामर्थ्य और अवसर' अवतरित होगा॥ जिन्हें अविश्वास भी हो रहा हो इस बात को सुनकर के, वह प्रयोग करके देखें और अपने अविश्वास से भर कर के प्रयोग करके देखें, अपने आप सामने आ जाएगा॥ इसलिए अगर जनकल्याण लोक कल्याण के विषय में मन में हूक है कुछ करना चाहते हो, बुद्धि पर आधारित होने से पूर्व यह सिद्धांत समझ लो - 'समझ सामर्थ्य और अवसर यह ब्रह्म सत्ता का क्षेत्र है"॥ इसके साथ जुड़ने के लिए ब्रह्म मुहूर्त्त जैसे ध्यान और उसके उपरांत फिर दिन भर आत्म अवलोकन आत्म परिष्कार, Self Correction, Self-Evaluation Self Assessment, Self Appraisal यह सब करोगे अपने आप समझ, सामर्थ्य और अवसर आएँगे, कोई रोक भी नहीं सकता॥भाग्य का बहुत सा भाग वे फिर अपने आप संभालेंगे॥ प्रारब्ध के विषय में मैं नहीं कह सकता, प्रारब्ध एक अलग विषय है॥ मैं प्रारब्ध के विषय में मौन हूँ॥ और प्रारब्ध का का हस्तक्षेप जीवन में है कितना? बहुत थोड़ा सा॥ इसलिए गंभीरता से अवलोकन करना - 'समझ सामर्थ्य और अवसर यह ब्रह्म सत्ता का क्षेत्र है"॥दो कार्य - ब्रह्म मुहुर्त्त ध्यान से जुड़ना, अर्थात् ब्रह्म मुहुर्त्त के समय उपासना की दृष्ति से कुछ ऐसा करना, और उसके उपरांत दिन भर का आत्म अवलोकन, आत्म परिष्कार, यह ब्रह्म सत्ता अपने आप तुम्हें समझ, सामर्थ्य और अवसर, लोक कल्याण हेतु बड़े उद्देश्य की पूर्ति हेतु बड़े उद्देश्य की अवधारणा, हेतु तुम्हें प्रदान करे॥